
सांस्कृतिक संवेदना ही आतंकवाद को मिटा पाएगी
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आज विश्व आतंकवाद की भीषण अग्नि में बुरी तरह झुलस रहा है। न केवल एक राष्ट्र बल्कि समस्त विश्व इसके क्रूर एवं निर्दयी बाहुपाश में छटपटा रहा है। आतंक, लूटपाट, अपहरण और कत्लेआम से सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ है। आतंकवाद प्रतिदिन प्रातः बम के धमाके से प्रारंभ होता है और वीभत्स एवं हृदयविदारक नरसंहार को देख अट्टहास करता है, उत्सव मनाता है। आतंक का यह अंतहीन सिलसिला कहीं भी थमता नजर नहीं आता है। समाधान के स्वर विकट आतंक के इस दौर में उभरते भी हैं तो भी आशा की कोई किरण नजर नहीं आती है।
यह आतंकवाद विकृत एवं वीभत्स मानसिकता का परिचायक है। इसे आज की परिस्थिति में किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हिंसक, अलोकताँत्रिक, अमानवीय तथा अवैध तरीकों का प्रयोग कर मनुष्य में आतंक फैलाना ही आतंकवाद है। परन्तु यह इन बिन्दुओं में ही सिमटा हुआ नहीं है। आज इसे अनेक रूपों में देखा जा सकता है। कुछ संगठनों द्वारा भी यह जन्म लेता है और सत्ताधारियों की कोख से भी। यह कहीं धार्मिक संगठनों की हिंसक गतिविधियों के रूप में तो कहीं उग्र राजनीतिक विचारधाराओं के बीच हथियारबंद संघर्ष के रूप में तथा कहीं क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर मुखर हुए हिंसक गिरोहों के रूप में पनपता है। आतंकवाद भाषाई, साँस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक विषमताओं की प्रतिक्रिया स्वरूप जन्मे संगठनों के स्वरूपों में भी परिलक्षित होता है।
आतंकवाद का इतिहास कोई नया नहीं है। प्राचीनकाल से ही एक सशक्त कबीला अपने से दुर्बल एवं कमजोर कबीलों के प्रति हिंसात्मक कार्यवाही कर आतंक फैलाता रहा है। यह विकृत और हिंसक मानसिकता उसी काल से चली आ रही है। शान्ति, समृद्धि और विकास इसके दुश्मन हैं। हाँ उन दिनों इसकी प्रवृत्ति अपने लिए प्रचुर मात्रा में भौतिक शक्ति तथा सुख सुविधाएँ जुटाने के लिए थी। उसमें कोई स्पष्ट राजनैतिक उद्देश्य शामिल नहीं था। सामंतीयुग का आतंक आज के परिप्रेक्ष्य में इतना सुनियोजित एवं व्यवस्थित नहीं था। उस युग में विजेताओं द्वारा आतंक फैलाया जाता था और पराजित देश में भारी कत्लेआम किया जाता था। उन दिनों इसका उद्देश्य केवल आतंक का परचम फहराना था।
सामंती युग में भी तैमूर ने 1398 और नादिरशाह ने 1739 में अपने आक्रमण के दौरान दिल दहलाने वाला खूनी खेल व आतंक फैलाया था। परन्तु कम्बोडिया में 1979 में पालपोट द्वारा किये गये नरसंहार के पीछे आतंक और हिंसा की एक नई परिभाषा गढ़ ली गई थी। अब हिंसा का राजनैतिक आधार भी तैयार हो चुका था। इस आतंकवादी वहशीपन में 2 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसी तरह अमेरिकी सैनिकों ने वियतनाम में जो बर्बरतापूर्ण वारदातें की वह भी इसी कोटि की थी। इसमें एक विचारधारा को पराजित कर दूसरी विचारधारा की जबरन जड़ जमाना था।
उन्नीसवीं सदी के बाद और बीसवीं सदी के आरम्भ में जन्मे राजनैतिक और सामाजिक विचारधाराओं के संघर्ष ने आतंक के लिए सैद्धान्तिक आधार उपलब्ध कराया। यही संघर्ष आगे चलकर आतंकवाद में परिवर्तित हो गया।
बीसवीं सदी के राजनैतिक रंग के रंगने से पूर्व भी धर्म के नाम पर हिंसा और हत्या का खूनी खेल खेला जाता रहा है। परन्तु इस हिंसात्मक नरसंहार के मूल में धर्म विशेष को विस्तार देने या धर्म परिवर्तन की आड़ में अपनी सत्ता स्थापित करने तथा आर्थिक सम्पदा लूटने की प्रवृत्ति रही है। धर्म का सहारा तो मात्र उन्हें औचित्य प्रदान करना था। इसी वजह से सामंती युग का आतंक कोई वाद का आकार नहीं ले पाया था। जब इसमें राजनीति की निहित स्वार्थपरता एवं क्षुद्रता का समावेश हुआ तो यही आत्मघाती आतंकवाद का पर्याय बना।
यूँ देखा जाए तो आधुनिक आतंकवाद का इतिहास बीसवीं शताब्दी की शस्त्र सभ्यता के गर्भ से पैदा हुआ प्रतीत होता है। आतंकवाद की इस धारा को और अधिक पैना करने में बीसवीं सदी की कुटिल राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। विश्व में समाजवाद और पूँजीवाद नामक दो परस्पर विरोधी विचारधाराएँ उभरीं। इनके सैद्धान्तिक और सत्तावादी संघर्ष हेतु घातक हथियारों की आवश्यकता पड़ी। और इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए आतंकवाद रूपी दानव को आमंत्रण किया गया। आज इस आतंकवाद ने स्वयं को अत्यन्त आधुनिकतम विनाशकारी अस्त्र-शस्त्रों से अलंकृत कर लिया है। इसके पास परमाणु या इसके समकक्ष हथियार होने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
इस महादैत्य के प्रश्रय एवं प्रसार के लिए पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रमुख हाथ है। पश्चिमी देशों ने अपनी आक्रामक गतिविधियों तथा सामरिक शक्तियों के सहारे अपनी सीमाओं को बेतहाशा बढ़ाया। उन्होंने विश्व के अनेक देशों को पराजित कर उन्हें अपने विस्तृत साम्राज्य में विलीन कर दिया। परन्तु जहाँ से उन्हें अपना विस्तार लपेटना पड़ा, उसे विकृत या विभाजित कर आतंकवादी और हिंसात्मक क्रियाओं के लिए अनुकूल वातावरण छोड़ गये। भारत और फिलिस्तीन इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। अन्यथा पंजाब, कश्मीर और अरब आतंकवादी भला क्यों पैदा होते?
आतंकवादी हिंसा व हत्या को पैदा करने के लिए आधुनिक युग की दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। ये हैं समाजवादी दर्शन तथा पूँजीवादी लोकतंत्र। संसार विचारों के दो खेमों में बँट गया। समाजवादी पक्ष ने प्रचार एवं शक्ति के सहारे विश्व भर में अपने आपको फैलाना चाहा। दूसरी ओर पूँजीवादी लोकतंत्र ने उसके बढ़ते कदमों को रोकने के लिए बल प्रयोग का सहारा लिया। शीतयुद्ध इसी का परिणाम है। शस्त्रों की होड़ एवं उसके भारी उत्पादन के पीछे यही मुख्य कारण है।
हथियारों की इसी सर्वनाशी होड़ ने उग्रवाद को एक नयी पहचान दी। जो आज हिंसा, हत्या, लूटपाट मचाकर समस्त विश्व में फैल गया है। जर्मनी की रेड आर्मी तथा इटली के दक्षिण पंथी अराजक दल इसी शृंखला की एक कड़ी है। दूसरी ओर समाजवादी विचारधारा के विरुद्ध पूँजीवादी खेमे की खड़ी की गयी गुप्तचर एजेन्सियाँ तथा अन्य विध्वंसक शक्तियाँ भी पूर्णरूपेण सक्रिय हो गई। जिन्होंने अपने मायावी व आततायी कुचक्रों में अफगानिस्तान, क्यूबा, वियतनाम जैसे देशों को फँसाकर तहस-नहस कर दिया।
आतंकवाद की यह खुली आँधी आज विश्व के हर कोने में फैली हुई है। खासकर अपना देश तो इस आग के दरिया में हिचकोले खाता नजर आ रहा है। विश्व के तमाम देशों में आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं और भीषण लूटपाट मचा रहे हैं।
जर्मनी में रेड आर्मी कुख्यात आतंकवादी संगठन है। इनकी हिंसात्मक वारदातों से पश्चिमी यूरोप के अनेक देशों में वर्षों तक आतंक व्याप्त रहा। रिवोल्दूरानी सैल तथा जर्मन एक्शन ग्रुप भी जर्मनी में तबाही मचाते रहे हैं। नियो आर्डर नामक आतंकवादी सरगना इटली के दक्षिण पंथियों का सबसे क्रूर और आक्रामक गुट माना जाता है। ब्लैक आर्डन नामक एक और आततायी ग्रुप ने रोम से म्यूनिख जाने वाली रेलगाड़ी को 1970 में बम से उड़ाकर सनसनी फैला दी थी। इन दक्षिण पंथी संगठनों के मुकाबले इटली में 22 अक्टूबर सर्किल तथा रिवोल्यूशनरी एक्शन मूवमेंट भी काफी चर्चित रहे। इसके अलावा इटली के रैड आर्मी एवं आर्म्ड प्रोलेटेरियन यूनिट भी बड़े खतरनाक गुट के रूप में जाने जाते हैं।
फ्राँस में डायरेक्ट एक्शन ग्रुप सबसे बड़ा आतंकी गुट है। यहाँ के दो अन्य दल इण्टरनेशनल रिवोल्यूशनरी ग्रुप और नापाम भी कुख्यात आतंकवादी संगठन है। साठ के दशक में भारी उत्पात मचाने वाले आततायी दल जापानीज रैड फ्रंट विश्व भर में कुख्यात है। अनेक बैंक डकैतियों, विमानों का अपहरण, पी.एल.ओ से मिलकर एयरपोर्ट काण्ड तथा दूतावासों पर हमले उसके खाते में दर्ज है।
यहूदियों ने फिलिस्तीन की धरती पर आकर अपना सबसे पहला संगठन यहूदीवादी कमीशन के नाम से बनाया था। 1920 में यहूदियों का एक और दल हागनाह के नाम से अस्तित्व में आया। 1940 तक यह सैनिक टुकड़ी के रूप में बदल गया। इसमें 40 हजार सशस्त्र उग्रवादी थे। इजरायल की स्थापना के उपरान्त प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियाला ने सन् 1951 में आतंकवादी दल हागनाह, हार्गुन तथा र्स्टन को आपस में मिलाकर एक गुप्तचर एजेंसी की बुनियाद डाली। आजकल यही माँसाद के नाम से जाना जाता है। 1966 में पूर्व सोवियत संघ में मिग-21 का अपहरण तथा जून 1967 में मिश्र की वायु सेना के जहाज पर अचानक हमला करके उसे ध्वस्त करना इसी के कारनामे थे। अब यह गुप्तचरी के क्षेत्र में विश्व विख्यात है।
यहूदियों द्वारा फिलिस्तीनी धरती पर किए गए अवैध कब्जे को हटाने के लिए अरबों ने कई संगठन बनाए। इसमें आतंकवाद के इतिहास में कई आयाम जुड़े। यासीर अराफात के नेतृत्व में पी.एल.आर फिलिस्तीन का सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन रहा है। दुनिया की पहली महिला विमान अपहरणकर्ती लैला खानिद इसी गुट से संबंधित थी। यहाँ के अन्य दो आतंकी गुट अलफतहे तथा अबु निदाल अपनी क्रूरता के लिए बड़े ही कुख्यात हैं। फिलिस्तीन के अन्य चरमपंथी संगठन पापुलर फ्रंट फार लिबरेशन आफ फिलिस्तीन, अरब लिबरेशन फ्रंट वर्नेक सेप्टेम्बर, ब्लैक जून आदि हैं।
आर्मीनिया का सीक्रेट आर्मी फॉर द लिबरेशन ऑफ अमिर्निया एक भयानक आतंकवादी गुट है। असाला यहाँ का सबसे बड़ा उग्र पंथी है। स्पेन में सर्वाधिक खतरनाक गुट इबेरियन रिवोल्यूशनरी डायरेक्टेट ऑफ लिबरेशन है। इ.टी.ए के आतंकवादियों ने 1973 में स्पेन के प्रधानमंत्री लुईस ब्लाँकों की बम से हत्या कर सारे विश्व में सनसनी फैला दी थी। आयरलैंड में आई.आई.ए.पी.आई.ए.तथा आई.एम.एल.ए., एंग्री बिग्रेड अग्रणी उग्रवादी दस्ते हैं।
विश्व में सबसे पहले मानव बम का प्रयोग करने वाला एल.टी.टी.ई. श्रीलंका का सबसे खतरनाक उग्रवादी संगठन है। इसी ने भारत के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की मानव बम से हत्या करवा दी थी तथा श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमार तुँगे पर बम से हमला कर घायल कर दिया था। इसने अपने खतरनाक मंसूबों से हजारों-लाखों लोगों को तहस-नहस कर दिया है।
अपना देश भी पिछले कई वर्षों से गंभीर आतंकवाद की चपेट में है।
उत्तरपूर्वी भारत में अल्फा बोडोलैंड, मीजो नेशनल फ्रंट आदि कई उग्रवादी गुट अभी भी सक्रिय हैं। नक्सलवाद से बिहार, आन्ध्रप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ झुलस रहा है। पंजाब में उग्रवादियों के खूनी खेल के थमते ही कश्मीर उस आग से धधक उठा। अब तो पहले कभी धरती का स्वर्ग कही जाने वाली इस वादी में प्रतिदिन बम के धमाकों के बीच क्षत-विक्षत फैले मानव के अंग, बिलखते-चीत्कार करती आवाजें सामान्य सी बात हो गई हैं।
कश्मीर में आतंकवाद की कमान पाकिस्तानी गुप्तचर एजेन्सी आई.एस.आई. के हाथों में है। हरकत उल अंसार, हिजबुल मुजाहिदीन, लश्करे तोयबा आदि आतंकवादी संगठनों में विदेशी भाड़े के कुख्यात आतंकवादी शामिल हैं। ये उग्रवादी संगठन सीधे पाकिस्तान से संचालित होते हैं। इन आतंकवादी गुटों पर पाकिस्तान हर साल अपने बजट से लगभग 8 से 10 करोड़ डालर खर्च करता है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में इन गुटों को खुला प्रशिक्षण दिया जाता है और चोरी छिपे कश्मीर में भेजा जाता है। चरारे शरीफ से लेकर कारगिल काण्ड तक के पीछे भी इस कुटिल आतंकवादी मानसिकता का ही परिचय मिलता है। जिसने केसर की महक और सुगंधित फूलों से भरी इस घाटी के जीवन को लहूलुहान कर दिया है। पिछले लम्बे अर्से से घाटी का जीवन मौत के सन्नाटे में गुम होकर रह गया है।
आतंकवाद किसी भी तरह का हो, आतंकवादी कोई भी हो, पर वे इन्सान और इन्सानियत के दुश्मन हैं। बेगुनाहों के खून से यदि कुछ मिल भी जाय तो वह कभी भी सुखद नहीं होगा। आतंकवाद की समस्या से निबटने का समाधान राजनैतिक से कहीं ज्यादा साँस्कृतिक है। साँस्कृतिक संवेदना ही आतंकवाद से बंजर होती जा रही धरती और देश को फिर से हरा-भरा एवं खुशहाल बना सकती है।