Magazine - Year 1995 - Version 2
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Language: HINDI
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क्या गुडाकेश बनना चाहिए?
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कितनी आयु में कितना सोना चाहिए इसका कोई सर्वमान्य नियम नहीं बन सका है। जिन्हें जीवन में बहुत कुछ काम करने होते हैं, वे अपने नींद के घण्टे कम कर लिया करते हैं और उतनी ही अवधि में इस स्तर की नींद ले लेते हैं, जिसकी तुलना दूसरे लोगों के 7-8 घण्टे की लम्बी नींद से की जा सकती है।
मनुष्य का संकल्प महान् होता है। कई महापुरुष जिन्हें अपने जीवन में महत्त्वपूर्ण काम करने को थे, वे मात्र तीन चार घण्टे सोकर ही अपनी नींद पूरी कर लिया करते हैं। यह तो अपने संकल्प शक्ति एवं जीवनोद्देश्य पर निर्भर करता है कि हम कितना सोना चाहते हैं। नींद में घण्टों को संकल्प के सहारे कम करके रहा जा सकता है। विंस्टनचर्चिल तथा टामस एडीसन मात्र 5 घण्टों की नींद लेते थे। सर जान हण्टर जो इंग्लैण्ड के जाने माने चिकित्सक थे, कहा करते थे कि 4 घण्टे की नींद ही उनके लिए श्रेष्ठ थी। आचार्य विनोबाभावे ने बताया था कि वे जल्दी ही 8 बजे तक सोते थे और भोर में दो-तीन के पहले ही उठ जाते थे। उनके अनुसार जल्दी सोना और जल्दी उठना दीर्घ जीवन का ही नहीं, अपितु सात्विकता का मूलमंत्र है।
स्वर्गीय प्रोफेसर थियोडोर स्टौकमैन ने अपने जीवन के कई वर्ष निद्रा के विषय में अध्ययन हेतु खपा दिये। वे इस
निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि स्वाभाविक निद्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय 7 से लेकर साढ़े ग्यारह बजे तक का होता है। उनकी बहुचर्चित पुस्तक ‘अर्धरात्रि पूर्व शयन’ में लिखा हुआ है कि बहुत से रोगी जिन्होंने इस परामर्श का पालन का, वे या तो पूर्ण चंगा हो गए या अन्ततः लाभान्वित हुए बिना नहीं रहे। इनमें से बहुत से रोगी स्नायविक दुर्बलता से पीड़ित थे, अपना हृदय रोगों से, पुरानी रुग्णता से या अत्यधिक कमजोरी के शिकार थे। जिन्हें गहरी नींद न आने की शिकायत हो, उन्हें शाम को हल्का भोजन लेना चाहिए। सोते समय यदि पूर्ण या आँशिक स्नान कर लिया जाय अथवा हाथ-पाँव भली-भाँति धो लिए जाये तो रात्रि में गहरी नींद आती है। मालिश करना, प्रसन्न व चिंतामुक्त रहना आदि कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो गहरी नींद लाने में सहायक होते हैं।
नींद में लकड़ी के कुन्दे की भाँति शून्य-जड़ स्थिति में पड़े रह जाना एक कहावत मात्र है। वास्तविकता इससे परे है। कोई भी ऐसा नहीं होता जो बोरे की भाँति निश्चल पड़ा रहे॥ कुछ विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने सोने वालों पर उनकी निद्रावधि में ही अध्ययन किया है। मूर्धन्य लेखक लिनपूल ने इसका वर्णन करते हुए लिख है कि इन जिज्ञासुओं ने अस्पताल में दवा के आधार पर सोने वालों से लेकर स्वस्थ पुरुष तथा महिलाओं की निद्रा का अध्ययन किया। इनके अनुसार औसत सोने वाला व्यक्ति, जितनी जल्दी हम सोचते हैं, उससे भी जल्दी करवटें बदलता रहता है। पुरुष और महिलाओं में करवट बदलने का समय औसतन प्रति 12.5 मिनट के बाद आता है। उनकी गणना में सबसे देर में करवट बदलने वाले स्त्री पुरुष ने क्रमशः 14 और 21 मिनट के अन्तर पर करवटें बदली थीं। एक बारगी सबसे अधिक सोने वाला उन्हें एक रोगी मिला जो 7 घण्टे तक तक दवा के आधार पर सोता रहा। शेष लोग तो निद्रावधि में एकाध बार जाते फिर सो जाते हैं। इससे यह तथ्य उभरता है कि पूरी नींद एक साथ नहीं आती है। टुकड़ों-टुकड़ों में भी नींद ली जा सकती।
लिनपूल ने यह भी लिखा है, कि कोई व्यक्ति यदि कहे कि वह विस्तार पर पाँव फैलाते ही निद्रा निमग्न हो उठता है गलत है। उनके अनुसार हमें आभास नहीं होता कि नींद हमें धीरे-धीरे अपनी गोद में लेती है। पहल व्यक्ति ऊँघता है, थोड़ी हलकी-फुलकी झपकी ले लेता है फिर कुछ निद्रा और अन्त में प्रगाढ़ कहाने वाली निद्रा आती है। इसका मापन उस यंत्र से हो जाया करता है जो मस्तिष्क की जागरूकता परखने के लिए आविष्कृत हुई है। उनकी रीडिंग के अनुसार निद्रा के इन चारों अवस्थाओं के आने में प्रायः एक घण्टा लग ही जाता है।
निद्रा विचित्र वस्तु है। कभी-कभी शोरगुल में, रेलगाड़ी निकट से गुजरने में, युद्ध में, बम गोला फटने वाले स्थानों में भी लोग सो लिया करते हैं। नैपोलियन बोनापार्ट घोड़े की पीठ पर सो लिया करता था। अँधेरे मुँह खेत में हल चला लेने वाला किसान दोपहर को खेत की मेड़ पर ही एकाध घण्टे सोकर तरोताजा हो लेता है। महात्मा गाँधी लन्दन की गोल मेज़ परिषद की कार्यवाही आरम्भ होने से चन्द मिनट पूर्व वहाँ पहुँच गये थे। उतनी ही अवधि के लिए सोकर वे पूरी तरह आराम (रिलैक्स) पा चुके थे किन्तु कुछ लोग बाहर से चिल्लाहट होने पर भी नहीं जाग पाते हैं और कुछ लोग तन्द्राजन्य आलस्यवश विस्तार पर पड़े रहते हैं। वस्तुतः यहाँ महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि व्यक्ति कितने घण्टे विस्तार पर पड़ा रहा, वरन् महत्ता इस बात की है कि उसने कितनी देर गहरी नींद ली। कितना हलकापन आया। स्फूर्ति से भरी, मस्ती भरी स्वस्थ हँसती-हंसाती जिन्दगी ऐसों की ही होती हैं।