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Magazine - Year 1998 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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प्रतिकूलताओं में एक ही आशा की किरण- प्रार्थना

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First 27 29 Last
“भगवान यहाँ हैं और दक्षिण ध्रुव में नहीं हैं?” वह खुलकर हंस पड़ा। “जो यहाँ हमारी रक्षा कर सकता है वह कर कहीं कर सकता है।” क्या कोई उत्तर था किसी के पास, इस अनोखे तर्क का? श्रीमती विल्सन जानती हैं कि उनके पति जब कोई निश्चय कर लेते हैं उन्हें रोक पाना असम्भव होता है।

लम्बा- दुबला शरीर, नीली आँखें, सुनहरे केश वाले विल्सन की रुचि अद्भुत है। आतंकपूर्ण परिस्थितियाँ तो जैसे इनके लिये एक विलक्षण ऊर्जा का स्रोत हैं। सारा दिन काम करने की विचित्र, धुन कोई कुछ कहे, इससे पहले कह देंगे-कर्म मेरी उपासना है और उपासना छोड़ी नहीं सकती। किसी भी स्थिति में शाकाहार ही इन्हें प्रिय हैं चावल-दाल-रोटी उबले आलू, उबली पत्तियाँ, थोड़ा-सा अंजीर बस इतना ही पर्याप्त है उनके लिये।

दक्षिण अफ्रीका से कोई दल दक्षिण ध्रुव का पता लगाने जा रहा है। बस समाचार-पत्र में इतने पढ़ते ही उन्होंने लिखा-पढ़ी की दल के नायक से और अनुमति प्राप्त कर ली। श्रीमती विल्सन को उन्हें जहाज तक छोड़ने आना ही था। चलते समय उन्होंने बड़े भावुकतापूर्ण स्वर में अनुरोध किया।- “आप मेरी एक बात मान लें। भोजन सम्बन्धी अपना नियम अब यहीं रहने दें।” स्वाभाविक था यह अनुरोध। किसी हिमप्रदेश में कोई शाकाहारी बने रहने का हठ करे, बोतल को न छूने की शपथ का निर्वाह करे, कैसे जीवित रहेगा वह? “तुम चिन्ता क्यों करती हो?” हमेशा की भाँति इस बार भी चिर-परिचित उत्तर था- “चिन्ता करने वाला है न! वह सारे संसार की चिन्ता करता है। तुम विश्वास रखो जब तक मैं होश में रहूँगा, उसकी नित्य प्रार्थना करूंगा, उसे भूलूँगा नहीं।”

लेकिन भोजन की समस्या को यहीं तक सीमित नहीं रहना था। यात्रा के प्रथम दिन ही दल के सदस्य तक उनके निश्चय से चौंक पड़े। “आप निरामिष भोजी हैं और शराब छूते तक नहीं?” दलनायक हर्बर्ट अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए “आप होश में भी हैं या नहीं” दक्षिण ध्रुव की यात्रा करने चल रहे हैं।” शान्त बैठ हुये विल्सन की ओर देखते हुए वह कह रहे थे- “हम आपको समीप के द्वीप पर छोड़ देंगे। अमेरिका जाने के लिए एक सप्ताह के भीतर ही आप जहाज पा सकते हैं।” दलनायक को खेद हो रहा था कि वह इस व्यक्ति को साथ क्यों नहीं ले आया। “मैं लौटने के लिये नहीं आया हूँ।” विल्सन ज्यों के त्यों दृढ़ रहे। “सब सदस्य अपने उत्तरदायित्व पर आये हैं। किसी की की मृत्यु के लिये कोई उत्तरदायित्व नहीं है।”

“तुम समझने की कोशिश करो मित्र” हर्बर्ट बैठ गया। और विल्सन का हाथ पकड़कर बड़ी विनम्रता से उसने कहा- “तहाँ बहुत तेज शराब भी गले के नीचे जाकर रक्त में कुछ उष्णता बनाये रखने में किसी भाँति सफल नहीं होती है, वहाँ कोई शराब न छूने का व्रत रखे- कैसे जीवित रहेगा? हमारा जहाज बहुत दूर तक नहीं जा सकता। अन्त में हमें स्लेज पर ही यात्रा करनी है। हमारा एकमात्र भोजन वहाँ साथ चलने वाले बारहसिंगे ही हो सकते हैं। कोई भी भोजन का पदार्थ वहाँ प्राप्त नहीं और न उसे ले जाने के साधन हैं।”

“मैं आपकी सहानुभूति और सलाह का कृतज्ञ हूँ।” विल्सन ने भी स्वर को प्रेमपूर्ण बना लिया- “ये सब कठिनाईयाँ मेरे ध्यान से बाहर नहीं हैं। लेकिन तुम क्या नहीं मानते कि भगवान सर्वसमर्थ है? वे सर्वत्र हैं, तो हमें क्यों भय करना चाहिये और क्यों चिन्ता करनी चाहिये। मैं तो इस यात्रा पर आया ही इसी लिये हूँ कि निर्जन हिमप्रदेश में भी परमात्मा हैं और वहाँ भी वे उस प्रार्थना को सुनने के लिए उपस्थित रहते हैं, जो केवल उनके लिए की जाती है, यह अनुभव करूं।”

“मैं नास्तिक नहीं हूँ। लेकिन इतना आशावादी बनने का खतरा भी नहीं उठा सकता।” हर्बर्ट ठीक कह रहा था। एक सामान्य मनुष्य जैसे सोच सकता है वैसा ही वह सोच रहा था।

“हम पहले प्रार्थना करेंगे” विल्सन ने ही प्रस्ताव किया- “प्रार्थना के बाद भोजन करके तब इस बात पर चर्चा करना अच्छा रहेगा।” परमात्मा। मेरे पिता! तू सब कहीं पर विद्यमान है। तू इस हिमप्रदेश में भी है, जहाँ मैं तुझे प्रणाम करने आ रहा हूँ।” विल्सन का कण्ठ प्रार्थना करते समय गदगद हो रहा था। उनके बन्द नेत्रों से आँसू की बूँदें टपक रही थीं। “जगदीश्वर! तू एकमात्र सबका रक्षक और पालक है। प्रभु तू यहाँ और सब कहाँ है। हम क्यों डरें? क्यों चिन्ता करें? तू है न हमें शक्ति दे कि हम तेरा ही भरोसा करें। तुझे ही स्मरण करें।” सभी को लग रहा था, विल्सन इस भयंकर यात्रा में उनके लिये बहुत आवश्यक है।

सबकी सहानुभूति विल्सन के साथ हो गयी थी, दलनायक हर्बर्ट ने लौटने की बात फिर नहीं छेड़ी। उसने सोच लिया “परिस्थितियाँ जब विवश करेंगी, आहार-सम्बन्धी नियम आने आप लुप्त हो जायेंगे। अभी आग्रह करने का अर्थ उस आग्रह को पुष्ट करना होगा।”

“विल्सन हम प्रार्थना करेंगे।” अब तो दल के सभी साथी प्रार्थना के अद्भुत प्रभाव के देखते-देखते अभ्यस्त हो गये। जहाज छोड़कर दल स्लेज गाड़ियों पर यात्रा कर रहा है। बर्फीले तूफान, बर्फ की दलदल, मार्ग में पड़ी पच्चीस-पचास गत चौड़ी दरारें और मार्ग खो जाना, सच बात तो यह है कि कोई मार्ग है ही नहीं। दिग्दर्शक यंत्र और अनुमान पग-पग पर विपत्तियों का ढेर। किसी भी दारुण विपत्ति के समयदान एकत्रित हो जाता है, प्रार्थना होने लगती है। है न अद्भुत बात, हर बार प्रार्थना के बाद सभी अनुभव करते हैं कि विपत्ति भाग गई, भगा दी गयी और उनका मार्ग सुगम हो गया।

हिम-अपार हिम है, चारों ओर? वृक्षों और हरियाली की तो चर्चा ही बेकार है। बारहसिंगों का झुण्ड और कुत्तों का दल-कुत्तों के बिना स्लेज खींचे कौन? लेकिन ये हिमप्रान्तीय भयानक कुत्ते बार-बार बिगड़ जाते हैं। बार-बार बारहसिंगों पर आक्रमण करते हैं और इनमें भगदड़ मच जाती है। कुत्ते मनुष्य की तरह बुद्धिमान तो नहीं, तो क्षुधा पर नियंत्रण रख सकें। बेचारे स्लेज खींचते-खींचते थक जाते हैं। भूख लगने पर बारहसिंगों को छोड़कर और मिल भी क्या सकता है? बड़ा कठिन है ऐसे में उन्हें नियंत्रित रख पाना। समय-समय बर्फ के नीचे जमी काई चरने के लिये बारहसिंगों को भी छोड़ना पड़ता है।

ऐसे में विल्सन सबका सहारा बन गया। एक वही है जिसका दल पर कोई भार नहीं है। सब दूसरे शराब की बोतल मुँह से लगाते हैं, वह स्प्रिट के द्वारा बर्फ को पिघलाकर उबालता है और गर्म पानी की घूँट पीकर सब से ज्यादा स्फूर्ति पा जाता है।

“मैं चरने जाता हूँ। “ प्रायः वह सबको हंसा देता है। अद्भुत है यह अंग्रेज। उसके अमेरिकन साथी इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि बारहसिंगों के साथ बर्फ के नीचे इधर-उधर जमी काई जैसी घास को कोई मनुष्य भोजन बना सकता है। लेकिन विल्सन मजे से उसे पर्याप्त मात्रा में खा जाता है।

“हमें लौटना चाहिये।” अचानक एक दिन कुत्तों ने स्लेज को लौटाने की ठान ली। वे किसी प्रकार आगे नहीं बढ़ना चाहते थे। बारहसिंगों का झुण्ड छोड़ा गया और अदृश्य हो गया। विल्सन ने सलाह दी, लक्षण अच्छे नहीं हैं। बर्फीले तूफान कुछ ही दिनों में चलने लगेंगे। हम लोग जहाज तक लौट चलें तो ठीक है।

कुत्ते लौटते समय गाड़ियों को पूरी शक्ति से खींच रहे थे। जैसे उन्हें भी लगता था कि इस हिमप्रदेश से जितना शीघ्र निकला जा सके, उतना ही उत्तम है।

जहाज पर सभी यात्री आये और समुद्र का जमना प्रारम्भ हुआ। बहुत थोड़ी दूर जाकर जहाज रुक गया। पृथ्वी और जल का भेद मिट चुका था। एक श्वेत चादर यात्रियों को लग रहा था कि बूढ़ी पृथ्वी मर चुकी है और उसे श्वेत वस्त्र से ढक दिया गया है। मौत, केवल मौत दिखती थी उन्हें। मृत्यु की छाया काली होती है, किन्तु उनके यहाँ तो उजली, असीम-उजली, कोमल और शीतल रूप धारण करके मृत्यु आयी थी। पूरा जहाज ढक गया, हिम के अपार अम्बार में। बाहर से उसका कोई अंश दिखता ही नहीं है। जहाज के यात्रियों में साहस नहीं था कि जहाज के बाहर आकर यह देखें। बेचारे कुत्ते मर गये थे। स्लेज खींचने में उन्होंने प्राण होम दिये। मार्ग में हिमपात प्रारम्भ हो गया था। यात्री किसी तरह भागते-दौड़ते जहाज पर पहुँच गये, यही बहुत था। लेकिन अब इस सुरक्षा का क्या अर्थ? इतना नहीं कि अगली ऋतु में कहीं कोई पता लगाने आया तो जहाज के भीतर उनके सिकुड़े शव उसे मिल जायेंगे।

जल -केवल जल पीकर रहना था उन्हें और अन्त में वह भी अलभ्य हो गया। भोजन और शराब की बोतलें कब की समाप्त हो चुकीं। उष्णता की प्राप्ति और बर्फ गलाकर जल बनाना, सबका साधन था स्प्रिट लैम्प आरै अन्त में स्प्रिट भी समाप्त हो गया।

अनाहार और मृत्यु की स्पष्ट मूर्ति ने सबको निराश कर दिया है। किसी में अब आशा नहीं कि प्रार्थना से कुछ होगा। सच तो यह है कि अब कोई कुछ सोचता नहीं, सोचने योग्य है भी नहीं। मृत्यु, मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं सब। केवल विल्सन ही है, जो नित्य दोनों समय प्रार्थना कर लेता है। समय का अनुमान भी वहाँ घड़ी से ही होता है। वह ठीक घड़ी की भाँति समय पर हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठकर बोलने लगाता है- “मेरे प्रभु! मैं कुछ नहीं चाहता। केवल इतना-इतना कि मैं तुझे भूलूँ नहीं।”

अद्भुत है यह- और इसकी प्रार्थना। स्प्रिट समाप्त होने को आया, यह देखते ही इसने बर्फ के टुकड़े मुँह में रखकर चूसने का अभ्यास कर लिया। जिनकी नाड़ियों का रक्त शराब की उष्णता से उष्ण बनता रहा, वे सब मूर्च्छित पड़े हैं और यह शाकाहारी खौलाये पानी पर जीवित रहने वाला विल्सन अब भी उठ-बैठ लेता था। प्रार्थना जारी थी।

साठ दिन-पूरे साठ दिन बीत गये। आज उसे लगा शायद वह अन्तिम बार प्रार्थना करने बैठा है उसका सिर घूम रहा है, उसकी आँखों के सामने घना अंधेरा छा गया। उसका कण्ठ सूख चुका था। ‘परमात्मा’ केवल एक शब्द कह पाया वह। उसे लगा, अब गिरेगा-मूर्च्छा और मृत्यु वहां पर्यायवाची ही थे। कोई है? कोई जीवित है भाई? जहाज के ऊपर डैक पर से नीचे उतरने के बन्द द्वार कोई पीट रहा था। बार-बार एक ही पुकार- “परमात्मा के लिये बोलो, एक बार बोलो।”

“कौन आयेगा यहाँ? भ्रम, भ्रम है मेरा।” विल्सन अर्द्धमूर्च्छित हो रहा था। लेकिन द्वार बराबर पीटा जा रहा था। बराबर कोई पुकार रहा था। अन्त में लेटे-लेटे पेट के बल किसी प्रकार विल्सन खिसका।

“परमात्मा के लिये शराब नहीं, गरम पानी।” द्वार खोलकर विल्सन गिरा और क्षण भर के लिये मूर्च्छित हो गया। किन्तु आगतों में से एक ने जब उसके मुँह से बोतल लगाना चाहा- उसकी चेतना लौट आयी। उसने बोतल हटा दी मुख से।

“जहाज जम गया है। हम साठ यात्री मृत्यु की घड़ियाँ गिन रहे हैं। भोजन और स्प्रिट समाप्त हो गये हैं। जहाज में लगे बेतार के तार से यह अन्तिम सन्देश अमेरिका में सुना गया था। शीतऋतु में जब हिमपात शुरू हो गया था, अंटार्टिका की यात्रा की बात कौन सोचे। सरकारी अधिकारी भी सहानुभूति भर जता कर रह गये।

समाचार पत्रों में छपे इस दारुण समाचार को पढ़कर एक तरुण ने संकल्प लिया, इस हिमसमाधि लेते मानवों के उद्धार का। रोकने के अनेकों प्रयासों के बावजूद उसने यात्रा की। जो प्राण देकर परोपकार करने को प्रस्तुत है, उसको सहायक मिल ही जाते हैं।

कुत्तों, स्लेजगाड़ियों और बारहसिंगों की पूरी सेना मिल गयी उसे अंटार्टिका पहुँचने पर, भोले हिमग्रामवासियों से। उसे गणना नहीं करनी थी कितने झुण्ड कुत्ते और बारहसिंगे हिम की भेंट हो गये। उसे तो लक्ष्य पर पहुँचना था ठीक समय पर पहुँच गया वह। “हमारे यूथ में कुछ मादा बारहसिंगे हैं। तीन-चार ने मार्ग में बच्चे दिये हैं। आपको हम दूध पिला सकते हैं।” जब जहाज के यात्री होश में आये, कुछ पेट में पहुँच जाने से बोलने योग्य हुए, तरुण ने विल्सन के सामने एक प्याला गर्म दूध रख दिया। मूर्च्छित दशा में भी विल्सन को दूध पिला चुका था- वह।

“हम प्रार्थना करेंगे।” होश में आने के बाद दूध पीने से पहले विल्सन घुटना के बल वहीं बैठ गया। उसके पीछे पूरा समुदाय बैठ गया। यह उसकी प्रार्थना का ही प्रभाव तो था, जो वे सब साथ बैठकर प्रार्थना करने लगे थे। प्रार्थना के पहले ही तो समाचार भी आ गया था कि उन्हें लेने पूरी तकनीकी सुविधाओं से युक्त एक जहाज बस उनके समीप आ चुका है। विल्सन के शुक्रगुजार थे सभी, जिनकी प्रार्थना ने उन्हें उन सभी को अपने घरवालों से मिलने की स्थिति तक जिन्दा बनाये रखा था। धन्य है वह मनुष्य व उसकी जिजीविषा। उसकी इच्छाशक्ति व परमात्मा की अनुकम्पा पर ही तो सृष्टि का यह सारा व्यापार टिका है।

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