
उच्चस्तरीय गायत्री साधना
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कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा
1. ध्यान भूमिका में प्रवेश—
(क) सावधान—कमर सीधी, दोनों हाथ गोद में, आंखें बन्द, स्थिर शरीर, शान्त चित्त ध्यान मुद्रा।
(ख) दिव्य-साधना लोक—गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्त ऋषियों का तप स्थान, शान्ति-कुंज, ब्रह्म वर्चस्, गायत्री तीर्थ, अखण्ड दीप, नित्य यज्ञ, नियमित जप, ब्रह्मसंदोह, दिव्य वातावरण, तीन दिव्य सत्ताओं का संरक्षण, दिव्य-साधना लोक।
(ग) प्रेरणा सद्गुरु देव की—भावानुभूति अपनी—संगम गंगा-यमुना का, संगम आत्म-चेतना ब्रह्म-चेतना का।
(घ) भाव समाधि—वासना शान्त, तृष्णा शान्त, अहंता शान्त, उद्विग्नता शान्त।
(ङ) दिव्य-दर्शन—प्रातःकाल, पूर्व दिशा, स्वर्णिम सूर्योदय, स्वर्णिम सूर्य-सविता, गायत्री का प्राण सविता।
(च) सविता—इष्ट, लक्ष्य, उपास्य, सविता-प्रकाश, ज्ञान प्रज्ञा, सविता अग्नि, ऊर्जा, ब्रह्म-शक्ति, सविता ब्रह्म-सविता वर्चस्, सविता ब्रह्म वर्चस् सविता उपास्य, ब्रह्म वर्चस् उपास्य।
(छ) एकत्व अद्वैत, साधक का सविता को समर्पण, समर्पण-विसर्जन-विलय, साधक सविता एक, भक्त भगवान् एक।
2. विशिष्ट ध्यान प्रयोग—
(क) सविता शक्ति का कुण्डलिनी क्षेत्र में—मूलाधार में प्रवेश, कुण्डलिनी जागरण, कुण्डलिनी प्राण विद्युत जीवनी-शक्ति, योगाग्नि, अन्तःऊर्जा ब्रह्म-ज्योति।
(ख) सविता सहयोग से, शक्ति क्षेत्र मंथन, मूलाधार मंथन, समुद्र मंथन, जीवन मंथन। मंथन-मंथन-मंथन। मंथन से अन्तःऊर्जा का सम्वर्धन, कुण्डलिनी जागरण।
द्वितीय चरण-ऊर्ध्वगमन—
(ग) सविता सहयोग से जागृत शक्ति का ऊर्ध्वगमन, जीवनीशक्ति का ऊर्ध्वगमन, कुण्डलिनी का ऊर्ध्वगमन। ऊर्ध्वगमन-मूलाधार से सहस्रार तक-मेरुदण्ड मार्ग से। भू-लोक से ब्रह्मलोक तक-देवयान मार्ग से। जीवनी-शक्ति का ऊर्ध्वगमन, उत्थान, उत्कर्ष, अभ्युदय, कुण्डलिनी जागरण।
तृतीय चरण-वेधन—
(घ) सविता सहयोग से षट्चक्रों का वेधन—प्राण विद्युत से शक्ति स्रोतों का उत्खनन, चक्रवेधन-शब्दवेध-लक्ष्यवेध। वेधन-उत्खनन-जागरण, षट्चक्र जागरण, मूलाधार चक्र जागरण, स्वाधिष्ठान चक्र जागरण, मणिपुर चक्र जागरण, अनाहत चक्र जागरण, विक्षुद्धि चक्र जागरण, आज्ञा चक्र जागरण-कुण्डलिनी जागरण।
चतुर्थ चरण-विस्तरण—
(ङ) सविता सहयोग से योगाग्नि का विस्तार, आत्मसत्ता का ब्रह्मसत्ता में विस्तार, चिनगारी का दावानल में विस्तार, ज्योति का ज्वाला में विस्तार। आत्मसत्ता का विस्तरण, प्रस्सरण जागरण, कुण्डलिनी जागरण।
पंचम चरण-परिवर्तन—
(च) सविता सहयोग से आत्म-ज्योति का ब्रह्म-ज्योति में परिवर्तन, क्षुद्रता का महानता में परिवर्तन, कामना का भावना में परिवर्तन, वियोग का संयोग में परिवर्तन, नर का नारायण में परिवर्तन।
परिवर्तन, सम्वर्धन, जागरण-कुण्डलिनी जागरण।
(छ) कुण्डलिनी महाशक्ति का समग्र संस्थान पर आधिपत्य बन्धन-मुक्ति, ईश्वर दर्शन, कुण्डलिनी जागरण-महान् जागरण।
(क) ॐ तमसोमा ज्योतिर्गमय, असतोमा सदगमय, मृत्योर्माअमृतम् गमय, तमसोमा तमसोमा तमसोमा ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्गमय, तमसोमा ज्योतिर्गमय।
(ख) पंच ॐकार, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ । समाप्ति शान्ति ।
1. ध्यान भूमिका में प्रवेश—
(क) सावधान—कमर सीधी, दोनों हाथ गोद में, आंखें बन्द, स्थिर शरीर, शान्त चित्त ध्यान मुद्रा।
(ख) दिव्य-साधना लोक—गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्त ऋषियों का तप स्थान, शान्ति-कुंज, ब्रह्म वर्चस्, गायत्री तीर्थ, अखण्ड दीप, नित्य यज्ञ, नियमित जप, ब्रह्मसंदोह, दिव्य वातावरण, तीन दिव्य सत्ताओं का संरक्षण, दिव्य-साधना लोक।
(ग) प्रेरणा सद्गुरु देव की—भावानुभूति अपनी—संगम गंगा-यमुना का, संगम आत्म-चेतना ब्रह्म-चेतना का।
(घ) भाव समाधि—वासना शान्त, तृष्णा शान्त, अहंता शान्त, उद्विग्नता शान्त।
(ङ) दिव्य-दर्शन—प्रातःकाल, पूर्व दिशा, स्वर्णिम सूर्योदय, स्वर्णिम सूर्य-सविता, गायत्री का प्राण सविता।
(च) सविता—इष्ट, लक्ष्य, उपास्य, सविता-प्रकाश, ज्ञान प्रज्ञा, सविता अग्नि, ऊर्जा, ब्रह्म-शक्ति, सविता ब्रह्म-सविता वर्चस्, सविता ब्रह्म वर्चस् सविता उपास्य, ब्रह्म वर्चस् उपास्य।
(छ) एकत्व अद्वैत, साधक का सविता को समर्पण, समर्पण-विसर्जन-विलय, साधक सविता एक, भक्त भगवान् एक।
2. विशिष्ट ध्यान प्रयोग—
(क) सविता शक्ति का कुण्डलिनी क्षेत्र में—मूलाधार में प्रवेश, कुण्डलिनी जागरण, कुण्डलिनी प्राण विद्युत जीवनी-शक्ति, योगाग्नि, अन्तःऊर्जा ब्रह्म-ज्योति।
(ख) सविता सहयोग से, शक्ति क्षेत्र मंथन, मूलाधार मंथन, समुद्र मंथन, जीवन मंथन। मंथन-मंथन-मंथन। मंथन से अन्तःऊर्जा का सम्वर्धन, कुण्डलिनी जागरण।
द्वितीय चरण-ऊर्ध्वगमन—
(ग) सविता सहयोग से जागृत शक्ति का ऊर्ध्वगमन, जीवनीशक्ति का ऊर्ध्वगमन, कुण्डलिनी का ऊर्ध्वगमन। ऊर्ध्वगमन-मूलाधार से सहस्रार तक-मेरुदण्ड मार्ग से। भू-लोक से ब्रह्मलोक तक-देवयान मार्ग से। जीवनी-शक्ति का ऊर्ध्वगमन, उत्थान, उत्कर्ष, अभ्युदय, कुण्डलिनी जागरण।
तृतीय चरण-वेधन—
(घ) सविता सहयोग से षट्चक्रों का वेधन—प्राण विद्युत से शक्ति स्रोतों का उत्खनन, चक्रवेधन-शब्दवेध-लक्ष्यवेध। वेधन-उत्खनन-जागरण, षट्चक्र जागरण, मूलाधार चक्र जागरण, स्वाधिष्ठान चक्र जागरण, मणिपुर चक्र जागरण, अनाहत चक्र जागरण, विक्षुद्धि चक्र जागरण, आज्ञा चक्र जागरण-कुण्डलिनी जागरण।
चतुर्थ चरण-विस्तरण—
(ङ) सविता सहयोग से योगाग्नि का विस्तार, आत्मसत्ता का ब्रह्मसत्ता में विस्तार, चिनगारी का दावानल में विस्तार, ज्योति का ज्वाला में विस्तार। आत्मसत्ता का विस्तरण, प्रस्सरण जागरण, कुण्डलिनी जागरण।
पंचम चरण-परिवर्तन—
(च) सविता सहयोग से आत्म-ज्योति का ब्रह्म-ज्योति में परिवर्तन, क्षुद्रता का महानता में परिवर्तन, कामना का भावना में परिवर्तन, वियोग का संयोग में परिवर्तन, नर का नारायण में परिवर्तन।
परिवर्तन, सम्वर्धन, जागरण-कुण्डलिनी जागरण।
(छ) कुण्डलिनी महाशक्ति का समग्र संस्थान पर आधिपत्य बन्धन-मुक्ति, ईश्वर दर्शन, कुण्डलिनी जागरण-महान् जागरण।
(क) ॐ तमसोमा ज्योतिर्गमय, असतोमा सदगमय, मृत्योर्माअमृतम् गमय, तमसोमा तमसोमा तमसोमा ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्गमय, तमसोमा ज्योतिर्गमय।
(ख) पंच ॐकार, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ । समाप्ति शान्ति ।