
हम अपने भाव में शाँत हो भर जाएं
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डूबती साँझ के साथ गेलीली झील में यह नौका भी डूबती-डूबती हो रही थी। झील में तूफान से झील का पानी, पानी में तैर रही नाव ही नहीं, नाव में सवार यात्रियों के कलेजे भी काँप रहे थे। बचाव का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था। माझियों में भी घबड़ाहट थी। तूफान के थपेड़े प्राणों को झकझोर रहे थे। पानी की लहरें नाव के यात्रियों को भिगोती हुई अन्दर भर रही थी। किनारे अभी काफी दूर थे। परेशानी और चिन्ता में सभी सहमे हुए थे- सिवा उस एक के, जो अभी नाव के एक कोने में बड़ी ही निश्चिंतता से सोया हुआ था। उसके मुख पर असीम शान्ति विराज रही थी।
उसके साथियों ने उसे जगाया। इन जगाने वालों की आँखों में आसन्न मृत्यु की छाया थी। मौत का खौफ उन सभी की आँखों में साफ-साफ नजर आ रहा था। उसने जागकर इन सभी से पूछा, आप सभी इतने डरे हुए क्यों है? इतने भयभीत होने की क्या बात है? उसके इस सवाल ने नाव के अन्य यात्रियों को चकित कर दिया। सभी को उसके प्रश्नों पर भारी अचरज हुआ। यकायक किसी से कुछ कहते न बना। उसने दुबारा पूछा, क्या आप सबको अपने आप पर बिल्कुल भी आस्था नहीं है?
सभी को भयावह सन्नाटे में समाया देख कर वह बड़े धीरे से उठा और निश्चिन्त कदमों से नाव के एक किनारे पर गया। नाव पर तूफान आखिरी चोटें कर रहा था। उसने विक्षुब्ध हो गयी झील को देखते हुए कहा, पीस, बी स्टिल- शान्ति, शान्त हो जाओ। उसके कहने का भाव कुछ ऐसा था, जैसे कि तूफान कोई नटखट बच्चा हो। और उसने बड़ी ही आसानी से समझा दिया हो- शान्त हो जाओ।
नाव के यात्रियों ने उसके इस कथन को महज पागलपन से ज्यादा कुछ नहीं समझा। पर आश्चर्य! महाआश्चर्य!! देखते ही देखते तूफान एकदम शान्त हो गया और झील इस तरह शान्त हो गयी, जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो। उस व्यक्ति की बात मान ली गयी। अब तो नाव के सभी लोगों ने उसे घेर लिया, और कहने लगे, आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ यीशु।
ईसा मसीह मधुर मुस्कान के साथ बोले, यह बाहर का तूफान तो कुछ भी नहीं है। हम सभी के मन इससे भी कहीं ज्यादा तूफानी अशान्ति से घिरे हैं। हमारे चित्त की झील इस झील से कहीं ज्यादा विक्षुब्ध है। इसमें हमारी जीवन नौका पल-पल डूबती नजर आती है। और हम सब की आँखों में कहीं न कहीं मौत की छाया भी मँडराती रहती है।
ऐसे में क्या यह ठीक नहीं है कि हम अपने आप से पूछें, इतने भयभीत क्यों हो? क्या स्वयं पर हमारी बिल्कुल भी आस्था नहीं है। यदि है तो फिर अपने भीतर की झील पर जाकर कहें- शान्ति, शान्त हो जाओ। थोड़ा ठहर कर ईसा बोले, मैंने ऐसा करके देखा है, और पाया है कि आलस्य का अर्थ है समय की बरबादी। जो समय बरबाद करता है, समझना चाहिए कि वह अपने भाग्य को अपने हाथों फोड़ता है, प्रगति का द्वार अपने हाथों बंद करता है और दुर्गति को आग्रहपूर्वक न्योत बुलाता है।
तूफान शान्त हो जाता है। केवल शान्ति के गहरे भाव में डूबने, समाने की बात है। और शान्ति आ जाती है। अपने भाव में हम अशान्त हैं और अपने भाव में हम शान्त भी हो सकते हैं। इसके लिए किसी कठिन अभ्यास की जरूरत नहीं है। बस सद्भाव ही काफी है।
शान्ति तो हमारी अन्तरात्मा का स्वरूप है। घनी अशान्ति के बीच एक केन्द्र पर हम शान्त हैं। इस केन्द्र पर स्थित हो जाने के बाद हम तूफान के बीच भी शान्त रह सकते हैं। अशान्ति तभी तक है, जब तक हम इस केन्द्र से दूर हैं। इस पर स्थित होकर हम न केवल अपनी आन्तरिक शान्ति खोज सकते हैं, बल्कि बाहर भी मन चाही शान्ति पा सकते हैं।
ईसा मसीह की बातें चकित करने वाली थी, पर उनमें सत्य की गहराई थी। वह कह रहे थे- शान्त होना चाहते हो तो इसी क्षण, अभी और यहीं शान्त हो जाओ। अभ्यास भविष्य में फल लाता है, सद्भाव वर्तमान में ही परिणाम देता है। उनकी इन बातों ने नाव के सभी यात्रियों को अद्भुत शान्ति में निमग्न कर दिया।