
स्वामी नारायण गुरु (Kahani)
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दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के निकट श्री नारायण गुरु जन्मे। कुछ ही दिन वे जप-तप में लगे कि उसे क्षेत्र के अछूतों की दुर्दशा देखकर उनका जी भर आया और उस समुदाय को ऊँचा उठाने के लिए उन्हीं में घुल-मिलकर काम करने लगे। नय्यर, पतवाह, छिया, उलिया, मरिहा आदि कितनी ही जातियाँ ऐसी थीं, जिन्हें कोई छूता भी न था और काम पर भी न लेता था। उन्हें संगठित करके कुछ उद्योग चलाने और अपने अधिकारों के लिए अड़ जाने का उन्होंने प्रशिक्षण दिया। अछूतों के लिए उनने एक मंदिर बनवाया, जहाँ वे उपासना भी करते और शिक्षा भी प्राप्त करते।
स्वामी नारायण गुरु को सवर्णों को कठिन विरोध सहना पड़ा, पर वे अपने काम में सुनिश्चित भाव से लगे रहे। उन्हें आशाजनक सफलता भी मिली। उनके आश्रम और कार्यक्रम की प्रशंसा सुनकर महात्मा गाँधी और ऐंड्रूज दर्शनों को गए। अकेला व्यक्ति भी ऊंचे उद्देश्य के लिए कार्यरत रहकर क्या कुछ कर सकता है, इसकी प्रत्यक्ष प्रतिमा थे-स्वामी नारायण गुरु।