• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
    • संस्कृति को समर्पित अर्घ्य
    • चैतन्य सत्ता के इशारे पर चल रहे सृष्टि के क्रिया-कलाप
    • महाक्रान्ति नारी ही करेगी
    • कहीं हमारा चिन्तन बौनेपन का शिकार तो नहीं
    • बाबू राजेन्द्रप्रसाद की कर्तव्यपरायणता (Kahani)
    • मृत संजीवनी ने दिलाया एक नगरवधू को
    • योग जोड़ता हमें ब्रह्माण्ड रूपी शक्तिशाली सागर से
    • रंग और उल्लास का पर्व-होली
    • विनम्रता (Kahani)
    • मानवी मस्तिष्क विलक्षणताओं का जखीरा
    • फलदायिनी गायत्री महाशक्ति की अभियान-साधना
    • समाज सेवा बाद में- पहले आत्मसुधार
    • Quotation
    • बुद्धिवाद के इस युग में जानें, दाम्पत्य के सही व्यवहार को
    • मरणोत्तर जीवन-तथ्य एवं सत्य (Kahani)
    • एक संत जन्मा आविष्कार के साथ
    • विविधता से भरी प्रकृति के ये परोक्ष अनुदान
    • अब शरीर की लय व ताल पर टिका होगा मरीजों का हाल
    • चिन्तन परिष्कृत हो तो ही परमात्मा का प्रवेश संभव
    • भारभूत बनकर क्यों जीते हैं आप?
    • असावधानी (Kahani)
    • ये चित्र-विचित्र विवाह व उनकी प्रथा-परम्पराएँ
    • विकास तो हो, पर इस कीमत पर नहीं
    • अजब तेरी दुनिया-विचित्र मेरी सृष्टि
    • चतुर्भुज प्रेम (Kahani)
    • जड़ें मन में, रोग तन में
    • प्रतिकूलताओं में एक ही आशा की किरण- प्रार्थना
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - उपासना, साधना व आराधना
    • सम्पत्ति के गुलाम (Kahani)
    • हरी बाबा का बाँध
    • Quotation
    • टहलना हर दृष्टि से लाभदायक है
    • श्रम देवता की प्रतिष्ठा
    • महाकाल का पुरुषार्थ हो रहा है कटिबद्ध
    • मन का मैल (Kahani)
    • VigyapanSuchana
    • अपनों से अपनी बात-1 - युगपरिवर्तन की अदृश्य, किंतु अद्भुत प्रक्रिया
    • अपनों से अपनी बात-2 - आपातकाल की वेला में एक विराट भागीरथी पुरुषार्थ
    • गृहस्थ एक तपोवन (Kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
    • संस्कृति को समर्पित अर्घ्य
    • चैतन्य सत्ता के इशारे पर चल रहे सृष्टि के क्रिया-कलाप
    • महाक्रान्ति नारी ही करेगी
    • कहीं हमारा चिन्तन बौनेपन का शिकार तो नहीं
    • बाबू राजेन्द्रप्रसाद की कर्तव्यपरायणता (Kahani)
    • मृत संजीवनी ने दिलाया एक नगरवधू को
    • योग जोड़ता हमें ब्रह्माण्ड रूपी शक्तिशाली सागर से
    • रंग और उल्लास का पर्व-होली
    • विनम्रता (Kahani)
    • मानवी मस्तिष्क विलक्षणताओं का जखीरा
    • फलदायिनी गायत्री महाशक्ति की अभियान-साधना
    • समाज सेवा बाद में- पहले आत्मसुधार
    • Quotation
    • बुद्धिवाद के इस युग में जानें, दाम्पत्य के सही व्यवहार को
    • मरणोत्तर जीवन-तथ्य एवं सत्य (Kahani)
    • एक संत जन्मा आविष्कार के साथ
    • विविधता से भरी प्रकृति के ये परोक्ष अनुदान
    • अब शरीर की लय व ताल पर टिका होगा मरीजों का हाल
    • चिन्तन परिष्कृत हो तो ही परमात्मा का प्रवेश संभव
    • भारभूत बनकर क्यों जीते हैं आप?
    • असावधानी (Kahani)
    • ये चित्र-विचित्र विवाह व उनकी प्रथा-परम्पराएँ
    • विकास तो हो, पर इस कीमत पर नहीं
    • अजब तेरी दुनिया-विचित्र मेरी सृष्टि
    • चतुर्भुज प्रेम (Kahani)
    • जड़ें मन में, रोग तन में
    • प्रतिकूलताओं में एक ही आशा की किरण- प्रार्थना
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - उपासना, साधना व आराधना
    • सम्पत्ति के गुलाम (Kahani)
    • हरी बाबा का बाँध
    • Quotation
    • टहलना हर दृष्टि से लाभदायक है
    • श्रम देवता की प्रतिष्ठा
    • महाकाल का पुरुषार्थ हो रहा है कटिबद्ध
    • मन का मैल (Kahani)
    • VigyapanSuchana
    • अपनों से अपनी बात-1 - युगपरिवर्तन की अदृश्य, किंतु अद्भुत प्रक्रिया
    • अपनों से अपनी बात-2 - आपातकाल की वेला में एक विराट भागीरथी पुरुषार्थ
    • गृहस्थ एक तपोवन (Kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1998 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अब शरीर की लय व ताल पर टिका होगा मरीजों का हाल

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 18 20 Last
उपयुक्त समय पर उपयुक्त कार्य करने का सर्वत्र विधान है। अनुपयुक्तता का अवरोध असफलता उत्पन्न करता है। रबी फसल को खरीफ के समय में बोया जाये, तो किसानों को निराशा ही हाथ लगेगी। परीक्षा का समय खेल-कूद कर गुजारने वाले विद्यार्थियों का अनुत्तीर्ण होना सुनिश्चित है। नौकरी की उम्र निकल जाने के बाद आवेदन करने वालों को हाथ मलना पड़ता है। अब चिकित्सा-क्षेत्र में भी असमय की अड़चन आने लगी है।

हाल के शोध अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि किसी भी रोग के सफल इलाज के लिये रोगी की उत्तम चिकित्सा ही पर्याप्त नहीं है, उससे भी महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उसका उपचार कब और दिन के किस हिस्से में किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि शरीर क्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए उसका ऐ अपना स्वसंचालित तंत्र है। इसे आम बोलचाल की भाषा में ‘कायिक घड़ी’ कहते हैं। यही घड़ी समस्त शरीरगत क्रिया–कलापों का नियमन-नियंत्रण करती हैं अलग-अलग क्रियाओं की अलग-अलग घड़ियाँ है। उदाहरण के लिए, रक्तचाप को लिया जा सकता है। प्रातः जैसे ही यह घड़ी चालू होती है, व्यक्ति की नींद टूट जाती और बिस्तर छोड़ते ही उसका रक्त चाप बढ़ने लगता है। इसी प्रकार रात होते ही यह रक्तचाप गिरना प्रारम्भ करता है। ऐसे ही देह के रसस्रावों को यह प्रभावित-परिवर्तित करने वाला एक पृथक तंत्र है। विषाणुओं से युछ करने वाली श्वेत रक्त–कणिकाओं की संख्या में वृद्धि ओर ह्रास को नियमित करने वाली इसी तरह की एक भिन्न ‘बॉडी क्लॉक’ है। शरीर शास्त्र में इन घड़ियों को -सेकेंडियन रिद्म’ कहते हैं। इन लयों का अध्ययन जिस विज्ञान के अंतर्गत होता है, वह ‘क्रोनोबायोलॉजी कहलाता है और इसके द्वारा की जाने वाली चिकित्सा ‘क्रोनोथेरेपी’।

“क्रोनोथेरेपी एक अभिनव चिकित्साप्रणाली है, जिसके अंतर्गत रोग की लयात्मकता के हिसाब से उपचार किया जाता है। ‘टेक्सा मेडिकल स्कूल यूनिवर्सिटी’ के ‘हरमन सेण्टर ऑफ क्रोनोबायोलॉजी’ प्रभाग के निदेशक डॉ. रोनाल्ड पोर्टमैन कहते हैं कि तब हृदय रोग, अनिद्रा, अवसाद और कैंसर जैसी व्याधियों में उनकी लयात्मकता को ध्यान में रखकर दवा दी जाती है, तो वह काफी प्रभावशाली होती है और सामान्य तरीके से किये गये उपचार की तुलना में अधिक सशक्त साबित होती है। वे कहते हैं कि हृदय रोग की स्थिति में अधिकाँश मौतें प्रातः से दोपहर के बीच होती देखी जाती है। इसके पीछे लयात्मकता सम्बन्धी एक प्रमुख कारण है। चूँकि रक्तचाप सुबह से शाम वाले हिस्से में वृद्धि करता है, अतः इस भाग में दवा देने पर दोनों के मध्य एक प्रकार की रस्साकशी शुरू हो जाती हैं दवा अपना असर डालकर उसकी वृद्धि को रोकना चाहती है, जबकि रक्तचाप अपनी प्रकृति के हिसाब से बढ़ना चाहता है। दोनों अपना-अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते हैं। इसी संघर्ष में दवा की शक्ति चुक जाती हैं अतएव ऐसी स्थिति में औषधि सोने से पूर्व लेना अधिक लाभकारी होती देखी गयी है।

पश्चिम के कई देशों में दस पद्धति को परखा और आजमाया जा रहा है। इसमें अमेरिका, फ्राँस, जर्मनी आदि मुख्य हैं। ब्रिटेन में भी कई वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर गया है। वहाँ के जॉन मूर्स यूनिवर्सिटी, लीपरपूल के शरीर विज्ञानी डॉ. जेम्स वाटरहाउस का कहना है कि विश्वस्तर पर इसे प्रतिष्ठित करने में अभी काफी विलम्ब है और इस बात परीक्षा करने में भी काफी समय लगेगा कि प्रत्येक रोग पर क्या यह एक समान प्रभावकारी है अथवा अलग-अलग। दाम रोग में इसकी विश्वसनीयता परखी जा चुकी है। यद्यपि दिन के वक्त व्यक्ति कई प्रकार के एलर्जीकारक तत्वों के संपर्क में आ सकते हैं और दमा जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं, पर दमा के दौरे प्रायः रात में ही पड़ते देखे जाते हैं। इसका कारण कोर्टिसोल नामक एक इम्यूनरोधी रसस्राव है। रात के समय इसकी मात्रा एकदम न्यून होती है, अतएव दवा लेते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि उसे उस समय के आस-पास ही लिया जाये। देखा यह गया है कि दमा के पुराने मरीजों को दमारोधी औषधियाँ प्रायः सुबह के समय दी जाती हैं। डॉ. वाटरहाउस के अनुसार यह उचित नहीं है। वे कहते हैं कि ऐसी स्थिति में औषधियों का प्रभाव तब तक लगभग समाप्त हो जाता है, जब उसकी सर्वाधिक आवश्यकता महसूस की जाती है, इसलिये दोपहर बाद ही इनका सेवन अधिक उपयोगी और लाभकारी है। इस दशा में दिन के समय में भी थोड़ी सुरक्षा बनी रहती है, लेकिन महत्वपूर्ण सुरक्षा वह रात को प्रदान करती है, जब व्याधि अपने चरम पर होती है।

इस प्रणाली द्वारा विभिन्न प्रकार की बीमारियों के साथ-साथ कैंसर का भी सफल इलाज किया जा सकता है। अमेरिका एवं फ्राँस जैसे देशों में विशेषज्ञों के कई दल इस दिशा में कार्यरत हैं। अनुसंधानकर्ता इस बात का पता लगाकर कि किस अवयव के कैंसर में किस समय दवा देने पर अधिक प्रभावी सिद्ध होती है, यह प्रमाणित करना चाह रहे है कि अलग-अलग अंगों के कैंसर में दवा सेवन का समय तदनुसार पृथक-पृथक होना चाहिये। एक ही समय का उपयोग हर प्रकार के कैंसर के लिए उचित नहीं। ज्ञातव्य है कि कीमोथेरेपी में प्रयुक्त होने वाली औषधियाँ कैंसरजन्य कोशिकाओं को मारती हैं, किन्तु इन दवाइयों का सबसे बड़ा दोष यह है कि ये स्वस्थ कोशिकाओं को भी नहीं छोड़ती, जिसके कारण रोग नियंत्रण के साथ-साथ रोगी पर उसका अवाँछनीय असर भी स्पष्ट झलकने लगता है। इन प्रभावों को निरस्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने यह सुनिश्चित करना चाहा कि किस अंग की कैंसर कोशिकाएं कब सर्वाधिक संवेदनशील होती हैं। इसके लिये कोशिका-विभाजन चक्रों का अध्ययन आरम्भ किया गया। इससे विदित हुआ कि भिन्न-भिन्न स्थानों की सामान्य कोशिकाओं की सक्रियता का समय भिन्न-भिन्न है। एक अध्ययन के दौरान देखा गया कि आँत की कोशिकाएं दिन के समय अधिक क्रियाशील होती हैं। इस आधार पर क्रोनोथेरेपी के विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकाला कि बड़ी आँत के कैंसर के लिए कीमोथेरेपी उपचार का सर्वाधिक उपयुक्त समय रात हो सकता है, तब स्वस्थ सेलों को नुकसान पहुँचने की कम-से-कम संभावना होती है।

इस संबंध में पिछले महीने की ‘दि लैन्सेट’ पत्रिका में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है। इस फ्राँसीसी अध्ययन में 186 ऐसे मरीजों को चुना गया, जिन्हें बड़ी आँत एवं मलाशय के कैंसर थे। सभी रोगी कैंसर की उन्नत अवस्था वाले थे। इन्हें दो दलों में विभाजित किया गया। एक दल को कीमोथेरेपी की खुराक सामान्य तरीके से खिलायी गई, जबकि दूसरे को सेकेंडियन रिद्म के हिसाब से। इसके बाद दोनों दलों के रोगियों का सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन किया गया, इस अध्ययन से उनमें स्पष्ट अन्तर दिखलाई पड़ा।

पाल ब्राउसे अस्पताल के चिकित्सक एवं शोधदल के प्रमुख डॉ. फ्राँसिसलेवी के अनुसार क्रोनोथेरेपी उपरोक्त स्थिति में अधिक प्रभावी देखी गई। इसके अतिरिक्त पार्श्व प्रभाव के रूप में मुँह की सृजन जैसे अवाँछनीय असर में छह गुना एवं गम्भीर अतिसार में दो गुना की स्पष्ट कमी दृष्टिगोचर हुई। इसके साथ औषधि के उन अप्रिय प्रभावों में पचास प्रतिशत की कमी देखी गई, जिसके कारण रोगियों के हाथ और पैर सुन्न हो जाय करते थे बालों झड़ने जैसी आम शिकायत भी इस उपचार प्रणाली द्वारा इलाज किये गये मरीजों में नहीं पायी गई। इस पद्धति की एक अन्य विशेषता यह थी कि इसमें दवा का असर साधारण तरीके से की गयी चिकित्सा की तुलना में अधिक लम्बे समय तक बना रहा। यह अवधि इसमें लगभग छह माह थी, जबकि कीमोथेरेपी की प्रचलित पद्धति में यह चार माह जितनी पायी गई। इसके बाद उसकी दूसरी खुराक की आवश्यकता रोगियों को महसूस होने लगी।

रॉयल मॉर्सडेन अस्पताल के कैंसरविद् एवं अनुसंधान दल के एक प्रमुख सदस्य डॉ. डेविडकर्निंघम का विचार था कि यद्यपि उपरोक्त दोनों प्रकार की प्रणालियों द्वारा बचाये गये मरीजों की संख्या में कोई बड़ा अन्तर नहीं था, फिर भी क्रोनोथेरेपी की उपयोगिता और आवश्यकता की उपेक्षा नहीं की जा सकती। इसके बारे में और अधिक अध्ययन एवं अनुसंधान की जरूरत है, कारण कि एक परीक्षण के आधार पर शतप्रतिशत तथ्यों का पता नहीं लगाया जा सकता। इसके लिये प्रयोगों की एक लम्बी श्रृंखला अभीष्ट है।

इन्हीं दिनों मॉर्सडेन अस्पताल, अमेरिका में इसी प्रकार का एक और अध्ययन किया गया। उससे प्राप्त परिणाम काफी उत्साहवर्द्धक था। उक्त प्रयोग में 200 ऐसे व्यक्तियों का चुनाव किया गया, जो क्षयरोग से ग्रस्त थे। दो समूह बनाये गये। एक को प्रचलित ढंग का उपचार दिया गया, जबकि दूसरे की कायिक घड़ी पर आधारित चिकित्सा की गई। देखा गया कि जिस किसी को भी बीमारी की चक्रीय प्रकृति के आधार पर औषधि दी गई, उस समूह के लोगों ने कम समय में तेजी से स्वास्थ्य-लाभ किया। औषधि आरम्भ करने के पश्चात् तीन माह बाद लिया गया उनका एक्सरे चौंकाने वाला था। रिपोर्ट इस बात की पुष्टि कर रही थी कि वे पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के एकदम करीब थे, जबकि से सभी टी.बी. के गम्भीर रोगी थे। इसी समयान्तराल पर जब दूसरे समूह के लोगों का स्वास्थ्य-परीक्षण किया गया, तो उसमें सुधार तो देखा गया, पर उतना और वैसा नहीं, जैसा कि क्रोनोथेरेपी के रोगियों में परिलक्षित हुआ। इससे स्पष्ट है कि -व्याधि की चक्रीयता और रिद्म (लय) का स्वस्थ होने की प्रक्रिया से गहरा सम्बन्ध है। विशेषज्ञों का मत है कि यदि इस विज्ञान को भली-भाँति समझा सके, तो बीमारियों को न सिर्फ समूल नष्ट किया जा सकेगा, वरन् असाध्य रूप से ग्रसित बीमारों को अल्प समय में पूर्णरूपेण स्वस्थ भी बनाया जा सकेगा।

इस प्रकार के अनेक प्रयोग अमेरिका के कितने ही विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केन्द्रों में चाल रहे हैं। फ्लोरिडा के ‘सेण्टर फॉर ट्रीटमेण्ट ऑफ साइकिक डिजोर्डर्स’ नामक शोध संस्थान में पिछले दिनों क्रोनोथेरेपी पर आधारित कई परीक्षण किये गये। सभी से लगभग एक ही निष्कर्ष सामने आया कि अवसादग्रस्त लोगों में यदि रोग की लयात्मकता की सूक्ष्मतापूर्वक जाँच कर उस आधार पर उनको औषधि दी जाये, तो वह ज्यादा प्रभावकारी साबित होता है।

उपर्युक्त नतीजों से उत्साहित होकर ‘टेक्सन क्रोनोबायोलॉजी सेण्टर’ ने ‘अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन’ को इस बात की सलाह दी कि वह क्रोनोथेरेपी पर सम्मेलन का आयोजन करे, ताकि विश्व के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से इस सम्बन्ध में गम्भीर चर्चा की जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि आगे के शोध-अनुसंधान का इसका स्वरूप क्या हो?

क्रोनोबायोलॉजी चिकित्सा विज्ञान की एक नवीन शाखा है। इसकी वैज्ञानिकता को सिद्ध करने और चिकित्सकों का इसके प्रति विश्वास जगाने में अभी दशकों लग जायेंगे। अमेरिका को यदि छोड़ दिया जाये, तो जर्मनी और फ्राँस में गिने-चुने विज्ञानवेत्ता ही ऐसे होंगे, जो इस पर गंभीरता पूर्वक विचार कर रहे हैं। ब्रिटेन में अभी भी इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। वहाँ के चिकित्साशास्त्री क्रोनोथेरेपी के सम्बन्ध में यह तो स्वीकार करते हैं कि कुछ मामलों में इसकी प्रभावोत्पादकता असंदिग्ध है, पर हर प्रकार की व्याधियों में यह प्रभावशाली सिद्ध होगी, इस पर वे संदेह व्यक्त करते हैं।

इसे पूर्ण प्रणाली का दर्जा मिलने में भले ही अभी विलम्ब हो, पर चिकित्सा जगत में समय की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता। ठीक समय पर रोगग्रस्तों की उपचार-व्यवस्था नहीं की गई, तो जान जाने का खतरा बना ही रहता है। ऐसे ही यदि रोग और रोगी दोनों को प्रभावित कर सकता है।

इन प्रसंगों उदाहरणों में समय की उपयुक्तता महत्वपूर्ण तथ्य हैं इसमें तनिक भी व्यतिरेक होने पर असफलता ही हाथ लगती है। आने वाले दिनों में चिकित्सा जगत में समय की उपयुक्तता को ही प्रमुख आधार माना गया, तो इसे आश्चर्यजनक नहीं माना जाना चाहिये।

First 18 20 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
  • संस्कृति को समर्पित अर्घ्य
  • चैतन्य सत्ता के इशारे पर चल रहे सृष्टि के क्रिया-कलाप
  • महाक्रान्ति नारी ही करेगी
  • कहीं हमारा चिन्तन बौनेपन का शिकार तो नहीं
  • बाबू राजेन्द्रप्रसाद की कर्तव्यपरायणता (Kahani)
  • मृत संजीवनी ने दिलाया एक नगरवधू को
  • योग जोड़ता हमें ब्रह्माण्ड रूपी शक्तिशाली सागर से
  • रंग और उल्लास का पर्व-होली
  • विनम्रता (Kahani)
  • मानवी मस्तिष्क विलक्षणताओं का जखीरा
  • फलदायिनी गायत्री महाशक्ति की अभियान-साधना
  • समाज सेवा बाद में- पहले आत्मसुधार
  • Quotation
  • बुद्धिवाद के इस युग में जानें, दाम्पत्य के सही व्यवहार को
  • मरणोत्तर जीवन-तथ्य एवं सत्य (Kahani)
  • एक संत जन्मा आविष्कार के साथ
  • विविधता से भरी प्रकृति के ये परोक्ष अनुदान
  • अब शरीर की लय व ताल पर टिका होगा मरीजों का हाल
  • चिन्तन परिष्कृत हो तो ही परमात्मा का प्रवेश संभव
  • भारभूत बनकर क्यों जीते हैं आप?
  • असावधानी (Kahani)
  • ये चित्र-विचित्र विवाह व उनकी प्रथा-परम्पराएँ
  • विकास तो हो, पर इस कीमत पर नहीं
  • अजब तेरी दुनिया-विचित्र मेरी सृष्टि
  • चतुर्भुज प्रेम (Kahani)
  • जड़ें मन में, रोग तन में
  • प्रतिकूलताओं में एक ही आशा की किरण- प्रार्थना
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - उपासना, साधना व आराधना
  • सम्पत्ति के गुलाम (Kahani)
  • हरी बाबा का बाँध
  • Quotation
  • टहलना हर दृष्टि से लाभदायक है
  • श्रम देवता की प्रतिष्ठा
  • महाकाल का पुरुषार्थ हो रहा है कटिबद्ध
  • मन का मैल (Kahani)
  • VigyapanSuchana
  • अपनों से अपनी बात-1 - युगपरिवर्तन की अदृश्य, किंतु अद्भुत प्रक्रिया
  • अपनों से अपनी बात-2 - आपातकाल की वेला में एक विराट भागीरथी पुरुषार्थ
  • गृहस्थ एक तपोवन (Kahani)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj