• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ब्रह्म वर्चस् साधना का उपक्रम
    • पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
    • गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
    • साधना की क्रम व्यवस्था
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • ध्यान धारणा का आधार और प्रतिफल
    • दिव्य-दर्शन का उपाय अभ्यास
    • 1. ध्यान भूमिका में प्रवेश
    • 2. (क) पंचकोशों का स्वरूप
    • 2. (ख) अन्नमय कोश
    • 2. (ग से च) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (छ) प्राणमय कोश
    • 2. (झ, ञ, ट) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (ठ) मनोमय कोश
    • 2. (ड से त) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (थ) विज्ञानमय कोश
    • 2. (द से प) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (फ) आनन्दमय कोश
    • 2. (ब, भ, म) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (क) कुण्डलिनी के पांच नाम पांच स्तर
    • 2. (ख) कुण्डलिनी ध्यान धारणा के पांच चरण
    • 2. (ग) जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
    • 2. (घ) चक्र श्रृंखला का वेधन—जागरण
    • 2. (ई, ङ) आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
    • 2. (च) अन्तिम चरण-परिवर्तन
    • 3. (क, ख) समापन शान्ति पाठ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ब्रह्म वर्चस् साधना का उपक्रम
    • पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
    • गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
    • साधना की क्रम व्यवस्था
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
    • ध्यान धारणा का आधार और प्रतिफल
    • दिव्य-दर्शन का उपाय अभ्यास
    • 1. ध्यान भूमिका में प्रवेश
    • 2. (क) पंचकोशों का स्वरूप
    • 2. (ख) अन्नमय कोश
    • 2. (ग से च) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (छ) प्राणमय कोश
    • 2. (झ, ञ, ट) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (ठ) मनोमय कोश
    • 2. (ड से त) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (थ) विज्ञानमय कोश
    • 2. (द से प) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (फ) आनन्दमय कोश
    • 2. (ब, भ, म) सविता अवतरण का ध्यान
    • 2. (क) कुण्डलिनी के पांच नाम पांच स्तर
    • 2. (ख) कुण्डलिनी ध्यान धारणा के पांच चरण
    • 2. (ग) जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
    • 2. (घ) चक्र श्रृंखला का वेधन—जागरण
    • 2. (ई, ङ) आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
    • 2. (च) अन्तिम चरण-परिवर्तन
    • 3. (क, ख) समापन शान्ति पाठ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान - धारणा

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


2. (फ) आनन्दमय कोश

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 18 20 Last
आनन्दमय कोश चेतना का वह स्तर है जिसमें उसे अपने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति होती रहती है। अपने लोक का, अपने आधार का, अपने वैभव का, अपने अधिष्ठाता का भाव रहने से उसे प्रतीत होता है कि मैं पूर्ण में से उत्पन्न हुआ—पूर्ण ही हूं। इस वस्तुस्थिति की चर्चा तो कथा, प्रवचनों में प्रायः सुनने को मिलती रहती है। लोग परस्पर इस ब्रह्मज्ञान की चर्चा भी करते हैं, पर यह मस्तिष्कीय जानकारी जिह्वा और कान का विषय बनकर रह जाती है। अन्तःकरण में कभी वैसी गहन अनुभूति उठती नहीं। यदि कभी वैसा अनुभव करने की स्थिति बन पड़े तो समझना चाहिए कि आत्म-बोध का परम सौभाग्य उपलब्ध हो गया। इस सुयोग को आत्म–ज्ञान, आत्मानुभूति, आत्म-दर्शन, आत्म–साक्षात्कार, आत्म–निर्वाण आदि गौरवास्पद नामों से पुकारा जाता है।

आत्मबोध के दो पक्ष हैं—एक के अनुसार अपनी ब्राह्मी-चेतना, ब्रह्मसत्ता का भान होने से अयमात्मा ब्रह्म, चिदानंदोऽहम्, शिवोऽहम्, सच्चिदानंदोऽहम् का अनुभव करते हुए आत्मसत्ता में संव्याप्त-परमात्मसत्ता का दर्शन होता है वहां दूसरी ओर संसार के प्राणियों और पदार्थों के साथ अपने वास्तविक सम्बन्धों का तत्व ज्ञान भी प्रकट हो जाता है। इस संसार का हर पदार्थ परिवर्तनशील, नाशवान् एवं निर्जीव है। उसमें जो सुखद अनुभूतियां होती हैं वे मात्र अपनी ही आस्था एवं आत्मीयता के आरोपण की प्रतिक्रिया मात्र होती हैं। इसी प्रकार प्रत्येक प्राणी अपना स्वतन्त्र अस्तित्व लेकर जन्मा है। परस्पर तो मात्र सामयिक कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों से ही बंधे हैं। न कोई अपना है और न पराया। सभी ईश्वर के खिलौने और परस्पर साथी सहचर की तरह निर्वाह कर रहे हैं। इस तत्व ज्ञान के अन्तरात्मा में प्रकट होते ही वस्तुओं का लोभ और प्राणियों का मोह तिरोहित हो जाता है। समस्त अटपटे, असंगत, अवांछनीय क्रिया-कलाप इसी मोहग्रस्तता के उन्माद में बन पड़ते हैं। दुर्भावनाएं, दुश्चिन्तन, दुष्कर्मों की काली घटाएं इसी बौद्धिक नशे की स्थिति में उठती हैं। उन्हीं की प्रतिक्रियाएं चित्र-विचित्र रोग-सन्तापों के रूप में प्रकट होती हैं और सुरदुर्लभ मानव जीवन को नारकीय निष्कृष्टता से भर देती है। खीज, असन्तोष, पतन इसी आन्तरिक पतन का दुर्भाग्यपूर्ण प्रतिफल है। जो इन तथ्यों को समझ लेता है उसके लिए ईश्वर के इस सुरम्य उद्यान में शोक-सन्ताप का कोई कारण शेष नहीं रह जाता। अज्ञान का अन्धकार मिट जाने से सर्वत्र ब्रह्म का दिव्य प्रकाश ही छाया दीखता है। उसमें आनन्द के अतिरिक्त और कहीं कुछ भी ऐसा शेष नहीं रह जाता जो अन्तःकरण को प्रभावित कर सके।

