• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • स्मरण और समर्पण
    • व्यक्तित्व-गठन के छह महत्वपूर्ण चरण
    • प्रयासों में सहायता मिली (kahani)
    • ध्यानं निर्विषयं मनः
    • बुद्धि नहीं, सद्बुद्धि को महत्व मिले
    • महामानव बना देता है (kahani)
    • अकर्मण्यता - एक विष
    • रामकृष्ण परमहंस (Kahani)
    • आत्मोत्कर्ष हेतु तपश्चर्या के दो पक्ष
    • दोष का भागीदार (kahani)
    • आवश्यकता है प्रेम के परिष्कार एवं सुख के आध्यात्मीकरण की
    • सतत दान देता रहा (kahani)
    • इनसान बस अपने को जान ले
    • लक्ष्य से भ्रष्ट (kahani)
    • प्रभु! जड़-चेतन में, रोम-रोम में शाँति दीजिए
    • Quotation
    • गलत प्रव्रज्या में शरण दुःखदाय है
    • कागावा देश का गाँधी (kahani)
    • भारत का इतिहास, महाकाल का प्रसाद है - गंगा
    • बड़ी जिम्मेदारिया (kahani)
    • VigyapanSuchana
    • मिली समय-प्रबंधन की सीख
    • पवित्र, उच्च विचारों से आप्लावित उपनिषदों का ज्ञान
    • प्रभु की भूख (kahani)
    • हम अपने भाव में शाँत हो भर जाएं
    • Quotation
    • आयुर्वेद-5 - प्रदर रोग निवारण हेतु यज्ञोपचार प्रक्रिया
    • स्वार्थ से ऊपर उठकर पारिवारिक उत्तरदायित्व (kahani)
    • समर्पण, विसर्जन, विलय का महापर्व
    • वृक्ष उद्बोधन से पथिक का समाधान (kahani)
    • गुरु पूर्णिमा (13 जुलाई, 2003)- - विशेष-जनम-जनम के साक्षी व साथी हैं हमारे गुरुदेव
    • श्रम के देवता की आराधना (kahani)
    • शिष्य संजीवनी-1 - समर्पित दृढ़ता से आरंभ होती है यह साधना
    • महाकवि माघ की उदारता (kahani)
    • अंतर्जगत की यात्रा का ज्ञान विज्ञान- - अभ्यास की सफलता हेतु कुछ अनिवार्य शर्तें
    • कृति हमेशा के लिए अमर बना गई(kahani)
    • गुरुगीता-12 - शिवभाव से करें नित्य सद्गुरु का ध्यान
    • स्वामी रामतीर्थ (kahani)
    • परमवंदनीया माताजी की मातृवाणी - गुरु को वरण करके तो देखिए
    • Kahani
    • युगागीता- 45 - योगेश्वर का प्रकाश स्तंभ बनने हेतु भावभरा आमंत्रण
    • VigyapanSuchana
    • चेतना की शिखर यात्रा-17 - सिद्धि के मार्ग पर संकल्प-1
    • Quotation
    • गुरुकथामृत-54 - सदगुरु के सदकै करूं, दिल अपनी का साछ
    • VigyapanSuchana
    • केंद्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें- - क्या हो रहा है इन दिनों गायत्री परिवार में
    • अपनों से अपनी बात - कलातंत्र को परिष्कृत कर अब नई दिशा देनी है।
    • शिष्य की अभिव्यक्ति
    • शिष्य की अभिव्यक्ति (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • स्मरण और समर्पण
    • व्यक्तित्व-गठन के छह महत्वपूर्ण चरण
    • प्रयासों में सहायता मिली (kahani)
    • ध्यानं निर्विषयं मनः
    • बुद्धि नहीं, सद्बुद्धि को महत्व मिले
    • महामानव बना देता है (kahani)
    • अकर्मण्यता - एक विष
    • रामकृष्ण परमहंस (Kahani)
    • आत्मोत्कर्ष हेतु तपश्चर्या के दो पक्ष
    • दोष का भागीदार (kahani)
    • आवश्यकता है प्रेम के परिष्कार एवं सुख के आध्यात्मीकरण की
    • सतत दान देता रहा (kahani)
    • इनसान बस अपने को जान ले
    • लक्ष्य से भ्रष्ट (kahani)
    • प्रभु! जड़-चेतन में, रोम-रोम में शाँति दीजिए
    • Quotation
    • गलत प्रव्रज्या में शरण दुःखदाय है
    • कागावा देश का गाँधी (kahani)
    • भारत का इतिहास, महाकाल का प्रसाद है - गंगा
    • बड़ी जिम्मेदारिया (kahani)
    • VigyapanSuchana
    • मिली समय-प्रबंधन की सीख
    • पवित्र, उच्च विचारों से आप्लावित उपनिषदों का ज्ञान
    • प्रभु की भूख (kahani)
    • हम अपने भाव में शाँत हो भर जाएं
    • Quotation
    • आयुर्वेद-5 - प्रदर रोग निवारण हेतु यज्ञोपचार प्रक्रिया
    • स्वार्थ से ऊपर उठकर पारिवारिक उत्तरदायित्व (kahani)
    • समर्पण, विसर्जन, विलय का महापर्व
    • वृक्ष उद्बोधन से पथिक का समाधान (kahani)
    • गुरु पूर्णिमा (13 जुलाई, 2003)- - विशेष-जनम-जनम के साक्षी व साथी हैं हमारे गुरुदेव
    • श्रम के देवता की आराधना (kahani)
    • शिष्य संजीवनी-1 - समर्पित दृढ़ता से आरंभ होती है यह साधना
    • महाकवि माघ की उदारता (kahani)
    • अंतर्जगत की यात्रा का ज्ञान विज्ञान- - अभ्यास की सफलता हेतु कुछ अनिवार्य शर्तें
    • कृति हमेशा के लिए अमर बना गई(kahani)
    • गुरुगीता-12 - शिवभाव से करें नित्य सद्गुरु का ध्यान
    • स्वामी रामतीर्थ (kahani)
    • परमवंदनीया माताजी की मातृवाणी - गुरु को वरण करके तो देखिए
    • Kahani
    • युगागीता- 45 - योगेश्वर का प्रकाश स्तंभ बनने हेतु भावभरा आमंत्रण
    • VigyapanSuchana
    • चेतना की शिखर यात्रा-17 - सिद्धि के मार्ग पर संकल्प-1
    • Quotation
    • गुरुकथामृत-54 - सदगुरु के सदकै करूं, दिल अपनी का साछ
    • VigyapanSuchana
    • केंद्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें- - क्या हो रहा है इन दिनों गायत्री परिवार में
    • अपनों से अपनी बात - कलातंत्र को परिष्कृत कर अब नई दिशा देनी है।
    • शिष्य की अभिव्यक्ति
    • शिष्य की अभिव्यक्ति (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2003 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


गुरुकथामृत-54 - सदगुरु के सदकै करूं, दिल अपनी का साछ

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 44 46 Last
गुरुपूर्णिमा पर गुरुसत्ता के बहुआयामी रूपों का चिंतन सहज ही होने लगता है। कितने विलक्षण व निराले रूप हैं। उनके। हर क्षेत्र में तरह-तरह का मार्गदर्शन उनका हमारे लिए उपलब्ध है। सत्तर खंडों का वाङ्मय तो उपलब्ध है ही, उनके हाथ से लिखी, उनकी हस्तलिपि में उपलब्ध चिट्ठियाँ भी कम नहीं हैं। व्यक्तिगत जीवन की सभी परेशानियों से लेकर समष्टिगत सभी तरह की गतिविधियों में, जिनमें मनुष्य उलझता रहता है, उनका मार्गदर्शन हम हस्तगत कर सकते हैं। उनने स्वयं के लिए कभी कुछ नहीं चाहा। जीवनभर एक ब्राह्मण की तरह, सही अर्थों में जुलाहे कबीर की तरह जीवन जीते रहे, पर सभी को सब तरह की बातें बताते चले गए। किसी को समृद्धि की राह दिखाई तो किसी को राजनीति का क-ख-ग सिखाया। किसी को समाज का दर्द समझाकर समाज के लिए कुछ करने हेतु प्रेरित किया तो किसी को मन की व्यथा बताकर उसे जीवनभर के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देने हेतु टीस दे दी। जहाँ तक उनका प्रश्न है, वे तो कबीर की इन साखियों की कसौटी पर सही उतरते हैं-

खाँड़ चिरौंजी मन नहिं भावे, साई तेरा टुकड़ा कबूल। साल दुसाला मन नहिं भावै, साई तेरी गुदरी कबूल॥

जीवन किसी से कुछ नहीं माँगा, अपना अंतरंग उसके समक्ष खोलकर रख दिया एवं जिससे प्यार बढ़ाया उसको फिर उँगली पकड़कर चलना भी सिखाया। सबसे विलक्षण बात है-उनका तत्कालीन समाज में इतना प्रगतिशील चिंतन, जो आज कहीं दीखता नहीं। सुधारक स्तर पर वे आगे बढ़कर कार्य करते दिखाई देते हैं एवं सही मायने में युग निर्माण योजना के सूत्रधार बने दिखाई देते हैं। समय-समय पर दिए पत्रों में वे 6-3-65 को लिखते हैं-

विवाहों के नाम पर होने वाले अनाचार, हिंदू जाति के लिए कलंक हैं। इस संबंध में हमें बड़ी जलन रहती है। सो कुछ करने के लिए हाथ पैरों फेंक भी रहे हैं। आप चि पुष्पा के लिए रूढ़िवादी लोगों से बचने का प्रयत्न करें, ताकि फतेहपुर वालों जैसी जड़ता से दुबारा पाला न पड़े। इस संबंध में हमें कुछ अधिक प्रयत्न करना होगा। जून में एक सम्मेलन इसी उद्देश्य के लिए हम बुला भी रहे हैं। हो सके तो आप आने का प्रयत्न करें, ताकि कुछ ठोस कदम उठाने की पहल की जा सकें।

हिंदू जाति के नेग, दहेज, लड़की वाले पर तरह-तरह की आँतें, इन सबसे गुरुदेव चिंतित हैं एवं वे कुछ क्राँतिकारी कदम उठाने की बात कहते हैं। उठाए भी गए। प्रगतिशील जातीय सम्मेलनों के माध्यम से अगणित आदर्श विवाह संपन्न कराए गए। प्रायः डेढ़ लाख से अधिक आदर्श परिणय गायत्री परिवार द्वारा अब तक कराए जा चुके हैं। क्या यह अपने आप में परिवार-निर्माण की एक क्राँति नहीं है? आने वाले दिनों समाजशास्त्री जब इस पक्ष का शोध करेंगे तो अगणित उपलब्धियाँ पाएँगे।

हमारे पत्र पाने वाले सज्जन दुविधा में थे। बच्ची के लिए लड़का तलाश कर रहे थे। पूछा, आगे पढ़ाएँ कि नहीं। ज्यादा पढ़-लिख गई तो लड़का कहाँ से मिलेगा! सहशिक्षा हुई तो और आफत। पूज्यवर उन्हें समाधान देते है, “एम एससी कराने में कोई हर्ज नहीं। सहशिक्षा ऐसा भूत नहीं है, जैसा कि लोगों ने समझ रखा है। यदि एम एससी की आवश्यकता अनुभव करें तो उसे इसलिए नहीं रोकना चाहिए कि सहशिक्षा खराब है।”

यह पत्र 28-66 को शिष्डडडड को लिख गया था। आज भी यह 18-11 वर्ष की बच्ची के लिए वर ढूंढ़ने वालों के लिए मार्गदर्शक है। बड़े चिंतित नजर आते हैं परिजन अपने बच्चों के लिए- क्या होगा, कैसे होगा, कहाँ से वर मिलेगा! परमपूज्य गुरुदेव तो इतने क्राँतिकारी चिंतन वाले थे कि वे गायत्री परिवार के उनसे जुड़े हर परिजन को एक ही जाति-ब्राह्मण कुल का मानते थे एवं इस सिद्धाँत के पोषक थे कि गायत्री परिवार के परिजनों को आपस में एक−दूसरे के बिना जन्म-जाति देखे, संस्कारों के आधार पर विवाह संबंध स्थापित करने चाहिए। हम ही ठिठक गए। हम कहाँ क्राँतिकारी हो पाए? यदि दस प्रतिशत भी उनकी मान ली होती तो आज अविवाहित कन्याओं की समस्याएँ इस तरह मुँहबाये खड़ी दिखाई नहीं देतीं।

राजनीति पर भी पूज्यवर के विचार पढ़ने योग्य है, विशेषकर आज की परिस्थिति के परिप्रेक्ष्य में। वैसे तो हम उनका चिंतन आजादी के बाद का भी इस लेख शृंखला के अंतर्गत दे चुके हैं, पर स्पष्ट चिंतन वाले गुरुदेव 1-2-67 को एक सज्जन को बेबाक शब्दों में लिखते है, “राजनीति आजकल बहुत महत्व एवं वर्चस्व प्राप्त कर चुकी है। उसमें समाज के निर्माण एवं विकास की एक बहुत बड़ी क्षमता सन्निहित हो गई है। इसलिए उसकी दिशा के सही-गलत होने का प्रभाव भी बहुत पड़ता है। आप लोग राजनीति को सही दिशा में अग्रसर करने के लिए जो प्रयास कर रहें है, उसमें सफलता मिले, इसकी प्रार्थना करते रहते हैं।

यही नहीं एक सज्जन को वे चेतावनी भी दे देते हैं व उनका कर्त्तव्य क्या है, स्पष्ट यह लिख भी देते हैं। मसला वही राजनीति का है। पत्र 6-7-57 का लिखा हुआ है।

“हमारे आत्मस्वरूप,

पत्र मिला। भोपाल में आपकी इन दिनों चल रहीं गतिविधियों के बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त हुई। वहाँ यदि उपयोगिता है तो ही ठहरना चाहिए। केवल हाथ उठाने और ऊँघते हुए दूसरों की बकवास सुनते रहने के लिए वक्त बरबाद करना बेकार है। इसकी अपेक्षा तो अपने क्षेत्र में कुछ काम करना ही ठीक है।”

कितनी सटीक बेबाक समीक्षा है 1957 की विधानसभाओं की। वही तो सब अभी भी चला आ रहा है। विधायिका से लेकर संसद तक सब यथावत् है। प्रजा के विकास के कार्य या उन पर चर्चा कहाँ चल रही है। दूरदर्शन पर देख लीजिए, किसी महत्वपूर्ण चर्चा में चालीस से अधिक साँसद मौजूद नहीं। जो हैं, वे मानसिक रूप से वहाँ कितने हैं, यह भी विचारणीय है। इसे पूज्यवर वक्त बरबाद करना कहते हैं एवं अपने क्षेत्र में जनजाग्रति के कार्य चलाने की प्रेरणा देते हैं पूज्यवर गुरुदेव की अक्टूबर 1970 में लिखी प्रेरक संपादकीय पंक्तियाँ ‘हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते’ उन सभी पाठकों को अवश्य पढ़नी चाहिए, जिनमें यदा-कदा राजनीति के मैदान में कूद पड़ने चाहिए, जिनमें यदा-कदा राजनीति के मैदान में कूद पड़ने का भूत जागता रहता है एवं वे हाथ-पैर मारने लगते हैं।

अंत में एक पत्र और। इन्हीं सज्जन को 11-5-57 को पूर्व में लिखे पत्र से कुछ पूर्व गुरुसत्ता ने कुछ और प्रेरणा दी थी। यदि वह हृदयंगम कर ली गई होती तो शायद उनके जीवन की दिशा कुछ और होती। तकलीफ तो यह है न कि हम करते अपने मन की हैं और इसी के लिए सतत गुरुजनों से आशीष माँगते रहते हैं। पूज्यवर लिखते हैं-

“जन सेवामय जीवन ही सच्चा जीवन है। आप आर्थिक गुत्थी को सुलझाकर निर्वाह योग्य आजीविका का कुछ प्रबंध कर लें तो वकालत को छोड़ ही देना चाहिए। सेवापथ पर चलते हुए मनुष्य गरीब रहता है, रहना भी चाहिए। जिनमें संतोष है, वे ही अंत तक निभ पाते हैं। आप सेवामार्ग पर बढ़े। साथ ही सेवक के उपयुक्त गुणों को भी दिन-दिन अधिक मात्रा में उत्पन्न करते चलें।

आप सम्मेलन के अवसर पर मथुरा आ ही रहे हैं। विभिन्न विषयों पर यहाँ आवश्यक बातें कर लेंगे। आपकी अंतरात्मा जिस दिशा में चलनी चाहिए, उस मार्ग में आने वाली संभावित कठिनाइयों को सरल बनाने के लिए हम बराबर प्रयत्न करते रहेंगे। आप चिंता न करें। माता की गोद में अपने को सौंपकर आप भी निश्चिंत रह सकते हैं। मानवता की सेवा करने के लिए, आप आवश्यक तपश्चर्या के लिए, अपने को तैयार कर रहे हैं। यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता होती है।”

पाठक ध्यान से सभी पत्र पढ़ें एवं गुरुपर्व पर गुरुसत्ता के मार्गदर्शन के मर्म को समझें। समाज-निमार्ण से लेकर राजनीति तक के हार पहलू पर, विवाह संस्था से जुड़े दायित्वों से लेकर जनसेवा के बहुआयामी स्वरूपों पर उनका चिंतन पठनीय है। हम सभी साधक स्तर के शिष्य हैं तो इन पंक्तियों में अपने लिए उपयोगी मार्गदर्शन पा सकते है। हमारी गुरुसत्ता सही मायने में कबीर समान थी। उनका जीवन व अपनी गुरुसत्ता का जीवन बहुत साम्य रखता है। यदि हम अपना समर्पण और अधिक सशक्त और मजबूत करना चाहते है तो कबीर साहब की एक साखी से कुछ प्रेरणा ले सकते है एवं इन वचनों को दोहरा सकते हैं-

सदगुरु के सदकै करुँ, दिल अपनी का साछ। कलियुग हमस्यूँ लड़ि पड्या, मुहकम मेरा बाछ॥

सदकै अर्थात् निछावर, साछ माने साक्षी, मुहकम अर्थात् दृढ़ एवं बाछ अर्थात् आकाँक्षा। अर्थ हुआ, “मैं सच्चे हृदय से सद्गुरु के प्रति अपने को निछावर करता है। सद्गुरु की कृपा और उनके प्रति मेरा समर्पण देख कलियुग (विषय-वासनाएँ) मुझसे लड़ने लगा। मैं दृढ़ इच्छा वाला हूँ। मुझे कोई विचलित नहीं कर सकता। कोई उनसे अलग नहीं कर सकता।

First 44 46 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • स्मरण और समर्पण
  • व्यक्तित्व-गठन के छह महत्वपूर्ण चरण
  • प्रयासों में सहायता मिली (kahani)
  • ध्यानं निर्विषयं मनः
  • बुद्धि नहीं, सद्बुद्धि को महत्व मिले
  • महामानव बना देता है (kahani)
  • अकर्मण्यता - एक विष
  • रामकृष्ण परमहंस (Kahani)
  • आत्मोत्कर्ष हेतु तपश्चर्या के दो पक्ष
  • दोष का भागीदार (kahani)
  • आवश्यकता है प्रेम के परिष्कार एवं सुख के आध्यात्मीकरण की
  • सतत दान देता रहा (kahani)
  • इनसान बस अपने को जान ले
  • लक्ष्य से भ्रष्ट (kahani)
  • प्रभु! जड़-चेतन में, रोम-रोम में शाँति दीजिए
  • Quotation
  • गलत प्रव्रज्या में शरण दुःखदाय है
  • कागावा देश का गाँधी (kahani)
  • भारत का इतिहास, महाकाल का प्रसाद है - गंगा
  • बड़ी जिम्मेदारिया (kahani)
  • VigyapanSuchana
  • मिली समय-प्रबंधन की सीख
  • पवित्र, उच्च विचारों से आप्लावित उपनिषदों का ज्ञान
  • प्रभु की भूख (kahani)
  • हम अपने भाव में शाँत हो भर जाएं
  • Quotation
  • आयुर्वेद-5 - प्रदर रोग निवारण हेतु यज्ञोपचार प्रक्रिया
  • स्वार्थ से ऊपर उठकर पारिवारिक उत्तरदायित्व (kahani)
  • समर्पण, विसर्जन, विलय का महापर्व
  • वृक्ष उद्बोधन से पथिक का समाधान (kahani)
  • गुरु पूर्णिमा (13 जुलाई, 2003)- - विशेष-जनम-जनम के साक्षी व साथी हैं हमारे गुरुदेव
  • श्रम के देवता की आराधना (kahani)
  • शिष्य संजीवनी-1 - समर्पित दृढ़ता से आरंभ होती है यह साधना
  • महाकवि माघ की उदारता (kahani)
  • अंतर्जगत की यात्रा का ज्ञान विज्ञान- - अभ्यास की सफलता हेतु कुछ अनिवार्य शर्तें
  • कृति हमेशा के लिए अमर बना गई(kahani)
  • गुरुगीता-12 - शिवभाव से करें नित्य सद्गुरु का ध्यान
  • स्वामी रामतीर्थ (kahani)
  • परमवंदनीया माताजी की मातृवाणी - गुरु को वरण करके तो देखिए
  • Kahani
  • युगागीता- 45 - योगेश्वर का प्रकाश स्तंभ बनने हेतु भावभरा आमंत्रण
  • VigyapanSuchana
  • चेतना की शिखर यात्रा-17 - सिद्धि के मार्ग पर संकल्प-1
  • Quotation
  • गुरुकथामृत-54 - सदगुरु के सदकै करूं, दिल अपनी का साछ
  • VigyapanSuchana
  • केंद्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें- - क्या हो रहा है इन दिनों गायत्री परिवार में
  • अपनों से अपनी बात - कलातंत्र को परिष्कृत कर अब नई दिशा देनी है।
  • शिष्य की अभिव्यक्ति
  • शिष्य की अभिव्यक्ति (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj