Magazine - Year 1995 - Version 2
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Language: HINDI
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भ्रम जंजाल (Kahani)
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अन्तरीप द्वीप से आया जीवन के संघर्ष और आँधियों से दुःखी एक नाविक जहाज से उतर कर बाहर आया। समुद्र के मध्य अडिग और अविचलित चट्टान की स्वच्छता को देखकर उसको कुछ शांति मिली। वह थोड़ा आगे बढ़ा और एक टोकरी पर खड़ा होकर चारों ओर दृष्टिपात करने लगा। उसने देखा समुद्र की उत्ताल तरंगें चारों ओर से उस चट्टान पर निरंतर आघात कर रही हैं तो भी चट्टान के मन में न रोष है और न विद्वेष। संघर्षपरक जीवन पाकर भी उसे कोई ऊब और उत्तेजना नहीं। मरने की भी उसने कभी इच्छा नहीं की।
यह देखकर नाविक का हृदय श्रद्धा से भर गया। उसने चट्टान से पूछा -तुम पर चारों ओर से आघात लग रहे हैं फिर भी तुम निराश नहीं हो चट्टानों ,और तब चट्टान की आत्मा धीरे से बोली- तात निराशा और मृत्यु दोनों एक ही वस्तु के उभय पृष्ठ हैं, हम निराश हो गये होते तो एक क्षण ही सही दूर से आये अतिथियों को विश्राम देने, उनका स्वागत करने से वंचित रह जाते। नाविक का मन एक चमकती हुई प्रेरणा से भर गया। जीवन में कितने संघर्ष आये अब मैं चट्टान की तरह जिऊँगा ताकि हमारी न सही, भावी पीढ़ी और मानवता के आदर्शों की रक्षा हो सके।
राज ज्योतिषी ने सम्राट वसुसेना की श्रद्धा ज्योतिष पर बहुत जमा दी थी। वे बिना मुहूर्त पूछे कोई काम न करते। शत्रुओं को पता चला, तो वे ऐसी घात लगाने लगे कि किसी ऐसे मुहूर्त में हमला करें, जिसमें प्रतिकार का मुहूर्त न बने और उसे सहज ही परास्त किया जा सके। प्रजाजन और सभासद सभी को राजा के इस कुचक्र में फँस जाने पर बड़ी चिंता होने लगी।
संयोगवश राजा एक बार देश पर्यवेक्षण के लिए दौरे पर निकले। साथ में राज ज्योतिषी भी थे। रास्ते में एक किसान मिला। जो हल बैल लेकर समीप के गाँव में खेत जोतने जा रहा था। राजा ज्योतिषी ने उसे उसे रोक कर कहा-मूर्ख जानता नहीं, आज जिस दिशा में दिक्शूल है, उसी में चला जा रहा है। ऐसा करने से भयंकर हानि उठानी पड़ेगी। किसान दिशा शूल के बारे में कुछ न जानता था। उसने नम्रतापूर्वक कहा-मैं तो तीसों दिन इसी दिशा में जाता हूँ। उसमें दिशा शूल वाले दिन भी होते होंगे। यदि आप की बात सच होती तो मेरा कब का सर्वनाश हो गया होता। ज्योतिष सटपटा गये। झेंप मिटाने के लिए बोले-लगता है तेरी कोई हस्त रेखा बहुत प्रबल है। दिखा तो अपना हाथ?
किसान ने हाथ तो बढ़ा दिया किंतु हथेली नीचे की ओर रखी। ज्योतिषी इस पर और भी अधिक चिढ़े। बोले-इतना भी नहीं जानता कि हस्त रेखा दिखाने के लिए हथेली ऊपर की ओर रखनी होती है।
किसान मुस्कराया बोला-हथेली वह फैलाये जिसे किसी से कुछ माँगना हो। जिन हाथों की कमाई से अपना गुजारा करता हूँ, उन्हें क्यों किसी के आगे फैलाऊँ?
प्रसंग समाप्त हो गया, राजा ने नये सिरे से विचार किया और ज्योतिषी के भ्रम जंजाल से पीछा छुड़ा लिया।