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Books - गायत्री महाविज्ञान

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गायत्री महाविज्ञान भाग ३

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प्रकाशकीय

गायत्री महामन्त्र को देश एवं विदेश के अध्ययनकर्त्ताओं ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली मन्त्र कहा है। इसकी शक्ति का प्रत्यक्ष- परोक्ष अनुभव करने वाले सन्तों, ऋषियों ने इसे अमृत, कल्पवृक्ष, कामधेनु और ब्रह्मास्त्र जैसी अद्भुत क्षमताओं से सम्पन्न कहा है। ज्ञान को संसार की सर्वश्रेष्ठ विभूति कहा गया है। विश्व के सनातन और श्रेष्ठतम ज्ञान को ‘वेद’ की संज्ञा दी गई है, तो गायत्री को वेदमाता कहकर सम्मानित प्रभाव तत्काल किया गया है। इसे ज्ञान, भक्ति एवं कर्म की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाली त्रिवेणी- त्रिपदा भी कहा गया है।

उक्त सब विशेषताओं के होते हुए भी पिछले कई हजार वर्षों से गायत्री को वर्ग विशेष के लिए प्रतिबन्धित, सीमित कर दिया गया था। गायत्री विद्या प्रायः लुप्त स्थिति में पहुँच गयी थी। ऐसे समय में युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गायत्री महाविद्या का एक तरह से पुनः उद्धार किया। प्रचण्ड तप साधना द्वारा उसके रहस्यों को खोजा, उनका प्रत्यक्ष अनुभव किया तथा गायत्री विद्या को जन- जन के लिए सुलभ बना दिया। शोधकर्त्ताओं ने उन्हें इस युग के वसिष्ठ एवं विश्वामित्र की उपाधि से सम्मानित किया।


गायत्री के ज्ञान- विज्ञान को जन- जन तक पहुँचाने के लिए उन्होंने ‘गायत्री महाविज्ञान’ तीन भागों में रचा। तमाम धर्मगुरुओं द्वारा उनके इस प्रयास का विरोध किया गया, किन्तु ब्रह्मवर्चस् प्रभाव तत्काल सम्पन्न उस तपस्वी ऋषि के सामने किसी की कुछ नहीं चली। युगऋषि ने सन् १९५८ में यह घोषणा स्पष्ट रूप से कर दी कि कोई कितना भी विरोध करे, एक दिन सारी दुनिया के लोग गायत्री मन्त्र का प्रयोग करेंगे।

उनका यह कथन आज अक्षरशः सत्य होता दिख रहा है। ऋषि चेतना के प्रभाव से दर्जनों कम्पनियों ने गायत्री मन्त्र के कैसेट, सी. डी. आदि विभिन्न रूपों में जारी कर दिये हैं। दर्जनों टी. वी. चैनल्स तथा इण्टरनेट की वेबसाइटों पर गायत्री महामन्त्र के प्रति उमड़ता जन- उत्साह देखा जा सकता है। लगभग प्रभाव तत्काल सभी धार्मिक संगठनों के मूर्धन्यों ने अपने अनुयायियों से गायत्री मन्त्र का प्रयोग करने की अपील की है।

जब जन- जन में गायत्री महामन्त्र और गायत्री महाविद्या के प्रति उत्साह उभरा है, तो उन तक इस विद्या का ज्ञान- विज्ञान भी पहुँचाया जाना जरूरी समझा गया। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गायत्री महाविज्ञान के तीनों भागों के सर्वोपयोगी अंशों को संकलित करके इस ग्रन्थ का प्रकाशन किया गया है।

युगऋषि ने गायत्री महामन्त्र को सार्वभौम कहा है। इसमें ईश्वर का कोई नाम और प्रत्यक्ष रूप नहीं है। ‘तत्’ (वह) सर्वनाम से उसे सम्बोधित किया गया है तथा उसे आदर्श गुणों व शक्तियों के रूप में पहचानने एवं धारण करने की बात कही गई है। इसलिए किसी भी नाम और रूप से परमात्मा को याद करने वाले श्रद्धालु इस मन्त्र का प्रयोग बिना झिझक के कर सकते हैं। वर्तमान समय में जितने भी धर्म- सम्प्रदाय प्रचलित हैं, वे अधिक से अधिक २५०० वर्ष पहले ही विकसित हुए हैं। वेद मन्त्र, गायत्री मन्त्र विश्व के शोधकर्त्ताओं द्वारा कम से कम ५००० वर्ष पुराना मान लिया गया है। स्पष्ट है कि यह मनुष्य मात्र को लक्ष्य करके ही रचा गया है।

युगऋषि ने गायत्री महाविज्ञान को जिस गरिमा के साथ प्रस्तुत किया है, इसे दिव्य शक्तिधाराओं के सुनियोजन का महाविज्ञान (The Graeatness Sciense of managging the Devine energy )  भी कहा जा सकता है। विश्वास किया जाता है कि इस प्रकाशन के द्वारा विचारशीलों, श्रद्धालु साधकों तक गायत्री के ज्ञान- विज्ञान का प्रामाणिक स्वरूप पहुँचाया जा सकेगा और उन्हें इसका समुचित लाभ प्राप्त करने के लिए समुचित मार्गदर्शन प्राप्त हो सकेगा। कोई विशेष जिज्ञासा उभरे, तो उसके लिए व्यवस्थापक, शान्तिकुञ्ज- हरिद्वार, गायत्री तपोभूमि- मथुरा एवं अखण्ड ज्योति संस्थान- मथुरा से सम्पर्क किया जा सकता है।

— प्रकाशक
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