
वापस स्वर्ग चले (Kahani)
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हालैंड की पुरानी घटना है। नदी की बाढ़ से रेल का पुल टूट गया। गाड़ी आने का समय हो गया था। टूटने की जानकारी न होने से वह चली आती तो डूब जाती।
एक छोटा लड़का वहाँ मौजूद था। आने वाली गाड़ी को रोकने के लिये उसने तुरंत उपाय सोच लिया। कुर्ता फाड़कर झंडी बनाई। भुजा काटकर खून निकाला और उसे लाल रंग लिया। पटरी पर लकड़ी में लाल झंडा फहराता हुआ वह खड़ा था। गाड़ी चली आती, तो जान जोखिम का खतरा भी था, पर उसने उसकी परवाह न की। ड्राइवर ने लड़के को खड़ा देख लिया। गाड़ी रोकी। दुर्घटना रुकी। गाड़ी वापस लौटी। उस लड़के जार्ज स्टेनले को उस देश के निवासी और सुनने वाले कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते और मन-ही-मन धन्यवाद देते हैं।
रैदास की निस्पृहता और कर्त्तव्यनिष्ठा से इंद्र बहुत प्रसन्न हुए, सोचने लगे इनकी दरिद्रता दूर करनी चाहिए, सो पारसमणि लेकर उनके पास पहुँचे और बोले, “इसे रखिए, जब आवश्यकता हो लोहे का इससे स्पर्श कराए और सोना बना लें। आपको किसी वस्तु का अभाव न होगा।”
संत ने इंद्र का सत्कार किया और उनका अनुग्रह स्वीकार करते हुए किसी कोने में सुरक्षित रख दिया। बहुत दिन बीते, इंद्र उधर से फिर निकले, सोचा रैदास की संपन्नता देखते चलें। सो उनकी कुटिया में जा पहुँचे। देखा, तो पहले जैसी ही अभावग्रस्त परिस्थितियाँ बनी हुई थी। संपन्नता का वैभव रंचमात्र भी नहीं था।
इंद्र ने पारस के उपयोग करने की बात का स्मरण दिलाया, तो उन्होंने इतना ही कहा, “बिना परिश्रम की संपदा का उपयोग करने पर संतवृत्ति से हाथ धोना पड़ेगा। इतनी हानि उठाते मुझसे नहीं बन पड़ेगी।”
कोने में से ढूंढ़कर पारस इंद्र को लौटा दिया और वे सच्ची संतवृत्ति के प्रति नतमस्तक होकर वापस स्वर्ग चले गए।