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Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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यंत्रों के गुलाम तो न बनें हम

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First 6 8 Last
आधुनिक सभ्यता में रह रहे लोगों की जीवनचर्या, रहन-सहन स्वभाव, प्रकृति और मान्यताओं-दृष्टिकोण को देखकर इसी निष्कर्ष पर पहुँचता पड़ता है कि मनुष्य दिनों दिन यान्त्रिक होता जा रहा है और उसका व्यक्तित्व यन्त्रों के समान ही संवेदना शून्य होता जा रहा है। इन दिनों जीवनयापन और दैनंदिन कार्यों दिनों जीवन यापन और दैनंदिन कार्यों के सम्पादन में यंत्रों युग कहने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। मनुष्य जीवन प्रत्येक क्षेत्र में किसी न किसी रूप में मशीनों से प्रभावित है, यन्त्रों के संपर्क में है।

यान्त्रिक जीवन का भावना क्षेत्र पर गम्भीर प्रभाव पड़ा है। यान्त्रिक सभ्यता ने मनुष्य के जीवन और व्यक्तित्व को कितना और किस प्रकार प्रभावित किया है? इसकी चर्चा करते हुए प्रसिद्ध विचारक संत विनोबा भावे ने लिखा है- “आधुनिक यान्त्रिक सभ्यता जिस तेजी से प्रगति कर रही है उसी अनुपात से मनुष्य की संवेदना का ह्रास होता जा रहा है कि शीघ्र ही वह पूरी तरह खोखला और बुरी तरह दुःखी हो जायेगा। इस तथ्य को और भी अधिक स्पष्ट करते हुए डॉ. राधाकृष्णन ने लिखा है- “आज के युग में जीने वाले व्यक्ति की स्थिति विचित्र कम, शोचनीय अधिक है। समस्त मानवीय सम्बन्ध अब केवल वित्तीय स्तर पर ही बनते हैं और अन्य सभी माध्यमों को या तो नगण्य घोषित कर दिया गया है अथवा यान्त्रिकता से जकड़े हुए नये समाज में वे स्वतः अपना महत्व और मूल्य खोते चले जा रहे है।”

मनुष्य चूँकि समाज का ही एक अंग है और समाज में रहने के कारण अंग है और समाज में रहने के कारण उसे दूसरे लोगों के संपर्क में भी आना पड़ता है प्रत्येक व्यक्ति अपने पड़ोसियों के दुःख-सुख में काम आये, उसके साथ पारिवारिक सम्बन्ध विकसित करे। किन्तु बड़े शहरों की स्थिति तो यह है कि वहाँ रहने वाला व्यक्ति अपने पड़ोसी के दुःख -दर्द में साथ देने की बात तो दूर रही, उसे जानते तक नहीं। बड़े शहरों और कस्बों में रहने वाले लोगों को अपन काम-काज से ही फुरसत मिल पाती है। फुरसत मिलती भी है तो उनकी मानसिकता कुछ इस प्रकार की बन गई है कि वे अवकाश का समय अपने पड़ोसियों से मेल-जोल बढ़ाने के स्थान पर टी.वी देखने सिनेमाघरों में जाने, सैर-सपाटे करने में गुजारना अधिक अच्छा समझते हैं। इतना ही नहीं रिश्तेदारों और सम्बन्धियों तक से संपर्क रखने को समय की बर्बादी समझा जाता है उपेक्षा अपने परिवारजनों की भी की जाती है। बच्चे क्या पढ़ रहे हैं? सुधर रहे हैं या बिगड़ रहे है। उन्हें माता पिता का प्यार मिल रहा है या वे प्यार के लिए तरस रहे हैं? माता-पिता के स्नेह और ममत्व की प्यास अतृप्त रह जाने के कारण कहीं उनका कोमल हृदय अंकुरित तो नहीं गया? आदि प्रश्नों की ओर काई ध्यान देना आवश्यक ही नहीं समझाता।

यन्त्रों के संपर्क में रहते-रहते मनुष्य इतना हृदयहीन और भाव शून्य होता जा रहा है। कि वह अपने अतिरिक्त और किसी की चिन्ता करना व्यर्थ ही समझने लगा है। यन्त्रों की बाढ़ ने मनुष्य का श्रम हल्का किया है और उसकी सुविधाएँ बढ़ाई हैं। उपभोग की वस्तुओं से, सुविधा साधनों से बाजार भरे पड़े हैं। जो समर्थ हैं, वे उन्हें खरीद सकते हैं और जो असमर्थ हैं वे इसके लिए बुरी तरह लालायित हैं। साधन-संपन्न और सुविधा जीवियों की देखा-देखी दूसरे लोगों में भी इस तरह उपभोग करने की आकांशा जगती है तथा वे भी इस का जीवन यापन करने के लिए ललक उठते हैं। अन्तर बढ़ता जाता है तथा यह अन्तर बढ़ता जाता है तथा यह अन्तर ही संपन्नता को प्रतिष्ठा का केंद्र बना देता है। मशीनी वातावरण एवं यन्त्रों देता है। मशीनों वातावरण एवं यन्त्रों से उत्पन्न हुई समृद्धि-संपन्नता के कारण हमारा दृष्टिकोण बदला है, उसने आर्थिक स्थिति को ही सर्वप्रधान बना दिया है तथा उसे केवल उस भाग को ही सुदृढ़ बनाने के लिए मनुष्य को इतना बावला बना दिया है कि वह चारों ओर से एकाकीपन, संत्रास, आत्महीनता कुँठाओं और विक्षोभों का शिकार होने लगा है।

धन को जीवन का केन्द्र बिन्दु बनते जाने से सहयोग-सद्भाव की वृत्ति घटने लगी हैं। लोग एकाकी परिवार बसाकर अधकचरी स्थिति में जीते हुए अपनी महत्वाकाँक्षाओं को पूरी करते रहने की आशा में टकटकी लगाये रह रहे हैं। इस प्रकार और अधिक धन कमाने और अधिक धन संग्रह करने के लोभ में लोग इन दिनों एकाकी, अकेले तथा स्वार्थी बनते जा रहे हैं।

यन्त्र जिस प्रकार एक ही गति एक ही लय-ताल में चलता है, उसी प्रकार मनुष्य भी एक ही स्थिति को बार-बार भोगने के लिए अपने आपकी विवश अनुभव करता इन दिनों प्रतीत हो रहा है। इसका अर्थ यह नहीं है कि यन्त्रों को नष्ट कर समाज पीछे चला जाय-यह एक और बड़ी गलती होगी। अब व्यवस्था का संयोजन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि हम अपने मूल्यों को सुरक्षित रख सकें। इतना किया जा सके तो यान्त्रिक सभ्यता के खतरों से बचा जा सकता है।

First 6 8 Last


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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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