• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सबसे बड़ी भूल
    • अष्टाँग योग के प्रारंभिक महत्त्वपूर्ण सोपान
    • अब्राहम लिंकन (kahani)
    • हमारी भावनाओं की गूँज होते हैं स्वप्न
    • VigyapanSuchana
    • प्राणदान (kahani)
    • पीस उतारे हाथ से, सहज आसिकी नाहिं
    • कर्मणा न्यासः इति कर्मसंन्यासः
    • प्रसिद्ध जैन मुनि नेमिकुमार जी(Kahani)
    • अंतःकरण को पवित्र, मन को प्रखर बना देता है संगीत
    • मैं नींव के पत्थर का अनुकरण करता रहता हूँ (Kahani)
    • सांस्कृतिक संवेदना ही आतंकवाद को मिटा पाएगी
    • प्रसन्नता बाँटने का संतोष (Kahani)
    • विधि का विधान
    • सत्यं, शिवं, सुंदरम्, का शंखनाद करती पत्रकारिता
    • Quotation
    • सेवा के लिए मस्तिष्क ही काफी नहीं (Kahani)
    • मनुष्य ही है निज का भाग्य विधाता
    • अपने ऐश्वर्य से श्रम को मत तोलो (Kahani)
    • मेंहदी पीसने वाले के हाथ स्वतः हो जाते हैं लाल
    • आत्मविश्वास इसी कारण उपलब्ध हुआ(Kahani)
    • कहाँ ले जाएगी युवाओं की यह दीवानगी हमें
    • Quotation
    • तथाकथित सभ्य समाज का बर्बर−विद्रूप पहलू
    • तुम्हारा सौजन्य भी और मेरा पराक्रम भी(Kahani)
    • राष्ट्रों व संस्कृतियों के विकास का माध्यम है भाषा
    • यतो धर्मस्ततो जयः (Kahani)
    • परोक्ष शक्ति विचित्र ये खेल
    • कहीं भावी संतति पोपली ही न हो
    • विध सभा की यज्ञोपचार प्रक्रिया
    • जनसमूह के साम्राज्य का एक यथार्थवादी विश्लेषण
    • प्रामाणिकता की कसौटी(Kahani)
    • भक्ति अर्थात् अंदर के आनंद की खोज और उसका विस्तार
    • चलता−फिरता एक सर्वोपयोगी
    • इस वर्ष का विशिष्ट शक्ति−साधना पर्व
    • श्रीमद्भगवद्गीता में योग -2
    • संगठन की धुरी अपनत्व भरी पाती
    • मन में सेवा−पुरुषार्थ का भाव(Kahani)
    • केंद्र के समाचार—क्षेत्र की हलचलें
    • अंतः ऊर्जा जागरण के विशिष्ट सत्र इसी माह से
    • युग−पीर
    • युग-पीर (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सबसे बड़ी भूल
    • अष्टाँग योग के प्रारंभिक महत्त्वपूर्ण सोपान
    • अब्राहम लिंकन (kahani)
    • हमारी भावनाओं की गूँज होते हैं स्वप्न
    • VigyapanSuchana
    • प्राणदान (kahani)
    • पीस उतारे हाथ से, सहज आसिकी नाहिं
    • कर्मणा न्यासः इति कर्मसंन्यासः
    • प्रसिद्ध जैन मुनि नेमिकुमार जी(Kahani)
    • अंतःकरण को पवित्र, मन को प्रखर बना देता है संगीत
    • मैं नींव के पत्थर का अनुकरण करता रहता हूँ (Kahani)
    • सांस्कृतिक संवेदना ही आतंकवाद को मिटा पाएगी
    • प्रसन्नता बाँटने का संतोष (Kahani)
    • विधि का विधान
    • सत्यं, शिवं, सुंदरम्, का शंखनाद करती पत्रकारिता
    • Quotation
    • सेवा के लिए मस्तिष्क ही काफी नहीं (Kahani)
    • मनुष्य ही है निज का भाग्य विधाता
    • अपने ऐश्वर्य से श्रम को मत तोलो (Kahani)
    • मेंहदी पीसने वाले के हाथ स्वतः हो जाते हैं लाल
    • आत्मविश्वास इसी कारण उपलब्ध हुआ(Kahani)
    • कहाँ ले जाएगी युवाओं की यह दीवानगी हमें
    • Quotation
    • तथाकथित सभ्य समाज का बर्बर−विद्रूप पहलू
    • तुम्हारा सौजन्य भी और मेरा पराक्रम भी(Kahani)
    • राष्ट्रों व संस्कृतियों के विकास का माध्यम है भाषा
    • यतो धर्मस्ततो जयः (Kahani)
    • परोक्ष शक्ति विचित्र ये खेल
    • कहीं भावी संतति पोपली ही न हो
    • विध सभा की यज्ञोपचार प्रक्रिया
    • जनसमूह के साम्राज्य का एक यथार्थवादी विश्लेषण
    • प्रामाणिकता की कसौटी(Kahani)
    • भक्ति अर्थात् अंदर के आनंद की खोज और उसका विस्तार
    • चलता−फिरता एक सर्वोपयोगी
    • इस वर्ष का विशिष्ट शक्ति−साधना पर्व
    • श्रीमद्भगवद्गीता में योग -2
    • संगठन की धुरी अपनत्व भरी पाती
    • मन में सेवा−पुरुषार्थ का भाव(Kahani)
    • केंद्र के समाचार—क्षेत्र की हलचलें
    • अंतः ऊर्जा जागरण के विशिष्ट सत्र इसी माह से
    • युग−पीर
    • युग-पीर (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


तथाकथित सभ्य समाज का बर्बर−विद्रूप पहलू

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 23 25 Last
जिसकी सेवा, त्याग एवं ममता की छाँव में पलकर पूरा परिवार विकसित होता है उसके आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी एवं शोक के वातावरण का व्याप्त हो जाना विडम्बना पूर्ण अचरज ही है। कन्या जन्म के साथ ही उस पर अन्याय एवं अत्याचार का सिलसिला शुरू हो जाता है। अपने जन्म के परिणामों एवं जटिलताओं से अनभिज्ञ उस नन्ही सी जान के जन्म से पूर्व या बाद में उपेक्षा, यहाँ तक कि हत्या भी कर दी जाती है।

लोगों में बढ़ती पुत्र-लालसा और खतरनाक गति से लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात आज पूरे देश के समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों, योजनाकारों तथा सामाजिक चिंतकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। जहाँ एक हजार पुरुषों में इतनी ही मातृशक्ति की जरूरत पड़ती है वहीं अब कन्या-भ्रूण हत्या एवं जन्म के बाद बालिकाओं की हत्या ने स्थिति को विकट बना दिया है। 1991 में किये गये सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार अब 1000 पुरुषों पर मात्र 927 महिलायें रह गई हैं। यह अंतर अब तक निश्चित रूप से और ज्यादा बढ़ गया होगा क्योंकि इन वर्षों में विज्ञान की प्रगति का पूरा लाभ पुत्री जन्म को कम करने के लिए समाज के सभी वर्गों द्वारा भरपूर ढंग से उठाया जा रहा है।

एकमात्र केरल ऐसा राज्य है जहाँ नारी की समाज में बहुलता है। वहाँ यह संख्या 1000 : 1036 है। यानि एक हजार पुरुषों पर एक हजार छत्तीस महिलाएँ हैं। दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। वहाँ यह संख्या 1000 पुरुषों पर 859 महिलाओं की आँकी गयी है। अण्डमान-निकोबार द्वीप-समूह में नारी-पुरुष का अनुपात और भी कम है। वहाँ 1000 पुरुषों पर मात्र 790 महिलाएँ हैं। उत्तरप्रदेश में यह अंतर 1000 पर 897 का है।

भारत में शिशु मृत्युदर में कन्या मृत्युदर 1000 में 145 की आँकी गई है। भारत की जनसंख्या का एक चौथाई हिस्सा बालिकाओं का है। इन 22 करोड़ बालिकाओं में से 33 लाख बालिकाएँ हर वर्ष मर जाती हैं। प्रति वर्ष जन्म लेने वाली सवा करोड़ लड़कियों में से एक चौथाई लड़कियाँ तो 1 वर्ष की उम्र के भीतर ही मर जाती हैं। समाजशास्त्रियों एवं जनसंख्या विशेषज्ञों का मानना है कि असमय काल-कलवित होने वाली हर 6 लड़कियों में से एक की मौत का कारण लैंगिक भेदभाव होता है।

यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया में दस करोड़ महिलाओं के कन्या-भ्रूणों की जानबूझकर हत्या कर दी गयी। आज भी प्रत्येक नगर एवं महानगर में प्रतिदिन कन्या-भ्रूण हत्या हो रही है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि समाजसेवी संस्थाएँ और वैधानिक प्रावधान भी इस क्रूर पद्धति को रोकने में पूरी तरह असफल रहे हैं। किसी जमाने में बालिकाओं को पैदा होते ही मारे जाने और अपशकुन समझे जाने का अभिशाप झेलना पड़ता था, तो आज भी अनेक स्थानों पर उन्हें मौत की नींद सुलाने के उपाय मौजूद हैं।

तमिलनाडु के मदुरै जिले के एक गाँव में कल्लर जाति के लोग घर में कन्या के जन्म को अभिशाप मानते हैं। इसलिए जन्म के तीन दिन के अन्दर ही उसे एक जहरीले पौधे का दूध पिलाकर या फिर उसके नथुनों में रुई भर कर मार डालते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाई जा रही एक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार इस समुदाय के लोग नवजात बच्ची को इस तरह मारते हैं कि पुलिस भी उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं कर पाती। जन्म लेते ही कन्या के भेदभाव की यह मानसिकता सिर्फ असभ्य, अशिक्षित एवं पिछड़े लोगों की नहीं है बल्कि कन्या अवमूल्यन का यह प्रदूषण सभ्य, शिक्षित एवं संभ्रांत कहे जाने लोगों में भी समान रूप से पाया जाता है। शहरों के तथाकथित विकसित एवं जागरुकता वाले माहौल में भी इस आदिम बर्बरता ने कन्या-भ्रूणों की हत्या का रूप ले लिया है। इसे नैतिक पतन की पराकाष्ठा ही कह सकते हैं कि जीवन-रक्षा की शपथ लेने वाले चिकित्सक ही कन्या भ्रूणों के हत्यारे बन बैठे हैं।

अस्तित्व पर संकट के अतिरिक्त बालिकाओं को पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि हर क्षेत्र में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। मानव संसाधन मंत्रालय के महिला एवं बाल विकास विभाग के नवीनतम सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार अधिकाँश बालिकाएँ आवश्यक पोषक तत्त्वों की मात्रा का दो तिहाई से भी कम अंश प्राप्त कर पाती हैं। अस्वस्थता की स्थिति में बहुत कम बच्चियों को समय पर पर्याप्त स्वास्थ्य रक्षण सहायता उपलब्ध हो पाती है। आज भी 7 वर्ष से नीचे की बालिकाओं का 61 प्रतिशत निरक्षर है। यह स्थिति सिर्फ गाँवों तक सीमित नहीं है अपितु शहर भी इससे बहुत आगे नहीं है।

वास्तव में अभिभावकों की संकीर्ण मानसिकता एवं समाज की अंध परम्पराएँ ही वे मूल कारण हैं जो पुत्र एवं पुत्री में भेद करने हेतु बाधित करते हैं। हमारे रीति-रिवाजों एवं सामाजिक व्यवस्था के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति सोच में दरार पैदा हुई है। अधिकाँश माता-पिता समझते हैं कि बेटा जीवन-पर्यन्त उनके साथ रहेगा, उनका सहारा बनेगा। हालाँकि आज के संदर्भ में पुत्र को बुढ़ापे की लाठी मानना एक मृगतृष्णा ही है। लड़कियों के विवाह में दहेज की समस्या के कारण भी माता-पिता कन्या जन्म का स्वागत नहीं कर पाते। समाज में वंश-परम्परा का पोषक लड़कों को ही माना जाता है। ऐसे में पुत्र कामना ने मानव मन को इतनी गहराई तक कुँठित कर दिया है कि कन्या संतान की कामना या जन्म दोनों अब अनपेक्षित माने जाने लगे हैं।

बालिकाओं के प्रति उपेक्षा की इस समस्या से सिर्फ भारत ही नहीं अपितु दक्षिण एशिया के सारे देश इससे चिंतित हैं। इस समस्या से उपजने वाले गंभीर परिणामों को ध्यान में रखकर ही दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (सार्क) के देशों ने सामूहिक रूप से इस सामाजिक समस्या को दूर करने का संकल्प लिया है। इस उद्देश्य के अंतर्गत ही 1990 को ‘बालिका वर्ष’ के रूप में मनाया गया एवं बालिकाओं के जन्म एवं जीवन को प्रोत्साहन देने के लिए एक विस्तृत कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई है। साथ ही विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी एजेन्सियों के माध्यम से बालिका संबंधी शोध तथा उनके जीवन स्तर को सुधारने एवं उनके महत्त्व को स्थापित करने के लिए विविध प्रकार के कार्यक्रमों की घोषणा की गई। इन कार्यक्रमों को गतिशील बनाये रखने के लिए बाद में 1990 का पूरा दशक ही (1991-2000) ‘सार्क बालिका दशक’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई। भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई है जिसका मुख्य उद्देश्य पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश में बालिकाओं के प्रति समानतापूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देना है।

सरकारी कार्यक्रमों, गैर सरकारी संगठनों के प्रयास एवं मीडिया के प्रचार-प्रसार से कुछ हद तक जनमानस में बदलाव अवश्य आया है परन्तु निम्न-मध्यम वर्ग एवं गरीब परिवारों में अभी भी लैंगिक भेदभाव जारी है। जहाँ बालिकाओं का जीवन पारिवारिक उपेक्षा, असुविधा एवं प्रोत्साहन रहित वातावरण में व्यतीत होता है। जहाँ उनका शरीर प्रधान होता है, मन नहीं। समर्पण मुख्य होती है इच्छा नहीं। बंदिश प्रमुख है, स्वतंत्रता नहीं।

बदलती हुई परिस्थितियों के साथ अब ऐसी मान्यताओं से ऊपर उठना होगा। बालिकाओं के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। अब तक की गयी उपेक्षा के बाद भी जहाँ भी उन्हें मौका मिला है, वे सदा अग्रणी रही हैं। इक्कीसवीं सदी नारी वर्चस्व का संदेश लेकर आयी है। अगर हम अब भी सचेत नहीं हुए तो हमें इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

First 23 25 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सबसे बड़ी भूल
  • अष्टाँग योग के प्रारंभिक महत्त्वपूर्ण सोपान
  • अब्राहम लिंकन (kahani)
  • हमारी भावनाओं की गूँज होते हैं स्वप्न
  • VigyapanSuchana
  • प्राणदान (kahani)
  • पीस उतारे हाथ से, सहज आसिकी नाहिं
  • कर्मणा न्यासः इति कर्मसंन्यासः
  • प्रसिद्ध जैन मुनि नेमिकुमार जी(Kahani)
  • अंतःकरण को पवित्र, मन को प्रखर बना देता है संगीत
  • मैं नींव के पत्थर का अनुकरण करता रहता हूँ (Kahani)
  • सांस्कृतिक संवेदना ही आतंकवाद को मिटा पाएगी
  • प्रसन्नता बाँटने का संतोष (Kahani)
  • विधि का विधान
  • सत्यं, शिवं, सुंदरम्, का शंखनाद करती पत्रकारिता
  • Quotation
  • सेवा के लिए मस्तिष्क ही काफी नहीं (Kahani)
  • मनुष्य ही है निज का भाग्य विधाता
  • अपने ऐश्वर्य से श्रम को मत तोलो (Kahani)
  • मेंहदी पीसने वाले के हाथ स्वतः हो जाते हैं लाल
  • आत्मविश्वास इसी कारण उपलब्ध हुआ(Kahani)
  • कहाँ ले जाएगी युवाओं की यह दीवानगी हमें
  • Quotation
  • तथाकथित सभ्य समाज का बर्बर−विद्रूप पहलू
  • तुम्हारा सौजन्य भी और मेरा पराक्रम भी(Kahani)
  • राष्ट्रों व संस्कृतियों के विकास का माध्यम है भाषा
  • यतो धर्मस्ततो जयः (Kahani)
  • परोक्ष शक्ति विचित्र ये खेल
  • कहीं भावी संतति पोपली ही न हो
  • विध सभा की यज्ञोपचार प्रक्रिया
  • जनसमूह के साम्राज्य का एक यथार्थवादी विश्लेषण
  • प्रामाणिकता की कसौटी(Kahani)
  • भक्ति अर्थात् अंदर के आनंद की खोज और उसका विस्तार
  • चलता−फिरता एक सर्वोपयोगी
  • इस वर्ष का विशिष्ट शक्ति−साधना पर्व
  • श्रीमद्भगवद्गीता में योग -2
  • संगठन की धुरी अपनत्व भरी पाती
  • मन में सेवा−पुरुषार्थ का भाव(Kahani)
  • केंद्र के समाचार—क्षेत्र की हलचलें
  • अंतः ऊर्जा जागरण के विशिष्ट सत्र इसी माह से
  • युग−पीर
  • युग-पीर (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj