
सतत दान देता रहा (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
भयंकर आँधी आने पर वे वृक्ष उखड़ जाते हैं, जो एकाकी होते हैं, भले ही वे कितने ही विशाल क्यों न हों। इसके विपरीत घने उगे हुए पेड़ एक दूसरे के साथ सटकर रहने के कारण उस दबाव को सहज ही सहन कर लेते हैं। अंधड़ उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाते।
यह उदाहरण देते हुए भगवान बुद्ध ने अपने प्रवचन में कहा, “परस्पर स्नेह की सघनता मनुष्यों को इसी तरह नष्ट होने से बचाती और विकास का अवसर प्रदान करती है। संघारामों में सघन पारिवारिक स्नेह का अभ्यास इसीलिए कराया जाता है।”
विवेकानंद विदेशी जा रहे थे। वे माता शारदामणि के पास आशीर्वाद लेने पहुँचे। माता जी ने कहा, पहले मेरा काम कर। बाद में आशीर्वाद दूँगी। सामने खुली तलवार पड़ी थी, इशारा करते हुए कहा, उसे उठाकर ला।
विवेकानंद ने माता के हाथ में मूँठ थमा दी और धार वाली नोंक अपने हाथ में रखी।
माता जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा, जो दूसरों की कठिनाई को समझता है और मुसीबत अपने हिस्से में लेता है, उसी पर भगवान का आशीर्वाद बरसता है। तुम्हें भगवान का अनुग्रह सदा मिलता रहेगा।
विवेकानंद जी कहते थे, महानता के ढेरों गुण मुझे परमहंस जी के पारिवारिक वातावरण में सीखने विकसित करने को मिले अन्यथा वे दुर्लभ ही रहते।
एंड्रयू कार्नेगी के पिता एक स्काँटिश जुलाहे थे। माता घर के काम से निपटकर एक धोबी और एक मोची की दुकान पर काम करने जाती थी। तब घर का खरच चलता। माता जब नौकरी पर काम करने जाती, तब उसका पिता उसे इस प्रकार विदा करता, मानो नई दुल्हन हो। दोनों में अगाध प्रेम था। एंड्रयू यह देखता तो उसके ऊपर गहरी छाप पड़ती। उसके पास एक ही कमीज थी। माता उसे रोज धोती और इस्तरी कर देती।
पढ़ने का अधिक सुयोग न बना, किंतु स्कूली संस्कार परिवार में रहते रहते ही आत्मीयता के पड़ गए। तनिक बड़ा होते ही उसने तारघर में हरकारे की नौकरी कर ली। साथ ही तार देने और ग्रहण करने की विधि भी सीखता रहा। परीक्षा में पास हुआ और तारबाबू बन गया। उसके बाद उसने एक जमीन कृषिफार्म हेतु खरीदी। उसमें कृषि के अतिरिक्त एक तेल का कुँआ निकल आया। दूसरे व्यवसायों से भी आमदनी बढ़ी। विवाह के कितने ही प्रस्ताव आए, पर उसने सभी यह कहकर अस्वीकार कर दिए कि अपनी माता के जीवित रहने तक मैं विवाह न कर उसकी सेवा करूंगा। विवाह में समय और मन दो ओर बंट जाएगा। माँ के मरने के बाद 52 वर्ष की आयु में उसने शादी की। शादी देरी से करने पर लोगों के उलाहना देने पर कार्नेगी कहता कि विवाह जिन उद्देश्यों के लिए किया जाता है, उन सभी की पूर्ति मैंने यथासंभव की है। मात्र सहजीवन और कामसेवन ही विवाह का अर्थ नहीं है।
विवाह के बाद भी एकाकी बच्चों के परिवार रूपी संगठनों के लिए एवं साधनहीनों को विद्याध्ययन हेतु वह सतत दान देता रहा। उसने 15 करोड़ डॉलर की राशि इन्हीं कार्यों में खरच की।