
तेजसाँ हि न वयः समीक्ष्यते
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कायिक संरचना की दृष्टि से आनुवाँशिकी को मान्यताओं को भले ही अंगीकार कर लिया जाय, किन्तु बुद्धि और भावना के क्षेत्र में ऐसी विलक्षणताएँ संततियों में उभरनी पाई गयी है, जिन्हें देख कर यही कहने को बाध्य होना पड़ता है कि व्यक्तित्व की ये विशेषताएँ या तो पूर्व जन्म की अर्जित-वर्धित, संचित-सुरक्षित है अथवा इसी जन्म में अभिभावकों द्वारा प्रदत्त सुसंस्कारिता के वातावरण के कारण है। विश्व भर में कितने ही बालक ऐसे हुए है जो अल्पायु में ही असामान्य प्रतिभा सम्पन्न देखे गये है।
बिना किसी प्रशिक्षण अध्ययन के बचपन से ही प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तियों के जीवन क्रम का अवलोकन करते है उनके असामान्य होने का प्रत्यक्ष कोई कारण हाथ नहीं लगता। वस्तुतः हम मस्तिष्क को एक सामान्य-सा अंग अवयव भर मान लेते है। किंतु देखा जाता है कि यदि मनुष्य अपनी लगन, एकाग्रता और कुशलता को एक स्थान पर केन्द्रित करने लगे तो साधा-रंग जान पड़ने वाला मस्तिष्क भी असाधारण प्रति कर दिखाता है और अल्पायु में ही ऐसी प्रतिभा का परिचय देता है, जिसे देख दाँतों तले उंगली दबानी पड़ती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बुद्धिमत्ता के लिये आयु कोई मापदण्ड नहीं है।
केरल का एक सात वर्षीय बालक एडमण्ड थामस क्िलट ... अप्रैल, ... को दुनिया से विदा हो गया किंतु इतनी छोटी सी उम्र में ही क्िलट ने लगभग 20,000 ऐसी अद्भुत कलाकृतियों का निर्माण कर दिखाया जो बड़ी आयु के बाद एक कुशल कलाकार द्वारा भी संभव नहीं हो पाता। क्लिंट स्टेट बैंक ऑफ ट्रेवेनकोर के एक अधिकारी एम0टी0 जोसेफ का इकलौता बेटा था। उसके माता-पिता बड़े ही धार्मिक प्रवृत्ति के है। जन्म से एक वर्ष बाद ही वह घर की दीवारों पर पत्थर, कोयला और लकड़ी से लकीरें खींचने लगा। माँ ने पहले तो बच्चे की इन गतिविधियों को बचपन का कौतुक-कौतूहल भर समझा और दीवार खराब होने की आशंका में डाँटा-डपटा भी। लेकिन बाद में वह भी बच्चे की जन्मजात विशेषताओं को समझने लगी। तीन वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते क्लिंट को गुर्दे की बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहाँ भी उसकी चित्रकला का अभ्यास निरन्तर चलता रहा। रात हो अथवा दिन जब कभी भी उसे मौका लगता तभी वह कुछ न कुछ चित्रकारी का चमत्कार प्रस्तुत करता ही रहता था। एक बार उसके हाथ में गहरी चोट पहुँची फिर भी उसने अपनी क्रियाशीलता में कमी नहीं आने दी। शैक्षणिक योग्यता तो उसकी मात्र अपर के0जी0 तक ही थी। इतनी कम आयु में ही उसने स्वर्ण पदक हस्तगत कर दिखाये। क्लिंट ने उसकी मृत्यु के कुछ समय पूर्व अपनी माँ से कहा-मैं निद्रा जैसी स्थिति में कुछ समय के लिए जा रहा हूँ। मुझे कोई जगाने की कोशिश न करे और वह इतनी छोटी आयु में ही अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय देकर इस दुनिया से चला गया। यूनीसेफ ने उसकी कलाकृतियों, बधाई पत्रों और कलेंडरों को अपनी प्रदर्शनी हेतु सुरक्षित रखा है। ताकि बच्चों को अल्पायु से ही कुछ कर दिखाने की प्रेरणा सतत् मिलती रहे।
सन् ... में कलकत्ता में जन्मे देवाँगन दत्त नामक बालक 1 वर्ष की आयु तक पहुँचते ही संगीत के क्षेत्र में असाधारण प्रतिभा अर्जित कर दिखाई, जिसके फलस्वरूप .... में उसे “सर्वश्रेष्ठ संगीतकार” की उपाधि से विभूषित किया गया। तीन वर्ष की आयु पूरी करते ही देवाँगन के मूख से संगीत की स्वर लहरियाँ सहज ही फूट पड़ी थी। उसके तालबद्ध और लयबद्ध गायन विशेष रूप से रवीन्द्र संगीत और ... के भक्ति-गीतों से प्रभावित होकर देश की संगीत प्रिय जनता ने उसे साँस्कृतिक आयोजनों में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रण पत्र भेजना आरंभ कर दिया। नई दिल्ली में अखिल भारतीय सँगीत प्रतियोगिता के हीरक जयन्ती समारोह में जब देवाँगन को बुलाया गया तो उसकी इस विलक्षण मेधा के उपहार स्वरूप उसे “बाँर्नट सिंह” की विभूति से सम्मानित किया गया। संगीत ही नहीं खेल-कूद के क्षेत्र में भी उसे विशिष्ट योग्यता का परिचय दिया है।
हैदराबाद के एक इंजीनियर अमेरिका के ह्रास्टन शहर में वैकटेल कौरपोरेसन में कार्यरत है। उनका चार वर्षीय पुत्र रोहन बारावडेकर प्री-किंडर गार्टन का छात्र है। रोहन अपनी बोल चाल एवं लेखन की शैली में ऐसे शब्दों का प्रयोग करता हैं जो उससे दूनी आयु के बच्चों भी नहीं कर पाते। ह्रास्टन वर्ण वर्ण-विन्यास प्रतियोगिता में उसकी असाधारण प्रतिभाओं को देख कर नेशनल चैम्पियनशिप की उपाधि से विभूषित किया जा चुका हैं। बच्चे के पास-पड़ौस में रह रहें लोगों का कहना हैं कि जिन शब्दों के बारे में रोहन को कोई पूर्व जानकारी नहीं हैं फिर भी वह उन्हें सुगमतापूर्वक लिख सकता है। उसकी स्मरण शक्ति भी बड़ी विचित्र हैं। किसी भी पुस्तक या समाचार पत्र की घटनाओं को एक बार पढ़ लेने पर उन्हें ज्यों का त्यों सुना देने की क्षमता रखता हैं।
भारतवर्ष में तो ऐसी प्रतिभाएँ महामानव के रूप में सतत् अवतरित होती रहीं हैं। महर्षि अरविंद जब छोटे थे, तभी से उन्होंने अँग्रेजी में कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थी, तथा अनेक विदेशी भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था। संत ज्ञानदेव ने बारह वर्ष की अवस्था में गीता भाष्य ज्ञानेश्वरी लिखी। चौदह वर्ष की छोटी आयु में ही रविंद्रनाथ टैगोर ने शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक .... का बंगला अनुवाद कर लिया था। भारत श्रीमती सरोजनी नायडू ने तेरह वर्ष की अल्प-कोकिला पंक्तियों की अँग्रेजी कविता लिख डाली ..... प्रख्यात नाटककार हरीन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय जब चौदह वर्ष के थे, तभी विख्यात नाटक अब्ब हसन की रचना की थी। पं0 .... ने सात वर्ष की आयु में हो संस्कृत भाषा सीख ली थी। विवेकानन्द ने किशोरावस्था में ही अपने गुरु का कार्यभार अपने ऊपर ले रामकृष्ण मिशन का विस्ताद समग्र विश्व में कर दिखाया था। 30 वर्ष की आयु में विश्व धर्म सम्मेलन में वे भारतवर्ष का डंका बजाकर आए। अपनी विलक्षण प्रतिभा, स्मरण शक्ति से उनने पाश्चात्य जगत को हतप्रभ कर दिया था। पुस्तक को एक बार पलट भर जाने पर ही वह उन्हें कण्ठस्थ हो जाती थी। 31 वर्ष की आयु में वे उतना कुछ कर गए जिस के लिए सौ प्रतिभाशाली भी कम पड़ेंगे।
पाश्चात्य देशों में भी ऐसे बालक जिन्हें “प्रोडिर्ज कहा जाता हैं ने समय-समय पर अपनी प्रतिभा से वैज्ञानिक को हतप्रभ किया हैं। सेंट मेरीज कॉलेज बाल्टीमोर का एक विद्यार्थी मार्टिन स्नातक होने से दो वर्ष पूर्व 28 वर्ष की आयु में ही गणित का प्रोफेसर नियुक्त हो गया था। बाद में वह बाल्टी मोर का आर्क विशप बना। स्वीडन का बैरान गुस्तफ 10 वर्ष की आयु में योरोप की 9 भाषाएँ बोलने लगा था। ... वर्ष की आयु में वह स्वीडन के उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त हुआ। पेरिस विश्व विद्यालय के डेविस लीफ्रेत्स को .... वर्ष की आयु में ही यूनानी तथा लैटिन भाषाओं को प्रोफेसर बना दिया गया था।
जर्मनी का एक विद्यार्थी एंड्रस मुलर ... वर्ष की आयु में सभी यूरोपियन भाषाओं का ज्ञाता बन गया था और उनमें कविताएँ करने लगा था। जार्ज ड्राइस्की ... वर्ष की आयु में इंग्लैंड का प्रधान धर्मोपदेशक नियुक्त हुआ। उसने ... वर्ष की आयु में यूनानी और हिब्रू भाषाएँ सीख ली थी।
जर्मनी के कार्लविट नामक बालक ने अल्पायु में आश्चर्यजनक बौद्धिक प्रगति करने वाले बालकों में अपना कीर्तिमान स्थापित किया हैं। वह ... वर्ष की आयु में माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करके लिपजिंग विश्व विद्यालय में प्रविष्ट हुआ और ... वर्ष की आयु तक पहुँचने पर उसने न केवल स्नाकोत्तर परीक्षा पास की वरन् विशेष अनुमति लेकर पी0एच0डी0 की डिग्री भी प्राप्त कर ली। .... वर्ष की आयु में उसने उससे भी ऊँची एल.एल.डी. की उपाधि अर्जित की और उन्हें दिनों वह बर्लिन विश्व विद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त किया गया।
ऐसी प्रतिभाएँ सिर्फ ज्ञान व अध्ययन क्षेत्र में ही नहीं दिखाई पड़ती वरन् यदा-कदा शासन क्षेत्र में भी ऐसे नक्षत्र उदित होते रहते हैं, जिनकी विलक्षण सूझबूझ, विचारशीलता-विवेकशीलता, निर्णय क्षमता और शासन सामर्थ्य अद्वितीय होती हैं। बड़ी आयु और अनुभवी लोगों में यह विशेषता तो समझ में आती हैं, पर छोटी उम्र में ऐसे कौशल उपज पड़ना निश्चय ही, आश्चर्य की बात है। पिछली शताब्दियों में ऐसे अनेक शासक पैदा हुए हैं, जिन्होंने अल्पायु में ही ऐसे करतब कर दिखाये।
23 वर्ष की आयु में फ्राँस का काउण्ट टेण्डे शासनाध्यक्ष और सेनापति बन गया था।
फ्राँसीसी सेना का कर्न मारक्विस ... वर्ष की आयु में भर्ती हुआ और 42 वर्ष सेना में नौकरी करता रहा। 42 वर्ष की आयु में जब उसकी मृत्यु हुई, तब वह फील्ड मार्शल भी था।
छत्रपति शिवाजी ने 11 वर्ष की आयु में ही तोरण के पहाड़ी दुर्ग पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया था और दो वर्ष बाद पुरन्दर के किले को भी जीत लिया। इसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने भी 11 वर्ष की आयु में ही लाहौर पर विजय प्राप्त की थी।
फ्राँस का लुई चौदहवाँ यद्यपि 8 वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठा था, किंतु राज्य का शासन का वास्तविक कर्ता-धर्ता उसका मंत्री मेजिरा ही था। फिर भी 22 वर्ष की आयु में उसने शासनतन्त्र पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया। उल्लेखनीय है कि यूरोप के इतिहास में लुई चौदहवें जितनी लम्बी अवधि तक किसी भी राजा ने राज्य नहीं किया।
रूस का पीटर महन ... वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठा। उसने अपने देश का पिछड़ापन दूर करने के लिए जितने प्रयास किये सम्भवतः रूस के किसी भी शासक ने उतने कार्यक्रम नहीं चलायें। आज भी रूस के इतिहास में पीटर का पीटर महान कहकर उल्लेखित किया जाता हैं।
नेपोलियन बोनापार्ट 25 वर्ष की आयु में ही फ्राँसीसी सेना में जनरल बन गया था और तीन वर्ष बाद ही उसने इटली की सेना की बागडोर भी सम्भल ली। यद्यपि इस बीच वह विरोधियों द्वारा सताया और दबाया भी गया। यहाँ तक तक उसे जेल में भी डाल दिया गया किन्तु तीन वर्ष जैसी छोटी सी अवधि में पतन के बाद एकदम इतनी शीघ्रता से उठ खड़े होने का उदाहरण इतिहास में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।
महारानी लक्ष्मीबाई ने जब राजकाज संभाला तो वह मात्र अट्ठारह वर्ष की थी, किन्तु शासन-सत्ता की दृष्टि से इस अल्पवय में भी उनने जिस खूबी से गद्दी सँभाली और अंग्रेजों का मुकाबला किया उसे देख आश्चर्य ही होता है।
यदा-कदा ऐसी प्रतिभा विलक्षण स्मरण शक्ति के रूप में दृष्टिगोचर होती है। यह सामर्थ्य किसी-किसी में कभी-कभी ही प्रकट क्यों होती हैं ? हर कोई इसे हस्तगत क्यों नहीं कर पाता? इस दिशा में शोधकार्य अभी चल रहे है। विभिन्न प्रकार के अध्ययनों से वैज्ञानिक अभी इस निष्कर्ष पर पहुँचे है कि व्यक्ति यदि चाहे, तो वह अपनी मस्तिष्कीय क्षमता का विकास उच्च स्तर तक कर सकता हैं। उनका कहना है कि मानवी मस्तिष्क में ऐसे तत्व है, जो 20 अरब पृष्ठों से भी अधिक ज्ञान भण्डार सुरक्षित रख सकने में समर्थ है। एक व्यक्ति एक दिन में .... चित्र देखता हैं तथा उनकी बनावट, रूप, रंग, ध्वनि की भी जानकारी प्राप्त करता हैं। अभिव्यक्त ने कर सकने पर भी अनुभूत ज्ञान के रूप में उसमें से विशाल भण्डार मस्तिष्क में बना रहता हैं, जिसका यत्किंचित लोग ही उपयोग कर पाते है।
उपरोक्त सभी घटनाक्रम इस तथ्य की साक्षी हैं कि जीवसत्ता अपरिमित सामर्थ्य .... देनन्दिन जीवन में चूँकि मानवी क्षमता का स्वल्प भग ही प्रयुक्त होता हैं, एक बहुत बड़ा अंश अनुपयोगी ही पड़ा रहता हैं, ये विभूतियाँ प्रत्यक्षतः सामने नहीं आती। किंतु जो प्रसुप्त पड़ा हैं। वह जिनमें अल्पायु में ही जगा-विकसित हुआ देखा जाता हैं, वह प्रमाणित करता हैं कि यदि व्यक्ति प्रयास करें तो असामान्य कौशल का प्रतिभा का सम्पादन कर सकता है। आयु का बंधन चेतना के क्रिया कलापों पर लागू नहीं होता। वे कभी भी प्रकट ही चुनौती देती रहती हैं कि आधुनिक प्रगति के बावजूद चिकित्सा विज्ञानी अभी तक मस्तिष्कीय चेतना की संभावनाओं को जान नहीं पाए।