यह आत्मानुभूति ही आनन्दमय कोश की परिष्कृत स्थिति है। इसमें सदा एक आनन्द भरी मस्ती छाई रहती है। अपने भीतर ब्रह्म और ब्रह्म के गर्भ में अपना अस्तित्व अनुभव होता रहता है। ऐसी स्थिति में अन्तरात्मा को निरन्तर तृप्ति-तुष्टि—शान्ति की स्वर्गीय अनुभूतियों का रसास्वादन करते रहने का अनवरत अवसर मिलता रहता है। मनुष्य जीवन जैसा अनुपम उपहार और आत्म-ज्ञान जैसा दिव्य वरदान पाकर और कुछ पाना शेष नहीं रह जाता, उस स्थिति में सन्तोष की शान्ति छाई रहती है। इसी को तृप्ति-तुष्टि कहते हैं। अंधकार चले जाने पर प्रकाश ही प्रकाश शेष रह जाता है। अज्ञान के साथ ही समस्त शोक-सन्ताप, भय एवं संकट जुड़े रहते हैं। उसके समाप्त हो जाने पर उल्लास की वह मस्ती छाई रहती है जिसे देवलोक का—अमृत एवं सोमरस कहते हैं। इस स्थिति में रहने वाले परमहंस, स्थिति प्रज्ञ, अवधूत, ब्रह्मज्ञानी आदि नामों से पुकारे जाते हैं। उन्हें जीवन-मुक्त भी कहते हैं। अवतार, देवदूत, युग पुरुष, तत्वदर्शी भी इसी स्तर के लोगों को कहा जाता है। उनके सामने न कोई व्यक्तिगत समस्या होती है और न आकांक्षा। ईश्वरीय इच्छाओं को ही अपना इच्छा मानते हैं और समय की आवश्यकताओं को ही अपनी आवश्यकता समझ कर उसकी पूर्ति में प्रखर कर्त्तव्य-परायण किन्तु नितान्त वैरागी की तरह काम करते हैं। सफलता-असफलता उन्हें प्रभावित नहीं करती, वे मात्र इतना ही सोचते हैं कि अपनी भावना एवं क्रिया का स्तर उच्चकोटि का रहा या नहीं। यही है आनन्दमय कोश के परिष्कृत होने का चिह्न है। वे आनन्द के अमृत से भरे रहते हैं और जो भी सम्पर्क में आता है उसी पर यह अमृत छिड़कते रहते हैं। स्वयं हंसते और दूसरों को हंसाते हैं। स्वयं खिलते और दूसरों को खिलाते हैं। स्वयं तरते और दूसरों को तारते हैं। चन्दन वृक्ष की तुलना ऐसे ही महामानवों से की जाती है। उनके निकट उगने वाले झाड़-झंखाड़ भी सुगन्धित होते हैं। पारस इसी प्रकार के व्यक्तित्वों का नाम है, उन्हें छूने वाले लौह खण्ड भी स्वर्ण सम्पदा बनते और सम्मानित होते हैं। कल्प-वृक्ष यही है जिनकी छाया में बैठ कर मनोविकारों की आग में जलने वाले लोग कामनाओं की पूर्ति से भी बड़ा सन्तोष कामना परिष्कार के रूप में पाते हैं। अमृत को जो भी रसास्वादन करता है, अमर बनता है। आनन्दमय कोश में जागृत चेतना भी अमृत है, उसका थोड़ा-सा अनुग्रह पाकर भी कितनों को ही उत्कृष्टता की गरिमा प्राप्त करने का अवसर मिलता है। सूर्य के प्रकाश से रात्रि के अन्धकार को दिन में परिवर्तित होते देखा जाता है। आत्मानन्द के प्रकाश से प्रकाशवान् व्यक्तित्व अपने युग का अन्धकार निगलते हैं और प्रभातकालीन सूर्य की तरह सर्वत्र आशा और उमंग भरा उत्साह बखेरते हैं। वे स्वयं धन्य बनते हैं और अपने पीछे अनुकरणीय परम्परा छोड़कर युग को, क्षेत्र को, कुल को, इतिहास को धन्य बनाते हैं।

शरीर और आत्मा की भिन्नता का तत्वबोध होने पर वह शरीराध्यास घट जाता है, जिसके भव-बन्धन प्राणी को दुःसह दुःख पहुंचाते हैं। वासना, तृष्णा और अहंता उन्हें ही सताती है जो अपने को शरीर मानते और उसकी सुविधाओं को ही सर्वोपरि महत्व देते हैं। ऐसे ही लोग उद्विग्न, खिन्न, अशान्त, क्रुद्ध, रुष्ट, चिन्तित, आतंकित पाये जाते हैं। असंख्य कामनाएं उन्हें ही सताती हैं और अभावों, असफलताओं के नाम पर सिर धुनते ऐसे ही लोगों को देखा जाता है। जब अन्तःकरण यह तथ्यतः स्वीकार कर लेता है कि हम आत्मसत्ता हैं। शरीर तो एक निर्जीव वाहन, उपकरण मात्र है तो उसकी ललक, लिप्साएं भी बाल-क्रीड़ा जैसी महत्वहीन लगने लगती हैं। इस स्थिति में सारा ध्यान आत्म-कल्याण के लिए महान् कार्य करने पर केन्द्रित रहता है। शरीर के लिए तो निर्वाह, व्यवस्था का प्रबन्ध करते रहना भर पर्याप्त लगता है। इस बदली हुई मनःस्थिति में जीवन का स्वरूप ही बदल जाता है। मोहग्रस्त—माया बन्धनों में बंधे हुए नर-पशु जिस प्रकार सोचते हैं उसकी तुलना में इन आत्मवेत्ताओं का दृष्टिकोण सर्वथा भिन्न होता है। वे जो सोचते हैं—जो करते हैं—वह ऐसा होता है जिसके लिए अन्तःक्षेत्र में आत्म-सन्तोष की और बाह्य क्षेत्र में श्रद्धा, सहयोग की अजस्र वर्षा होती रहे। आनन्दमय कोश का जागरण ऐसी ही देवोपम मनःस्थिति और स्वर्गीय परिस्थिति को इसी जीवन में प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

आनन्दमय कोश चेतना की वह उत्कृष्टतम स्थिति है जिसमें पहुंचा हुआ मनुष्य सामान्य स्थिति में निर्वाह करता हुआ भी ब्रह्मवेत्ता कहलाता है और अपने अनुदानों की समस्त मानव जाति पर सुधा वर्षा करता है। पंचकोशों के जागरण में आनन्दमय कोश की ध्यान धारणा से व्यक्तित्व में ऐसे परिवर्तन आरम्भ होते हैं जिनके सहारे क्रमिक गति से बढ़ते हुए धरती पर रहने वाले देवता के रूप में आदर्श जीवनयापन कर सकने का सौभाग्य मिलता है।

ध्यान करें—शरीर स्थूल पदार्थ नहीं तेज रूप है। मस्तिष्क मध्य में, सहस्रार चक्र में, विद्युत का एक फव्वारा जैसा चल रहा है। उसके स्फुल्लिंग, दिव्य उल्लास युक्त, दिव्य शक्ति युक्त, प्रेरणा युक्त हैं।
First 18 20 Last


Other Version of this book



ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान - धारणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • ब्रह्म वर्चस् साधना का उपक्रम
  • पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
  • गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
  • साधना की क्रम व्यवस्था
  • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
  • उच्चस्तरीय गायत्री साधना
  • ध्यान धारणा का आधार और प्रतिफल
  • दिव्य-दर्शन का उपाय अभ्यास
  • 1. ध्यान भूमिका में प्रवेश
  • 2. (क) पंचकोशों का स्वरूप
  • 2. (ख) अन्नमय कोश
  • 2. (ग से च) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (छ) प्राणमय कोश
  • 2. (झ, ञ, ट) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (ठ) मनोमय कोश
  • 2. (ड से त) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (थ) विज्ञानमय कोश
  • 2. (द से प) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (फ) आनन्दमय कोश
  • 2. (ब, भ, म) सविता अवतरण का ध्यान
  • 2. (क) कुण्डलिनी के पांच नाम पांच स्तर
  • 2. (ख) कुण्डलिनी ध्यान धारणा के पांच चरण
  • 2. (ग) जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
  • 2. (घ) चक्र श्रृंखला का वेधन—जागरण
  • 2. (ई, ङ) आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
  • 2. (च) अन्तिम चरण-परिवर्तन
  • 3. (क, ख) समापन शान्ति पाठ
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj