Magazine - Year 1995 - Version 2
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Language: HINDI
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पाँच प्राण-पंचकोश पाँच देवता - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
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(5 अगस्त, 1978) शाँतिकुँज परिसर
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियों, भाइयों, मैं आपसे एक ‘पाँच देवता’ के बारे में वर्णन कर रहा था। सारा का सारा ब्रह्माण्ड एक पिण्ड के समान है। पिण्ड का मतलब है-हमारा शरीर। यह एक बढ़ते विशाल ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। जो ब्रह्माण्ड में है, वही हमारे शरीर में विद्यमान् है। पिण्ड भीतर क्या-क्या भरा पड़ा है? पंचतत्व भरे पड़े हैं, पाँच प्राण भरे पड़े हैं। ये ही पाँच देवता हैं। मनुष्य अगर भीतर के देवता को जगा ले तो बाहर के देवता स्वयं खिंचे चले आते हैं। भीतर का मैगनेट जब खींचता है तो वे स्वयं खिंचे चले आते हैं। पेड़ों का मैगनेट बादलों को खींचता है। जहाँ-जहाँ घास−पात, पेड़ पौधे होते हैं वे बादलों को खींचते हैं तथा बादल बरसते हैं। जहाँ रेगिस्तान होता है, वहाँ बादल आते तो हैं, परन्तु रेगिस्तान का मैगनेट उन्हें खींच नहीं पाता और वे वापस चले जाते हैं। भीतर का देवता जगे तो बाहर के देवता हमारे पास स्वयं आ जाते हैं। भीतर का देवता मरा हुआ हो तो बाहर के देवता काम नहीं करते हैं।
विवेकानन्द का देवता जगा तो रामकृष्ण परमहंस आये और झल्लाकर कहा तू बी.ए. के फेर में पड़ा है, चल हमारा काम रुका पड़ा है। रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द के अन्दर की कसक को समझ गये। उनके पास नित्य हजारों लोग आते थे, जिनको किसी प्रकार की मुसीबतें होती थीं। वे उन्हें थोड़ा आशीर्वाद, वरदान देकर विदाकर देते थे। परन्तु राधाकृष्ण परमहंस विवेकानन्द के पास रोज जाते थे। एक बार विवेकानन्द ने कहा-आप क्यों आकर हमें तंग करते हैं, हमारा मन जब होगा तो हम आयेंगे, आप हमें परेशान न करें। रामकृष्ण परमहंस ने देखा कि इसके अन्दर कसक है, इसी से हमारा काम हो सकता है और उन्होंने उन्हें धन्य कर दिया। हमारे गुरु भी हमारे पास आये और उन्होंने उन्हें धन्य कर दिया। हमारे गुरु भी हमारे पास आये और हम धन्य हो गये।
मित्रो! मरी हुई लाश का पता लग जाय तो कुत्ते पहुँच जाते हैं तथा लाश को देखकर खत्म कर डालते हैं। देवताओं के बारे में भी यही बात है। हर एक के पास देवता नहीं आते हैं। वे पूजा करने, प्रसाद चढ़ाने वालों को अपनी शक्ति, कृपा नहीं देते हैं। देवता सवा रुपये के प्रसाद के पीछे नहीं दौड़ते। देवता भिखारी नहीं होते। हम कचौड़ी खिलायेंगे, हमारा काम कर दीजिए। उनकी हैसियत इतनी कम नहीं है कि वे कचौड़ी के लिए जायें। बड़े काम के लिए जायेंगे। मित्रों, सवा रुपये में भगवान मनोकामना पूर्ण नहीं कर सकते हैं। हमको भगवान की गरिमा का ख्याल रखना होगा। आदमी के अन्दर के खजाने का ध्यान रखना होगा। पहले जमाने के लोग खजाने का पता लगाते थे कि कहाँ-कहाँ मिट्टी के अन्दर सोना, चाँदी या अन्य धातुएँ गड़ी हैं। उसी प्रकार देवताओं का प्रवेश वहाँ होता है जहाँ ‘व्यक्तित्व के कण’ का खजाना होता है। ऐसे आदमी पर महान् आदमी, तपस्वी, महात्मा, ज्ञानी, देवात्मा’ की कृपा अनुदान बरसने लगता है।
अध्यात्म, जालसाजी, मुहल्ले वालों को फँसाने, ग्राहक को फँसाने, देवी-देवताओं को फँसाने की विद्या का नाम नहीं है। अध्यात्म आदमी के व्यक्तित्व के विकास का नाम है। सुन्दर फूल से जब सुगन्ध निकलती है तो मधुमक्खियाँ स्वयं आ जाती हैं। उसी प्रकार मनुष्य का खिले हुए फूल की तरह व्यक्तित्व होना चाहिए। गुरु, महात्मा, संतों और देवताओं को फँसाने की विद्या मत करो, इसमें फायदा नहीं है। देवता बड़े जबरदस्त हैं। मछली को पकझड़नेे लिए आटे की गोली, बंसी काम आती है। ऐसा देवता नहीं है। देवता से दूर रहो। वह तो हमारे भीतर है-उसे जगा। अपने भीतर वाले देवता को विकसित किये, बिना, बाहर के देवता को हम प्रसन्न नहीं कर सकते हैं। अगरबत्ती; बताशे चढ़ाकर देवताओं का मखौल न करे॥ हमें अपने भीतर के देवता का विकास करना चाहिए। इसी का नाम जप, इसी का नाम ध्यान, इसी का नाम चांद्रायण व्रत है। यह हम आपको भले आदमी बनाने, श्रेष्ठ बनाने के लिए बतला रहे हैं। आपके भीतर सब चीजें विद्यमान् हैं। पंच देवता कहाँ से आते हैं? वे आपके भीतर हैं। मिट्टी की परतें जम गयी हैं, दबे पड़े हैं। उन्हें जगाने की विधा के पहले उन्हें साफ करना होगा। हम उसे सिखाते हैं। पहले अपने आप को विकसित कीजिए। पाँच भंडार, पाँच देवताओं को जगाने की विधि, पंचकोश की उच्चस्तरीय साधना’ कहलाती है। ये गायत्री के पाँच मुख हैं, जिनका सम्बन्ध सूक्ष्म शरीर से है। स्थूल शरीर याने हाथ-पैर से हम आठ घण्टे काम करके किसी तरह आठ-दस रुपये कमा लेते हैं। यह स्थूल शरीर कमजोर है।
हमारे भीतर एक सत्ता सूक्ष्म है। वह स्थूल से ज्यादा शक्तिशाली है। नेपोलियन का वजन, लम्बाई, चौड़ाई, सामान्य व्यक्ति की तरह थी, परन्तु उसका सूक्ष्म महान् था। वह आल्पस पर्वत के पास गया और बोला हमें रास्ता दीजिए, नहीं तो हम आपको उखाड़ कर फेंक देंगे। बेटे! आल्पस पर्वत हिमालय से ज्यादा ऊँचा है। नेपोलियन ने अपनी सेना के साथ उसे पार कर दिखाया। सूक्ष्म की ताकत को अगर हम समझ सकें तो मजा आ जाएगा। गाँधी जी का सूक्ष्म शरीर मजबूत था। वे पाँच फुट दो इंच कद वाले थे तथा उनका वजन छियानवे पौंड था। कोई भी चौदह साल का बच्चा उनसे ज्यादा वजनदार हो सकता है। पर गाँधी जी की ताकत पहलवान से ज्यादा थी। अंग्रेजों का राज्य जो अफ्रीका से हिन्दुस्तान तथा न्यूजीलैण्ड तक फैला था। जिसके राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था। गाँधी जी की सूक्ष्म ताकत ने उन्हें मजबूर कर दिया भारत छोड़ने के लिए। गाँधी जी ने कहा क्विट-इंडिया अर्थात् अंग्रेजों भारत छोड़ो। अंग्रेजों ने कहा आपके पास क्या है? बन्दूक है जो हम डर के मारे हिन्दुस्तान छोड़ें। गाँधी जी ने जनता से कहा- डू और डाइ’ करो या मरो। सन् उन्नीस सौ बयालीस के आन्दोलन में सभी ने उनका साथ दिया। इसमें हजारों आदमी गोली के निशाना बना दिये गये, जेल गये, फाँसी के फन्दे पर चढ़ गये। मित्रों, यह गाँधी जी के सूक्ष्म शरीर की आवाज थी।
स्थूल शरीर में क्या रखा है। वह रोटी खाता रहता है, गन्दगी निकालता रहता है। हाड़-माँस के बने इस शरीर को अगर फाड़ दें तो केवल बदबू भरी गन्दगी ही दिखायी पड़ेगी यह बदबू मलमूत्र और पसीने के रास्ते निकलती है। हम लक्स साबुन लगाते हैं, परन्तु ये बदबू समाप्त नहीं होती है। इसके लिए हम मंजन करते हैं, दाँत साफ करते हैं, कभी पान खाते हैं तो कभी सुपारी खाते हैं परन्तु आदमी के भीतर जो जखीरे काम करते हैं, वह ताकत सूक्ष्म की है। इसी सूक्ष्म शक्ति को विकसित करने का नाम अध्यात्म है। बाहर को विकसित करने का ढंग आपको मालूम है। कसरत कीजिए, पौष्टिक चीजें खाइये, विटामिन्स खाइये, स्थूल को विकसित कीजिए। परन्तु सूक्ष्म किस तरह से विकसित होगा, यह कोई नहीं जानता। दिमाग को बढ़ाने एवं कंट्रोल करने की विधि सबको मालूम है। फिजिक्स, इकोनॉमिक्स पढ़िए और दिमाग को बढ़ाइये, पर यह सब भौतिक उपलब्धियाँ हैं। हम जिसे सिखाना चाहते हैं वह ‘चेतनशक्ति’ है। जिसे ऋद्धि-सिद्धि कहते हैं। नेपोलियन के भीतर का वह अंश विकसित हुआ था जो लोगों को प्रभावित करता था, सेना को प्रभावित करता था। एक बार नेपोलियन की सेना ने गिरफ्तार करना चाहा। चारों तरफ से उसे घेर लिया गया। उसने सोचा ये लोग मुझे गिरफ्तार कर लेंगे, अगर गिरफ्तार न हुआ तो गोली मार देंगे। उसकी चेतन शक्ति जागृत हो गयी। उसने कड़क कर कहा रुको। सारे-सिपाही खड़े हो गये। नेपोलियन ने कहा दोस्तो, हम तुम्हारे कप्तान हैं। चलो हमारे साथ, बन्दूकों को नीचे करो। उसने आदेश दिया-पीछे घूमो। सारे के सारे सिपाही नेपोलियन के साथ बिजली के तरीके से पीछे-पीछे चल दिये। नेपोलियन शेर की तरह आगे चल रहा था। वह जबरदस्त आदमी था।
मनुष्य के अन्दर वाला माद्दा आध्यात्म का वह हिस्सा है जो लोगों को, संसार को प्रभावित करता है, चमत्कार दिखाता है-यानी भौतिक चीतों का चमत्कार दिखाता है। यह अध्यात्म तो है परन्तु भौतिक वस्तुओं को प्रभावित करने वाला माद्दा है। एक हिस्सा हमारा वह है जिसे सिद्धि कहते हैं। एक और माद्दा हमारे भीतर है जो दिव्य चेतना को प्रभावित करता है, उसे हम भगवान कह सकते हैं। दैवी सत्ता कह सकते हैं। पदार्थ का भी महत्त्व बहुत है। एक ‘लेसर’ किरणें होती है जिसे छोड़ते ही चन्द्रमा तक जा पहुँचती है। लेसर में वह शक्ति होती है कि एक जगह से छोड़ने पर वह दूसरे स्थान पर जाकर उसे जलाकर खाक कर देती है। एक पदार्थ माध्यम से टेलीफोन का बटन दबाते ही करोड़ों मील दूर बैठे व्यक्ति से हम बातें कर लेते हैं यह ‘फिजिक्स’ की बातें हैं जो पदार्थ को प्रभावित करती है। मनुष्य के सूक्ष्म का एक हिस्सा वह है जो वस्तु यानी पदार्थ को प्रभावित करता है। इसके द्वारा हम चमत्कार दिखा सकते हैं, संसार को प्रभावित कर सकते हैं। यह माद्दा नम्बर दो है जिसे हम सिद्धियाँ कहते हैं।
चेतन शक्ति महान् है। उसमें भावना काम करती है, संवेदना काम करती है, देवत्व काम करता है। अगर दोनों का तालमेल हो जाय तो मनुष्य को ऋद्धि सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती है। पहले बड़ी-बड़ी बीमा कम्पनियाँ हुआ करती थीं, जो छोटी-छोटी बीमा कम्पनियों का उत्तरदायित्व उठाती थीं। एक और बीमा कम्पनी है, जिसे हम भगवान कहते हैं। इस बड़ी शक्ति के साथ यदि हमारा तालमेल बैठ जाय, लेन−देन प्रारम्भ हो जाय तो मजा आ जाय। यह ऋद्धि वाला हिस्सा है जो हमारी जीवात्मा से सम्बन्ध रखता है। सिद्धियाँ चमत्कार वाला पक्ष है जिसे दिखाया जा सकता है। ऋद्धि हमारा वैभव है जो हमारी प्रगति करने में सक्षम है। इन दोनों को विकसित करने का नाम ही अध्यात्म है। मित्रों अध्यात्म के और रास्ते हो सकते हैं, यह मैं नहीं कहता कि यही रास्ता है।
ऋषियों की कला-ऋषियों की विद्या यह पंचकोशी साधना है जिसमें पाँच देवों का वर्णन आता है। जिसे हम कल बता रहे थे। गायत्री की उच्चस्तरीय साधना में हमने आपको अभी ध्यान करना सिखाया था। आगे चलकर हम इसकी सांगोपांग तैयारी करायेंगे, परन्तु इसके पहले हम यह जानना चाहते हैं कि आपके भीतर संकल्प बल है कि नहीं। यह सारा का सारा अध्यात्म संकल्प बल पर टिका है। हम आपको चांद्रायण व्रत में इसी की इम्तहान लेने एवं प्रारम्भिक जानकारी देने हेतु बुलाते हैं कि आप में संकल्पबल है या नहीं। यह हिम्मत वालों का, बहादुरों का काम है, संकल्पबल वालों का काम है। डाका डालने में, चोरी करने में हिम्मत चाहिए। इन्हें कोई पकड़ ले तो कचूमर निकाल कर रख देगा, फिर भी डाकू सोचता है कि चलो जो होगा देखा जाएगा इसी प्रकार स्वस्थ कामों के लिए ऊँचे उद्देश्यों के लिए हिम्मत चाहिए। संसार के हर काम में हिम्मत काम करती है। यही हिम्मत आदर्शवादी जीवन जीने के लिए, अपने आपको नियंत्रित करने के लिए अंकुश लगाने के लिए आवश्यक है।
यहाँ शाँतिकुँज में हम आपको साधना कराते हैं, ध्यान कराते हैं। पंचकोश साधना भी करायेंगे, पर इसके लिए हिम्मत चाहिए। आप में हिम्मत होनी चाहिए। यह इन्द्रियाँ जो बार-बार तंग करती हैं उसे रोकना चाहिए। अभी हम सिद्धान्तों की बात कहते हैं, क्योंकि सिद्धान्त के नाम पर आपके पास कुछ नहीं है। जब स्वार्थ सामने आता है तब उस समय आदमी इतना कमजोर मालूम पड़ता है कि हम कुछ कह नहीं सकते मन जो कहता है हम वही करते हैं। अरे, तूने मन को नहीं मारा। उसे मारना होगा। मन ने इन्द्रियों को वश में कर लिया है। घोड़े को चाबुक से जिस तरह वश में करते हैं उसी तरह मन को चाबुक से मारना होगा। नहीं, साहब मन नहीं लगता है, तो खाना बन्द कर दे। अकेला मन मालिक हो गया। इस पर अंकुश लगाना होगा। यह भी एक राक्षस है। इस राक्षस के साथ लड़ाई लड़ने का नाम अध्यात्म है। जप और ध्यान से मन को वश में किया जाता है।
मित्रों, अब हम आपको उपासना के लिए तैयार करेंगे। नहीं गुरुजी, आप तो ऐसे ही अपनी ऋद्धि-सिद्धि हमें दे दीजिए ऐसे कैसे दे देंगे? तेरे पास उससे लड़ने का माद्दा है कि नहीं। हमारे गुरु ने चौबीस साल तक हमारा इम्तहान लिया। चौबीस साल तक जौ की रोटी और छाछ खाने का आदेश दिया। जौ की रोटी और छाछ के अलावा भी दुनिया में कोई चीज होती है या नहीं, यह हमने नहीं जाना। हमारी इन्द्रियों ने कहा, जीभ ने कहा कि जब सब लोग शक्कर, दाल, नमक आदि खाते हैं तो आप क्यों नहीं खाते? हमने कहा-हम लोगों के रास्ते पर नहीं चल सकते हैं। लोगों के कहने पर हम चलेंगे तो वे हमारे जीवन को तबाह कर देंगे। लोगों के बताये हुए रास्ते पर हम चलते तो अध्यात्म की ओर हम बढ़ नहीं सकते थे। लोग तो बड़े निकम्मे होते हैं जहाँ तक सिद्धान्तों का आदर्शों का सवाल है-वे बेकार हैं। लोग डॉक्टर हैं, इंजीनियर हैं, तुरन्त मकान का नक्शा बना देते हैं, इंजेक्शन दे देते हैं, पर जहाँ तक सिद्धान्तों का आदर्शों का सम्बन्ध है, वे इस रास्ते पर नहीं चल सकते हैं, और न ही ऊँचा उठ सकते हैं। लोगों की सलाह पर चल कर हम अपने जीवन को ऊँचा नहीं उठा सकते हैं।
अगर आपको आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलना है तो हम आपको मुहब्बत करते हैं, प्रशंसा करते हैं और यकीन दिलाते हैं कि हम आपकी सहायता करेंगे। लेकिन आप एक बात मत करना-अपनी अकल तथा दबाव हमारे ऊपर लादने की कोशिश मत करना। हम इससे इनकार करते हैं। प्रहलाद ने अपने सम्बन्धियों की बात मानने से इनकार कर दिया था। हमारे शरीर में लोभ, माह, वासना के रूप में जो सम्बन्धी हैं, उनकी बातों को मानने से हम इनकार करते हैं जो हमें एक कदम भी आगे बढ़ने नहीं देते हैं। इनसे लोहा लेने का नाम अध्यात्म है। अपने परिवार वालों की हमें सहायता करनी पड़ती है। हमारी बीबी है, उसे हमने अग्नि की साक्षी देकर पत्नी बनाया, उसके भविष्य की चिन्ता करना हमारा कर्तव्य है। परन्तु जहाँ तक सिद्धान्त की बात है, हम किसी को हावी नहीं होने दंगे। किसी रिश्तेदार को हम हावी होने देंगे। मीरा बाई के ऊपर रिश्तेदार हावी हो रहे थे और कह रहे थे कि तुम्हें हमारे सिद्धान्तों को मानना चाहिए। मीरा अपने स्तर पर जीवन जीना चाहती थी, जैसा कि उसके गुरु राजासिंह ने बताया था। परन्तु उसके खानदान वाले मनाकर रहे थे। मीरा ने गोस्वामी तुलसीदास जी को एक चिट्ठी लिखी कि आप बतलाये कि हम क्या करें? घर वाले इस प्रकार कह रहे हैं और हमारी अन्तरात्मा दूसरी बात कह रही है। हर आदमी सलाह देता है कि आदर्श और सिद्धान्त पर मत चलो। एक हमारा ईमान तथा दूसरा हमारा भगवान के अलावा कोई नेक सलाह नहीं देता है। मीरा की चिट्ठी के जवाब में तुलसीदास जी ने लिखा-जाके प्रिय न राम वैदेही तजिये ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम स्नेही...।
यह किसकी बात कर रहा था? हिम्मत वालों की, शक्तिशाली-ताकत वालों की बात कह रहा था। यह शरीर की ताकत नहीं है। यह तो डाकुओं के पास भी होती है। अक्ल वालों का तो कहना ही क्या है? सारे अक्ल वाले जेलखाने में रहते हैं। डकैती, चोरी, जालसाजी, समलिंगी आदि सभी में यह माहिर होते हैं अक्लमंद की तलाश करनी है तो कभी जेलखाने चले जाइये। अक्ल हम सही मायने में उसे कहते हैं जो सिद्धान्तों के लिए, आगे बढ़ने के लिए तैयार हो। सिद्धान्तों के मामले में आपकी अक्ल, आपकी हिम्मत यदि आगे-आगे चलने को तैयार हो तो हम आपको अध्यात्म सिखायेंगे क्या-क्या सिखायेंगे? सूक्ष्म शरीर की साधना सिखायेंगे अगर आप पहलवान बनना चाहते हैं तो चलिए हमारे साथ अखाड़े में। अखाड़े में उतरे बिना आप पहलवान नहीं बन सकते। इसी प्रकार जब आपका भीतर वाला हिस्सा हमारी बातों को, दबाव को मान लेगा, तो हम समझेंगे कि आप हमारे इम्तहान में पास हो गये। एक महीने का इम्तिहान आपका इसीलिए रखा गया है। आपके ऊपर एक महीने के अनुष्ठान का दबाव इसलिए रखा गया है जिससे यह पता चल सके कि इसे आप कर सकते हैं या नहीं। कभी 11 माला कर लिया तो कभी 19 माला कर लिया और कह दिया कि गुरुजी अभी हमारा मन नहीं लगता। सितम्बर में कर लेंगे। इस तरह की बहाने बाजी करने वाले के बारे में हमें सोचना पड़ेगा कि उसका सूक्ष्म शरीर जगायें या नहीं। उसके लिए यही कहना पड़ेगा कि बेटा, अभी तू बच्चा है, कमजोर है। तेरे ऊपर हम दबाव नहीं डाल सकते हैं अभी तो हमने तप का थोड़ा-सा नियम बतलाया है। यह शिशु चांद्रायण है। आगे बड़ा चांद्रायण करायेंगे। 24 घण्टे में एक गिलास दाल-दलिया लेना होगा। इससे तेरे बच्चे की बीमारी ठीक हो जाएगी।
जन्माष्टमी के दिन बच्चे उपवास करते हैं। वे अपनी मम्मी से पूछते हैं कि हम रोटी या शाक खायें अथवा दोनों चीजें लें यह भी बच्चों का चांद्रायण है। एक बार लें या दो बार ले लें। बेटे, तू अपने ऊपर अंकुश लगाने में कमजोर है। पेट कहता है कि हमें नहीं भरोगे तो हम जिन्दा नहीं रह सकते हैं और हम कहते हैं कि खबरदार, गुरुजी के पास तू नहीं मर सकता है। हमारे गुरुजी हमें चार दिन के लिए हिमालय बुलाते हैं। हिमालय में न फल है न मूल है। पत्तियों के सहारे जीना पड़ता है। चना की तरह पालक बथुआ की तरह पत्तियाँ होती हैं जिसे उबालकर खा लिया जाता है तथा जिन्दा रहा जाता है। इससे हमारा शरीर कमजोर नहीं होता था। शरीर कमजोर हो भी तो हमारा सूक्ष्मशरीर ताकतवर होता चला जाता है। तू कहता है कि माँस बढ़ा दीजिए। बेटे, माँस बढ़ने से कोई फायदा नहीं है, तथा माँस के घटने से कुछ नुकसान भी नहीं है। असली शक्ति हमारे भीतर है, जिसे हम ‘सूक्ष्म शरीर’ कहते हैं। आगे चलकर हम इसे ही शक्तिशाली बनाने का उपक्रम बताने वाले हैं।
हमारे भीतर शक्तियों के पाँच भण्डार हैं। उनको खोलने का तरीका पंचकोश अनावरण कहलाता है। हमारे स्थूल शरीर एवं सूक्ष्म शरीर में अनेकों ग्लैण्ड्स हैं जिन्हें हारमोन ग्रन्थियाँ कहते हैं। इस तरह की बहुत छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ हैं जो हमारे मन को नियंत्रित करती हैं। इनमें प्रमुख हैं आज्ञा चक्र जिसमें पॉजेटिव और निगेटिव दो तरह के करेंट चलते रहते हैं। यह मस्तिष्क को कण्ट्रोल कराती है। मस्तिष्क में जो शक्ति भरी पड़ी है, उसमें से सात प्रतिशत ही काम आती है, 93 प्रतिशत बेकार पड़ी रहती है। फिजियोलॉजी वाले इसे जानते हैं। अगर आज्ञाचक्र हमारा जग जाये तो 93 प्रतिशत को भी हम पकड़ सकते हैं। संयम ने इसके सहारे ही महाभारत का कृत्य दिखाया था। आज्ञाचक्र हमारा टेलीविजन है। अगर यह जागृत हो जाय तो सारे संसार के समाचार हम ज्ञात कर सकते हैं। आज्ञाचक्र ही है जो भीतर की चीजों को पकड़ सकता है।
आज्ञाचक्र जगाने का ध्यान एक हथियार है। ध्यान किसे कहते हैं? हमारे मस्तिष्क की जो शक्तियाँ फैलती रहती हैं, उसे एक जगह एकाग्र करना ही ध्यान है। एक छोटे से शीशे के ऊपर अगर सूर्य की किरणें इकट्ठी कर ली जाएँ तो उससे आग लग जाएगी। यह आग सारे शहर को जलाकर खाक कर सकती है। हमारे मस्तिष्क की शक्तियाँ ही बिखरती हैं। अगर उसे हम एकत्र कर लें तब ऐसा योग बन जाता है कि हम क्या बतलाये बन्दूक की नली में फैली हुई बारूद जमा कर लें तो गोली बन जायेगी और वह कमाल कर दिखायेगी यह है एकाग्रता। जिस प्रकार बिखरी हुई बारूद कोई विशेष कमाल नहीं दिखा सकती, उसी प्रकार हमारे दिमाग की शक्ति भी बेकार पड़ी है, अगर ध्यान द्वारा इन्हें एकाग्र कर लें तो योगी की तरह हम भी इसका लाभ उठा सकते हैं। समाधि लगाने वाले योगी कहते हैं कि हम मरेंगे नहीं। हम भी आप से कहते हैं कि आप भटकना बन्द कीजिए। एकाग्रता लाइये। कन्ट्रोलिंग पॉवर को ही नाम ध्यान है। इसके द्वारा हम ऐसी शक्ति इकट्ठी कर लेते हैं कि उसका क्या कहना। मैस्मरेज्म करने वाले इसी ध्यान शक्ति के सहारे चमत्कार दिखाते हैं। किसी को सम्मोहित या बेहोश कर देते हैं।
आपको हम आरम्भिक ध्यान शाम को आधा घण्टा सिखाते हैं। मैस्मरेज्म अभी नहीं बतलाते हैं। ध्यान के अंतर्गत हम आपको जो ‘काँशन’ देते हैं उसे मानिए इसे जब आप करने लगेंगे तो अगला वाला उच्चस्तरीय ध्यान बाद में सिखायेंगे यह मत कहिए कि गुरुजी हर चीज को जल्दी कर दीजिए। पिताजी मेरी भी मूँछें निकाल दीजिए, आपकी इतनी बड़ी है। आज ही भगवान दिखा दीजिए, भगवान का दर्शन करा दीजिए, सिद्धि दिखा दीजिए चुप, मूर्ख कहीं का, बच्चे के एक दिन में कहीं दाढ़ी निकलती है क्या? इसी तरह पात्रता एवं पवित्रता के विकास के बिना ईश्वर दर्शन भी संभव नहीं। बारूद का सबसे बड़ा जखीरा हमारे भीतर भरा पड़ा है। हम अगर अपने संकल्प बल का कारतूस चला दें तो कमाल हो जायेगा। डायनामाइट के एक सिरे में आग लगा देते हैं तो वह जलाने लगता है तथा बड़े पहाड़ को भी उड़ा देता है। हमारे भीतर भी एक प्रकार का डायनामाइट है। उसके भीतर ध्यान की शक्ति काम करती है। इसके द्वारा हम सब कुछ कर सकते हैं।
बेटे, हमारे भीतर जो शक्ति भरी है, उसका नाम है-चेतना जो जड़ के भीतर काम करती है। चेतना का काम है कि वह जड़ को काबू में रखे। जड़ के ऊपर उसी का कंट्रोल है। जड़-चेतन का सम्मिश्रण जहाँ कहीं भी होता है उसका नाम है-प्राण प्राण एक छोटी-सी चीज है जो जड़-चेतन दोनों से मिली हुई है। एक और चीज है जिसका नाम आत्मा है। यह भगवान का अंश है। साँस प्राण नहीं है। साँस के माध्यम से हम हवा खींचते हैं जिसमें गैस भरी पड़ी है। इसमें हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, आदि बहुत-सी चीजें भरी पड़ी हैं उसके भीतर प्राण भरा पड़ा है। प्राण को हमारा संकल्प खींचता रहता है। साँस हवा खींच सकती है, प्राण को नहीं खींच सकती। हम प्राणों को जिस उपक्रम के सहारे खींचते हैं, उसका नाम ‘प्राणायाम’ है। प्राणायाम उस विधा का नाम है जिसमें हम संकल्प शक्ति को नियोजित करके साँस के माध्यम से समूचे निखिल ब्रह्माण्ड में संव्याप्त प्राण शक्ति को खींचते हैं। प्राण-जड़ और चेतन शक्ति का सम्मिश्रण है।
सूक्ष्म शरीर को शक्तिशाली बनाने के लिए हम अभी आपको ध्यान और प्राणायाम की बात बता रहे थे। इन दोनों का ही आपको अभ्यास कराया जायेगा और आपके संकल्पबल की परीक्षा ली जायेगी। महीने भर आप यहाँ रहोगे और ध्यान का अभ्यास करेंगे। डिवाइन लाइट के ऊपर विश्वास रख कर। अगर आप इम्तिहान देने के लिए तैयार हो जायेंगे तो हम पाँच देवताओं को जो आपके भीतर सोचे पड़े हैं, उन्हें जागृत करने की विधा सिखा देंगे। अभी हमने बताया था कि हमारे सारे के सारे शरीर का ढाँचा हाड़-माँस पर नहीं, हारमोन्स पर टिका है। आदमी का वजन, ताकत हारमोन्स पर टिका है। हमारे भी पाँच और ग्रन्थियाँ हैं जिसे हम उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। सारे के सारे ग्रह-नक्षत्रों का सम्बन्ध इस उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के साथ होता है। इन पाँच ग्रन्थियों के भीतर एक चक्र है जिनमें अन्य अंग-अवयवों की अपेक्षा शक्ति ज्यादा है। इन्हें कोष कहते हैं। कोष भण्डार को कहते हैं। चक्र भी भण्डार को कहते हैं इनमें ताकत भरी पड़ी है। आपने पानी के भंवर को देखा होगा उसमें साधारण पानी की अपेक्षा सौ गुनी ताकत होती है। जब नाँव भँवर में आ जाती है तो मल्लाह घबड़ा जाता है कि अब तो चक्कर काटकर नाव पलट जायेगी। यही विशेषता चक्रवात - साइकलोन में भी होती है। यह गर्मी के दिनों में आता है और बड़े-बड़े पेड़ों को और छप्परों को उखाड़ देता है।
एवं भँवर दोनों के संयुक्त रूप के बारे में यह बतलाया गया है कि आप शक्ति के भण्डार हैं। जो ग्रन्थियाँ हमारे शरीर के भीतर हैं वे पाँच तरह की हैं जिन्हें कोश कहते हैं। पहला है-अन्नमय कोष यह कोई गड्ढा नहीं है। जब तक बच्चा माँ के पेट में रहता है तब तक वह नाभिचक्र के सहारे अपना भोजन माँ के रस-रक्त से खींचता रहता है। यह स्थूल शरीर अन्नमय कोष से बना है। इसी के द्वारा शक्ति अर्जित होती है। अन्नमय कोष क्या है? नाभि के स्थान पर एक ऐसा जखीरा होता है जिसके द्वारा पूरे बाड़ी यानी शरीर को कण्ट्रोल कर सकते हैं। हम शक्तिशाली कैसे हो सकते हैं? दीर्घजीवी कैसे हो सकते हैं, इसका ताल्लुक इसी से है।
दूसरा है-प्राणमय कोष। मूलाधार चक्र इसका केन्द्र है। इसकी ऐसी विशेषता है कि इसमें से उमंगें निकलती रहती है। यह मूलाधार पेशाब एवं टट्टी के स्थान के बीचों बीच रहती है। आदमी को ताकतवर बनाने का नाम मूलाधार चक्र है। मूलाधार चक्र जब कमजोर होता है तो आदमी नपुंसक हो जाता है और किसी काम का नहीं रहता है। मिलिटरी में लोग जोश को देखते हैं जोश का ताल्लुक मूलाधार चक्र से है। मूलाधार की महत्ता न जानने के कारण वह हमारे किसी काम का साबित नहीं होता। उसका उपयोग केवल बच्चा पैदा करने और अपनी तथा अपने बीबी की सेहत खराब करने के अतिरिक्त कुछ नहीं हो पाता। मूलाधार का उपयोग हम केवल सेहत खराब करने में करते हैं। अगर हम उस ताकत को किसी अच्छे काम में लगावें तो न जाने क्या-क्या कर सकते हैं? अगर इसे संतुलित ढंग से प्रयाग करें, तो हम लव-कुश की तरह संतान पैदा कर सकते हैं। अपने आप में यह चक्र बहुत ताकतवर है। अनियंत्रित होने पर यह कामाचार पर उतारू हो जाता है और समाज में अव्यवस्था फैलाता है। इस ताकत को कैसे काम में लाया जा सकता है। यह प्राणमय कोष की साधना से साधित होता है।
तीसरा वाला कोष-मनोमय कोश यह हमारे मस्तिष्क पर कण्ट्रोल करता है। पाँच देवता इसी प्रकार पाँच कोषों में निवास करते हैं। जितनी भी अतीन्द्रिय क्षमताओं का वर्णन मिलता है-जैसे दूर देखने की ताकत, दूर की बात को समझाने की ताकत, दूर श्रवण की ताकत, भविष्य को जानने की ताकत आदि इसी कोश में सन्निहित हैं। सिद्धियों का जखीरा इसी में भरा पड़ा है। इन्हें जगाने का कार्य मनोमय कोष द्वारा होता है। बड़े काम करने के लिए बड़ी ताकत बड़ी मशीन चाहिए। बड़ा दिमाग चाहिए। व्यक्ति को बदलने युग को बदलने-समाज को बदलने के लिए बड़े व्यक्तियों की ताकत वालों की हिम्मत वालों की जरूरत पड़ेगी यह ताकत मनोमय कोष के जागरण से ही संभव है।
चौथा कोष है आनन्दमय कोष। इसे हृदय चक्र कहते हैं। यह संवेदना का-भावना का कोष है। यह आदमी से आदमी को जोड़ता है। यह भगवान से सम्बन्ध रखती है, भगवान को जकड़ लेती है। व्यक्ति से व्यक्ति को आत्मा को परमात्मा से जोड़ देने का काम भाव संवेदना का है। इसका सम्बन्ध हृदय से है। हृदय ही वह स्थान है जहाँ आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है।
पाँचवाँ कोष-विज्ञानमय कोष है। इसका केन्द्र सहस्रार चक्र है। सहस्रार चक्र ऐसा है कि आदमी के भीतर जितना भी काम चल रहा है, यह ‘आटोमेटिक’ चल रहा है। अनाज खाकर शरीर खून पैदा करता है। रस पैदा करता है जिसके सहारे हमारे हाथ-पाँव काम करते हैं। पर असल में यह सारी शक्ति हमारे ब्रह्मरंध्र की है जो हमारे मस्तिष्क मध्य में एक छोटे से बिन्दु के रूप में अवस्थित है। विवाह-शादियों में आपने अनार छोड़ते हुए देखा होगा। उसे जलाने पर पेड़ जैसी आकृति की चिनगारियाँ फूटती हुई चारों ओर फैल जाती हैं। उसी प्रकार की गर्मी और प्रकाश स्फुल्लिंग हमारे सहस्रार स्थित ब्रह्मरंध्र से निकलती रहती हैं और सारे शरीर में फैल जाती हैं। बेटे, हम अनाज के ऊपर नहीं, उस गर्मी के ऊपर जीवित हैं जिसे हम सहस्रार कहते हैं इससे हजारों चिनगारियाँ निकलती हैं जिसे हम विभिन्न नामों से पुकारते हैं। जिसे हम कभी साँप या कुण्डलिनी कह देते हैं। यह साँप नहीं है, वरन् यह हमारे शरीर का एक ऐसा कण है जो हमें बारूद की तरह उछालता रहता है। साँ उसी का नाम है। सहस्रार कमल क्या है? यह एक कमल है जिसमें हजारों पंखुड़ियाँ हैं। मस्तिष्क एक तालाब है जिसमें यह कमल खिल रहा है। यह उफपर से निकलता है जिससे आदमी को तृप्ति, शांति, शारीरिक ताकत, मानसिक ताकत मिलती है यह सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर को विकसित करने का मौका देता है। यह हमारे शरीर का पाँचवाँ भण्डार है।
इन पाँचों कोशों को जाग्रत करने की कला की हम आपको प्रारम्भिक जानकारी देते हैं। इसके लिए हम ध्यान कराते हैं तथा सायंकाल की थोड़ी-थोड़ी विधियाँ भी बतलाते हैं। प्राणायाम, मुद्रा, बंध सिखलाते हैं इन सबको आप पूरे मनोयोग से श्रद्धापूर्वक, ध्यान एवं भावनापूर्वक करने का प्रयास करेंगे तो यकीन रखिये कि इस संस्था के संचालक, जो एक बड़ी शक्ति हैं, वह आपको सिखलायेंगे। हम संचालक नहीं है और हम जिंदे भी नहीं रहेंगे। हम तो केवल मेम्बर हैं व्यवस्थापक हैं। बैंक वाले-रेलवे वालों का कहीं से कहीं ट्राँसफर हो जाता है, परन्तु रेलवे बोर्ड कायम रहता है। मैनेजर, गार्ड, ड्राइवर सब बदल जाते हैं परन्तु रेल चलती रहती है। रेलवे बोर्ड काम करता रहता है। यह ब्रह्मवर्चस के द्वारा यानी रेलवे बोर्ड द्वारा चलाया गया है। यह एक योजना है जिसे समर्थ व्यक्ति द्वारा चलाया गया है जो अपने को समर्थ बनाने के साथ-साथ बहुत बड़ा वजन लेकर दूसरों की समधें बनाने हेतु चल रहा है। यह है ब्रह्मवर्चस् का उद्देश्य जिसमें पंचकोशों को उपासना एवं साधना का क्रम भी शामिल है। आज की बात समाप्त ॐ शान्ति।