• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • गायत्री महाविज्ञान भाग १
    • गायत्री महाविज्ञान भाग ३
    • गायत्री महाविज्ञान भाग २
    • गायत्री द्वारा कुण्डलिनी जागरण
    • वेदमाता गायत्री की उत्पत्ति
    • ब्रह्म की स्फुरणा से गायत्री का प्रादुर्भाव
    • गायत्री सूक्ष्म शक्तियों का स्रोत है
    • गायत्री साधना से शक्तिकोशों का उद्भव
    • शरीर में गायत्री मंत्र के अक्षर
    • गायत्री और ब्रह्म की एकता
    • महापुरुषों द्वारा गायत्री महिमा का गान
    • त्रिविध दु:खों का निवारण
    • गायत्री उपेक्षा की भर्त्सना
    • गायत्री साधना से श्री समृद्धि और सफलता
    • गायत्री साधना से आपत्तियों का निवारण
    • जीवन का कायाकल्प
    • नारियों को वेद एवं गायत्री का अधिकार
    • देवियों की गायत्री साधना
    • गायत्री का शाप विमोचन और उत्कीलन का रहस्य
    • गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा यज्ञोपवीत (जनेऊ)
    • साधकों के लिये उपवीत आवश्यक है
    • गायत्री साधना का उद्देश्य
    • निष्काम साधना का तत्त्व ज्ञान
    • गायत्री से यज्ञ का सम्बन्ध
    • साधना- एकाग्रता और स्थिर चित्त से होनी चाहिए
    • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
    • आत्मशक्ति का अकूत भण्डार :: अनुष्ठान
    • सदैव शुभ गायत्री यज्ञ
    • महिलाओं के लिये विशेष साधनाएँ
    • एक वर्ष की उद्यापन साधना
    • गायत्री साधना से अनेकों प्रयोजनों की सिद्धि
    • गायत्री का अर्थ चिन्तन
    • साधकों के स्वप्न निरर्थक नहीं होते
    • साधना की सफलता के लक्षण
    • सिद्धियों का दुरुपयोग न होना चाहिये
    • यह दिव्य प्रसाद औरों को भी बाँटिये
    • गायत्री महाविज्ञान भाग ३ भूमिका
    • गायत्री के पाँच मुख
    • अनन्त आनन्द की साधना
    • गायत्री मञ्जरी
    • उपवास - अन्नमय कोश की साधना
    • आसन - अन्नमय कोश की साधना
    • तत्त्व शुद्धि - अन्नमय कोश की साधना
    • तपश्चर्या - अन्नमय कोश की साधना
    • अन्नमय कोश और उसकी साधना
    • मनोमय कोश की साधना
    • ध्यान - मनोमय कोश की साधना
    • त्राटक - मनोमय कोश की साधना
    • जप - मनोमय कोश की साधना
    • तन्मात्रा साधना - मनोमय कोश की साधना
    • विज्ञानमय कोश की साधना
    • सोऽहं साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
    • आत्मानुभूति योग - विज्ञानमय कोश की साधना
    • आत्मचिन्तन की साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
    • स्वर योग - विज्ञानमय कोश की साधना
    • वायु साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
    • ग्रन्थि-भेद - विज्ञानमय कोश की साधना
    • आनन्दमय कोश की साधना
    • नाद साधना - आनन्दमय कोश की साधना
    • बिन्दु साधना - आनन्दमय कोश की साधना
    • कला साधना - आनन्दमय कोश की साधना
    • तुरीयावस्था - आनन्दमय कोश की साधना
    • पंचकोशी साधना का ज्ञातव्य
    • गायत्री-साधना निष्फल नहीं जाती
    • पञ्चमुखी साधना का उद्देश्य
    • गायत्री का तन्त्रोक्त वाम-मार्ग
    • गायत्री की गुरु दीक्षा
    • आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • मन्त्र दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • अग्नि दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • ब्रह्म दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • कल्याण मन्दिर का प्रवेश द्वार - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • ब्रह्मदीक्षा की दक्षिणा आत्मदान - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • वर्तमानकालीन कठिनाइयाँ - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • गायत्री महाविज्ञान भाग १
    • गायत्री महाविज्ञान भाग ३
    • गायत्री महाविज्ञान भाग २
    • गायत्री द्वारा कुण्डलिनी जागरण
    • वेदमाता गायत्री की उत्पत्ति
    • ब्रह्म की स्फुरणा से गायत्री का प्रादुर्भाव
    • गायत्री सूक्ष्म शक्तियों का स्रोत है
    • गायत्री साधना से शक्तिकोशों का उद्भव
    • शरीर में गायत्री मंत्र के अक्षर
    • गायत्री और ब्रह्म की एकता
    • महापुरुषों द्वारा गायत्री महिमा का गान
    • त्रिविध दु:खों का निवारण
    • गायत्री उपेक्षा की भर्त्सना
    • गायत्री साधना से श्री समृद्धि और सफलता
    • गायत्री साधना से आपत्तियों का निवारण
    • जीवन का कायाकल्प
    • नारियों को वेद एवं गायत्री का अधिकार
    • देवियों की गायत्री साधना
    • गायत्री का शाप विमोचन और उत्कीलन का रहस्य
    • गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा यज्ञोपवीत (जनेऊ)
    • साधकों के लिये उपवीत आवश्यक है
    • गायत्री साधना का उद्देश्य
    • निष्काम साधना का तत्त्व ज्ञान
    • गायत्री से यज्ञ का सम्बन्ध
    • साधना- एकाग्रता और स्थिर चित्त से होनी चाहिए
    • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
    • आत्मशक्ति का अकूत भण्डार :: अनुष्ठान
    • सदैव शुभ गायत्री यज्ञ
    • महिलाओं के लिये विशेष साधनाएँ
    • एक वर्ष की उद्यापन साधना
    • गायत्री साधना से अनेकों प्रयोजनों की सिद्धि
    • गायत्री का अर्थ चिन्तन
    • साधकों के स्वप्न निरर्थक नहीं होते
    • साधना की सफलता के लक्षण
    • सिद्धियों का दुरुपयोग न होना चाहिये
    • यह दिव्य प्रसाद औरों को भी बाँटिये
    • गायत्री महाविज्ञान भाग ३ भूमिका
    • गायत्री के पाँच मुख
    • अनन्त आनन्द की साधना
    • गायत्री मञ्जरी
    • उपवास - अन्नमय कोश की साधना
    • आसन - अन्नमय कोश की साधना
    • तत्त्व शुद्धि - अन्नमय कोश की साधना
    • तपश्चर्या - अन्नमय कोश की साधना
    • अन्नमय कोश और उसकी साधना
    • मनोमय कोश की साधना
    • ध्यान - मनोमय कोश की साधना
    • त्राटक - मनोमय कोश की साधना
    • जप - मनोमय कोश की साधना
    • तन्मात्रा साधना - मनोमय कोश की साधना
    • विज्ञानमय कोश की साधना
    • सोऽहं साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
    • आत्मानुभूति योग - विज्ञानमय कोश की साधना
    • आत्मचिन्तन की साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
    • स्वर योग - विज्ञानमय कोश की साधना
    • वायु साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
    • ग्रन्थि-भेद - विज्ञानमय कोश की साधना
    • आनन्दमय कोश की साधना
    • नाद साधना - आनन्दमय कोश की साधना
    • बिन्दु साधना - आनन्दमय कोश की साधना
    • कला साधना - आनन्दमय कोश की साधना
    • तुरीयावस्था - आनन्दमय कोश की साधना
    • पंचकोशी साधना का ज्ञातव्य
    • गायत्री-साधना निष्फल नहीं जाती
    • पञ्चमुखी साधना का उद्देश्य
    • गायत्री का तन्त्रोक्त वाम-मार्ग
    • गायत्री की गुरु दीक्षा
    • आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • मन्त्र दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • अग्नि दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • ब्रह्म दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • कल्याण मन्दिर का प्रवेश द्वार - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • ब्रह्मदीक्षा की दक्षिणा आत्मदान - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
    • वर्तमानकालीन कठिनाइयाँ - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - गायत्री महाविज्ञान

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT TEXT SCAN TEXT


गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा यज्ञोपवीत (जनेऊ)

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 16 18 Last
यज्ञोपवीत को ‘ब्रह्मसूत्र’ भी कहा जा सकता है। सूत्र डोरे को भी कहते हैं और उस संक्षिप्त शब्द- रचना को भी जिसका अर्थ बहुत विस्तृत होता है। व्याकरण, दर्शन, धर्म, कर्मकाण्ड आदि के अनेकों ग्रन्थ ऐसे हैं, जिनमें ग्रन्थकर्ताओं ने अपने मन्तव्यों को बहुत ही संक्षिप्त संस्कृत वाक्यों में सन्निहित कर दिया है। उन सूत्रों पर लम्बी वृत्तियाँ, टिप्पणियाँ तथा टीकाएँ हुई हैं, जिनके द्वारा उन सूत्रों में छिपे हुए अर्थों का विस्तार होता है। ब्रह्मसूत्र में यद्यपि अक्षर नहीं हैं, तो भी संकेतों से बहुत कुछ बताया गया है। मूर्तियाँ, चिह्न, चित्र, अवशेष आदि के आधार पर बड़ी- बड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। यद्यपि इनमें अक्षर नहीं होते, तो भी बहुत कुछ प्रकट हो जाता है, भले ही उस इशारे में किसी शब्द- लिपि का प्रयोग नहीं किया जाता है। यज्ञोपवीत के ब्रह्मसूत्र यद्यपि वाणी और लिपि से रहित हैं, तो भी उनमें एक विशद व्याख्यान की अभिभावना भरी हुई है।

गायत्री को गुरुमन्त्र कहा गया है। यज्ञोपवीत धारण करते समय जो वेदारम्भ कराया जाता है, वह गायत्री से कराया जाता है। प्रत्येक द्विज को गायत्री जानना उसी प्रकार अनिवार्य है, जैसे कि यज्ञोपवीत धारण करना। यह गायत्री- यज्ञोपवीत का जोड़ा ऐसा ही है, जैसा लक्ष्मी- नारायण, सीता- राम, राधे- श्याम, प्रकृति- ब्रह्म, गौरी- शंकर, नर- मादा का है। दोनों की सम्मिलित व्यवस्था का नाम ही गृहस्थ है, वैसे ही गायत्री- उपवीत का सम्मिलन ही द्विजत्व है। उपवीत सूत्र है तो गायत्री उसकी व्याख्या है। दोनों की आत्माएँ एक- दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

यज्ञोपवीत में तीन तार हैं, गायत्री में तीन चरण हैं। ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ प्रथम चरण, ‘भर्गोदेवस्य धीमहि’ द्वितीय चरण, ‘धियो यो न: प्रचोदयात्’ तृतीय चरण है। तीनों तारों का क्या तात्पर्य है? इसमें क्या सन्देश निहित है? यह बात समझनी हो तो गायत्री के इन तीन चरणों को भली प्रकार जान लेना चाहिए।
उपवीत में तीन प्रकार की ग्रन्थियाँ और एक ब्रह्मग्रन्थि होती हैं। गायत्री में तीन व्याहृतियाँ (भू: भुव: स्व:) और एक प्रणव  है। गायत्री के प्रारम्भ में ओंकार और भू: भुव: स्व: का जो तात्पर्य है, उसी ओर यज्ञोपवीत की तीन ग्रन्थियाँ संकेत करती हैं। उन्हें समझने वाला जान सकता है कि वह चार गाँठें मनुष्य जाति के लिए क्या क्या सन्देश देती हैं?

यहाँ प्रस्तुत है गायत्री महामन्त्र की प्रतिमा- यज्ञोपवीत, जिसमें ९ शब्द, तीन चरण, सहित तीन व्याहृतियाँ समाहित हैं।

इस महाविज्ञान को सरलतापूर्वक हृदयंगम करने के लिए इसे चार भागों में विभक्त कर सकते हैं। १- प्रणव तथा तीनों व्याहृतियाँ अर्थात् यज्ञोपवीत की चारों ग्रन्थियाँ, २- गायत्री का प्रथम चरण अर्थात् यज्ञोपवीत की प्रथम लड़, ३- द्वितीय चरण अर्थात् द्वितीय लड़, ४- तृतीय चरण अर्थात् तृतीय लड़। आइए, अब इन पर विचार करें।

१. प्रणव का सन्देश यह है- ‘‘परमात्मा सर्वत्र समस्त प्राणियों में समाया हुआ है, इसलिये लोक सेवा के लिये निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए और अपने मन को स्थिर तथा शान्त रखना चाहिए।’’
२. भू: का तत्त्वज्ञान यह है- ‘‘शरीर अस्थायी औजार मात्र है, इसलिये उस पर अत्यधिक आसक्त न होकर आत्मबल बढ़ाने का, श्रेष्ठ मार्ग का, सत्कर्मों का आश्रय ग्रहण करना चाहिये।’’
३. भुव: का तात्पर्य है- ‘‘पापों के विरुद्ध रहने वाला मनुष्य देवत्व को प्राप्त करता है। जो पवित्र आदर्शों और साधनों को अपनाता है, वही बुद्धिमान् है।’’
४. स्व: की प्रतिध्वनि यह है- ‘‘विवेक द्वारा शुुद्ध बुद्धि से सत्य जानने, संयम और त्याग की नीति का आचरण करने के लिये अपने को तथा दूसरों को प्रेरणा देनी चाहिये।’’

यह चतुर्मुख नीति यज्ञोपवीतधारी की होती है। इन सबका सारांश यह है कि उचित मार्ग से अपनी शक्तियों को बढ़ाओ और अन्तःकरण को उदार रखते हुए अपनी शक्तियों का अधिकांश भाग जनहित के लिये लगाये रहो। इसी कल्याणकारी नीति पर चलने से मनुष्य व्यष्टि रूप से तथा समस्त संसार में समष्टि रूप से सुख- शान्ति प्राप्त कर सकता है। यज्ञोपवीत गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा है, उसका जो सन्देश मनुष्य जाति के लिये है, उसके अतिरिक्त और कोई मार्ग ऐसा नहीं, जिसमें वैयक्तिक तथा सामाजिक सुख- शान्ति स्थिर रह सके।

सुरलोक में एक ऐसा कल्पवृक्ष है, जिसके नीचे बैठकर जिस वस्तु की कामना की जाए, वही वस्तु तुरन्त सामने उपस्थित हो जाती है। जो भी इच्छा की जाए तुरन्त पूर्ण हो जाती है। वह कल्पवृक्ष जिनके पास होगा, वे कितने सुखी और सन्तुष्ट होंगे, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।

गायत्री कल्पवृक्ष

पृथ्वी पर भी एक ऐसा कल्पवृक्ष है, जिसमें सुरलोक के कल्पवृक्ष की सभी सम्भावनाएँ छिपी हुई हैं। इसका नाम है- गायत्री। गायत्री मन्त्र को स्थूल दृष्टि से देखा जाए, तो वह २४ अक्षरों और पदों की शब्द- शृंखला मात्र है, परन्तु यदि गम्भीरतापूर्वक अवलोकन किया जाए, तो उसके प्रत्येक पद और अक्षर में ऐसे तत्त्वों का रहस्य छिपा हुआ मिलेगा, जिनके द्वारा कल्पवृक्ष के समान ही समस्त इच्छाओं की पूर्ति हो सकती है।

आगे ‘गायत्री कल्पवृक्ष’ का चित्र दिया हुआ है। इसमें बताया गया है- ऊँ ईश्वर, आस्तिकता ही भारतीय धर्म का मूल है। इससे आगे बढक़र उसके तीन विभाग होते हैं- भू: भुव: स्व:। भू: का अर्थ है- आत्मज्ञान। भुव: का अर्थ है- कर्मयोग। स्व: का तात्पर्य है- स्थिरता, समाधि। इन तीनों शाखाओं में से प्रत्येक में तीन- तीन टहनियाँ निकलती हैं, उनमें से प्रत्येक के भी अपने- अपने तात्पर्य हैं। तत्- जीवन विज्ञान। सवितु:- शक्ति सञ्चय। वरेण्यं- श्रेष्ठता। भर्गो- निर्मलता। देवस्य- दिव्य दृष्टि। धीमहि- सद्गुण। धियो- विवेक। यो न:- संयम। प्रचोदयात्- सेवा। गायत्री हमारी मनोभूमि में इन्हीं को बोती है; फलस्वरूप जो खेत उगता है, वह कल्पवृक्ष से किसी प्रकार कम नहीं होता।

ऐसा उल्लेख मिलता है कि कल्पवृक्ष के सब पत्ते रत्नजटित हैं। वे रत्नों जैसे सुशोभित और बहुमूल्य होते हैं। गायत्री कल्पवृक्ष के उपर्युक्त नौ पत्ते निस्सन्देह नौ रत्नों के समान मूल्यवान् और महत्त्वपूर्ण हैं। प्रत्येक पत्ता, प्रत्येक गुण एक रत्न से किसी प्रकार कम नहीं है। ‘नौलखा हार’ की जेवरों में बहुत प्रशंसा है। नौ लाख रुपये की लागत से बना हुआ ‘नौलखा हार’ पहनने वाले अपने आप को बड़ा भाग्यशाली समझते हैं। यदि गम्भीर, तात्त्विक और दूरदृष्टि से देखा जाए, तो यज्ञोपवीत भी नवरत्न जडि़त नौलखा हार से किसी प्रकार कम महत्त्व का नहीं है।

गायत्री गीता के अनुसार यज्ञोपवीत के नौ तार जिन नौ गुणों को धारण करने का आदेश करते हैं, वे इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि रत्नों की तुलना में इन गुणों की ही महिमा अधिक है।

१. जीवन विज्ञान की जानकारी होने से मनुष्य जन्म- मरण के रहस्य को समझ जाता है। उसे सत्य का डर नहीं लगता, सदा निर्भय रहता है। उसे शरीर तथा सांसारिक वस्तुओं का लोभ- मोह भी नहीं होता, फलस्वरूप जिन असाधारण हानि- लाभों के लिये लोग बेतरह दु:ख के समुद्र में डूबते और हर्ष के मद में उछलते फिरते हैं, उन उन्मादों से बच जाता है।

२. शक्ति सञ्चय की नीति अपनाने वाला दिन- दिन अधिक स्वस्थ, विद्वान्, बुद्धिमान्, धनी, सहयोग सम्पन्न, प्रतिष्ठान बनता जाता है। निर्बलों पर प्रकृति के, बलवानों के तथा दुर्भाग्य के जो आक्रमण होते रहते हैं, उनसे वह बचा रहता है और शक्ति सम्पन्नता के कारण जीवन के नानाविध आनन्दों को स्वयं भोगता एवं अपनी शक्ति द्वारा दुर्बलों की सहायता करके पुण्य का भागी बनता है। अनीति वहीं पनपती है जहाँ शक्ति का सन्तुलन नहीं होता। शक्ति संचय का स्वाभाविक परिणाम है- अनीति का अन्त, जो कि सभी के लिये कल्याणकरी है।

३. श्रेष्ठता का अस्तित्व परिस्थितियों में नहीं, विचारों में होता है। जो व्यक्ति साधन- सम्पन्नता में बढ़े- चढ़े हैं, परन्तु लक्ष्य, सिद्धान्त, आदर्श एवं अन्त:करण की दृष्टि से गिरे हुए हैं, उन्हें निकृष्ट ही कहा जायेगा। ऐसे निकृष्ट अपनी आत्मा की दृष्टि में, परमात्मा की दृष्टि में और दूसरे गम्भीर, विवेकवान् व्यक्तियों की दृष्टि में नीच श्रेणी के ठहरते हैं, अपनी नीचता के दण्ड स्वरूप आत्मताडऩा, ईश्वरीय दण्ड और बुद्धि- भ्रम के कारण मानसिक अशान्ति में डूबते रहते हैं। इसके विपरीत कोई व्यक्ति भले ही गरीब, साधनहीन हो, पर उसका आदर्श, सिद्धान्त, उद्देश्य, अन्तःकरण उच्च तथा उदार है तो वह श्रेष्ठ ही कहा जाएगा। यह श्रेष्ठता उसके लिये इतने आनन्द का उद्भव करती रहती है, जो बड़ी से बड़ी सांसारिक सम्पदा से भी सम्भव नहीं।

४. निर्मलता का अर्थ है- सौन्दर्य। सौन्दर्य वह वस्तु है, जिसे मनुष्य ही नहीं, पशु- पक्षी और कीट- पतङ्ग तक पसन्द करते हैं। यह निश्चित है कि कुरूपता का कारण गन्दगी है। मलिनता जहाँ कहीं भी होगी, वहाँ कुरूपता रहेगी और वहाँ से दूर रहने की सबकी इच्छा होगी। शरीर के भीतर मल भरे होंगे तो मनुष्य कमजोर और बीमार रहेगा। इसी तरह कपड़े, भोजन, त्वचा, बाल, प्रयोजनीय पदार्थ आदि में गन्दगी होगी तो वह घृणास्पद, अस्वास्थ्यकर, निकृष्ट एवं निन्दनीय बन जाएँगे। मन में, बुद्धि में, अन्त:करण में मलिनता हो, तब तो कहना ही क्या? इन्सान का स्वरूप हैवान और शैतान से भी बुरा हो जाता है। इन विकृतियों से बचने का एकमात्र उपाय ‘सर्वतोमुखी निर्मलता’ है। जो भीतर- बाहर सब ओर से निर्मल है, जिसकी कमाई, विचार धारा, देह, वाणी, पोशाक, झोपड़ी, प्रयोजनीय सामग्री निर्मल है, स्वच्छ है, शुद्ध है, वह सब प्रकार से सुन्दर, प्रसन्न, प्रफुल्ल, मृदुल एवं सन्तुष्ट दिखाई देगा।

५. दिव्य दृष्टि से देखने का अर्थ है, संसार के दिव्य तत्त्वों के साथ अपना सम्बन्ध जोडऩा। हर पदार्थ अपने सजातीय पदार्थों को अपनी ओर खींचता है और उन्हीं की ओर खुद खिंचता है। जिनका दृष्टिकोण संसार की अच्छाइयों को देखने, समझने और अपनाने का है, वह चारों ओर अच्छे व्यक्तियों को देखते हैं। लोगों के उपकार, भलमनसाहत, सेवा- सहयोग और सत्कार्यों पर ध्यान देने से ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों में बुराइयों की अपेक्षा अच्छाइयाँ अधिक हैं और संसार हमारे साथ अपकार की अपेक्षा उपकार कहीं अधिक कर रहा है। आँखों पर जिस रंग का चश्मा लगा लिया जाए, उसी रंग की सब वस्तुएँ दिखाई पड़ती हैं। जिनकी दृष्टि दूषित है, उनके लिये प्रत्येक पदार्थ और प्रत्येक प्राणी बुरा है, पर जो दिव्य दृष्टि वाले हैं, वे प्रभु की इस परम पुनीत फुलवाड़ी में सर्वत्र आनन्द बरसता देखते हैं।

६. सद्गुण- अपने में अच्छी आदतें, अच्छी योग्यतायें, अच्छी विशेषतायें धारण करना सद्गुण कहलाता है। विनय, नम्रता, शिष्टाचार, मधुर भाषण, उदार व्यवहार, सेवा- सहयोग, ईमानदारी, परिश्रमशीलता, समय की पाबन्दी, नियमितता, मितव्ययिता, मर्यादित रहना, कर्त्तव्यपरायणता, जागरूकता, प्रसन्न मुख- मुद्रा, धैर्य, साहस, पराक्रम, पुरुषार्थ, आशा, उत्साह यह सब सद्गुण हैं। संगीत, साहित्य, कला, शिल्प, व्यापार, वक्तृता, व्यवसाय, उद्योग, शिक्षण आदि योग्यतायें होना सद्गुण है। इस प्रकार के सद्गुण जिसके पास हैं, वह आनन्दमय जीवन बितायेगा, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।

७. विवेक एक प्रकार का आत्मिक प्रकाश है, जिसके द्वारा सत्य- असत्य की, उचित- अनुचित की, आवश्यक- अनावश्यक की, हानि- लाभ की परीक्षा होती है। संसार में असंख्यों परस्पर विरोधी मान्यतायें, रिवाजें, विचारधारायें प्रचलित हैं और उनमें से हर एक के पीछे कुछ आधार, कुछ उदाहरण तथा कुछ पुस्तकों एवं महापुरुषों के नाम अवश्य सम्बन्धित होते हैं। ऐसी दशा में यह निर्णय करना कठिन होता है कि इन परस्पर विरोधी बातों में क्या ग्राह्य है और क्या अग्राह्य? इस सम्बन्ध में देश, काल, परिस्थिति, उपयोगिता, जनहित आदि बातों को ध्यान में रखते हुए सद्बुद्धि से जो निर्णय किया जाता है, वही प्रामाणिक एवं ग्राह्य होता है। विवेकवान् व्यक्ति इन सब उलझनों से अनायास ही बच जाता है।
८. संयम- जीवनी शक्ति का, विचार शक्ति का, भोगेच्छा का, श्रम का सन्तुलन ठीक रखना ही संयम है। न इसको घटने देना, न नष्ट- निष्क्रिय होने देना और न अनुचित मार्ग में व्यय होने देना संयम का तात्पर्य है। मानव शरीर आश्चर्यजनक शक्तियों का केन्द्र है। यदि उन शक्तियों का अपव्यय रोककर उपयोगी दिशा में लगाया जाए, तो अनेक आश्चर्यजनक सफलताएँ मिल सकती हैं और जीवन की प्रत्येक दिशा में उन्नति हो सकती है।

९. सेवा- सहायता, सहयोग, प्रेरणा, उन्नति की ओर, सुविधा की ओर किसी को बढ़ाना, यह उसकी सबसे बड़ी सेवा है। इस दिशा में हमारा शरीर, हमारा मस्तिष्क सबसे अधिक हमारी सेवा का पात्र है, क्योंकि वह हमारे सबसे अधिक निकट है। आमतौर से दान देना, समय देना या बिना मूल्य अपनी शारीरिक, मानसिक शक्ति किसी को देना सेवा कहा जाता है और यह अपेक्षा नहीं की जाती कि हमारे इस त्याग से दूसरों में कोई क्रियाशक्ति, आत्मनिर्भरता, स्फूर्ति, प्रेरणा, जाग्रत् हुई या नहीं? इस प्रकार की सेवा व्यक्ति को आलसी, परावलम्बी और भाग्यवादी बनाने वाली हानिकारक सेवा भी है। हम दूसरों की इस प्रकार प्रेरक सेवा करें, जो उत्साह, आत्मनिर्भरता और क्रियाशीलता को सतेज करने में सहायक हो। सेवा का फल है- उन्नति। सेवा द्वारा अपने को तथा दूसरों को समुन्नत बनाना, संसार को अधिक सुन्दर और आनन्दमय बनाना महान् पुण्य कार्य है। इस प्रकार के सेवाभावी पुण्यात्मा सांसारिक और आत्मिक दृष्टि से सदा सुखी और सन्तुष्ट रहते हैं।

ये नवगुण निस्सन्देह नवरत्न हैं। लाल, मोती, मूँगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद, वैदूर्य- ये नौ रत्न कहे जाते हैं। कहते हैं कि जिनके पास ये रत्न होते हैं, वे सर्वसुखी समझे जाते हैं; पर भारतीय धर्मशास्त्र कहता है कि जिनके पास यज्ञोपवीत और गायत्री मिश्रित आध्यात्मिक नवरत्न हैं, वे इस भूतल के कुबेर हैं, भले ही उनके पास धन- दौलत, जमीन- जायदाद न हो। यह नवरत्न मण्डित कल्पवृक्ष जिसके पास है, वह विवेकयुक्त यज्ञोपवीतधारी सदा सुरलोक की सम्पदा भोगता है, उसके लिये यह भू- लोक ही स्वर्ग है। वह कल्पवृक्ष हमें चारों फल देता है, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों सम्पदाओं से परिपूर्ण कर देता है।
First 16 18 Last


Other Version of this book



Gayatri Mahavigyan Part 2
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री महाविज्ञान-भाग ३
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री महाविज्ञान भाग 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गायत्री महाविज्ञान (तृतीय भाग)
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Super Science of Gayatri
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गायत्री महाविज्ञान
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Gayatri Mahavigyan Part 1
Type: SCAN
Language: EN
...

Gayatri Mahavigyan Part 3
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री महाविज्ञान-भाग १
Type: SCAN
Language: MARATHI
...

गायत्री महाविज्ञान-भाग २
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री महाविज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • गायत्री महाविज्ञान भाग १
  • गायत्री महाविज्ञान भाग ३
  • गायत्री महाविज्ञान भाग २
  • गायत्री द्वारा कुण्डलिनी जागरण
  • वेदमाता गायत्री की उत्पत्ति
  • ब्रह्म की स्फुरणा से गायत्री का प्रादुर्भाव
  • गायत्री सूक्ष्म शक्तियों का स्रोत है
  • गायत्री साधना से शक्तिकोशों का उद्भव
  • शरीर में गायत्री मंत्र के अक्षर
  • गायत्री और ब्रह्म की एकता
  • महापुरुषों द्वारा गायत्री महिमा का गान
  • त्रिविध दु:खों का निवारण
  • गायत्री उपेक्षा की भर्त्सना
  • गायत्री साधना से श्री समृद्धि और सफलता
  • गायत्री साधना से आपत्तियों का निवारण
  • जीवन का कायाकल्प
  • नारियों को वेद एवं गायत्री का अधिकार
  • देवियों की गायत्री साधना
  • गायत्री का शाप विमोचन और उत्कीलन का रहस्य
  • गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा यज्ञोपवीत (जनेऊ)
  • साधकों के लिये उपवीत आवश्यक है
  • गायत्री साधना का उद्देश्य
  • निष्काम साधना का तत्त्व ज्ञान
  • गायत्री से यज्ञ का सम्बन्ध
  • साधना- एकाग्रता और स्थिर चित्त से होनी चाहिए
  • पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
  • आत्मशक्ति का अकूत भण्डार :: अनुष्ठान
  • सदैव शुभ गायत्री यज्ञ
  • महिलाओं के लिये विशेष साधनाएँ
  • एक वर्ष की उद्यापन साधना
  • गायत्री साधना से अनेकों प्रयोजनों की सिद्धि
  • गायत्री का अर्थ चिन्तन
  • साधकों के स्वप्न निरर्थक नहीं होते
  • साधना की सफलता के लक्षण
  • सिद्धियों का दुरुपयोग न होना चाहिये
  • यह दिव्य प्रसाद औरों को भी बाँटिये
  • गायत्री महाविज्ञान भाग ३ भूमिका
  • गायत्री के पाँच मुख
  • अनन्त आनन्द की साधना
  • गायत्री मञ्जरी
  • उपवास - अन्नमय कोश की साधना
  • आसन - अन्नमय कोश की साधना
  • तत्त्व शुद्धि - अन्नमय कोश की साधना
  • तपश्चर्या - अन्नमय कोश की साधना
  • अन्नमय कोश और उसकी साधना
  • मनोमय कोश की साधना
  • ध्यान - मनोमय कोश की साधना
  • त्राटक - मनोमय कोश की साधना
  • जप - मनोमय कोश की साधना
  • तन्मात्रा साधना - मनोमय कोश की साधना
  • विज्ञानमय कोश की साधना
  • सोऽहं साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
  • आत्मानुभूति योग - विज्ञानमय कोश की साधना
  • आत्मचिन्तन की साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
  • स्वर योग - विज्ञानमय कोश की साधना
  • वायु साधना - विज्ञानमय कोश की साधना
  • ग्रन्थि-भेद - विज्ञानमय कोश की साधना
  • आनन्दमय कोश की साधना
  • नाद साधना - आनन्दमय कोश की साधना
  • बिन्दु साधना - आनन्दमय कोश की साधना
  • कला साधना - आनन्दमय कोश की साधना
  • तुरीयावस्था - आनन्दमय कोश की साधना
  • पंचकोशी साधना का ज्ञातव्य
  • गायत्री-साधना निष्फल नहीं जाती
  • पञ्चमुखी साधना का उद्देश्य
  • गायत्री का तन्त्रोक्त वाम-मार्ग
  • गायत्री की गुरु दीक्षा
  • आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • मन्त्र दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • अग्नि दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • ब्रह्म दीक्षा - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • कल्याण मन्दिर का प्रवेश द्वार - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • ब्रह्मदीक्षा की दक्षिणा आत्मदान - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
  • वर्तमानकालीन कठिनाइयाँ - आत्मकल्याण की तीन कक्षाएँ
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj