
उच्चस्तरीय गायत्री साधना
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पंचकोश जागरण की ध्यान धारणा
1. ध्यान भूमिका में प्रवेश—
(क) सावधान—कमर सीधी, दोनों हाथ गोद में, आंखें बन्द स्थिर शरीर, शान्त चित्त, ध्यान मुद्रा।
(ख) दिव्य साधना लोक—गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्त ऋषियों का तप स्थान—शान्ति-कुंज, ब्रह्म वर्चस, गायत्री तीर्थ, अखण्ड दीप, नित्य यज्ञ, नियमित जप, ब्रह्म संदोह, दिव्य–वातावरण, तीन दिव्यसत्ताओं का संरक्षण, दिव्य–साधना लोक।
(ग) प्रेरणा सद्गुरु देव की—भावानुभूति अपनी, संगम गंगा-यमुना का, संगम आत्म-चेतना ब्रह्म-चेतना का।
(घ) भाव समाधि—वासना शान्त, तृष्णा शान्त, अहन्ता शान्त, उद्विग्नता शान्त।
(ङ) दिव्य-दर्शन—प्रातःकाल, पूर्व दिशा, स्वर्णिम सूर्योदय, स्वर्णिम सूर्य, सविता गायत्री का प्राण-सविता।
(च) सविता—इष्ट, लक्ष्य, उपास्य। सविता-प्रकाश, ज्ञान, प्रज्ञा। सविता-अग्नि, ऊर्जा-ब्रह्म-शक्ति, सविता-ब्रह्म सविता-वर्चस्, सविता-ब्रह्म वर्चस्, सविता उपास्य। ब्रह्म वर्चस् उपास्य।
(छ) एकत्व अद्वैत—साधक का सविता को समर्पण। समर्पण-विसर्जन, विलय, साधक सविता एक, भक्त भगवान एक।
2. विशिष्ट ध्यान प्रयोग—
(क) पंचकोश—आत्मसत्ता के पांच कलेवर, गायत्री के पांच मुख, चेतना के पांच प्राण, काय-कलेवर के पांच तत्व, अन्तर्जगत के पांच देव—पंचकोश-पंचकोश जागरण।
(ख) प्रथम अन्नमय कोश—केन्द्र नाभि चक्र, अग्नि चक्र, शक्ति भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ग) सविता शक्ति का प्रवेश—नाभिचक्र से—अन्नमय कोश में।
(घ) अन्नमय कोश में सविता अग्नि—अन्नमय कोश, सवितामय, अग्निमय, अग्निपिण्ड, अग्निपुंज।
(ङ) अग्नि—‘ओजस्’, कण-कण में ओजस्, नस-नस में ओजस्, रोम-रोम में ओजस्।
(च) ओजस्—स्फूर्ति, उत्साह, ओजस् का जागरण, अग्नि चक्र का जागरण, अन्नमय कोश का जागरण।
द्वितीय प्राणमय कोश—
(छ) केन्द्र मूलाधार चक्र, प्राण चक्र, शक्ति भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ज) सविता शक्ति का प्रवेश, मूलाधार चक्र से प्राणमय कोश में।
(झ) प्राणमय कोश में सविता—विद्युत, प्राण विद्युत सविता, प्राणमय कोश सवितामय, विद्युतमय, विद्युत-पिण्ड, विद्युत पुंज।
(ञ) प्राण विद्युत—‘तेजस्’ कण-कण में तेजस्, नस-नस में तेजस्, रोम-रोम में तेजस्।
(ट) तेजस्—प्रतिभा, पराक्रम, साहस। प्राण विद्युत का जागरण, मूलाधार चक्र का जागरण, प्राणमय कोश का जागरण।
तृतीय मनोमय कोश—
(ठ) केन्द्र—भ्रूमध्य, आज्ञा चक्र, तृतीय नेत्र, शक्ति भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ड) सविता शक्ति का प्रवेश, आज्ञा चक्र से मनोमय कोश में।
(ढ) मनोमय कोश में सविता ‘ज्योति’—मनोमय कोश सवितामय, ज्योतिर्मय, ज्योति-पिण्ड, ज्योति-पुंज।
(ण) ज्योति—‘प्रज्ञा’, कण कण में प्रज्ञा ज्योति, नस नस में प्रज्ञा ज्योति, रोम-रोम में प्रज्ञा ज्योति।
(त) प्रज्ञा—सन्तुलन, विवेक, प्रज्ञा जागरण, आज्ञा चक्र का जागरण, मनोमय कोश का जागरण।
चतुर्थ विज्ञानमय कोश—
(थ) केन्द्र हृदय चक्र, ब्रह्म चक्र, शक्ति-भंवर, समर्थ चक्रवात।
(द) सविता शची का प्रवेश, हृदय चक्र से—विज्ञानमय कोश में।
(ध) विज्ञानमय कोश में सविता—‘दीप्ति’—विज्ञानमय कोश सवितामय, दीप्तिमय, दीप्ति-पिण्ड, दीप्ति-पुंज।
(न) दीप्ति—श्रद्धा-भक्ति, दीप्ति दिव्य दृष्टि, अतीन्द्रिय क्षमता।
(प) कण कण में दीप्ति, नस-नस में दीप्ति, रोम-रोम में दीप्ति, हृदय चक्र का जागरण, सहृदयता का जागरण, श्रद्धा-भक्ति का जागरण, विज्ञानमय कोश का जागरण।
(फ) केन्द्र—मस्तिष्क मध्य सहस्रार चक्र, ब्रह्मरन्ध्र, शक्ति-भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ब) सविता शक्ति का प्रवेश—सहस्रार से आनन्दमय कोश में—अन्तर्जगत का सूर्य, सहस्रार-स्वर्णिम सूर्य सहस्रार।
(भ) आनन्दमय कोश में सविता ‘कान्ति’—आनन्दमय कोश सवितामय, कान्तिमय, कान्ति-पिण्ड, कान्ति-पुंज, कान्ति-तृप्ति, तुष्टि शांति।
(म) सहस्रार चक्र का जागरण, आत्म-ज्ञान का जागरण, ब्रह्म-ज्ञान का जागरण, आनन्दमय कोश का जागरण, पंचकोशों का जागरण, पंचतत्वों का जागरण, पंच प्राणों का जागरण, पंचदेवों का जागरण।
समापन शान्ति-पाठ—
(क) ॐ तमसोमा ज्योतिर्गमय, असतोमासदगमय, मृत्योर्माअमृतम् गमय तमसोमा तमसोमा तमसोमा ज्योतिर्गमय ज्योतिर्गमय ज्योतिर्गमय तमसोमा ज्योतिर्गमय।
(ख) पंच ॐकार, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ । समाप्ति शान्ति
1. ध्यान भूमिका में प्रवेश—
(क) सावधान—कमर सीधी, दोनों हाथ गोद में, आंखें बन्द स्थिर शरीर, शान्त चित्त, ध्यान मुद्रा।
(ख) दिव्य साधना लोक—गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्त ऋषियों का तप स्थान—शान्ति-कुंज, ब्रह्म वर्चस, गायत्री तीर्थ, अखण्ड दीप, नित्य यज्ञ, नियमित जप, ब्रह्म संदोह, दिव्य–वातावरण, तीन दिव्यसत्ताओं का संरक्षण, दिव्य–साधना लोक।
(ग) प्रेरणा सद्गुरु देव की—भावानुभूति अपनी, संगम गंगा-यमुना का, संगम आत्म-चेतना ब्रह्म-चेतना का।
(घ) भाव समाधि—वासना शान्त, तृष्णा शान्त, अहन्ता शान्त, उद्विग्नता शान्त।
(ङ) दिव्य-दर्शन—प्रातःकाल, पूर्व दिशा, स्वर्णिम सूर्योदय, स्वर्णिम सूर्य, सविता गायत्री का प्राण-सविता।
(च) सविता—इष्ट, लक्ष्य, उपास्य। सविता-प्रकाश, ज्ञान, प्रज्ञा। सविता-अग्नि, ऊर्जा-ब्रह्म-शक्ति, सविता-ब्रह्म सविता-वर्चस्, सविता-ब्रह्म वर्चस्, सविता उपास्य। ब्रह्म वर्चस् उपास्य।
(छ) एकत्व अद्वैत—साधक का सविता को समर्पण। समर्पण-विसर्जन, विलय, साधक सविता एक, भक्त भगवान एक।
2. विशिष्ट ध्यान प्रयोग—
(क) पंचकोश—आत्मसत्ता के पांच कलेवर, गायत्री के पांच मुख, चेतना के पांच प्राण, काय-कलेवर के पांच तत्व, अन्तर्जगत के पांच देव—पंचकोश-पंचकोश जागरण।
(ख) प्रथम अन्नमय कोश—केन्द्र नाभि चक्र, अग्नि चक्र, शक्ति भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ग) सविता शक्ति का प्रवेश—नाभिचक्र से—अन्नमय कोश में।
(घ) अन्नमय कोश में सविता अग्नि—अन्नमय कोश, सवितामय, अग्निमय, अग्निपिण्ड, अग्निपुंज।
(ङ) अग्नि—‘ओजस्’, कण-कण में ओजस्, नस-नस में ओजस्, रोम-रोम में ओजस्।
(च) ओजस्—स्फूर्ति, उत्साह, ओजस् का जागरण, अग्नि चक्र का जागरण, अन्नमय कोश का जागरण।
द्वितीय प्राणमय कोश—
(छ) केन्द्र मूलाधार चक्र, प्राण चक्र, शक्ति भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ज) सविता शक्ति का प्रवेश, मूलाधार चक्र से प्राणमय कोश में।
(झ) प्राणमय कोश में सविता—विद्युत, प्राण विद्युत सविता, प्राणमय कोश सवितामय, विद्युतमय, विद्युत-पिण्ड, विद्युत पुंज।
(ञ) प्राण विद्युत—‘तेजस्’ कण-कण में तेजस्, नस-नस में तेजस्, रोम-रोम में तेजस्।
(ट) तेजस्—प्रतिभा, पराक्रम, साहस। प्राण विद्युत का जागरण, मूलाधार चक्र का जागरण, प्राणमय कोश का जागरण।
तृतीय मनोमय कोश—
(ठ) केन्द्र—भ्रूमध्य, आज्ञा चक्र, तृतीय नेत्र, शक्ति भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ड) सविता शक्ति का प्रवेश, आज्ञा चक्र से मनोमय कोश में।
(ढ) मनोमय कोश में सविता ‘ज्योति’—मनोमय कोश सवितामय, ज्योतिर्मय, ज्योति-पिण्ड, ज्योति-पुंज।
(ण) ज्योति—‘प्रज्ञा’, कण कण में प्रज्ञा ज्योति, नस नस में प्रज्ञा ज्योति, रोम-रोम में प्रज्ञा ज्योति।
(त) प्रज्ञा—सन्तुलन, विवेक, प्रज्ञा जागरण, आज्ञा चक्र का जागरण, मनोमय कोश का जागरण।
चतुर्थ विज्ञानमय कोश—
(थ) केन्द्र हृदय चक्र, ब्रह्म चक्र, शक्ति-भंवर, समर्थ चक्रवात।
(द) सविता शची का प्रवेश, हृदय चक्र से—विज्ञानमय कोश में।
(ध) विज्ञानमय कोश में सविता—‘दीप्ति’—विज्ञानमय कोश सवितामय, दीप्तिमय, दीप्ति-पिण्ड, दीप्ति-पुंज।
(न) दीप्ति—श्रद्धा-भक्ति, दीप्ति दिव्य दृष्टि, अतीन्द्रिय क्षमता।
(प) कण कण में दीप्ति, नस-नस में दीप्ति, रोम-रोम में दीप्ति, हृदय चक्र का जागरण, सहृदयता का जागरण, श्रद्धा-भक्ति का जागरण, विज्ञानमय कोश का जागरण।
(फ) केन्द्र—मस्तिष्क मध्य सहस्रार चक्र, ब्रह्मरन्ध्र, शक्ति-भंवर, समर्थ चक्रवात।
(ब) सविता शक्ति का प्रवेश—सहस्रार से आनन्दमय कोश में—अन्तर्जगत का सूर्य, सहस्रार-स्वर्णिम सूर्य सहस्रार।
(भ) आनन्दमय कोश में सविता ‘कान्ति’—आनन्दमय कोश सवितामय, कान्तिमय, कान्ति-पिण्ड, कान्ति-पुंज, कान्ति-तृप्ति, तुष्टि शांति।
(म) सहस्रार चक्र का जागरण, आत्म-ज्ञान का जागरण, ब्रह्म-ज्ञान का जागरण, आनन्दमय कोश का जागरण, पंचकोशों का जागरण, पंचतत्वों का जागरण, पंच प्राणों का जागरण, पंचदेवों का जागरण।
समापन शान्ति-पाठ—
(क) ॐ तमसोमा ज्योतिर्गमय, असतोमासदगमय, मृत्योर्माअमृतम् गमय तमसोमा तमसोमा तमसोमा ज्योतिर्गमय ज्योतिर्गमय ज्योतिर्गमय तमसोमा ज्योतिर्गमय।
(ख) पंच ॐकार, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ । समाप्ति शान्ति