• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सफलता पानी हो तो श्रमसीकर बहाएँ
    • चन्दन का कोयला तो न बनायें
    • Quotation
    • परमाणुशक्ति से बढ़ कर है आत्मसत्ता
    • सामर्थ्य-सम्पदा से भरा पूरा मानवी अन्तराल
    • दुर्भाग्य का ही भान (Kahani)
    • कारण शरीर की विशिष्टता-भाव श्रद्धा
    • लोक मंगल हेतु सर्वस्व अर्पण
    • मृत्यु के बाद भी है जीवन
    • तपस्वी मुद्रा बदली (Kahani)
    • आत्म शक्ति का संवर्धन एवं प्राण योग
    • राष्ट्र की समर्थता (Kahani)
    • निर्मल मन सो मोह अति भावा”
    • उपयुक्त साहस किया (Kahani)
    • भविष्य कथन कितना सच कितना झूठ?
    • व्यवहार में सदाशयता (Kahani)
    • मुसकराइये व्यक्तित्व को निखारिये!
    • नियुक्त पत्र वापस ले लिया (Kahani)
    • तर्कों की भाषा से परे है ईश्वर की सत्ता
    • कण कण में निहित है अनुशासन एवं एकत्व
    • सुगन्ध के रूप में परिलक्षित (Kahani)
    • जड़ों तक पहुँचने पर ही सही-उपचार सम्भव
    • कश्मीर को स्वर्ग बनाने वाला (Kahani)
    • उपयुक्त वातावरण ढूंढ़ें,अथवा बनायें.
    • Kahani
    • दर्शन साध्य है तो विज्ञान साधन
    • र्जनों को आश्रय तो न देते (Kahani)
    • सर्वनाश की दिशा में बढ़ता मानव समुदाय।
    • “योग”.... बाजीगरी नहीं वरन् उच्चस्तरीय पुरुषार्थ है।
    • विलासताओं का आकर्षण (Kahani)
    • मनोनिग्रह से सम्भव है अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास
    • Kahani
    • परमानन्द का श्रोत, अपने निज के अन्तराल में
    • ग्रंथिभेद एक समग्र साधना
    • Quotation
    • सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है!
    • अन्धविश्वासी भक्त (Kahani)
    • कैसे बदलेगा मानव जाति का भविष्य
    • उत्तर देते न बन पड़ा (Kahani)
    • भूतकाल को भुलाया जाय.
    • ऊँट ने आवाज दी (Kahani)
    • विचार संप्रेषण बिना माध्यम के भी सम्भव
    • असुरों को परास्त किया (Kahani)
    • प्रतिकूलताओं में हड़बड़ाएं नहीं।
    • कष्ट और कलह न रह जायें (Kahani)
    • पिण्ड में निहित शक्ति का-भण्डार
    • विचार तंत्र सुव्यवस्थित रहें
    • सच्ची भगवद् भक्ति (Kahani)
    • क्रिया कलापों का विस्तारः केन्द्र के समाचार
    • स्वास्थ्य रक्षा हेतु- उपवास की अनिवार्यता
    • उसे खारी बना दिया (Kahani)
    • पुण्य की सही परिभाषा
    • सेवा भाव (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - स्वास्थ्य संरक्षण के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग
    • प्रभु-दर्शन
    • प्रभु-दर्शन (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सफलता पानी हो तो श्रमसीकर बहाएँ
    • चन्दन का कोयला तो न बनायें
    • Quotation
    • परमाणुशक्ति से बढ़ कर है आत्मसत्ता
    • सामर्थ्य-सम्पदा से भरा पूरा मानवी अन्तराल
    • दुर्भाग्य का ही भान (Kahani)
    • कारण शरीर की विशिष्टता-भाव श्रद्धा
    • लोक मंगल हेतु सर्वस्व अर्पण
    • मृत्यु के बाद भी है जीवन
    • तपस्वी मुद्रा बदली (Kahani)
    • आत्म शक्ति का संवर्धन एवं प्राण योग
    • राष्ट्र की समर्थता (Kahani)
    • निर्मल मन सो मोह अति भावा”
    • उपयुक्त साहस किया (Kahani)
    • भविष्य कथन कितना सच कितना झूठ?
    • व्यवहार में सदाशयता (Kahani)
    • मुसकराइये व्यक्तित्व को निखारिये!
    • नियुक्त पत्र वापस ले लिया (Kahani)
    • तर्कों की भाषा से परे है ईश्वर की सत्ता
    • कण कण में निहित है अनुशासन एवं एकत्व
    • सुगन्ध के रूप में परिलक्षित (Kahani)
    • जड़ों तक पहुँचने पर ही सही-उपचार सम्भव
    • कश्मीर को स्वर्ग बनाने वाला (Kahani)
    • उपयुक्त वातावरण ढूंढ़ें,अथवा बनायें.
    • Kahani
    • दर्शन साध्य है तो विज्ञान साधन
    • र्जनों को आश्रय तो न देते (Kahani)
    • सर्वनाश की दिशा में बढ़ता मानव समुदाय।
    • “योग”.... बाजीगरी नहीं वरन् उच्चस्तरीय पुरुषार्थ है।
    • विलासताओं का आकर्षण (Kahani)
    • मनोनिग्रह से सम्भव है अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास
    • Kahani
    • परमानन्द का श्रोत, अपने निज के अन्तराल में
    • ग्रंथिभेद एक समग्र साधना
    • Quotation
    • सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है!
    • अन्धविश्वासी भक्त (Kahani)
    • कैसे बदलेगा मानव जाति का भविष्य
    • उत्तर देते न बन पड़ा (Kahani)
    • भूतकाल को भुलाया जाय.
    • ऊँट ने आवाज दी (Kahani)
    • विचार संप्रेषण बिना माध्यम के भी सम्भव
    • असुरों को परास्त किया (Kahani)
    • प्रतिकूलताओं में हड़बड़ाएं नहीं।
    • कष्ट और कलह न रह जायें (Kahani)
    • पिण्ड में निहित शक्ति का-भण्डार
    • विचार तंत्र सुव्यवस्थित रहें
    • सच्ची भगवद् भक्ति (Kahani)
    • क्रिया कलापों का विस्तारः केन्द्र के समाचार
    • स्वास्थ्य रक्षा हेतु- उपवास की अनिवार्यता
    • उसे खारी बना दिया (Kahani)
    • पुण्य की सही परिभाषा
    • सेवा भाव (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - स्वास्थ्य संरक्षण के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग
    • प्रभु-दर्शन
    • प्रभु-दर्शन (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1988 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


भविष्य कथन कितना सच कितना झूठ?

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
सामान्य बुद्धि तर्कवाद के सहारे भावी संभावनाओं को सुनिश्चित करने के संबंध में नकारती ही रही है। कहा जाता है कि भविष्य भगवान के हाथ है। फिर प्रकृति संयोग उनका ताना-बाना बनते हैं। मनुष्य को पता कहाँ रहता है? यदि भविष्य सुनिश्चित रहा होता तो किसी को उसके संबंध में चिन्तित रहने या दौड़ धूप करने की आवश्यकता ही न पड़ती। जो होना है, वह समय पर हो जाएगा यह मान लेने पर भले बुरे भवितव्यता के संबंध में मनुष्य को निश्चिन्त हो जाना चाहिए था। अनेकों ताने बाने बुनने, योजनाएँ बनाने, साधन जुटाने, प्रयत्नरत होने एवं सहयोग संजोने की आवश्यकता ही न पड़ती। जो होना है, वह होकर ही रहेगा, इस मान्यता के उपरान्त पुरुषार्थवाद के सिद्धांत की कट जाती है। भाग्य में इतनी विद्या लिखी है, इतनी सफलता मिलती है, यह घटना घटित होनी है, इसकी सही जानकारी यदि किसी को हो तो वह निश्चिन्त क्यों न रहेगा? लाभ उठाने और हानि से बचने के लिए उसे प्रयत्न क्यों करने पड़ेंगे? यह मोटा तर्क ऐसा है जो हर समझदार की समझ में आता है। इसी आधार पर भविष्यवक्ताओं, ज्योतिषियों के कथनों पर अविश्वास किया जाता है। कारण कि उसमें कर्म की क्षमता का महत्व ही कट जाता है। यदि सब कुछ पूर्व निश्चित ही हुआ होता तो उसी की प्रतीक्षा करते रहते। परंतु ऐसा कहाँ होता है? रोगी का इलाज करना पड़ता है यदि जीवन-मरण निश्चित ही रहा होता तो चिकित्सा की कोई आवश्यकता ही न रही होती। विद्या पढ़ने में इतना समय, श्रम और धन क्यों लगाना पड़ता? व्यवसायों के उतार-चढ़ाव भरे झंझटों में पड़ने की क्या आवश्यकता होती?

यह तर्क भविष्य कथन को नकारता है। पूछा जाता है कि यदि भवितव्यता सही रही होती तो किसी ज्योतिषी को आजीविका उपार्जन के लिए जन्मपत्री बनाने, यजमान ढूंढ़ने आदि का प्रयत्न क्यों करना पड़ता? जितना लाभ मिलना है, वह समय पर अपने आप घर बैठे मिल जाता, इसी प्रकार विपत्ति भी यदि निश्चित रही होती तो उसे टालने के लिए कोई क्यों चिन्ता करता? पर देखा जाता है कि मनुष्य स्वभाव प्रयत्नशील और कार्यरत रहने का है। इसका सीधा तात्पर्य यह हुआ कि भवितव्यता की सुनिश्चितता को न बुद्धि स्वीकार करती है, न अन्तरात्मा।

एक पुरानी घटना है। किसी राजा को ज्योतिष विद्या पर अटूट विश्वास था। संयोगवश एक ज्योतिषी के साथ भी उनका संपर्क जुड़ गया था जो अपनी विद्या में प्रवीण माने जाते थे उनने राजा की जन्मपत्री देखकर बताया कि साठ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो जाएगी। इसमें एक वर्ष बाकी थे। राजा को विश्वास हो गया। मृत्यु का भय उसे बुरी तरह सताने लगा। नियत उत्तरदायित्व भी अब उससे निभ न पाते। परिवार और दरबार में घोर निराशा छा गई। सभी शोकातुर रहने लगे। स्थिति का पता चलने पर पड़ोसी राजा चढ़ाई करने और उस राज्य को हड़प लेने की योजना बनाने लगे। सहयोगियों ने भी हाथ खींच लिया। शोकातुर राजा कुछ ही महीनों में सूखकर काँटा हो गया। मृत्यु ही उसे अपने चारों ओर घूमती दिखाई नजर आती।

प्रधानमंत्री चतुर था। इस घुसे हुए बहम से राजा को निकालने और बिगड़ती जाती परिस्थितियों को सँभालने का उसने निश्चय किया। राज दरबार लगा। ज्योतिषी को भी बुलाया गया। मंत्री जी ने पूछा’-भगवन्! आप सब का भविष्य बताते हैं तो आपको अपना भविष्य भी तो विदित होगा ही। ज्योतिषी ने आश्चर्यपूर्वक उसका उत्तर हाँ में दिया। फिर पूछा गया कि आपको कितनी उम्र तक जीना है। उनने गणित करके कहा-”सत्तर साल के अन्त में मेरी मृत्यु होगी। अभी तो पन्द्रह वर्ष बाकी है।”

इस पर मंत्री ने तलवार उठाई और एक ही झटके में ज्योतिषी का शिर काट दिया। इस अद्भुत घटना से सभी सकते में आ गये। राजा भी। मंत्री ने सन्नाटे को तोड़ते हुए राजा से कहा- “ज्योतिषी को सत्तर वर्ष की आयु तक ही जीना था। तब उनकी मृत्यु पंद्रह वर्ष पूर्व ही कैसे हो गई।” इस घटना ने भविष्य कथन की अनिश्चितता को सिद्ध कर दिया न? राजा ने अपनी मनःस्थिति और मान्यता पर नये सिरे से विचार किया। मृत्यु का भय छोड़ दिया। चिंता दूर हुई। अस्त-व्यस्त कारोबार-राजपाट नये सिरे से सँभाला गया। परिवार और दरबार में उत्साह उत्सव और प्रसन्नता की लहर छा गई। सारा कारोबार व्यवस्था पूर्वक चल पड़ा। साथ ही परिकर के सभी लोगों का अन्तःविश्वास बदला कि भविष्य कथन मात्र त्रुटिपूर्ण ही नहीं होते। वह अनिश्चित भी है। यदि उसमें कुछ तथ्य है तो उसे प्रयत्नपूर्वक बदल सकने की क्षमता मनुष्य में है।

भविष्य की अनिश्चितता के संबंध में अनेकों घटनाक्रम आये दिन घटित होते हैं। बाढ़, भूकम्प, ज्वालामुखी, दुर्भिक्ष दुर्घटना आदि की पूर्व जानकारी कहाँ होती है? यदि वे जानकारियाँ समय रहते मिल गई होती तो लोग घटना स्थल में समय रहते पलायन कर जाते और जान-माल की भयंकर क्षति से सहज बचा जा सकता। मृत्यु का समय निश्चित होने की बात यदि सही रही होती तो आक्रमणकारी निश्चिन्त हो जाते। जब उनके लिये जान जोखिम ही नहीं हो तो फिर आक्रमण जारी रखने में जो लाभ उठाया जा सकता है उससे कोई क्यों चूकेगा?

ज्योतिष विद्या का धंधा करने वाले कम से कम निश्चिन्त ही रहते। उन्हें नियत समय पर अभीष्ट लाभ मिलता रहता। तब उन्हें भी हर दृष्टि से पूर्ण निश्चिन्त देखा जाता। पर ऐसा होता कहाँ है? वे अपने व्यवसाय के बारे में अविश्वास और अनिश्चित रहने के कारण ही सामान्य श्रमिकों एवं व्यवसाइयों की अपेक्षा अधिक चिन्तातुर देखे जाते हैं और तीर तुक्के भिड़ाने के लिए अधिक दंद-फंद करते रहते हैं। इससे तर्कवादियों की यह दलील सही प्रतीत होती है कि भविष्य का कोई निश्चय नहीं। उसकी जानकारी किसी को भी नहीं। यदि वैसी कुछ आशंका भी होती उसे बदलने-पलटने में मानवी पुरुषार्थ बहुत अंशों तक निश्चित हो सकते हैं। पुरुषार्थ-पराक्रम के प्रति आस्था इसी कारण जमती है और लोग आमतौर से उसी का आश्रय लेते है।

इतने पर भी सर्वथा यह नहीं कहा जा सकता कि मनुष्य को भविष्य के विषय में सर्वथा अन्धकार में ही रहना पड़ता है। उसे उस संबंध में कोई आभास नहीं होता। यदि ऐसा रहा होता तो किसी के लिए भी कार्यविधि निश्चित करना, योजनायें बनाना संभव न रहा होता। आकस्मिक परिवर्तनों के कारण उलट-पलट भी हो सकती है पर आमतौर से पिछले अनुमानों के आधार पर भावी संभावनाओं का अनुमान लगा लेना कुछ बहुत कठिन नहीं होता। सही अनुमानों का सही समय पर सही कसौटी पर खरा उतरना लोक व्यवहार की एक मान्यता प्राप्त विद्या है। इसी के आधार पर वर्तमान को इस प्रकार विनिर्मित किया जाता है जिसमें इच्छित भविष्य की परिकल्पनायें यथासमय सही सिद्ध हो सकें। इस संबंध में प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी एवं चंद्रमा पर जाने वाले दूसरे अंतरिक्ष दल के सदस्य डॉ. जॉन मिचेल का एक कथन यहाँ उल्लेखनीय है। भविष्य विज्ञान (फ्यूचरालॉजी) की वैज्ञानिकता पर अपने विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा था “कि आज हम जो निर्णय लेते हैं, तदनुरूप क्रिया-कलापों का निर्धारण करते हैं, वही भविष्य बन जाता है। यदि हमारे कदम हमें गलत दिशा में ले जाने वाले हैं तो भविष्य कथन आज भी किया जा सकता है कि हम विनाश को प्राप्त होंगे। यदि हम सही दिशा में चल रहे है तो निश्चित ही प्रगति के द्वारा खुलेंगे।”

किसान अपने कृषि कार्य में भविष्य की आशा के आधार पर ही प्रवृत्त होता है। जुताई, बुवाई, निराई, सिंचाई, रखवाली आदि के समस्त कष्ट सहन की क्रिया प्रक्रिया इसी आधार पर अपनाई जाती है कि नियत समय पर नियत परिणाम उपलब्ध होगा। व्यवसायियों की समस्त गतिविधियाँ इसी आधार पर चलती हैं। वे अँधेरे में ढेला नहीं ही फेंकते। अपवाद स्वरूप प्रतिकूलताएँ भी सामने उभरती है कि सभी प्रकार की योजनाएँ बनाने वाले अपने कृत्य की,उसके प्रगति की सभी कल्पना कर लेते हैं जो आमतौर से सही उतरती हैं। विद्यार्थी लम्बे समय तक विद्या अध्ययन में निरत रहने के लिए उसी विश्वास के साथ तत्परता अपनाते हैं कि दूसरों की तरह ही उन्हें भी अध्ययन श्रम का समुचित पारिश्रमिक मिलें।

अन्यत्र घटित होने वाले घटना-क्रमों के साथ तारतम्य बिठाते हुए अपनों या अन्यों के संबंध में वैसी ही परि-कल्पनाएँ की जाती हैं। बच्चा बढ़ता है, किशोर बनता है, प्रौढ़ होता है। अधेड़ स्थिति आती है, ढलान का क्रम चलता है, बुढ़ापा आता है कि फिर अन्ततः मरना पड़ता है। यह प्रकृति क्रम अन्यत्र सभी जगह चलता दिखाई देता है। इस आधार पर अपने और अन्यों के लिए भी वह सम्भावना सुनिश्चित होने की मान्यता बनाई जाती है, जो आमतौर से सही ही होती हैं। वर्षा के बाद सर्दी, सर्दी के बाद गर्मी, गर्मी के बाद वर्षा का ऋतु चक्र चिरकाल से अनुभव में आता रहा हैं, इसलिए भविष्य में भी वैसा ही होते रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए सभी लोग अपनी रीति-नीति से विधि व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन करते रहते हैं। तर्क, तथ्य, प्रमाण, अनुभव के आधार पर यह निश्चय किया जाता है कि क्या करने पर उसकी क्या परिणति हो सकती है। बुद्धिमान दूरदर्शी इस विशेषता को विशेष रूप से अर्जित कर लेते है और अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर ऐसी योजना बना लेते हैं, ऐसी रीति-नीति निर्धारित कर लेते हैं जो समयानुसार यथावत् परिणाम उपस्थित करती है। भवन निर्माण के नक्शे बनाने वाले आर्कीटैक्ट अपने विषय में इतने प्रवीण हो जाते हैं कि उनकी की गई कल्पना समयानुसार भव्य भवन के रूप में प्रस्तुत होती है। श्रम, साधन, पूँजी, व्यवसाय आदि के संबंध में भी वे जिन आवश्यकताओं को लिए रहते हैं वह इस आधार पर जुटानी पड़ती हैं कि अनुभवी प्रस्तुतकर्ता की कल्पना, यथार्थ के अत्यधिक समीप होती है। योजन बनते ही साधन जुटाने और कार्य संचालन का प्रयास विश्वासपूर्वक आरंभ हो जाता है। यह भविष्य की सही परिकल्पना की ही सार्थकता है। यदि इसे कोई चाहे तो भविष्य कथन भी कह सकता है। पर चूँकि यह सारा शोध तथ्यों के आधार पर प्रतिपादित किया गया है। इसलिए उसे अविश्वस्त नहीं ठहराया जाता। यदि वह परिकल्पनाएँ अनिश्चित या अविश्वस्त रही होती तो आर्कीटैक्ट, इंजीनियरों की कोई पूछ न होती और उन्हें भी ज्योतिषियों की तरह बेपंख उड़ाने उड़ने वाला कहा जाता।

वैज्ञानिक एक प्रकार के भविष्यदर्शी ही होते हैं। उनके आविष्कारों का आरंभिक, प्रयास प्रधान तथा परिकल्पनाओं के आधार पर ही होता है। इसी आधार को वे मजबूती से अपनाए रहते हैं। आवश्यकतानुसार उनमें सुधार परिवर्तन के प्रयोग चलते रहते हैं और अन्ततः अद्भुत आविष्कार कर सकने का श्रेय प्राप्त करते हैं।

दार्शनिकों की स्थापना भी इसी आधार पर होती है। वे ऐसे सिद्धान्त गढ़ते हैं जो पिछले किये की अपेक्षा अगले दिनों अधिक सुख शान्ति के आधार खड़े कर सकें। धर्मशास्त्रों, मर्यादाओं, वर्जनाओं का निर्धारण जिन उर्वर मस्तिष्कों द्वारा हुआ है उन्हें दूरदर्शी, युगद्रष्टा, मनीषी, मनस्वी आदि ही नामों से जाना जाता है। इन्हें यथार्थवादिता का अवलम्बन लेने वाले भविष्य निर्माता कहा जाय तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति न होगी। सुधारकों, आन्दोलनों को जन्म देने वालों की सूझबूझ भी यही काम करती है। वकीलों का व्यवसाय भी इसी सूझबूझ के आधार पर चलता और सफल होता है। चिन्तन और मनन की शक्ति इसी आधार पर आँकी जाती हैं कि उन्हें अपनाकर वस्तुस्थिति समझी और भविष्य की उपयोगी विधिव्यवस्था बनाई जाती है। तत्वदर्शी इसी गहराई में उतरते और जन साधारण के लिए ऐसा मार्ग बना जाते हैं जिस पर चलने वाले प्रगति, समृद्धि, सुख शान्ति का सत्परिणाम उपलब्ध करते रहें। यह सभी भविष्य की सही परिकल्पना कर सकने वाले विशेषज्ञ हैं। इन्हें कोई चाहे तो भविष्यवक्ता भी कह सकता है। विशेषता उनकी यही होती है कि वे जो कुछ सोचते हैं, जैसा कुछ निष्कर्ष निकालते हैं, वह साकार होते हैं। उनका चिन्तन कार्य कारण की संगति बिठाता हैं। तथ्यों की प्रधानता देता है। क्रिया और उसकी परिस्थिति का निर्धारण क्रिया और उसकी परिणति का सही अनुमान लगा सकने की सूझ बूझ को ही प्रमुखता देता है। यही भविष्य विज्ञान का मर्म व तत्व ज्ञान।

First 14 16 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सफलता पानी हो तो श्रमसीकर बहाएँ
  • चन्दन का कोयला तो न बनायें
  • Quotation
  • परमाणुशक्ति से बढ़ कर है आत्मसत्ता
  • सामर्थ्य-सम्पदा से भरा पूरा मानवी अन्तराल
  • दुर्भाग्य का ही भान (Kahani)
  • कारण शरीर की विशिष्टता-भाव श्रद्धा
  • लोक मंगल हेतु सर्वस्व अर्पण
  • मृत्यु के बाद भी है जीवन
  • तपस्वी मुद्रा बदली (Kahani)
  • आत्म शक्ति का संवर्धन एवं प्राण योग
  • राष्ट्र की समर्थता (Kahani)
  • निर्मल मन सो मोह अति भावा”
  • उपयुक्त साहस किया (Kahani)
  • भविष्य कथन कितना सच कितना झूठ?
  • व्यवहार में सदाशयता (Kahani)
  • मुसकराइये व्यक्तित्व को निखारिये!
  • नियुक्त पत्र वापस ले लिया (Kahani)
  • तर्कों की भाषा से परे है ईश्वर की सत्ता
  • कण कण में निहित है अनुशासन एवं एकत्व
  • सुगन्ध के रूप में परिलक्षित (Kahani)
  • जड़ों तक पहुँचने पर ही सही-उपचार सम्भव
  • कश्मीर को स्वर्ग बनाने वाला (Kahani)
  • उपयुक्त वातावरण ढूंढ़ें,अथवा बनायें.
  • Kahani
  • दर्शन साध्य है तो विज्ञान साधन
  • र्जनों को आश्रय तो न देते (Kahani)
  • सर्वनाश की दिशा में बढ़ता मानव समुदाय।
  • “योग”.... बाजीगरी नहीं वरन् उच्चस्तरीय पुरुषार्थ है।
  • विलासताओं का आकर्षण (Kahani)
  • मनोनिग्रह से सम्भव है अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास
  • Kahani
  • परमानन्द का श्रोत, अपने निज के अन्तराल में
  • ग्रंथिभेद एक समग्र साधना
  • Quotation
  • सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है!
  • अन्धविश्वासी भक्त (Kahani)
  • कैसे बदलेगा मानव जाति का भविष्य
  • उत्तर देते न बन पड़ा (Kahani)
  • भूतकाल को भुलाया जाय.
  • ऊँट ने आवाज दी (Kahani)
  • विचार संप्रेषण बिना माध्यम के भी सम्भव
  • असुरों को परास्त किया (Kahani)
  • प्रतिकूलताओं में हड़बड़ाएं नहीं।
  • कष्ट और कलह न रह जायें (Kahani)
  • पिण्ड में निहित शक्ति का-भण्डार
  • विचार तंत्र सुव्यवस्थित रहें
  • सच्ची भगवद् भक्ति (Kahani)
  • क्रिया कलापों का विस्तारः केन्द्र के समाचार
  • स्वास्थ्य रक्षा हेतु- उपवास की अनिवार्यता
  • उसे खारी बना दिया (Kahani)
  • पुण्य की सही परिभाषा
  • सेवा भाव (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात - स्वास्थ्य संरक्षण के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग
  • प्रभु-दर्शन
  • प्रभु-दर्शन (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj