• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • नव वर्ष की नवीन संभावनाएँ
    • अतिमानव को साकार करने का समय आ गया
    • जिया जाय जीवन का हर क्षण
    • लक्ष्य का पहचान और उसकी प्राप्ति
    • अन्याय (Kahani)
    • सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्
    • इतिहास के मूल्यवान नग (Kahani)
    • अंतः का शृंगार है मौन
    • सार्थकता बिरलों को मिलती है (Kahani)
    • माँ की कृपा से क्या कुछ संभव नहीं
    • वापस स्वर्ग चले (Kahani)
    • होने जा रहा है विज्ञान का कायाकल्प
    • दोनों धन्य हो गए (kahani)
    • जीवन सार्थक बनेगा संगीत से
    • सफल होने का रहस्य (Kahani)
    • अभिमन्यु एक मिथक नहीं सचाई
    • Quotation
    • यह मूल्यविहीन ‘प्रगति’ किस काम की
    • स्वामी नारायण गुरु (Kahani)
    • अभिशप्त तापमान ला रहा है जल प्रलय
    • दैवी अनुदानों के अधिकारी (Kahani)
    • व्यवहारकुशलता एक पारसमणि के समान
    • भगवान् आपको रोकते (Kahani)
    • मिला जीवन का एक सार्थक उद्देश्य
    • वैभव का धनी (Kahani)
    • प्रकृति की एक नैसर्गिक धरोहर
    • सफलता प्राप्त की (Kahani)
    • क्रोध से तो परहेज ही रखें
    • पानी में घुल जाओ (Kahani)
    • विकृत आहार हमें रोगी बनाता है
    • आदेशों को हृदयंगम (Kahani)
    • वातव्याधि निवारण की यज्ञोपचार प्रक्रिया - 11
    • एक आदर्श योगासन : सूर्य नमस्कार
    • VigyapanSuchana
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे विकसित हो आदर्श परिवार-9
    • जन्म दिवस विशेष : स्वामी विवेकानंदएक प्रखर योद्धा संन्यासी जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
    • युगगीता-29 - हर श्वास में संपादित दिव्य कर्म ही हैं यज्ञ
    • सुधारने के लिए प्रेरणा (Kahani)
    • गुरुकथामृत-21 - इन निमित्तों ने ही तो खड़ा किया है यह वटवृक्ष
    • स्थायी क्या है? (Kahani)
    • श्रीरामलीलामृत-1 - चेतना की शिखर यात्रा
    • केंद्र के समाचार- विश्वव्यापी हलचलें
    • अपनों से अपनी बात-1 - इस संगठन वर्ष में हम सब एक निर्णायक युद्ध लड़ेंगे
    • अपनों से अपनी बात-2 - गायत्री तीर्थ की सत्र व्यवस्था व अनुशासन
    • शहीदों के प्रति
    • शहीदों के प्रति (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • नव वर्ष की नवीन संभावनाएँ
    • अतिमानव को साकार करने का समय आ गया
    • जिया जाय जीवन का हर क्षण
    • लक्ष्य का पहचान और उसकी प्राप्ति
    • अन्याय (Kahani)
    • सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्
    • इतिहास के मूल्यवान नग (Kahani)
    • अंतः का शृंगार है मौन
    • सार्थकता बिरलों को मिलती है (Kahani)
    • माँ की कृपा से क्या कुछ संभव नहीं
    • वापस स्वर्ग चले (Kahani)
    • होने जा रहा है विज्ञान का कायाकल्प
    • दोनों धन्य हो गए (kahani)
    • जीवन सार्थक बनेगा संगीत से
    • सफल होने का रहस्य (Kahani)
    • अभिमन्यु एक मिथक नहीं सचाई
    • Quotation
    • यह मूल्यविहीन ‘प्रगति’ किस काम की
    • स्वामी नारायण गुरु (Kahani)
    • अभिशप्त तापमान ला रहा है जल प्रलय
    • दैवी अनुदानों के अधिकारी (Kahani)
    • व्यवहारकुशलता एक पारसमणि के समान
    • भगवान् आपको रोकते (Kahani)
    • मिला जीवन का एक सार्थक उद्देश्य
    • वैभव का धनी (Kahani)
    • प्रकृति की एक नैसर्गिक धरोहर
    • सफलता प्राप्त की (Kahani)
    • क्रोध से तो परहेज ही रखें
    • पानी में घुल जाओ (Kahani)
    • विकृत आहार हमें रोगी बनाता है
    • आदेशों को हृदयंगम (Kahani)
    • वातव्याधि निवारण की यज्ञोपचार प्रक्रिया - 11
    • एक आदर्श योगासन : सूर्य नमस्कार
    • VigyapanSuchana
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे विकसित हो आदर्श परिवार-9
    • जन्म दिवस विशेष : स्वामी विवेकानंदएक प्रखर योद्धा संन्यासी जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
    • युगगीता-29 - हर श्वास में संपादित दिव्य कर्म ही हैं यज्ञ
    • सुधारने के लिए प्रेरणा (Kahani)
    • गुरुकथामृत-21 - इन निमित्तों ने ही तो खड़ा किया है यह वटवृक्ष
    • स्थायी क्या है? (Kahani)
    • श्रीरामलीलामृत-1 - चेतना की शिखर यात्रा
    • केंद्र के समाचार- विश्वव्यापी हलचलें
    • अपनों से अपनी बात-1 - इस संगठन वर्ष में हम सब एक निर्णायक युद्ध लड़ेंगे
    • अपनों से अपनी बात-2 - गायत्री तीर्थ की सत्र व्यवस्था व अनुशासन
    • शहीदों के प्रति
    • शहीदों के प्रति (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2002 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


एक आदर्श योगासन : सूर्य नमस्कार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 32 34 Last
योगासनों के क्षेत्र में ‘सूर्यनमस्कार’ एक अद्भुत अभ्यास है। इससे स्वास्थ्य, शक्ति और क्रियाशीलता में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त यह आत्मोत्थान में भी सहायक है। इसका संयुक्त परिणाम चेतनात्मक विकास के रूप में सामने आता है। इसमें आसन, प्राणायाम तथा ध्यान की क्रियाएं साथ-साथ चलती हैं, अतएव यह एक पूर्ण अभ्यास है। कम समय, कम श्रम और व्यस्त जीवन वालों के लिए यह एक आदर्श योगासन है। इससे आश्चर्यजनक लाभ हस्तगत किए जा सकते हैं।

सूर्य नमस्कार का एकदम सीधा और सरल अर्थ है,’सूर्य को प्रणाम’। यह नामकरण कदाचित् इसलिए हुआ कि अरुणोदय काल में इसके करने का विधान है। इसकी पहली मुद्रा प्रणाम की मुद्रा है, जिसमें सूर्य की ओर मुख करके खड़ा हुआ जाता है। इसलिए इसे ‘सूर्य नमस्कार’ कहा गया। यह वैदिक काल के ऋषियों की देन है। प्राचीन काल में दैनिक कर्मकाँड के रूप में सूर्य की नित्य आराधना की जाती थी, क्योंकि प्राण-चेतना का यह एक स्थूल माध्यम है। इससे जड़-चेतन को प्रत्यक्ष जगत् में जीवन मिलता है और सूक्ष्म जगत् में ‘सविता’ के रूप में यह प्राण-प्रवाह का प्रखर पुँज है। समस्त संसार के लिए इसे कल्याणकारी माना गया है। अतः इसकी उपासना हमारे धार्मिक कर्मकाँड का अंग है, किंतु जब ‘सूर्य नमस्कार’ के रूप में इसे हम अपनाते हैं, तो यही अभ्यास चेतना का उन्नायक और स्वास्थ्य-संवर्द्धक बन जाता है। यह उन तत्वज्ञों का आविष्कार है, जिन्हें यह पता था कि इससे केवल स्वास्थ्य-रक्षा ही नहीं होती वरन् मानसिक शक्तियों के संतुलन,नियमन और सुनियोजन में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसकी विभिन्न 12 स्थितियों का साधक जब नियमित रूप से अभ्यास करता है, तो उससे उसकी सूक्ष्म ऊर्जा प्रभावित होती है, उसमें एक लयबद्धता आती और साधक की सोच संसार के प्रति सकारात्मक बनती जाती है।

योग निद्रा की भाँति सूर्य नमस्कार भी सजगता को विकसित करने का एक सरल उपाय है। इसे प्रारंभ करने से पहले ही यह अभ्यास करना चाहिए। खड़ी दशा में ही आँखें बंद कर लें, दोनों हाथों को बगल में नीचे लटकाए रखें। अब शरीर को पूरी तरह तनावरहित और शिथिल कर लें। अपनी चेतना को सजगतापूर्वक सिर से शुरू करते हुए पैरों तक घुमाएं। सजगता का यह विकास एक टार्च की तरह है, जिसका प्रकाश व्यक्तित्व के अंधकार को चीरता है। अब चेतना को पाँव के तलुवों पर ले जाएं तथा भूमि और तलुवों के संपर्क बिंदुओं का अनुभव करें। सोचें कि देह के, अंग-अवयवों के संपूर्ण तनाव पैरों के माध्यम से भूमिगत होते जा रहे हैं और शरीर शिथिल हो रहा है। कुछ समय इस अवस्था में रहने के उपराँत मूल अभ्यास शुरू करें। ऐसा करना इसलिए जरूरी होता है कि इससे शरीर की अकड़न शुरू में ही दूर हो जाती है और वह हर प्रकार से अभ्यास के अनुकूल बन जाता है।

सूर्य नमस्कार को नियमित रूप से करने से उससे शरीर के स्थूल-सूक्ष्म हर प्रकार के अंग-अवयव प्रभावित होते हैं। इससे चक्रों को प्रभावित करने के उक्त आसन के अंतर्गत आने वाली विभिन्न शारीरिक मुद्राओं के अनुरूप उन-उन चक्रों पर मन को केंद्रित करना पड़ता है, जिससे उनकी सक्रियता बढ़ने लगती है। क्रियाशीलता के बढ़ने से आध्यात्मिक शक्तियों का जागरण होने लगता है। इस जागरण से साधक का व्यक्तित्व बदलता है। यहाँ यह कहना अनावश्यक होगा कि सूर्य नमस्कार की विभिन्न स्थितियों का उसका अपना प्रभाव इन शक्ति संस्थानों पर नहीं पड़ता। उनसे भी उनमें उद्दीपन उत्पन्न होता है, पर जितनी अधिक उत्तेजना उन्हें आँतरिक सजगता, एकाग्रता तथा मानसिक कल्पना के संयुक्त प्रभाव से मिलती है, उसकी तुलना में वह कम होता है। सूर्य नमस्कार में सम्मिलित आसनों को करने से साधक की प्राणशक्ति में अभिवृद्धि होती है। इस अभिवृद्धि से शरीर के विभिन्न अंगों में उद्दीपन होना आरंभ होता है, जिससे चक्रों पर मानसिक तथा शारीरिक ऊर्जा को एकाग्र करने में सहायता मिलती है। इन आवेशित अंग-उपाँगों के प्रति मानसिक रूप से सजग होने से मन तथा शरीर, इड़ा तथा पिंगला नाड़ियों में सामंजस्य स्थापित होता है, जिससे चक्रों में उद्दीपन उत्पन्न होता है, जिसकी परिणति आत्मजागरण के रूप में सामने आती है। सूर्य नमस्कार की विभिन्न द्वादश स्थितियों का क्रमशः निम्न चक्रों पर असर पड़ता है, (1) प्रणामासन-अनाहत चक्र (2) हस्त उत्तानासन-विशुद्धि चक्र (3) पादहस्तासन-स्वाधिष्ठान चक्र (4) अश्वसंचालनासन-आज्ञा चक्र (5) पर्वतासन-विशुद्धि चक्र (6) अष्टाँग नमस्कार-मणिपुर चक्र (7) भुजंगासन- स्वाधिष्ठान चक्र। शेष पाँच स्थितियों में इन्हीं की पुनरावृत्ति होती है, तदनुसार उन्हीं-उन्हीं चक्रों पर पुनः दबाव पड़ता है।

चक्रों पर एकाग्रता के समय विभिन्न सूर्य मंत्रों के मानसिक उच्चारण को भी अपनाया जा सकता है। उसके स्पंदन भी चक्र जागरण में सहायक होते हैं। अभ्यास में पूर्णता आने के उपराँत ऐसा प्रतीत होगा मानों शब्द स्फुल्लिंग इन्हीं चक्रों से निर्गत हो रहे हैं।

प्रत्येक वर्ष सूर्य बारह विभिन्न स्थितियों से होकर गुजरता है। इन स्थितियों को ज्योतिष में ‘राशि’ कहते हैं। प्रत्येक राशि की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। इनके आधार पर ही उनके नामकरण किए गए हैं। इन 12 नामों से सूर्य नमस्कार के 12 सूर्य मंत्र संबंधित हैं, जो इसकी 12 स्थितियों का अभ्यास करते समय दोहराए जाते हैं। ये निम्न हैं।

(1) ॐ मित्राय नमः (2) ॐ रवये नमः (3) ॐ सूर्याय नमः (4) ॐ भानवे नमः (5) ॐ खगाय नमः (6) ॐ पूष्णे नमः (7) ॐ हिरण्यगर्भाय नमः (8) ॐ मरीचये नमः (9) ॐ आदित्याय नमः (10) ॐ सवित्रे नमः (11) ॐ अर्काय नमः (12) ॐ भास्कराय नमः।

ये सूर्य मंत्र मात्र सूर्य के नाम ही नहीं हैं। इनकी ध्वनि उस मूलभूत शाश्वत शक्ति की वाहक है, जिसका प्रतिनिधित्व स्वयं सूर्य करता है। एकाग्रतापूर्वक इन मंत्रों के उच्चारण से संपूर्ण मानसिक संरचना प्रभावित होती है।

योगाभ्यासों के माध्यम से शरीर की नाड़ियों, ग्रंथियों, उपत्यिकाओं, मातृकाओं को संतुलित-सुव्यवस्थित कर पाना संभव है। पीनियल ग्रंथि का जब क्षय शुरू होता है, तो उससे अनेक प्रकार की भावनात्मक समस्याएं पैदा होने लगती हैं। विशेषकर किशोर मन इन भावनात्मक आघातों को सह पाने में सक्षम नहीं होता, जिससे व्यक्तित्व में उलझाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे कई प्रकार के शारीरिक-मानसिक रोग पनपने लगते हैं। इस जटिलता को रोकने में सूर्य नमस्कार समर्थ है। बालकों के लिए यह विशेष महत्व रखता है, कारण कि 8 वर्ष की आयु से ही पीनियल ग्रंथि का क्षय होने लगता है। इससे 12 से 14 वर्ष की आयु में उनका यौवन आरंभ होने लगता है। शारीरिक और भावनात्मक विकास के इस असंतुलन के कारण उनका व्यक्तित्व-गठन सुचारु रूप से नहीं हो पाता, जिससे हर क्षेत्र में उनकी सफलता संदिग्ध बनी रहती है। पीनियल ग्रंथि के इस क्षय को सूर्य नमस्कार द्वारा नियंत्रित किया जा सकना सरल है। इसके अतिरिक्त शाँभवी मुद्रा तथा गायत्री मंत्र के जप द्वारा भी यह कार्य संपन्न होता है।

विशेषज्ञों का कथन है कि सूर्य नमस्कार का अभ्यास यदि 8-10 वर्ष की उम्र से ही बालकों को कराया जाने लगे, तो उसका परिणाम तब एकदम स्पष्ट रूप से सामने आ जाता है, जब ऐसे बच्चों की तुलना उन समवयस्कों से की जाती है, जो यह अभ्यास नहीं करते। अभ्यासी बालक अपने सहपाठियों से हर क्षेत्र में श्रेष्ठ पाए गए हैं।

सूर्य नमस्कार का असर संपूर्ण शरीर तंत्र पर पड़ता है, जिससे निष्क्रिय अंग सक्रिय हो उठते हैं और जहाँ अति सक्रियता होती है, उसकी क्रियाशीलता नियंत्रण में आ जाती है। इसकी प्रथम स्थिति प्रणामासन से अंतर्मुखता, शिथिलीकरण तथा शाँति की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। हस्तउत्तानासन से पीठ तथा गर्दन की पेशियाँ शिथिल होती हैं। इस आसन में गहरी श्वास अंदर लेते समय उदर की मालिश होती है तथा पाचन सुधरता है। मेरुदंड का व्यायाम होता है, मोटापा घटता है एवं थाइराइड ग्रंथि पर प्रभाव पड़ता है। पादहस्तासन से अंतरंग प्रभावित होते हैं। इनमें प्रमुख हैं, यकृत, वृक्क, पित्ताशय, अग्नाशय, एड्रीनल ग्रंथि, गर्भाशय तथा अंडाशय (ओवरी)। इसके कारण उदर संबंधी बीमारियाँ दूर होती हैं और पाचन शक्ति बढ़ती है। महिलाओं में गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना तथा अनियमित मासिक धर्म दूर होता है। मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बढ़ता है तथा संपूर्ण अंतःस्रावी तंत्र पर दबाव पड़ता है। अश्वसंचालनासन से पीठ की पेशियाँ शिथिल पड़ती हैं। इस कारण उदर की पेशियों में खिंचाव आता है। प्रमुख खिंचाव श्रोणि प्रदेश (पेल्विक भाग) पर पड़ता है। साइनस में इससे आराम मिलता है। पर्वतासन से भुजाओं तथा पैरों की पेशियाँ मजबूत बनती हैं। मेरुदण्ड के स्नायु सबल होते हैं और पिंडलियों की पेशियों में भी खिंचाव उत्पन्न होता है। अष्टाँग नमस्कार आसन से वक्षस्थल में मजबूती आती है। इसके अतिरिक्त बाँह, कंधे और पाँव की शक्ति बढ़ती है। भुजंगासन से वक्ष एवं उदर दोनों पर दबाव पड़ता है, जिससे दमा, कब्ज, अपच, गुर्दे और यकृत की व्याधियों से मुक्ति मिलती है। मेरुदंड का व्यायाम होता है।

यह सूर्य नमस्कार का कायिक प्रभाव हुआ। इससे शरीर-स्वस्थता ठीक बनी रहती है और विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है, साथ ही आत्मिक विकास भी होता चलता है। यह इसका सबसे बड़ा लाभ है। इस अभ्यास से जिन समस्याओं का निराकरण होता है वह हैं फोड़े-फुँसियाँ, अग्निमंदता, रक्ताल्पता, दुर्बलता, गठिया, दमा, सिर दर्द, स्थूलता, फेफड़े संबंधी दोष, अपच, कब्ज, गुरदे के रोग, मधुमेह, निम्न रक्तचाप, मिर्गी, यकृत संबंधी व्याधि, अंतःस्रावी ग्रंथियों का असंतुलन तथा विभिन्न प्रकार के मनोरोग।

इसके अतिरिक्त यह व्यायाम इड़ा-पिंगला नाड़ियों में भी संतुलन-समीकरण स्थापित करता है। इन्हीं नाड़ियों की सक्रियता-निष्क्रियता के परिणामस्वरूप दो प्रकार के व्यक्तित्व सामने आते हैं, (1) बहिर्मुखी (2) अंतर्मुखी। बहिर्मुखी व्यक्ति पिंगला प्रधान होते हैं, जबकि अंतर्मुखी लोगों में इड़ा नाड़ी की गतिशीलता अधिक होती है। बहिर्मुखी आदमी अपनी आँतरिक अनुभूतियों से शून्य होता है। इसकी पूर्ति वे बाह्य साधनों, इच्छाओं और सुविधाओं से करते रहते हैं। बाहरी सुरक्षा और आनंद हेतु बाह्य साधनों पर निर्भर रहने से अंतः की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती। इससे कुँठा, तनाव बढ़ते हैं, जिससे व्यक्ति और ज्यादा बहिर्मुखी बन जाता है। उसमें अशाँति और चिड़चिड़ेपन के लक्षण उभरने लगते हैं।

इसके विपरीत अंतर्मुखी व्यक्ति दार्शनिक प्रकृति के होते हैं। वे सोचते तो बहुत हैं, किंतु अपने विचारों को क्रियारूप में परिणत नहीं कर पाते। ऐसे लोग अपनी भावनाओं के प्रति अत्यधिक सजग रहते हैं। उन्हें बाह्य घटनाओं और लोगों की प्रतिक्रियाओं के बारे में वास्तविकता से परे सोचने की आदत होती है। वे विपत्तियों का पूर्वानुमान लगाने में कोई कोताही नहीं बरतते। बाह्य जगत् की विभिन्न स्थितियों के प्रति संतुलित दृष्टिकोण रखना उनके वश की बात नहीं होती।

यह दोनों ही प्रकृति आदर्श नहीं मानी जा सकतीं। एक में व्यक्ति अति उत्साह में आकर कुछ-का- कुछ करने लगता है, जबकि दूसरी स्थिति व्यक्ति को निष्क्रियता की ओर ले जाती है। सूर्य नमस्कार को नियमित रूप से करने से इन दोनों अवस्थाओं के मध्य एक संतुलन स्थापित होता है, इड़ा और पिंगला नाड़ियाँ नियंत्रित ढंग से सुचारु रूप से कार्य करना आरंभ करती हैं, जिससे व्यक्ति के व्यवहार में स्पष्ट परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है।

सूर्य नमस्कार प्रत्येक आयु-वर्ग के लोगों के लिए समान रूप से उपयुक्त हैं, किन्तु अधिक उम्र के लोगों को अधिक तनाव से बचना चाहिए। उच्च रक्तचाप या हृदयाघात से पीड़ित व्यक्तियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। मेरुदंड की समस्या से ग्रसित आदमी को भी इससे परहेज करना ठीक है। इसे करने में एक और बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसके अभ्यास से देह पर आवश्यकता से अधिक दबाव या खिंचाव न पड़े।

यों तो सूर्य नमस्कार सूर्योदय के समय करना ठीक रहता है, पर यदि प्रातःकाल किसी कारणवश इसका अभ्यास करना संभव न हो, तो दिन में कभी भी खाली पेट इसे किया जा सकता है। यथासंभव खुली हवा में ढीले कपड़े पहनकर इसे करना चाहिए, जिससे त्वचा आसानी से सूर्य ऊर्जा को ग्रहण कर सके।

सूर्य नमस्कार एक उपयोगी अभ्यास है। इससे शरीर और मन दोनों स्वस्थ-संतुलित बने रहते हैं और व्यक्ति शनैः-शनैः आत्मोत्कर्ष की ओर बढ़ता चलता है। प्रत्येक गायत्री साधक को यह अभ्यास अवश्य करना चाहिए, कारण कि दोनों में ही ‘सविता’ की सूक्ष्म प्राणचेतना साधक के विकास का मूलभूत आधार है।

First 32 34 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • नव वर्ष की नवीन संभावनाएँ
  • अतिमानव को साकार करने का समय आ गया
  • जिया जाय जीवन का हर क्षण
  • लक्ष्य का पहचान और उसकी प्राप्ति
  • अन्याय (Kahani)
  • सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्
  • इतिहास के मूल्यवान नग (Kahani)
  • अंतः का शृंगार है मौन
  • सार्थकता बिरलों को मिलती है (Kahani)
  • माँ की कृपा से क्या कुछ संभव नहीं
  • वापस स्वर्ग चले (Kahani)
  • होने जा रहा है विज्ञान का कायाकल्प
  • दोनों धन्य हो गए (kahani)
  • जीवन सार्थक बनेगा संगीत से
  • सफल होने का रहस्य (Kahani)
  • अभिमन्यु एक मिथक नहीं सचाई
  • Quotation
  • यह मूल्यविहीन ‘प्रगति’ किस काम की
  • स्वामी नारायण गुरु (Kahani)
  • अभिशप्त तापमान ला रहा है जल प्रलय
  • दैवी अनुदानों के अधिकारी (Kahani)
  • व्यवहारकुशलता एक पारसमणि के समान
  • भगवान् आपको रोकते (Kahani)
  • मिला जीवन का एक सार्थक उद्देश्य
  • वैभव का धनी (Kahani)
  • प्रकृति की एक नैसर्गिक धरोहर
  • सफलता प्राप्त की (Kahani)
  • क्रोध से तो परहेज ही रखें
  • पानी में घुल जाओ (Kahani)
  • विकृत आहार हमें रोगी बनाता है
  • आदेशों को हृदयंगम (Kahani)
  • वातव्याधि निवारण की यज्ञोपचार प्रक्रिया - 11
  • एक आदर्श योगासन : सूर्य नमस्कार
  • VigyapanSuchana
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे विकसित हो आदर्श परिवार-9
  • जन्म दिवस विशेष : स्वामी विवेकानंदएक प्रखर योद्धा संन्यासी जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
  • युगगीता-29 - हर श्वास में संपादित दिव्य कर्म ही हैं यज्ञ
  • सुधारने के लिए प्रेरणा (Kahani)
  • गुरुकथामृत-21 - इन निमित्तों ने ही तो खड़ा किया है यह वटवृक्ष
  • स्थायी क्या है? (Kahani)
  • श्रीरामलीलामृत-1 - चेतना की शिखर यात्रा
  • केंद्र के समाचार- विश्वव्यापी हलचलें
  • अपनों से अपनी बात-1 - इस संगठन वर्ष में हम सब एक निर्णायक युद्ध लड़ेंगे
  • अपनों से अपनी बात-2 - गायत्री तीर्थ की सत्र व्यवस्था व अनुशासन
  • शहीदों के प्रति
  • शहीदों के प्रति (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj