
कृति हमेशा के लिए अमर बना गई(kahani)
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तुलसीदास पत्नी के प्रति आशक्तिवश आतुर हो उसके नैहर पहुँच गए। विवेक इतना खो बैठे कि उससे छिपकर मिलने का प्रयास किया। धिक्कारते हुए वह कह उठी-
हाड़-माँस की दे हमम, तापर जितनी प्रीति। तिसु आधी जो राम प्रति, अवसि मिटिहिं भवभीति॥
माँस-हड्डियों से बनी इस काया पर तुम्हारी जितनी आशक्ती है, उससे आधी भी यदि राम के प्रति होती तो भव-बंधन से ही छूट जाते। यही बात उनके अंत-करण को छू गई तथा वे वहाँ से चले आए। जीवन को मोड़ लिया। अंतः का बोध हुआ और वे तुलसीदास बन गए। रामचरित्र की लेखनी द्वारा उन्होंने जन-जन तक पहुँचाया और ऐसी समग्र विचार-क्राँति कर सकने में सफल हुए, जिसने सारे विश्व को राम अवतार के माध्यम से आध्यात्मिक शिक्षा दी। उनकी कृति उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए अमर बना गई।