
हमारी भावनाओं की गूँज होते हैं स्वप्न
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
स्वप्नों की अगम-अंजानी दुनिया सदा से ही मनुष्य के लिए जिज्ञासा एवं कौतूहल का विषय रही है। क्योंकि स्वप्नों का रहस्यमय लोक, सामान्य जीवन की सीमाओं से परे निराला एवं अद्भुत होता है। और इसकी भाषा भी गूढ़, अस्पष्ट एवं साँकेतिक होती है। किन्तु स्वप्नों की उपयोगिता असंदिग्ध रूप से मनुष्य जीवन के लिए सदैव से स्वीकारी गयी है। मनुष्य का शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक संतुलन नींद में आने वाले स्वप्नों से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। यह तथ्य आधुनिक शोध प्रयासों द्वारा भी सिद्ध हो चुका है। चूँकि स्वप्न मनुष्य के अचेतन लोक से उभरते हैं, अतः इनमें निहित गूढ़ संकेतों को यदि समझा जाय तो ये जीवन की समस्याओं के समाधान में भी अचूक उपाय सिद्ध हो सकते हैं और व्यक्तित्व के संगठन एवं निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों से स्पष्ट हुआ कि स्वप्न नींद की रेम (रेपिड आई मूवमेन्ट) अवस्था में आते हैं। इस दौरान बन्द पुतलियों के पीछे आँखें यूँ घूमती रहती हैं, मानों वे किसी दृश्य का अवलोकन कर रही हों। इस दौरान मस्तिष्क उतना ही सक्रिय होता है, जितना कि हल्की नींद की अवस्था में होता है, जबकि शरीर की कोशिकाएँ विश्रामावस्था में होती हैं। इस दौरान बाह्य उत्प्रेरकों के प्रति संवेदनशीलता भी बहुत गहरी नींद के समान न्यून होती है।
अधिकाँश शोधार्थियों का मत है कि स्वप्न रहित नींद (नॉन रेम स्लीप) प्रधानतया शारीरिक विश्राम का क्षण होती है। इस दौरान रक्तचाप, हृदयगति, तापमान आदि सभी शारीरिक गतिविधियाँ मंद व शान्त होती हैं। और शरीर के अंतः अवयवों की कोशिकाओं का विकास अधिक तीव्र गति से होता है। इस तरह स्वप्न मुक्त नींद को प्रमुखतया शारीरिक जीर्णोद्धार के क्षण माना जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनवर्ग के डॉ. आस्वाल्ड के अनुसार नॉन-रेम नींद शारीरिक कोशिकाओं व उतकों के विकास एवं पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है, जबकि रेम नींद मस्तिष्क में ऐसी ही गतिविधियों की स्थिति है।
प्रयोग के तहत पाया गया है कि रेम नींद के दौरान व्यक्ति स्वप्न को स्पष्टतः बता सकता है। रेम नींद के पाँच मिनट बाद व्यक्ति बहुत धुँधला चित्रण कर पाता है और दस मिनट बाद प्रायः भूल जाता है। रेम नींद प्रायः 20-30 मिनट के कालखण्ड की और नॉन-रेम नींद 60-90 मिनट के कालखण्ड की होती है। इस तरह 7-8 घण्टे की नींद के दौर में व्यक्ति पाँच-छः बार स्वप्नों के दौर से गुजरता है। विशेषज्ञों के अनुसार लगभग दो घण्टे की स्वप्न युक्त नींद मनःस्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण मानी गयी है।
शोध के अंतर्गत, रेम नींद से वंचित लोगों को जगाने पर क्रमशः अधिक चिढ़-चिढ़ा, उद्विग्न एवं असंतुलित पाया गया है। साथ ही इनकी एकाग्रता में कठिनाई देखी गयी व कुछ तो मतिभ्रम (हेल्यूसिनेशन) तक से पीड़ित पाये गए। दिन में अतिरिक्त व दीर्घ स्वप्न खण्डों में इसकी क्षतिपूर्ति करने पर उन्हें पूरा करना था। नशों का सेवन करने वाले रोगियों में भी जो ठीक हो रहे होते हैं, रेम नींद की अधिकता देखी गयी है। मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों में भी, जिनमें मस्तिष्कीय क्रियाशीलता असामान्य और क्षीण होती है, रेम नींद की अधिकता देखी गयी है। गहरी नींद के लिए प्रसिद्ध बिल्लियों में भी इस प्रयोग के अंतर्गत देखा गया कि कई दिनों तक रेम नींद से वंचित किए जाने पर उनमें कुछ बेहद अशान्त और उग्र हो गई और कुछ बेहद आरामतलब। फ्रेंच वैज्ञानिक डॉ. जॉबेट द्वारा रेम नींद से वंचित बिल्ली 20 दिन में मर गई थी। इस तरह स्पष्ट होता है कि स्वप्न मस्तिष्कीय स्वास्थ्य एवं मानसिक संतुलन में कितनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
स्वप्नों की वैज्ञानिक आधार पर सर्वप्रथम व्याख्या प्रख्यात मनोवैज्ञानिक सिग्मण्ड फ्रायड ने की। वे इन्हें अचेतन मन का राजमार्ग बताते थे। स्वप्न विषयक इनके महत्त्वपूर्ण प्रयोग एवं निष्कर्षों का संकलन ‘द इन्ट्रप्रीटेशन ऑफ ड्रीम्स’ में किया गया है, जिसमें फ्रायड ने स्वप्न को व्यक्ति के अचेतन मन की इच्छाओं और आकाँक्षाओं की पूर्ति का माध्यम माना है। जो कि जागृति की चेतन अवस्था में सामाजिक दबाव या नैतिक कारणों से दमित रहती है।
‘इंडिविजुअल साइकोलॉजी’ के जनक एल्फ्रेड एडलर, फ्रायड के इस मत से सहमत नहीं थे, कि स्वप्न जीवन की अतृप्त यौन इच्छाओं की पूर्ति के माध्यम भर हैं। एडलर के अनुसार स्वप्नों का जन्म हमारे दैनिक जीवन की उलझी समस्याओं से होता है। और ये हमारी महत्त्वाकाँक्षाओं को साकार करते हैं। इनका सम्बन्ध हमारी चल रही समस्याओं या जिनकी हम आशा कर रहे हैं, उनसे हो सकता है।
प्रख्यात स्विस मनोविशेषज्ञ कार्लजुँग भी फ्रायड के इस मत से सहमत नहीं थे, कि स्वप्न मात्र दमित काम भावनाओं की तृप्ति व रुग्ण व्यक्तियों के उपचार का माध्यम भर है। जुँग स्वप्न को व्यक्तित्व के विकास के चरण के रूप में देखते थे, जो व्यक्ति को आत्म-बोध की प्रक्रिया में सहायता कर सकते हैं। ये भूत की जटिलताओं की अपेक्षा, वर्तमान जीवन व भावी संभावनाओं के संकेत होते हैं। जुँग के अनुसार स्वप्नों का सामान्य कार्य मनोवैज्ञानिक संतुलन कायम करना है। व्यक्ति का मन ऐसे स्वप्नों की रचना करता है, जो सूक्ष्म रूप से समूचे मानसिक संतुलन को पुनर्स्थापित करता है। अर्थात् स्वप्न केवल आकाँक्षाओं की पूर्ति का साधन भर नहीं हैं, बल्कि व्यक्ति के संगठन एवं निर्माण की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
एरिक फ्राम के अनुसार स्वप्नों में हम बाह्य अनुभवों से प्राप्त ज्ञान का प्रयोग करते हुए अपनी अन्तःभावनाओं को व्यक्त करते हैं। उदाहरण देते हुए वे स्पष्ट करते हैं कि जिसे हम कायर मानते हैं वह हमारे स्वप्न में चूजे का रूप ले लेता है। इस तरह स्वप्न के प्रतीक दैनन्दिन जीवन की बजाए अंदर के तर्क का अनुसरण करते हैं।
स्वप्नों की विवेकसंगतता एवं तर्कशून्यता की विवेचना करते हुए, अमेरिकी विचारक थामस येन कहते हैं कि मन की तीन क्षमताएँ क्रमशः- कल्पना, स्मृति और गुण-दोष विवेचन जाग्रतावस्था में सक्रिय रहती है और निद्रावस्था में शिथिल हो जाती है। उनके मतानुसार ये क्षमताएँ जितनी अधिक सक्रिय होंगी, हमारे स्वप्न उतने ही विवेकपूर्ण होंगे और जितनी अधिक शिथिल होंगी, स्वप्न उतने ही तर्क-शून्य होंगे।
ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक क्रिस्टोफर इवान स्वप्नों की तुलना कम्प्यूटर प्रोसेसिंग से करते हैं। जैसे कम्प्यूटर स्वयं को सामयिक एवं उपयोगी बनाए रखने के लिए अपने प्रोग्राम को संशोधित करता है, उसी प्रकार मस्तिष्क स्वप्नों की प्रक्रिया द्वारा अंतःस्थिति का सुधार करता है, जिसमें उपयोगी एवं अनुपयोगी तत्त्वों की काट-छाँट होती रहती है।
मनोविज्ञान के जेस्टाल्ट सम्प्रदाय के अनुसार स्वप्न अचेतन मन की विषय वस्तु है। तथा व्यक्तित्व के अधूरे पक्षों को व्यक्त करती हैं। उचित रीति से इनका उपयोग कर व्यक्ति कुँठित ऊर्जा को मुक्त कर व्यक्तित्व का पूर्णता की ओर संगठन कर सकता है। जेस्टाल्ट थैरेपी के अंतर्गत इस कार्य को समूह में अंजाम दिया जाता है, जिसमें व्यक्ति स्वप्न की विषय वस्तु के अनुरूप व्यवहार (अभिनय) करता है और समूह से उसे आवश्यक पुनर्निवेशन (फीडबैक) मिलता रहता है।
इसी तरह ह्यूमन पोटेन्शियल मूवमेन्ट के विविध सम्प्रदायों के मनोविदों के अनुसार अचेतन मन स्वास्थ्य एवं रुग्णता दोनों का स्रोत है। और स्वप्नों को व्यक्ति की
रुग्णता के उपचार में तथा उसके विकास एवं निर्माण में प्रयुक्त किया जा सकता है। स्वप्नों की असंदिग्ध उपयोगिता के बावजूद इनकी भाषा एवं अर्थ को समझना सरल कार्य नहीं है। डॉ. फ्राँसिस मेनीज के अनुसार स्वप्न कितना भी छोटा या नगण्य हो, इसका एक निश्चित अर्थ होता है और इसके माध्यम से हम समस्याओं को हल कर सकते हैं।
अमेरिकी मनोविशेषज्ञ केल्विन हॉल ने इस संदर्भ में व्यापक शोध-अनुसंधान किया है। हजारों व्यक्तियों के स्वप्नों के विश्लेषण के आधार पर इनकी मान्यता है कि अधिकाँश स्वप्न दैनन्दिन स्थितियों और समस्याओं से जुड़े होते हैं और उनके अर्थ खोजने में कोई विशेष कठिनाई नहीं आती। हाल के अनुसार स्वप्न व्यैक्तिक दस्तावेज होते हैं। इन्हें स्वयं को लिखा एक पत्र भी कह सकते हैं। इनके अर्थ के विषय में महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इसे किसी स्वप्न के दर्शन या सिद्धान्त में नहीं खोजा जा सकता, बल्कि यह स्वप्न में निहित होता है। इसी तरह जुँग का मत था कि प्रत्येक व्यक्ति के स्वप्न की व्याख्या अलग-अलग होनी चाहिए, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वप्न उसके सार्वभौम अनुभव से व्यैक्तिक सम्बन्ध को प्रतिध्वनित करता है। हाल के अनुसार स्वप्न हमारे मन की सोच की तस्वीर है और इसे देखकर इसके अर्थ को जाना जा सकता है।
किन्तु केल्विन के अनुसार स्वप्नों की व्याख्या इन पाँच तथ्यों के प्रकाश में की जानी चाहिए। 1. मेरा अपने प्रति कैसा दृष्टिकोण है. 2. मेरा दूसरों के प्रति दृष्टिकोण कैसा है? 3. मेरा संसार के प्रति दृष्टिकोण क्या है? 4. मैं अपने मनोवेगों को कैसे देखता हूँ, 5. मैं अपने द्वन्द्वों को कैसे देखता हूँ। इन पाँच स्थितियों की स्पष्टता के अनुरूप ही स्वप्नों की ठीक-ठीक व्याख्या की जा सकती है।
मनोविद पर्ल के अनुसार अचेतन मन की विशालता को ध्यान में रखते हुए स्वप्न की व्याख्या का काम अत्यन्त जटिल और दुरूह है। और प्रत्येक स्वप्न की नाप-जोख स्वतन्त्र रूप से और व्यापकता के साथ होनी आवश्यक है। प्राचीन यूनानी दार्शनिक अरस्तु का भी मत था कि स्वप्न नींद द्वारा विकृत हमारी भावनाओं की गूँज होते हैं, अतः वे खण्डित एवं अबूझ होते हैं। अतः स्वप्नों की भाषा निराली होती है व अनुभव पर आधारित गहन, गम्भीर अवलोकन ही इनके संकेतों एवं रहस्यों का अनावृत्त कर सकता है।
इस तरह स्वप्न जहाँ शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य एवं संतुलन का प्रकृति प्रदत्त एक वरदान है, वहीं इनकी सही व्याख्या द्वारा अचेतन मन की अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाया जा सकता है। इस संदर्भ में प्रत्येक स्वप्न हमें नई जानकारी ही प्रदान नहीं करता, बल्कि यह एक ऐसा साधन भी है, जिसकी मदद से हम नए व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं।