Magazine - Year 1995 - Version 2
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Language: HINDI
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सच्चे और आत्मीय मित्र श्रेष्ठतम संपत्ति
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मित्रता मानव शक्ति की एक स्वाभाविक वृत्ति है। प्रत्येक व्यक्ति ऐसे साथी की खोज में रहता है जिसके समक्ष वह अपने हृदय को खोलकर रख सके। अपने अन्तर में छिपे हुए भावों को निःशंक होकर व्यक्त कर सके। जो कष्ट मुसीबत के समय हार्दिक सहयोग दे सके। मित्रता का सम्बन्ध मनुष्य के लिए वह वातावरण पैदा करता है जहाँ वह अपने आंतरिक और बाह्य जीवन की अभिव्यक्ति सरलता से कर सके, जहाँ मनुष्य अपने आपको अकेला महसूस नहीं करता। मित्रों के सहयोग से मनुष्य की जीवन यात्रा सहज सरल और निरापद हो जाती है। प्रसिद्ध दार्शनिक सिसरो ने लिखा है-इस संसार में मित्रता से अधिक कुछ भी मूल्यवान नहीं मनुष्य के लिए।”महात्मा गाँधी के शब्दों में “सच्चे मित्र मिल जाना मनुष्य के लिए दैवी वरदान है।”
मित्रता जितनी बहुमूल्य है उतना ही इसे पैदा करना, स्थिर रखना और जीवित रखना, सदा-सदा कायम रखना भी कठिन है। मित्रता भी एक व्यवहारिक साधना है। मित्रता हृदय के निर्बाध आदान-प्रदान पर टिकती है। मैत्री पूर्ण सम्बन्ध एक परिवार के सदस्यों में भी नहीं हो सकते है और दो अनजान व्यक्तियों में हो सकते है।
मित्रता दो व्यक्तियों के बीच स्नेह के आदान-प्रदान और आंतरिक एक्य पर निर्भर करती है। मित्रता का कोई मूल्य नहीं हो सकता वह परस्पर स्नेह प्रेम और सद्भाव पर निर्भर करती है। कोई स्वार्थ साधना या व्यापार नहीं है मैत्री। स्वार्थ पूर्ति के लिए, अपना उल्लू सीधा करने या कोई लाभ के लिए मैत्री जोड़ने वाले ढेरों मिल जाते हैं लेकिन सच्चे मित्र इस दुनिया में बिरले सौभाग्यशालियों को ही मिल पाते है।
मित्र जीवन में साथी ही नहीं मार्गदर्शक सहायक भी होता है इस लिये मैत्री स्थापित करने के लिए मनस्वी, सदाचारी, सद्गुणी व्यक्ति ढूँढ़ता चाहिए। बुरे मित्र मनुष्य को पतित कर सकते है। इसलिए कन्फ्यूशियस ने कहा है- “ ऐसे मनुष्य से मित्रता न करो जो तुमसे श्रेष्ठ न हो।” भले और सज्जन व्यक्तियों से की गयी मित्रता ही स्थिर और हितकारी सिद्ध होती है। सिसरो ने कहा है कि “केवल सज्जनों में ही मित्रता कायम रह सकती है। दुष्ट और असाधु प्रकृति के व्यक्तियों की मित्रता कभी भी हितकर नहीं होगी। पंचतंत्र में कहा गया है -
आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लब्धीपुरा
वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्ध परार्ध भिन्ना छायेव
मैत्री खल सज्जनानाम॥
दुष्ट की मित्रता सूर्य उदय के पीछे की छाया के सदृश्य पहले तो लम्बी - चौड़ी होती है फिर क्रम से घटती जाती है और सज्जनों की मित्रता तीसरे पहर की छाया के सदृश्य पहले छोटी और फिर क्रमशः बढ़ती जाती है। स्थायी और फलदायी मित्रता सज्जनों और भले आदमियों के बीच ही स्थिर रहती है। दुष्ट की मित्रता क्षणिक अस्थायी और बनावटी होती है।
मित्रता को स्थिर और दृढ़ रखने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है सहिष्णुता और उदारता की। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ कमी रहती ही है। पूर्ण निर्दोष और गुण सम्पन्न व्यक्ति कोई नहीं होता। हमने जिनसे मित्रता की है वे अपवाद स्वरूप कैसे हो सकते है। मित्रता की स्थिर रखने के लिये एक दूसरे के व्यक्तिगत, स्वाभाविक दोषों को गौण समझना पड़ेगा अन्यथा दोष दर्जन और उससे प्रेरित छींटाकशी, आरोप - प्रत्यारोपणों से तो मित्रता की मूर्ति ही टूट-फूट जायेगी।
मित्रता के सम्बन्ध में दूसरी महत्त्वपूर्ण बात है- एक दूसरे के वैचारिक मतभेदों के कारण मैत्री सम्बन्धों के बीच दरार उत्पन्न न होने दी जाय। समस्त विश्व और मानव प्रकृति अनन्त रहस्यों से भरी पड़ी है। प्रत्येक व्यक्ति के अपने विश्वास होते है, और अपना-अपना दृष्टिकोण। दो व्यक्तियों में चाहें वे कितने ही अभिन्न हों किसी भी विषय पर मतभेद हो सकता है। इस तरह के व्यक्तिगत मतभेदों को मित्रता के प्रसंग से दूर रखना चाहिए अपनी ही सीमा तक अन्यथा वर्षों से चली आई मित्रता क्षण भर में ही नष्ट हो जाती है। ऐसे प्रसंगों को आने ही न दिया जाय जिससे मतभेदों को प्रोत्साहन मिले, व्यर्थ ही बहस छिड़े, ऐसे कार्य और व्यवहार से सर्वथा बचना चाहिए जिनसे मित्र की भावनाओं को आघात लगे या उसे मजबूरी का सामना करना पड़े
चाणक्य ने लिखा है -
इच्छेच्चेव विपुलाँ मैत्री त्रीणि तत्र न कारयेत्।
वाग्वादार्थ सम्बन्ध तत्पत्री परिभाषणम्॥
“मित्र से बहस करना, उधार लेना-देना उसकी स्त्री से बात चीत करना छोड़ देना चाहिए। ये तीन बातें मित्रता में बिगाड़ पैदा कर देती हैं।” मित्रता दो व्यक्तियों का हार्दिक संगम है। उनका आंतरिक जीवन अत्यन्त नजदीक होता है तो उससे प्रेरित बाह्य जीवन भी। किसी भी व्यक्ति की मित्रता पूर्ण नहीं होती जब तक कि वह अपने मित्र की अनुपस्थिति, गरीबी और आपत्ति में सहायता नहीं करता एवं मृत्यु के उपरान्त भी उसके अधिकारों की रक्षा नहीं करता।
हमें अच्छे मित्र ढूँढ़ने चाहिए। उनसे मैत्री सम्बन्धों को स्थायी और स्थिर बनाने के लिये पूरा-पूरा प्रयास करना चाहिए। सच्चे और आत्मीय मित्रों का पाना वास्तव में सच्ची सम्पत्ति है।