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Magazine - Year 2002 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे विकसित हो आदर्श परिवार-9

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(पूर्वार्द्ध)

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ -

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!

देवियों, भाइयों! आप जिस सत्र में शामिल हुए हैं, उसका नाम परिवार सत्र है। आपको ऐसा मालूम पड़ रहा है कि आपको यहाँ किसी छोटे काम के लिए एकत्रित कर लिया है, परंतु ऐसी कोई बात नहीं है। किसी खास मकसद से आपको यहाँ बुलाया गया है। आप इस परिवार के सदस्य हैं। परिवार कोई मजाक की बात नहीं है। अरे साहब! परिवार में हम कैसे रह रहे हैं, यह तो हम स्वयं जानते हैं। परिवार हमारे लिए मुसीबत है।

मित्रों! आमतौर से परिवार माने मुसीबत, परिवार माने झंझट, यही परिवार की परिभाषा है। परिवार माने झंझट, आपत्ति, झगड़ा-आमतौर से लोग इसे ही परिवार कहते हैं। तो क्या हमने इसीलिए आपको बुलाया है ? क्या नमक, तेल हल्दी के मामलों की बात, दैनिक घरेलू कार्यों की बात बतलाने हेतु हमने आपको बुलाया है ? नहीं, मित्रों! इस शिविर का बहुत महत्व है। यह हमारा बहुत प्यारा शिविर है।

पारिवारिकता ही होगा अगले दिनों लक्ष्य

साथियों! परिवार शब्द के साथ बहुत-सी महान् चीजें जुड़ी हुई हैं, इसलिए परिवार शब्द से हमें बहुत प्रेम है। परिवार हमें बहुत प्यारा लगता है। अगले दिनाँक में जब नए युग का निर्माण होने जा रहा है, तो इसके सिद्धाँत क्या होंगे, आदर्श क्या होंगे ? क्रियाकलाप क्या होगा ? यही बतलाने के लिए हमने यह शिविर बुलाया है। इसका मतलब कुटुँब एवं पारिवारिकता है।अगले दिनों संसार का यही लक्ष्य होगा। अगले दिनों इसके विशेष निर्धारण होने हैं। आपने देखा नहीं है कि जिस घर में आपाधापी होती है, वह घर नरक बन जाता है। बच्चे जेवर चुराकर भाग जाते हैं। लड़कियाँ अपने जेवर मायके में रख आती हैं। औरतें काम नहीं करती हैं। आपने देखा नहीं है कि बच्चे किस प्रकार गद्दी पर से दुकान पर से रुपये चोरी करके आ जाते हैं। बहुएं अपने पति के साथ अलग रहना चाहती हैं। इस तरह आपाधापी से परिवार के बरबाद होने से दुनिया बरबाद हो जाती है तथा समाज में तबाही आ जाती है।

आज दुनिया के सामने, जिसे हम नवयुग की समस्या कहते हैं, उसके सामने बहुत-सी समस्याएं हैं, कठिनाइयाँ हैं। आज बहुत सारी दिक्कतें हैं, जिन्हें सुनने के बाद ऐसा लगता है कि इसका कोई समाधान ही नहीं है। मित्रों ! आपको इस पर विचार करना होगा, क्योंकि आज दुनिया बहुत छोटी हो गई है। पहले जमाने में दुनिया बहुत बड़ी थी, बहुत फैली थी। एक आदमी का दूसरे से कम ताल्लुक था। अपना गाँव ही अपनी दुनिया थी। सभी जगहों से कोई मतलब नहीं था। गाँव की महिलाएं घूँघट मारती थीं। पहले दुनिया ससुराल से घर तक सीमित थी, लेकिन आज दुनिया बहुत फैल गई है। आज सिनेमा की दुनिया से बच सकते हैं आप ? बचकर दिखलाइए न। लड़के फैशन वाले पैंट पहने फिरते हैं, सिनेमा के गाने गाते फिरते हैं। उससे बचकर दिखलाइए न। उसे रोकर दिखलाइए न। घर में बगावत हो जाएगी।

मित्रों! आपका लड़का आपसे तो नहीं कहता, परंतु अपने दोस्तों से कहता फिरता है कि हम फिल्म के ऐक्टर बनेंगे। वह अपनी मम्मी का जेवर चुराकर घर से भाग जाता है। हाँ साहब!वह मुँबई चला गया था। क्यों गया था, जब आपने पूछा, तो उसने बताया था कि हम फिल्मों में काम करेंगे। फिल्मी ऐक्टर बनेंगे। लेकिन वहाँ फिल्म वालों ने इसे घुसने भी नहीं दिया, तो भागकर वापस आ गया। इसलिए कहता हूँ कि आप सिनेमा से बच्चों को बचाकर दिखाइए। साहब! हम तो रामायण पढ़ते हैं और हम अपने बच्चों को गुरुदीक्षा दिलाकर लाएंगे। अरे आप गुरुदीक्षा दिलाकर तो दिखाइए तब जानें। जमाने की हवा ने आपकी लड़की को क्या बना दिया ? आप इस बारे में शर्म के मारे कुछ कहना नहीं चाहते हैं।

जमाने की हवा तो देखिए

मित्रों! जमाने की हवा से हम जुड़े हैं, उससे अलग नहीं हो सकते। आप कहते हैं कि हम अलग दुनिया बसा लेंगे। साथियों पहले कभी सौ-दो सौ, पाँच सौ साल पहले था ऐसा जमाना, लेकिन अब ऐसा बनाना तथा जीवन जीना संभव नहीं है। आज दुनिया आपके साथ जुड़ी है तथा आप दुनिया के साथ जुड़े हैं। आज की दुनिया में आपको कुटुँब के आधार पर जीना होगा। कुटुँब का एक ही सिद्धाँत है, मिल-जुलकर रहना तथा मिल-बाँटकर खाना। अरे! हम तो जमा करेंगे। नहीं, आप अपने लिए जमा नहीं कर सकते हैं। आप मिल-जुलकर काम कीजिए तथा मिल-जुलकर खाइए। हम कमाते हैं तो हम जमीन खरीदेंगे, मकान बनाएंगे, अपनी बीबी को जेवर खरीदेंगे, कपड़े बनवाएंगे। आप अभी से इसे कर लीजिए, हम कौन होते हैं आपको रास्ता बताने वाले परंतु मित्रों, इससे आपकी समस्याएं, गुत्थियाँ बढ़ेंगी ही, उलझेंगी ही, समाप्त नहीं होंगी। उनका समाधान नहीं होगा। इसका एक ही समाधान है कि आदमी को कुटुँब के रूप में आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो अगले दिनों रहना होगा। इसके अलावा कोई समाधान नहीं हैं।

साथियों! कुटुँब का एक सिद्धाँत है। इसमें ऐसा नहीं होता कि जिसमें योग्यता, पुरुषार्थ, पराक्रम ज्यादा है और जो जितना अधिक कमाता है, वह उतना ही ज्यादा खाएगा। नहीं भाई साहब! वह ज्यादा नहीं खाएगा। उसे दूसरों को कुटुँब को भी खिलाना होगा। यह कुटुँब का सिद्धाँत है, जिसके आधार पर हमारा कुटुँब-परिवार चलता है तथा उसका विकास होता है। आगे भी यही कुटुँब का आधार होगा। अगले वाली दुनिया का, आने वाले समय का यह एकमात्र सिद्धाँत होगा। अगले दिनों जो नियम, कानून एवं मर्यादा बनेगी, धर्म एवं संस्कृति बनेगी, जो भी आचार संहिता मनुष्य को चलाने-बढ़ाने के लिए बनेगी, उसका नाम होगा, ‘पारिवारिकता’ ‘कुटुँब’।

प्राचीनकाल में ऋषियों ने इसके लिए एक नारा दिया था, ‘वसुधैव कुटुँबकम्‘ अर्थात् सारी दुनिया को एक कुटुँब के रूप में रहना चाहिए। अतः आप मिल-बाँटकर खाइए और हिल-मिलकर रहिए। अगर इस बात को इंसान नहीं समझेगा तो उसकी ऐसी पिटाई होगी कि होश ठिकाने आ जाएंगे। आप अगर इसे अध्यात्मवादी-साम्यवाद कहें तो हमें कोई ऐतराज नहीं होगा। लेकिन हम कहेंगे कि आप कोई ऐसा फार्मूला बनाएं जिसमें मनुष्य चैन से रहे और दूसरों को चैन से रहने दे। स्वयं खाए, प्रगति करे तथा दूसरों को भी खाने दे तथा प्रगति करने दे। आदमी हंसे तथा दूसरों को हंसने दें। वह स्वयं खिले और दूसरों को खिलने दें। आदमी जिए और दूसरों को जीने दे। यही वह सिद्धाँत है, जिसे पारिवारिकता कहते हैं। इन्हें आसानी से ग्रहण कर लें तो ठीक है, वरन् ऐसी जबरदस्त ताकतें आ रही हैं। जो आपको मजबूर करेंगी कि आपको मिल-जुलकर ही रहना पड़ेगा और मिल-जुलकर ही खाना पड़ेगा। इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।

क्यों भाई! आप अमीर बनेंगे ? हाँ साहब! अरे मिल जुलकर खाइए न। नहीं साहब! हम कमाएंगे और स्वयं खाएंगे। चुप, धूर्त कहीं का, ऐसा करेगा तो मार-मार कर दुनिया तुझे ठीक कर देगी। मित्रों! आप कमाइए तो सही परंतु दूसरों के लिए भी खरच कीजिए। नहीं, साहब! हम तो बेटे के लिए खरच करेंगे। चुप बदमाश कहीं का, अरे साहब! हम हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, भजन करते हैं, प्राणायाम करते हैं। बेटे, इससे क्या होता है। सिद्धाँत तो समझता नहीं है, भजन करता है, मक्कार कहीं का। यह पूजा-पाठ भगवान को खुश करने के लिए नहीं बनाया गया है।

यह पूजन किस काम का?

मित्रों! एक बार हमने एक भवान् जी से पूछा कि आपका क्या ख्याल है? दुनिया वालों का तो ऐसा ख्याल है कि आप प्रसाद चढ़ाने वालों, सुपारी व नारियल चढ़ाने वालों, आरती उतारने वालों पर खुश हो जाते हैं। यह क्या मामला है। भगवान हम पर बहुत क्रोधित हो गए। गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा गुरु जी! आप तो पढ़े-लिखे हैं और पढ़े-लिखे होकर भी इस प्रकार के बेहूदेपन को पसंद करते हैं। क्या हम इतने घटिया और छोटे हो सकते हैं, जो इस छोटे से पूजा पाठ से खुश हों जाएं और आशीर्वाद दें ? भगवान् जी! हम तो नहीं मानते हैं, लेकिन हमारे चेले यही मानते हैं। तो फिर आप ऐसे चेलों की पिटाई कीजिए, जो हमारे ऊपर इस प्रकार का लाँछन लगाते हैं और हमें इस प्रकार का जलील समझते हैं। दोस्तों! आपकी पूजा, आपकी उपासना आपको मुबारक हो, लेकिन अध्यात्मवाद को इससे कोई मतलब नहीं है। इन सब प्रक्रियाओं से एक ही मतलब है कि आदमी का चरित्र, आदमी का व्यवहार, आदमी का व्यक्तित्व ऊँचा उठे, परिष्कृत बने।

साथियों! देवता बहुत व्यस्त रहते हैं, हमसे भी ज्यादा व्यस्त रहते हैं। भगवान् के पास आपकी बेहूदी बातों के लिए समय नहीं है। छोटी-छोटी कंपनियाँ होती हैं, उसे संभालने में आदमी का कचूमर निकल जाता है, फिर भगवान तो इतनी बड़ी सृष्टि की व्यवस्था को देखता है। आपको मालूम नहीं है कि हमारे पास कितना काम है। ब्रह्मवर्चस का काम हमारे पास है, लेखन का काम हमारे पास है, मिशन का काम हमारे पास है। इतना काम हमारे पास है कि हमारे पास बेकार के कामों के लिए फुर्सत नहीं है। इंदिरा गाँधी से मालूम कीजिए न उनका सेक्रेटरी आपको डंडे मारकर भगा देगा। गुरुजी! हम तो आपको माला पहनाएंगे, चरण धोएंगे। मक्कार कहीं का, हमारा समय खराब करता है। भगवान् से ज्यादा व्यस्त समय किसी के भी पास नहीं है। आप बेकार की बातें मत करें। इस संसार में जितनी भी महत्वपूर्ण शक्तियाँ हैं, उनके पास समय नहीं होता है। वे पूरे समय व्यस्त रहते हैं।

मित्रों! पूजा-पाठ का एक ही मतलब है, इसे चाहे एक बार सुनिए, चाहे निन्यानवे बार सुनिए। इसका तथ्य एक ही है कि इंसान के सोचने का ढंग, विचार करने का ढंग इंसान के तरीके से हो जाए यानि उनका व्यक्तित्व ऊपर उठ जाए। जैसे-जैसे आप सही इंसान बनते जाते हैं, वैसे-वैसे आप भगवान के नजदीक पहुँचते जाते हैं। उस समय आप भगवान् के सान्निध्य का लाभ एवं भगवान् की ऋद्धि एवं सिद्धियों को आप प्राप्त कर सकते हैं। स्वर्ग, चमत्कार, मुक्ति सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। आपसे हम यह कहना चाहते हैं कि यह सारा का सारा अध्यात्म मनुष्य के पूजा-पाठ से संबंध नहीं रखता है, बल्कि मनुष्य के चिंतन एवं चरित्र से संबंध रखता है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि जैसे-जैसे आपका चिंतन, चरित्र ऊँचा उठता चला जाएगा, आपके अंदर सिद्धियाँ आती चली जाएंगी। यह अध्यात्म सुभाष चंद्र बोस के अंदर आया था, नेहरू, पटेल के अंदर आया था। यह उन लोगों के अंदर आया था, जिनका चिंतन और चरित्र महान् बना।

साथियों! आप तो देवताओं की हजामत बनाने वाले हज्जाम हैं, चिड़ियों को मारने वाले चिड़ीमार हैं। इससे काम नहीं चलेगा। आप देवताओं को पकड़ना चाहते हैं। ऐसा अध्यात्म कभी हुआ है क्या ? मछलीमार जैसा अध्यात्म, चिड़ीमार जैसा अध्यात्म कभी नहीं हुआ, जैसा कि आज है। अरे साहब! कोई भी देवी-देवता हमारे चंगुल में नहीं आया और हमारी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई। इस तरह काम कैसे चलेगा ? चुप रह मक्कार कहीं का, बड़ा आया भक्त बनने। ख्वाब मत देखिए, वास्तविकता के पास आइए और अपने सोचने एवं काम करने का ढंग बेहतरीन बनाइए। आप बेहूदेपन की पूजा बंद कीजिए। आपने तो पूजा के नाम पर उलटे जंजाल फैला दिया है। इससे आपको कोई लाभ होने वाला नहीं है।

नवयुग-सतयुग

मित्रो! मैं यह कहना चाहता था कि अगली दुनिया जिसमें सब लोग प्रसन्नता का जीवनयापन करेंगे, खुशहाली, शाँति, सिद्धि, चमत्कार का जीवन जिएंगे, यह युग सतयुग होगा, धर्मयुग होगा। इसे चाहे जो भी आप नाम दें, इसमें हमें कई नाराजगी नहीं होगी, लेकिन नवयुग का आधार एक होगा, कानून एक होगा। नवयुग की संस्कृति एक होगी। तब क्या होगा ? पारिवारिकता का वातावरण होगा। वह क्या है ? आप जो दायरा अभी इस्तेमाल करते हैं, वह बड़े दायरे में करना होगा। आपको आठ सौ पचास रुपया मिलता है, इससे आप क्या करते हैं? अरे साहब! खाने में, बीबी-बच्चों में खरच हो जाता है। छोटा भाई स्कूल जाता है, उसमें खरच हो जाता है। कुछ शादी में कर्ज लिया था, उसको दे देते हैं। क्यों अपने लिए ही तो खरच नहीं करते हैं? नहीं साहब! इतना पैसा हम अकेले में कैसे खरच करेंगे? हमें अपनी बहन को भेजना पड़ता है।

साथियों! जो सिद्धाँत आज आप अपने कुटुँब में लागू कर रहे हैं, उसे सारे समाज में लागू करना होगा। आपके पास धन है, आप संपन्न व्यक्ति हैं, इसका श्रेय आपको मिलेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप स्वयं अकेले खाएंगे, मौज-मस्ती करेंगे। अगर आप ऐसा करते हैं, तो लोग आपका गला दबाकर उल्टी करा देंगे। अध्यात्म का युग आएगा, तो इसी प्रकार का आएगा। अनावश्यक चीजें आपको नहीं मिलेंगी। आपके पेट में जितनी जगह है, उतना ही खाइए, शेष बाँटिए, नहीं तो लोग आपका गला दबाएंगे तथा उल्टी करा देंगे । तो गुरुजी ! क्या ऐसा जमाना आ रहा है? हाँ बेटे, बिल्कुल आ रहा है।

मित्रों! आपके चाहने से आपके लिए दुनिया तो नहीं बदलेगी। आप अपनी चाह, अपनी मरजी को अपनी जेब में रखिए। दुनिया की समस्या का हल जिस तरह से होना है वह उसी प्रकार से होगा। ऋषियों ने जो नारा लगाया था, आज हम पुनः उस नारे को लगाते हैं, ‘वसुधैव कुटुँबकम्‘ का। इसके आधार पर ही दुनिया में मोहब्बत, चलन, रिश्ते, व्यवहार एक होंगे। इसका विकास पारिवारिकता की भावना से ही होगा।

हमारा अपना गायत्री परिवार

‘परिवार’ शब्द से हमें बहुत प्यार है। हमने अगर विश्वास किया है, तो पारिवारिकता पर किया है। हमने जो संगठन बनाया है, तो उसका आधार कौटुँबिकता है। कुटुँब पर मैं विश्वास करता हूँ। हर ईमानदार आदमी अपना सारा का सारा समय, संपदा अपने कुटुँब तथा परिवार के विकास के लिए खरच करता है। हमने भी गायत्री परिवार के नाम से जो परिवार बनाया है, उसके लिए खरच करते हैं। जब मिशन छोटा था और हम तपोभूमि में रहते थे, उस समय अखण्ड ज्योति निकलती, तो हमने ‘अखण्ड ज्योति परिवार’ शब्द का इस्तेमाल किया है। पुराने लेटर पैड पड़े होंगे, उनमें यही छपा है। जब गायत्री का प्रचार हमने शुरू किया तो ‘गायत्री परिवार’ बना दिया। उसके बाद ‘युग निर्माण परिवार’ बना दिया। अब प्रज्ञा अभियान शुरू किया तो ‘प्रज्ञा परिवार’ बना दिया।

मित्रों! यह परिवार हमारे प्राणों का अंश है। आप देखते नहीं हैं ? इसको हमने सींचा है, बढ़ाया है। हमारा परिवार किस तरह से जुड़ा है, आप देखते नहीं ? माताजी आपकी माताजी हैं। वे अगर आपकी माताजी हैं, तो हम भी आपके पिताजी हैं। आपने इस परिवार में यह नहीं देखा होगा कि कोई इस परिवार में छोटा है तथा कोई बड़ा है। हमारे यहाँ परिवार के अलावा अन्य कोई व्यवहार, सिद्धाँत है नहीं। इसके अलावा हम किसी चीज पर विश्वास नहीं करते हैं।

साथियों! परिवार शब्द बड़ा महान् है। इसके साथ मानवीय समस्याएं, विश्व की समस्याएं जुड़ी हुई हैं। आप यह कहते हैं कि घर-परिवार से निश्चित हो जाएंगे, तो उसे छोड़ देंगे। उस समय मैं खून का घूँट पीकर रह जाता हूँ तथा आपको कुछ कहता नहीं हूँ। जब आप यह कहते हैं कि गुरुजी! घर का जंजाल छूटा और हम आपके शरण में आए, तो हमें हंसी आ जाती है और मैं कहता हूँ कि जब यहाँ आएगा, तो बड़ा परिवार तेरे ऊपर हावी हो जाएगा। अभी तेरे परिवार में कितने आदमी हैं। गुरुजी! माँ, पत्नी और दो बच्चे हैं। अच्छा! तो पाँच का परिवार है। तू क्या समझता है कि यहाँ बाबा जी लोग रहते हैं, बेकार के लोग रहते हैं, जो तू निश्चिंत होकर आएगा। नहीं साहब मैं तो सब तरह से ‘फ्री’ होकर आऊँगा और यहाँ आकर माला जपूँगा। गुरुजी आपकी सेवा करूंगा। चल हट मक्कार कहीं का, ऐसा डंडा मारूंगा कि अकल ठीक हो जाएगी। परिवार को छोड़कर आएगा। अरे!हमारे पास भगोड़ों के लिए कोई जगह नहीं है।

मित्रो! जोधपुर के महाराज युद्ध में हार गए। सारे सैनिक मारे गए। राजा साहब किसी तरह जान बचाकर आ गए और उन्होंने गेट पर से, जो बंद था, आवाज लगाई। रानी ने कहा, "राजा साहब! आप अकेले कैसे आ गए ? आपको सैनिकों के साथ आना चाहिए था। बिगुल बजाकर आना चाहिए था।" गेट खोलने जा रहे अपने सिपाही से रानी ने कहा कि ठहर जा। वे महल के ऊपर चढ़ गई और बोली, "आप राजा नहीं हो सकते। सेना कहाँ गई?" उन्होंने कहा कि सेना मारी गई। रानी ने कहा, "जोधपुर का महाराज ऐसा बेहूदा नहीं हो सकता। आप हमारे पति नहीं हो सकते। आप वहीं जाइए तथा युद्ध कीजिए। आप यदि मारे भी जाएंगे, तो आपके सिर को लेकर मैं प्यार करूंगी। भगोड़े को मैं प्यार नहीं करूंगी। इसी तरह यदि आप भी भगोड़े बनकर आ जाएंगे, घर छोड़कर आ जाएंगे, तो आपके लिए शाँतिकुँज का यह दरवाजा बंद मिलेगा। हम आपको घुसने नहीं देंगे। आप कहते हैं कि हम जिम्मेदारी से निवृत्त हो जाएंगे तब आएंगे। क्या निवृत्त हो जाएंगे? क्या समाज का उत्तरदायित्व नहीं है आपके ऊपर? देश का उत्तरदायित्व नहीं है ? नहीं साहब! अभी तो बेटी की शादी करनी है, उससे निवृत्त हो जाऊँगा, तब आऊँगा। तब ऐसी चपत लगेगी कि होश ठिकाने आ जाएंगे। पारिवारिकता बहुत विशाल चीज है।

समझें अध्यात्म के मर्म को

आध्यात्मिकता के बारे में भी क्या आप कुछ सोचते हैं, जानते हैं, इसके सिद्धाँतों को, आदर्शों को भी समझिए। नहीं साहब ! हम जप करेंगे, प्राणायाम करेंगे तो हमें सिद्धि मिलेगी। बड़े आए सिद्धि वाले ? देवताओं का साक्षात्कार करेंगे ? बेटे ! देवता इतने फालतू नहीं हैं कि आपने पुकारा और वे आ गए। आप शंकर भगवान् को बुलाना चाहते हैं न ? वे आपसे कोसों दूर हैं। उन्हें आप ऐसे नहीं बुला सकते हैं। आप स्वामी जी को बुलाते हैं, तो उनको फर्स्ट क्लास का टिकट दिया है या नहीं ? आप हमें बुलाएंगे तो दान-दक्षिणा देंगे कि नहीं ? आप पेट्रोल का खरच तो देंगे ही। हाँ साहब!हम देंगे। अच्छा तो यह पक्की बात है। आप शंकर भगवान् को बुलाना चाहते हैं, तो जरा उन्हें पेट्रोल का खरच दीजिए। आप लक्ष्मी-नारायण हो बुलाना चाहते हैं, तो उन्हें पैट्रोल का खरच दीजिए। हम उन्हें फोन कर देंगे और वे आ जाएंगे। अरे साहब! लक्ष्मीनारायण जी दस हजार किलोमीटर दूर हैं। चुप रह, सारे दिन बक-बक करता रहता है कि देवता का दर्शन करा दीजिए। अज्ञानी कहीं का। पहले आध्यात्मिकता का सिद्धाँत समझिए।

आदमी अपने ऊपर तो हावी हो सकता है, किंतु देवताओं के ऊपर नहीं हो सकता और न ही उन पर हावी होने की जरूरत है। देवता के सामने नाक रगड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। आप अपने आप अपनी नाक रगड़िए, अपने आपको सही कीजिए। आप अपने आपको ठीक करना शुरू कीजिए, फिर देखिए आपको सिद्धि मिलती है या नहीं। आप अपने को बनाने का प्रयास नहीं करते हैं। आप तो देवता की हजामत बनाने के लिए उस्तरा, कैंची लिए फिरते हैं। इसे बंद कीजिए।

मित्रों! अगले दिनों अध्यात्म का नया स्वरूप सामने होगा। तब आपकी जो भी भावना अपने परिवार की बच्ची के प्रति है, वही भावना व व्यवहार समाज की बच्ची के साथ रखना होगा। पारिवारिकता में वे सारी चीजें शामिल हैं। नारी के प्रति अभी जो दृष्टिकोण आपका है, उसे बदलना होगा। बच्चियों के प्रति आपका दृष्टिकोण कैसा हो, माँ-बाप के प्रति तथा संसार में जो इस उम्र के हैं, उनके प्रति आपका दृष्टिकोण क्या हो ? इसका सही रूप से मूल्याँकन करना होगा।

घर को तपोवन, परिवार को प्रयोगशाला बनाइए

अगर आपको अध्यात्म सीखना हो, तो जंगलों में तप करने, तपोवन बनाने मत जाइए। अपने घर को ही तपोवन बनाइए, उसे ठीक कीजिए। हमने ढेर सारी पुस्तकें इस संदर्भ में लिखी हैं। उन्हें पढ़िए एवं अपने घर, को स्वर्ग बनाइए। परिवार एक प्रयोगशाला है। आप अपने माता-पिता के प्रति अहसान चुकाइए। आप तो केवल अपने बीवी-बच्चों का ही ख्याल रखते हैं। बुढ़िया को दमे की शिकायत है, उसका इलाज कराइए तथा एहसान चुकाइए और भी जिनका एहसान आपके ऊपर है, उसे चुकाइए। अगर आप अपने माता-पिता का एहसान नहीं चुकाएँगे, तो कल आपके बच्चे कैसे आपकी कदर करेंगे ? मित्रो! इससे अच्छी प्रयोगशाला कहीं भी नहीं है। आपके अंदर जो श्रेष्ठ गण हैं, उसे आप कहाँ से सीखेंगे और परखेंगे? कौन-सा योगाभ्यास करेंगे? परिवार जैसी लैबोरेटरी संसार में कहीं भी नहीं। क्या आप अपनी धर्म-पत्नी से नहीं सीखते हैं कि उसने कितना बड़ा आदर्श उपस्थित किया है, जो आप नहीं कर सकते हैं। उसके आत्मसमर्पण के सिद्धाँत को आप स्वीकार नहीं करेंगे क्या? वह अपने माँ-बाप, भाई-बहन को छोड़कर आपके घर आई। उसने अपनी जवानी, अपनी सेहत, अपना पुरुषार्थ, जेवर, पैसा, सब कुछ आपको अर्पित कर दिया था। जब आपके ऊपर कर्ज हो गया था, तो उसने अपना जेवर आपके हाथ में रख दिया था।

मित्रों! आपको सिखाने वाला एक मास्टर माँ के रूप में क्या नहीं मिला, जिसने अपने कलेजे का खून सफेद दूध में परिवर्तित करके पिलाया। स्वयं गीले में सोती रही और आपका इस प्रकार निर्माण कर दिया। अभी आपने अध्यात्म को समझा नहीं। आप गुफा में जाएँगे ? भाड़ में जाएँगे। आश्रम में जाएँगे? हम कहते हैं कि इससे बड़ा आश्रम कहाँ है, जिसमें आपकी माँ रहती है, बाप रहता है, बीवी, बच्चे, भाई, बहन रहते हैं। मित्रों! हम संयम सिखाने आपको कहाँ ले जाएँगे। आप यह संयम अपनी बहन से, बेटी से सीखिए न। वे आपको सिखाती हैं कि आपकी आँखों में शैतानी नहीं आनी चाहिए। इसका व्यावहारिक शिक्षण-अध्यात्म देने के लिए आपकी बहन, बेटी एक उत्तम अध्यापिका हो सकती हैं। आपको संयम सिखाने के लिए इससे बड़ी अध्यापिका हम कहाँ से लाएँगे। आपने इस अध्यात्म को सीखने-समझने का कभी प्रयास नहीं किया, फिर कौन-सा महात्मा, संत, योगी लाऊँ आपके लिए। आपकी माता, बाप, पत्नी, बच्चे, बच्चियाँ, बहन, भाई अलग-अलग तरह की नसीहतें देते हैं, जो आपको व्यावहारिक अध्यात्म बतलाते हैं। इससे बड़ा प्रशिक्षण आपके पास हम कहाँ से लाएँ? आपके लिए यह लैबोरेटरी आपको अध्यात्म के पूरे-के-पूरे प्रशिक्षण देने में सक्षम है। आपको इसे समझना चाहिए ।

गुरुजी! आप परिवार से अलग हो सकते हैं ? बेटे! हम परिवार से कभी भी अलग नहीं हुए हैं। वह परिवार जिसे आप वंश कहते हैं, उससे हमारा उतना मतलब नहीं है, जितना कि यह ‘गायत्री परिवार’ ‘प्रज्ञा परिवार’ युग निर्माण परिवार, आपको हम परिवार बढ़ाने के लिए कहते हैं, वंश बढ़ाने के लिए नहीं कहते। आपको इसे ज्यादा नहीं बढ़ाना चाहिए। आपके छोटे भाई हैं न, भतीजे हैं न उनको योग्य बना दीजिए। यह क्यों नहीं करते हैं आप? आपकी संतान नहीं करते हैं? आपका वंश डूब जाए, ऐसे वंश से क्या फायदा ? ऐसा स्वार्थी आदमी जो अपनी बीबी के पेट से निकले बच्चे को ही अपना बच्चा समझता है तथा बाकी बच्चों को बकरी के बच्चे समझता है, उसे मैं बेहूदा, मक्कार, नालायक कहता हूँ।

आज जनसंख्या बढ़ती जा रही है। लोग मक्खी, मच्छरों, सुअरों की तरह का वंश बढ़ाते जा रहे हैं। उनके लिए रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या बढ़ रही है। ऐसे लोगों को इस बात की भी जानकारी नहीं है कि बच्चे खेलेंगे कहाँ? आप तो केवल वंश के पीछे पड़ गए हैं। आप यह नहीं समझना चाहते कि आपके बच्चे, भाई के बच्चे भी आपके बच्चे हैं। उनका लालन-पालन करिए। आप अकेले तो रह नहीं सकते हैं। कहीं-न-कहीं तो रहेंगे ही, चाहे वह जेलखाना ही क्यों न हो, घर बसाकर रहेंगे। आपको यहाँ आना हो तो अपने उत्तरदायित्व को पूरा करके आएँ। हमारे पारिवारिकता के सिद्धाँत अलग हैं। हम मिल-जुलकर रहते हैं, एक साथ रहते हैं, एक साथ खाना खाते हैं। यह है हमारा पारिवारिकता का सिद्धाँत। यह पारिवारिकता ही हमारे परिवार की समस्या, कुटुँब की समस्या, समाज की समस्या और राष्ट्र की समस्या हल करती है।

सही अर्थों में कुटुँब

साथियो! आपका कुटुँब कहाँ है? कितना बड़ा है। गुरुजी! हमारा कुटुँब बहुत बड़ा है। परिवार में अनेक सदस्य हैं। बेटे! उसे घर नहीं, जेलखाना कहिए। उसे भेड़ों का बाड़ा कहिए। एक ही बिल में से कितने चूहे निकलते हैं? आपने भेड़ों का झुँड नहीं देखा, एक ही जगह से कितनी भेड़ें निकलती हैं। आपने जेलखाना नहीं देखा है? आपने भटियारों का सराय नहीं देखा है? आपने कुटुँब का मजा कभी नहीं चखा है? आपने तो भटियारों का मजा चखा है। उनके पास मुसाफिर आते हैं। उन्हें वे रोटी बनाकर खिला देते हैं। खाट बिछाकर सोने की व्यवस्था कर देते हैं। आपका कुटुंब भी इसी प्रकार का भटियारखाना है। आप सराय में रहते हैं, भटियारखाने में रहते हैं, जहाँ न त्याग है, न सेवा है, केवल एक ही चीज है जालसाजी। आज बीबी-मरद का, मरद बीबी का, भाई-भाई का नहीं है, केवल शतरंज की विशात बिछी हुई है सर्वत्र। कौन किसको मात देगा, कहा नहीं जा सकता कि ऊँट घोड़े को मात देगा या घोड़ा हाथी को मात देगा अथवा प्यादा बादशाह को मात देगा। सभी जगह शतरंज की चाल बिछी हुई है। क्या ऐसा ही कुटुँब होता है? ऐसे कुटुँब पर लानत है, जो किसी को देखना ही नहीं चाहता, जहाँ केवल अपना स्वार्थ ही सबको दिखाई देता है।

कुटुंब कैसे होते हैं? यही बताने के लिए हमने आपको बुलाया है। हम चाहते हैं कि सारा समाज ही अगर बने तो कुटुँब के आधार पर बने, पारिवारिकता के आधार पर बने। कोई भी कानून बने, नीति बने, मर्यादा बने, चाहे वह सामाजिक हो अथवा राजनीतिक, वह इसी आधार पर हो। अगर आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक कानून बने, तो वह भी इसी आधार पर बने। प्राचीनकाल में समाज इसी आधार पर बनाया जाता था। इसी आधार पर हमने यह पारिवारिक सत्र बुलाया है। यह हमें प्राणों से भी प्यारा है। आपको व्यक्तिगत स्वार्थ प्यारा है न। चलिए आप इसी के द्वारा अपना शारीरिक स्वास्थ्य मजबूत बनाना चाहते हैं न? आप मन में शाँति चाहते हैं न? आपके साथ जो रहते हैं, उनसे आत्मीयता, प्रेम चाहते हैं न? आप जो पैसा कमाते हैं, उसमें किफायत करके बचत करना चाहते हैं न? तो हम आपसे एक बात कहना चाहते हैं कि कुटुँब को नए सिरे से देखिए। उन पर नए सिरे से गौर करना, विचार करना शुरू कीजिए। उस पर ध्यान रखना शुरू कीजिए।

मित्रो! आपके ख्याल में कुटुँब का मतलब आपके खानदान वालों के साथ है। उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा खुशहाल कैसे रख सकते हैं? चमकदार कैसे बना सकते हैं? अभी आप जब 12 रुपये महीने पाते हैं, तो अपनी लड़की को खुशहाल बनाने के लिए ऐसे कपड़ा बनाना चाहते हैं, उसकी ऐसी कटिंग करना चाहते हैं कि जब वह स्कूल या कॉलेज जाए, तो वहाँ सारी-की लड़कियाँ उसे देखें तथा लड़के भी उसे देखें। लोग कहें कि बाबू जी की लड़की आई है। अभी आप तनिक-सी खुशहाली के लिए लड़के एवं लड़की को जो छूट दे रहे हैं, उसकी सजावट के लिए, प्रसन्नता के लिए जो आप कर रहे हैं, वह एक दिन आपके लिए मुसीबत लेकर आएगी, आप तबाह हो जाएँगे। ऐसी खुशहाली आपको कहीं का नहीं छोड़ेगी। आपकी लड़की मरेगी तथा उसे गुंडे तंग करेंगे। वह बार-बार जो शीशे में आँखें देखती है, काजल लगाती है, देख लेना जब वह ससुराल जाएगी तथा शादी होगी तो उसके ऊपर क्या आफत आएगी।

फैशनपरस्ती को बढ़ावा देकर आप लड़की को मार डालेंगे क्या? उसका ड्रेस बनाकर, फैशन बढ़ाकर क्या करेंगे? उसे हिप्पी बनाएँगे, सिनेमा की ऐक्ट्रेस बनाएँगे, क्या करेंगे उसका? बेदिमाग, बेहूदापन के आगे आप अपने कुटुंब को भाड़ में झोंक रहे हैं। आप कहते हैं कि समाज में मेरी लड़की मेरे लड़कों की इज्जत होती है। आप इस भटियारखाने को समाज कहते हैं। भेड़ों को आप समाज कहते हैं। आप समझते नहीं हैं कि आज का कुटुंब कितना नालायक हो गया है। जब तक आप कमाएँगे, व्यापार करेंगे, आपके कुटुंब के लोग आपकी बात को सहते रहेंगे, परंतु आप जैसे ही अवकाश प्राप्त करेंगे, रिटायर होंगे, आपकी घर में, कुटुँब में कोई इज्जत नहीं होगी। कोई आपको एक गिलास पानी देने वाला नहीं होगा, क्योंकि आपने उसे संस्कारवान् बनाया नहीं है। सादगी का जीवन जीना सिखाया नहीं है, प्रेम, त्याग बतलाया नहीं है। आपने मूक दर्शक बने रहकर अपना तथा परिवार का कचूमर निकाल दिया है।

मित्रों! ऐसी स्थिति में आप जब कमजोर हो जाएंगे, आज जब अवकाश प्राप्त कर लेंगे, तब आपकी दुकान भी नहीं है, क्योंकि वह तो बेटे की है। आपने उसे सौंप दिया है। तब आप देख लेना कि आपके कुसंस्कारी लड़के, बहू किस तरह आपके साथ व्यवहार करते हैं। उनकी दुर्भावना भरी आदतें, व्यवहार आपको शीघ्र ही मौत की नींद सुला देंगे। आपने तो उन्हें कुछ सिखाया ही नहीं, संस्कार देने से आप मुँह मोड़ते रहे। संस्कार के नाम पर आपने केवल अपने बच्चे, लड़की और पत्नी की बातें मानी। उन पर दबाव डाला नहीं, त्याग सिखाया नहीं। अब क्यों रोते हैं? परेशान क्यों होते हैं? मित्रों! यही हालत आपकी होगी जब आप कमजोर हो जाएँगे याद रखिए। आपने जिस कुटुंब के लिए ईमानदारी, बेईमानी करके उसे इतना बड़ा किया है, जिसके लिए आपने उचित तथा अनुचित ढंग से विकास करने का प्रयास किया है, देखना आपके कमजोर होने पर वे क्या करते हैं? आपने कल को देखा नहीं? आपने समय को देखा नहीं? केवल आप अपने बीबी, बच्चे को देखते रहे और उन्होंने अब क्या हाल कर दिया आपका? कुसंस्कारी जो बनाया है आपने उन्हें? देखना वे अपने आप दुःखी होंगे, आपको दुखी करेंगे तथा अपने परिवार वालों को, बीबी-बच्चों को दुख करेंगे।

(उत्तरार्द्ध अगले अंक में)

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