• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन एक कलाकार की तरह जीना सीखें
    • काँटे वरदान है। प्रभु के
    • अब वैज्ञानिक सुधारेंगे मानवी नस्ल को
    • कुण्डलिनी जागरण : एक विज्ञानसम्मत अध्यात्म उपचार
    • Quotation
    • दो धर्मात्मा
    • यंत्रों के गुलाम तो न बनें हम
    • कर्मयोग के मूल मर्म को समझें, आत्मसात करें
    • अध्यात्म हर दृष्टि से वरिष्ठ एवं वरेण्य है।
    • मधुमक्खी और तितली (Kahani)
    • अराजकता मिटेगी आस्थाओं के परिष्कार से
    • रोइये अथवा हंसिये पर तनाव को निकाल फेंकिये
    • आत्मिक बलिष्ठता हेतु प्राणों को साधिए
    • हाय री बुद्धिमत्ता, हाय री प्रज्ञाशीलता!
    • स्वर्ण-नरक का विवरण (Kahani)
    • सप्तलोक, सप्त आयामों का ज्ञान एवं विज्ञान
    • अग्रणी (Kahani)
    • ध्यान साधना से अन्तःशक्तियों का जागरण -प्रस्फुटन
    • दार्शनिक हिक्री (Kahani)
    • बड़े विलक्षण हैं कुदरत के खेल
    • संघर्ष नहीं, सहयोग पर टिकी है यह सृष्टि
    • बिना परिश्रम का धन - शैतान का
    • जरा ईश्वर पर विश्वास करके तो देखे
    • देखिए भविष्य की झाँकी स्वप्नों के माध्यम से
    • नीति और अनीतिपूर्वक कमाये हुए धन में अन्तर (Kahani)
    • भली एवं उदार प्रेतात्माएँ भी होती है।
    • परमार्थ (Kahani)
    • सूर्य साधना का महात्म्य समझें और लाभ उठाये
    • आँख और मान की विशेषता और गरिमा (Kahani)
    • जिसने राष्ट्र को माँ माना
    • जल : एक जीवन मूरि
    • अन्तरात्मा की मार से कब तक बचेंगे?
    • अनुयाज-पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-5 - चिन्तन सार्थक बनाता है स्वाध्याय को
    • निवेदिता (Kahani)
    • आत्मशोधन, आत्म परिष्कार एवं कायाकल्प-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अंतःकरण ही वास्तविक भाग्य विधाता
    • निर्भीक, सिद्धांतवादी होता है लोकसेवी
    • कर्तव्य साधना (Kahani)
    • पुनर्प्रकाशित विशेष लेखमाला-12 - लोकसेवी की आचार संहिता (समापन किश्त)
    • अपनों से अपनी बात - युग-नेतृत्व महान आत्माएँ ही कर सकेंगी
    • विदुषी विश्ववारा (Kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


जिसने राष्ट्र को माँ माना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 29 31 Last
शीतकाल की शुरुआत काफी पहले ही चुकी थी समूचा पेरिस नगर बर्फ की चादर ओढ़े हुए था। लगातार पड़ रही कड़ाके की सर्दी के कारण सभी अपने-अपने घरों में गर्म लिहाफों में दुबके हुए अलाव सेंक रहे थे। ऐसे में उसका यह बर्ताव सभी के लिए आश्चर्यजनक था। वह इस जानलेवा ठंड में भी बरफ जैसी शीतल धरती में भी उघाड़े, शरीर , बिना कुछ भी बिछाए बैठा था। जेल विभाग के छोटे-बड़े हर एक अधिकारी और कर्मचारी ने उस बन्दी को अपने-अपने ढंग से लाख बार समझाने व मनाने का प्रयास किया। परन्तु वे लोग उसे सूती या गरम कोई सा भी वस्त्र पहनने या ओढ़ने या बिछाकर बैठने को राजी न कर सके। जबकि ठंड के मारे उसके दाँता बज रहे थे। मुँह की रंगत उड़ चुकी थी, रंगे नीली पड़ रही थी, कहने -सुनने की तानि भी परवाह नहीं की। जो स्वयं सर्दी की इस असहनीय पीड़ा को अपने मन से झेल रहा हो, उसे डाँटने मारने के प्रभाव की आशा करना बेकार था। बस, वह तो चुपचाप बैठा सर्दी से काँपता रहा- पत्ते की तरह रात के साथ-साथ सर्दी का प्रकोप भी बढ़ता गया। तभी सम्राट नैपोलियन प्रतिदिन की तरह बंदियों का निरीक्षण करते हुए उस ओर भी आ पहुँचे । जेलर ने आगे बढ़कर सम्राट से उस अजीब किस्म के हठीले कैदी के बारे में निवेदन किया, तो नैपोलियन भी एक पल के लिए सोच में पड़ गए। उन्होंने एक दो बार पहले भी इस युद्ध बन्दी के बारे में सुन रखा था। अभी पिछले दिनों हुई फ्रांस और जर्मनी की लड़ाई में जर्मनी हो हार के बाद उसे पकड़ा गया था। अन्तिम समय तक इस जर्मन युद्ध बन्दी ने अप्रतिम शौर्य और साहस का प्रदर्शन किया था। उसकी वीरता के चर्चे फ्राँस के सिपाहियों की जुबान पर थे। नैपोलियन स्वयं भी वीर था, बहादुरों के सम्मान करना उसका स्वभाव था। वह उसी पल उस जर्मन बन्दी के सामने जा खड़े हुए। एक सैनिक होने के नाते सम्राट का अभिवादन करना तो दूर उस बन्दी ने पलकें उठाकर उसकी ओर देखा तक नहीं। मानों वह किसी गम्भीर ध्यान में तल्लीन हो। हाँ उसकी देह में कंपकंपी जरूर छूट रही थी। जिससे उसके दाँत बज रहे थे। बन्दी से नैपोलियन ने कई काम की बाते जाननी चाहीं, पर उसकी जुबान से एक शब्द भी नहीं निकला। वहाँ उपस्थित लोगों ने एक बार फिर उसे समझाने की कोशिश की, पर वह चुप्पी साधे रहा। उसकी जिद देखकर अधिकारियों को बहुत ही क्रोध आ रहा था वे लोग उसे छोड़कर जाना चाहते हैं लेकिन उसकी बिगड़ती जा रही शारीरिक दशा ने जैसे उसके पाँवों को जकड़ दिया। वे जा नहीं सके। कैदी की हालत को चिन्ताजनक देख सम्राट का कठोर हृदय भी दया से पसीज उठा। उन्होंने फिर बड़ी आत्मीयता से पूछा। सैनिक, तुम बेधड़क होकर अपनी समस्या मुझे बताओ। तो सही, अभी इसी पल उसका समाधान हो जाएगा। इस स्नेह भरे वाक्य ने कैदी पर मानो जादू कर दिया, उसके होठ हिले। काँपते स्वर में कहने लगा, महोदय मेरे न बोलने और न कपड़े पहनने, ओढ़ने से आप सब दुःखी है पर मैं अपने मन से लाचार हूँ क्या करूं? मैंने स्वदेशी कपड़े ही पहनने, ओढ़ने का प्रण कर रखा है सो आप लोग मुझे क्षमा करें मैं आपके देश के इन कपड़ों की पहन, ओढ़कर प्रण बचाने की अपेक्षा अपने प्राण की रक्षा के लिए प्राण त्यागना बेहतर समझता हूं। स्वदेश प्रेम पर मर-मिटने के लिए तैयार उस युद्ध बन्दी की देश भक्ति के सामने सम्राट नैपोलियन नतमस्तक हो गए। उन्होंने आस-पास खड़े। अधिकारियों को तुरन्त आज्ञा दी कि जैसी भी हो सके इस देशभक्त बन्दी के लिए जर्मन वस्त्रों की शीघ्र ही व्यवस्था की जाए। आदेश देकर सम्राट नैपोलियन अन्य बन्दियों की ओर उनका हाल-चाल जानने के लिए चल दिए और अधिकारीगण भी आज्ञानुसार तुरन्त भाग-दौड़ करने लगे। किन्तु सवेरा होने तक उस अनूठे देशभक्त कैदी की आत्मा, दुश्मन की कैद और संसार के बन्धनों से अपने को मुक्त करके अनन्त की ओर प्रस्थान कर चुकी थी। प्रातःकाल इस समाचार को सुनकर नैपोलियन की आँखों से दो आँसू लुढ़क पड़े। अनचाहे उसने हैट उतार कर उस देशभक्त को सलाम करते हुए कहा’- “काश। हर देश में ऐसे देश-भक्त पैदा हों जो देश की जमीन को मिट्टी का टुकड़ा न समझ उसे अपनी माँ समझे। देश के स्वाभिमान के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान कर सके।” इतना कहते हुए वह एक ओर चला गया।

First 29 31 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन एक कलाकार की तरह जीना सीखें
  • काँटे वरदान है। प्रभु के
  • अब वैज्ञानिक सुधारेंगे मानवी नस्ल को
  • कुण्डलिनी जागरण : एक विज्ञानसम्मत अध्यात्म उपचार
  • Quotation
  • दो धर्मात्मा
  • यंत्रों के गुलाम तो न बनें हम
  • कर्मयोग के मूल मर्म को समझें, आत्मसात करें
  • अध्यात्म हर दृष्टि से वरिष्ठ एवं वरेण्य है।
  • मधुमक्खी और तितली (Kahani)
  • अराजकता मिटेगी आस्थाओं के परिष्कार से
  • रोइये अथवा हंसिये पर तनाव को निकाल फेंकिये
  • आत्मिक बलिष्ठता हेतु प्राणों को साधिए
  • हाय री बुद्धिमत्ता, हाय री प्रज्ञाशीलता!
  • स्वर्ण-नरक का विवरण (Kahani)
  • सप्तलोक, सप्त आयामों का ज्ञान एवं विज्ञान
  • अग्रणी (Kahani)
  • ध्यान साधना से अन्तःशक्तियों का जागरण -प्रस्फुटन
  • दार्शनिक हिक्री (Kahani)
  • बड़े विलक्षण हैं कुदरत के खेल
  • संघर्ष नहीं, सहयोग पर टिकी है यह सृष्टि
  • बिना परिश्रम का धन - शैतान का
  • जरा ईश्वर पर विश्वास करके तो देखे
  • देखिए भविष्य की झाँकी स्वप्नों के माध्यम से
  • नीति और अनीतिपूर्वक कमाये हुए धन में अन्तर (Kahani)
  • भली एवं उदार प्रेतात्माएँ भी होती है।
  • परमार्थ (Kahani)
  • सूर्य साधना का महात्म्य समझें और लाभ उठाये
  • आँख और मान की विशेषता और गरिमा (Kahani)
  • जिसने राष्ट्र को माँ माना
  • जल : एक जीवन मूरि
  • अन्तरात्मा की मार से कब तक बचेंगे?
  • अनुयाज-पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-5 - चिन्तन सार्थक बनाता है स्वाध्याय को
  • निवेदिता (Kahani)
  • आत्मशोधन, आत्म परिष्कार एवं कायाकल्प-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • अंतःकरण ही वास्तविक भाग्य विधाता
  • निर्भीक, सिद्धांतवादी होता है लोकसेवी
  • कर्तव्य साधना (Kahani)
  • पुनर्प्रकाशित विशेष लेखमाला-12 - लोकसेवी की आचार संहिता (समापन किश्त)
  • अपनों से अपनी बात - युग-नेतृत्व महान आत्माएँ ही कर सकेंगी
  • विदुषी विश्ववारा (Kahani)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj