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Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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अंतःकरण को पवित्र, मन को प्रखर बना देता है संगीत

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First 9 11 Last
संगीत से स्वर्गीय आनंद एवं शाँति की सृष्टि होती है। इसके दिव्य सुरों में मन एवं हृदय अपने आप ही झूमने लगता है। वातावरण इसकी दिव्यता से आप्लावित हो उठता है। इसकी झंकार पेड़-पौधे को भी झंकृत कर देती है। प्रारंभ से ही भारतीय शास्त्रीय संगीत को उच्चस्तरीय विज्ञान माना जाता रहा है। आज के वैज्ञानिकों के आधुनिक अनुसंधान भी इसी बात की पुष्टि करते हैं। इसके अनुसार संगीत के सर्वाधिक प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ते हैं। सकारात्मक व सुन्दर संगीत से मस्तिष्क के सूक्ष्म तंतुओं में एक अनोखी हलचल होती है। जिससे स्मरण शक्ति, तनाव मुक्ति व अनेकानेक रोगों से सहज लाभ प्राप्त होता है। इससे पौधों की उत्पादक क्षमता भी बढ़ जाती है। सचमुच ही संगीत में नैसर्गिक आनन्द व जादुई चमत्कार भरे पड़े हैं।

‘कॉस्मिक मेमेरी नामक’ सुविख्यात शोध ग्रंथ में शीला ओरट्रेण्डर तथा लीन श्रेगर ने संगीत से मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन किया है। इस ग्रंथ में नाद ब्रह्म ॐ तथा ग्रेगेरीयन स्वर के प्रभावों का भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है। डा. टोमेरीस ने इस क्षेत्र में अनेक शोध की है। डा. टोमेरीस का कहना है कि ॐ तथा ग्रेगेरीयन स्वर से मस्तिष्क अनायास शाँत एवं तनाव रहित हो जाता है। इसके उच्चारण से मस्तिष्क का कार्टेक्स इस ऊर्जा को समस्त शरीर में वितरित कर देता है।

डा. टोमेरीस का कहना है कि केन्द्रीय ग्रे न्यूक्लीआई कार्टेक्स में छोटी-छोटी इलेक्ट्रिक बैटरी के समान कार्य करते हैं। ये मस्तिष्क के ऊर्जा उत्पादन केन्द्र होते हैं। संगीत का स्वर इन्हें उच्च ऊर्जा स्तर से आप्लावित कर देता है।

संगीत जहाँ एक ओर मस्तिष्क को ऊर्जा से भर देता है वहीं उच्च आवृत्ति की ध्वनियों से इन्हें क्षति भी पहुँचती है। डा. अल्फ्रेड टोमेरीस के अनुसार 800 हर्ट्ज आवृत्ति की ध्वनि को 100 से 200 घंटे सुनने से मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ सकता है। इससे मस्तिष्क से सम्बन्धित सम्पूर्ण तंत्र को नुकसान पहुँच सकता है। भक्ति संगीत अथवा अन्य राग व शास्त्रीय धुन से यह तंत्र सतेज व सजग हो उठता है। इस प्रकार संगीत की ध्वनि कान के माध्यम से मस्तिष्क में आकर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। कार्टेक्स इस ऊर्जा को समस्त कोशिकाओं में सम्प्रेषित करता है तथा मस्तिष्क व शरीर में संतुलन स्थापित करता है। संगीत कान व मस्तिष्क से सम्बन्धित साइव्रनेटिक सिस्टम को भी प्रभावित करता है। येन यूनिवर्सिटी के डा.विलियमसेन और लायड कुकने MEG (मैग्नेटीक ब्रेन मैपिंग) के आधुनिक अनुसंधान के तहत काफी अध्ययन किया है। इन्होंने संगीत द्वारा मस्तिष्क पर होने वाले विशिष्ट परिणामों का ग्राफ तैयार किया है। इनके अनुसार मस्तिष्क के विशेष क्षेत्र पर संगीत का भिन्न-भिन्न असर होता है।

संगीत से रोगों को भी ठीक किया जा सकता है। इस दिशा में साउण्ड थैरेपी अत्यन्त प्रचलित एवं लाभकारी सिद्ध हो रही है। ‘साउण्ड थैरेपी’ नामक पुस्तक की लेखिका पेट जुड्री के अनुसार संगीत से मनुष्य की सुषुप्त ऊर्जा को जागृत किया जा सकता है। उससे प्राण चेतना की अभिवृद्धि होती है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता के बढ़ जाने से रोगों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। साउण्ड थैरेपी में कान एण्टीना का कार्य करता है। इसके लिए दाएं कान को बाएं की अपेक्षा अधिक संवेदनशील माना जाता है।

शास्त्रीय संगीत का प्रभाव पेड़-पौधों पर आश्चर्यजनक रूप से देखा गया है। मिनीसोटा के डान कार्लसन ने संगीत पर कई सालों से लगातार शोध की है। कार्लसन स्पष्ट रूप से कहते हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत से पौधों में अतिशय वृद्धि व विकास होता है। इन्होंने एक प्रयोग किया। प्रयोग के दौरान इन्होंने कुछ विशेष पौधों का चुनाव किया तथा इनके पास एक ध्वनि प्रक्षेपक यंत्र द्वारा 5000 हर्ट्ज की शास्त्रीय स्वर प्रसारित की। एक माह के पश्चात किया गया अध्ययन अद्भुत एवं रोमाँचपूर्ण रहा। पौधों में श्वसन एवं खनिज पदार्थों का अवशोषण अच्छी तरह से हुआ। ध्वनि प्रसारण के समय छिड़काव किये गये खनिज पदार्थों के अवशोषण की दर 700 गुना अधिक हो गयी थी। कार्लसन ने अपने प्रयोग के निष्कर्ष स्वरूप भारतीय शास्त्रीय संगीत को पौधों की वृद्धि के लिए महत्त्वपूर्ण माना है। उनके अनुसार पौधों की जीवनी शक्ति को बढ़ा देता है।

कार्लसन अपने फार्म में नित्य प्रति आधा घण्टा पौधों को शास्त्रीय संगीत एवं धुन सुनाते हैं। इसके पश्चात् जलीय पोषक पदार्थों का छिड़काव करते हैं। इसका परिणाम अत्यन्त उत्साहवर्धक एवं आशातीत रहा। संगीत के प्रभाव के कारण 99' पौधों में सामान्य से अधिक वृद्धि एवं विकास पाया गया। एक साढ़े चार इंच के पर्पल पेसन पौधे को रात्रि में उस पर जलीय पदार्थ के छिड़काव के समय ‘जेण्ट क्रिकेट म्यूजिक’ सुनाया गया। ढाई वर्ष में यह पौधा 14 फीट बढ़ गया, जबकि इसकी औसत लम्बाई 18 इंच ही होती है। संगीत द्वारा विकसित हुए इस पौधे के रिकार्ड का गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में भी उल्लेख है। संगीत के जादू ने अन्य पौधों पर भी असर डाला। पन्द्रह फुट के टमाटर के पौधे में 836 टमाटर का रिकार्ड उत्पादन, एक गुलाब की प्रत्येक डाली में 75 गुलाबों का गुच्छा, बीन्स, आलू, जैकोबा बीज की भी सामान्य आकार से 40' की अतिरिक्त वृद्धि दर्ज की गयी है। संगीत के असर से एक से पाँच माह के अवधि में तैयार होने वाली कई प्रकार की फसलें 20 दिन में ही तैयार हो गई। जेण्ट क्रिकेट की उच्चतर आवृत्ति के संगीत को वायलीन के ई तार के स्थान पर डी पर बजाने से रबर के पौधे वृक्ष जैसे बढ़ गये।

इस प्रकार कार्लसन ने पाया कि संगीत से पौधों में दुगुने से दस गुने तक विकास होता है। हवाई द्वीप समूह में मकदूनिया व एककेडो की फसल में 25 गुना वृद्धि हुई। हजारों वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को सही पाया। संगीत का जादू ऊसर जमीन में भी अच्छी फसल उगाने में कामयाब हुआ है। इस पद्धति में रासायनिक खादों की विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती। बीज व पौधे रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त होते हैं। ग्रीन हाउस इफेक्ट पर आसानी से नियंत्रण करने में यह सहायक हो सकता है। अनेकों वैज्ञानिकों ने संगीत का स्वर सुनाकर पौधों के विकास व उत्पादन में आशातीत सफलता पायी है। कॉस्मिक मेमेरी में शला आस्केण्डर ने भारतीय शोधकर्त्ताओं का हवाला देते हुए लिखा है कि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों को संगीत सुनाने पर इनकी वृद्धि दुगुनी हो जाती है। 5000 हर्ट्ज रेंज की संगीत ध्वनि पौधे एवं मनुष्यों में सकारात्मक असर डालती है।

संगीत का स्वर पेड़-पौधों पर प्रभाव डाल सकता है तो मनुष्यों पर क्यों नहीं डाल सकता है। डॉ. टोमेरीस की शोध से पता चलता है कि 4000 हर्ट्ज की ध्वनि मस्तिष्क कार्टेक्स को जल्दी रिचार्ज करता है। 5000 हर्ट्ज के शास्त्रीय स्वर में स्मरण शक्ति को बढ़ाने की क्षमता होती है। पेट जुड्री संगीत को स्वास्थ्य के लिए अनुकूल मानती है। वायलिन के ई तार से उत्पन्न 8000 हर्ट्ज रेंज की ध्वनि मस्तिष्क की संवेदनशीलता को बढ़ा देती है। पाइथोगोरस ने भी अच्छे संगीत को मन व विचारों के लिए सहायक माना है। यह तनाव, उदासी, हृदय रोग में भी लाभ पहुँचाता है। प्राचीन काल में साम गान के रूप में संगीत द्वारा रोग निवारण व प्राणशक्ति के अभिवर्धन के लिए अनेकों प्रयोग किये जाते थे। साउण्ड थैरेपी में 100 से 200 घण्टा या प्रतिदिन एक माह तक तीन घण्टा सुनाया जाता है। इससे मस्तिष्क कोशिकाएँ रिचार्ज हो जाती हैं। जूड्री के अनुसार इसके लिए मोजार्ट इफेक्ट के अलावा अन्य उच्च आवृत्ति के संगीत जैसे हैण्डेल, बीवाल्डी, बोकेरेनी, रोसिनी, टेलीमेन, हेडन, बच टेक्नोवेस्की आदि का प्रयोग किया जाता है।

क्रीस ग्रीसकाम ‘एकस्टेशीर इज़ ए न्यू फ्रीक्वेंसी’ नामक कृति में संगीत उपचार को तर्कसंगत ठहराते हुए कहती है कि संगीत इक्कीसवीं सदी के लिए वरदान साबित हो सकता है।

विज्ञान विदों के अनुसार संगीत से स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा स्वास्थ्य में परिवर्तन होता है। आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी में हुई शोध के अनुसार संगीत का प्रभाव तुरन्त असरकारक होता है। एक प्रयोग में पाया गया कि कुछ महीनों में ही स्मरण शक्ति 24 प्रतिशत से बढ़कर 26 प्रतिशत हो गई। वैज्ञानिकों के पिछले तीस सालों के अध्ययन से पता चलता है कि स्लो बेरेक संगीत मानसिक सुकून तथा स्थिरता प्रदान करती है। इससे मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों के बीच साँयावस्था बनी रहती है। एक बीट प्रति सेकेण्ड का धीमा संगीत ब्लड प्रेशर को कम करती है। हृदय की धड़कन व मस्तिष्कीय तरंगों को नियमित व नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इस स्थिति में मानसिक दक्षता बढ़ी चढ़ी होती है। आजकल धीमे एवं शाँत संगीत का प्रचलन अधिक है। अच्छी नींद एवं आराम हेतु 60 बीट का टेम्पो सहायक होता है। कनास यूनिवर्सिटी के संगीत विशेषज्ञ एवं चिकित्सक जानेला हाफमेन का कहना है कि 60 बीट्स प्रति मिनट का टेम्पो संगीत हृदयगत बीमारी, माइग्रेन तथा रक्तचाप में कमी लाता है। रक्त चाप में 10 से 20 प्वाइंट कमी हो जाती है। इसका प्रयोग स्कूलों में काफी लाभदायक रहा। छात्रों के स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक दक्षता में अभिवृद्धि हुई।

संगीत उपचार और भी अनेक वैज्ञानिकों एवं संस्थाओं द्वारा हो रहा है। मोनरो इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड साइन्स के संस्थापक राबर्ट मोनरो ने इस क्षेत्र में कई प्रयोग व परीक्षण किये हैं। मोनरो ने हेमीसिंक पद्धति को उपयोग में लिया। इसमें हेडफोन के द्वारा बाएं कान को 300 हर्ट्ज तथा दाएं कान को 305 हर्टज का सिग्नल भेजा जाता है। इससे मानसिक ग्रहणशीलता में अतिशय वृद्धि होती है। सन् 1974 में दर्शन के प्रोफेसर डॉ. डेवन एड्रिंगटन ने टैकोया कम्यूनिटी कॉलेज में छात्रों पर हेमीसींक का प्रयोग किया। इससे लड़कों की स्मरण शक्ति व कार्यक्षमता में बढ़ोत्तरी हुई। मनोविज्ञान के छात्रों के अंकों के प्रतिशत में भारी वृद्धि हुई। टेकोया पब्लिक स्कूल के परीक्षा संयोजक ब्रूस आनाक्लेव की मान्यता है कि यह पद्धति मानसिक दक्षता के लिए आश्चर्यजनक परिणाम उत्पन्न कर सकती है। यहाँ पर लड़कों के अभिभावक, शिक्षक व अन्य लोग भी इस संगीत से अनेक प्रकार का लाभ प्राप्त कर चुके हैं। जापान में कोटो संगीत भी इसी प्रकार से लोकप्रिय होता जा रहा है।

डॉ. टोमेरीस के अनुसार तार वाद्य अन्य वाद्य यंत्रों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होते हैं। इसमें उच्च आवृत्ति की ध्वनि उत्पन्न होती है। वायलिन, मैंडोलीन, गिटार, सितार, वीणा आदि वाद्य यंत्र इसी श्रेणी में आते हैं। इन ध्वनियों से मस्तिष्क के न्यूरॉन्स ऊर्जान्वित हो उठते हैं। मीर जूनियर हाई, अनी अरुग तथा टाम अगोस्ती गीसलर ने अलास्का के अंकोरिज में सुपरलर्निंग संगीत का फ्रेंच व स्पेनिश अध्ययन करने वाले छात्रों पर प्रयोग किया। इससे प्राप्त निष्कर्ष अत्यन्त उत्साहवर्धक रहा। 85 प्रतिशत छात्रों में याद करने की क्षमता में वृद्धि हुई। मानसिक तनाव से ग्रस्त छात्रों को अच्छा लाभ मिला एवं उनके स्वास्थ्य में प्रगति हुई। उत्तरी अमेरिका सुपरलर्निंग के पायोनीयर डॉ. जीन बैंकक्राफ्ट ने टोरोन्टो यूनिवर्सिटी के स्केरबोरो कॉलेज में इसी प्रकार के कई परीक्षण व शोध किये हैं। इनके अनुसार संगीत से ध्यान में प्रगाढ़ता तथा स्मरण शक्ति में अभिवृद्धि होती है।

संगीत द्वारा मस्तिष्कीय तरंगों पर भी असर पड़ता है। सामान्य क्रम में EEG पर अल्फा 13 साइकिल प्रति सेकेण्ड, बीटा 13 साइकिल प्रति सेकेण्ड होती है। संगीत के प्रभाव से अल्फा में 6 प्रतिशत की वृद्धि, बीटा में 6 प्रतिशत की कमी देखी गयी है। मंत्रोच्चारण के समय अल्फा में अधिकता तथा बीटा में सामान्य बढ़ोत्तरी देखी गई। संगीत से पल्स 5 बीट्स प्रति मिनट कम हुई, जबकि मंत्रोच्चारण इसे और भी कम कर दिया। यह मानसिक दक्षता व शाँति की ओर संकेत करता है। ब्लड प्रेशर में औसत 4 डिवीजन मर्करी नीचे गिरा। शारीरिक व मानसिक शिथिलीकरण की स्थिति पाई गई। मंत्रोच्चारण से तो कई प्रकार के अद्भुत संकेत मिले हैं। रूस एवं पश्चिमी देशों में स्कूल, कॉलेज व सार्वजनिक स्थानों पर आदर्श धुनों का प्रचलन बढ़ रहा है। जिसका परिणाम आशाजनक एवं उत्साहवर्धक है। स्टीवन हार्ल्पन में स्पष्ट किया है कि संगीत वह जादू है जो शरीर, मन व भावना को प्रभावित करता है तथा अंतःकरण को पवित्र बनाता है। वैज्ञानिक अध्ययन के निष्कर्ष स्वरूप आज भारतीय शास्त्रीय संगीत व मंत्र गायन की उपयोगिता पूर्णतया निर्विवाद हो गयी है।

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