• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • बुद्धि, बल व साहस के धनी—महाराणा राजसिंह
    • लुटेरे गजनवी का मान-मर्दन करने वाले—राजा संग्राम राज
    • स्वातन्त्र्य सेनानी—नाना साहब पेशवा
    • सन् 57 की क्रान्ति के सर्वोच्च सेनापति—तात्याटोपे
    • कांग्रेस के जन्मदारा—सर ऐलेन ह्यूम
    • आदर्शों के लिए अड़े रहने वाले—ब्रुंडेज
    • कर्मयोगी हचिसन
    • एक अपराजेय देश-भक्त—खान अब्दुल गफ्फार खां
    • बंगला राष्ट्र के निर्माता—शेख मुजीबुर्रहमान
    • क्रांतिदूत—श्री0 रामप्रसाद ‘विस्मिल’
    • नीचे से ऊपर बढ़ने वाले श्री ए.जी. वेल्स
    • डा0 राममनोहर लोहिया—जिनकी नस-नस में क्रांति भरी थी
    • स्वदेश और समाज के उद्धारकर्ता—डॉ० सनयातसेन
    • गायकों के नायक—युग-गायक बंकिम चन्द्र
    • राष्ट्र के लिये सर्वतोभावेन समर्पित पोहलू राम
    • संग्राम के अमर सैनिक—अहिंसक-फुलेना प्रसाद
    • सच्चे देश-भक्त—श्री वदरुद्दीन तैयवजी
    • निर्भीक जन सेवक—श्री हीरालाल शास्त्री *******
    • अमरीका का आदर्श राष्ट्रीय अध्यापक-दल
    • नई पौध के कुशल बागवा—दादा साहब लाड
    • क्रान्तिकारी जीवन के मार्गदर्शक—सोहनसिंह
    • आशावादी—डंगन
    • देश भक्तों के निर्माता—वारीन्द्र कुमार घोष
    • महान बलिदानी—भाई मतिदास
    • प्रसिद्ध क्रान्तिकारी—कन्हाई लाल दत्त
    • श्री कान्त अनन्त राव आपटे—एक सच्चे भारतीय
    • सफलता संकल्पवानों को मिलती है
    • जड़ जगत में आदर्शवादिता का खेजी—जानसन
    • न्याय के लिए संघर्ष
    • उद्देश्य के लिये संसार भर की खाक छानने वाले—सरदार अजीतसिंह
    • पचास का काम अकेले करने वाले—बिनोद कानून गो
    • दो हजार कुश्तियां लड़ने वाला—किंग कांग
    • असमय बुझी दोष ग्रस्त-प्रतिभा पैरासेलसस
    • मातृभूमि के बलिदानी सोहनलाल पाठक
    • सतहत्तर साल के नौजवान—दाताराम
    • फिर न मिलेगा अवसर ऐसा
    • टैंक—युद्ध के अनुभवी विजेता—जनरल चौधरी
    • श्रम, सम्पदा व सद्भावना का धनी—हेनरी फोर्ड
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • बुद्धि, बल व साहस के धनी—महाराणा राजसिंह
    • लुटेरे गजनवी का मान-मर्दन करने वाले—राजा संग्राम राज
    • स्वातन्त्र्य सेनानी—नाना साहब पेशवा
    • सन् 57 की क्रान्ति के सर्वोच्च सेनापति—तात्याटोपे
    • कांग्रेस के जन्मदारा—सर ऐलेन ह्यूम
    • आदर्शों के लिए अड़े रहने वाले—ब्रुंडेज
    • कर्मयोगी हचिसन
    • एक अपराजेय देश-भक्त—खान अब्दुल गफ्फार खां
    • बंगला राष्ट्र के निर्माता—शेख मुजीबुर्रहमान
    • क्रांतिदूत—श्री0 रामप्रसाद ‘विस्मिल’
    • नीचे से ऊपर बढ़ने वाले श्री ए.जी. वेल्स
    • डा0 राममनोहर लोहिया—जिनकी नस-नस में क्रांति भरी थी
    • स्वदेश और समाज के उद्धारकर्ता—डॉ० सनयातसेन
    • गायकों के नायक—युग-गायक बंकिम चन्द्र
    • राष्ट्र के लिये सर्वतोभावेन समर्पित पोहलू राम
    • संग्राम के अमर सैनिक—अहिंसक-फुलेना प्रसाद
    • सच्चे देश-भक्त—श्री वदरुद्दीन तैयवजी
    • निर्भीक जन सेवक—श्री हीरालाल शास्त्री *******
    • अमरीका का आदर्श राष्ट्रीय अध्यापक-दल
    • नई पौध के कुशल बागवा—दादा साहब लाड
    • क्रान्तिकारी जीवन के मार्गदर्शक—सोहनसिंह
    • आशावादी—डंगन
    • देश भक्तों के निर्माता—वारीन्द्र कुमार घोष
    • महान बलिदानी—भाई मतिदास
    • प्रसिद्ध क्रान्तिकारी—कन्हाई लाल दत्त
    • श्री कान्त अनन्त राव आपटे—एक सच्चे भारतीय
    • सफलता संकल्पवानों को मिलती है
    • जड़ जगत में आदर्शवादिता का खेजी—जानसन
    • न्याय के लिए संघर्ष
    • उद्देश्य के लिये संसार भर की खाक छानने वाले—सरदार अजीतसिंह
    • पचास का काम अकेले करने वाले—बिनोद कानून गो
    • दो हजार कुश्तियां लड़ने वाला—किंग कांग
    • असमय बुझी दोष ग्रस्त-प्रतिभा पैरासेलसस
    • मातृभूमि के बलिदानी सोहनलाल पाठक
    • सतहत्तर साल के नौजवान—दाताराम
    • फिर न मिलेगा अवसर ऐसा
    • टैंक—युद्ध के अनुभवी विजेता—जनरल चौधरी
    • श्रम, सम्पदा व सद्भावना का धनी—हेनरी फोर्ड
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


डा0 राममनोहर लोहिया—जिनकी नस-नस में क्रांति भरी थी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 11 13 Last


बर्लिन में शिक्षा पा रहे पुत्र को भारतीय पिता का पत्र मिला। पत्र में भारत में हो रहे अत्याचारों का वर्णन था। महात्मा गांधी ने 12 मार्च को नमक कानून तोड़ने को डांडी यात्रा आरम्भ की तो स्थान-स्थान पर नमक बनाकर इस कानून तोड़ने का विरोध करने के लिए जनता उमड़ पड़ी। इन निहत्थे सत्याग्रहियों पर अंग्रेज सरकार के सिपाहियों ने अमानवीय अत्याचार किये। इन्हें लाठियों से पीटा गया और बूटों के तले रोंदा गया। कई लोग तो इस बेतरह पिटाई से बेहोश हो गये। स्वयं उसके पिता भी उन बेहोश होने वालों में से एक थे।

युवक, भगतसिंह तथा उसके साथियों के फांसी दिये जाने की खबर पाकर पहले ही क्षुब्ध हुआ बैठा था। रही-सही कमी इस पत्र ने पूरी कर दी। उसके मन में इसका प्रतिकार करने की प्रबल कामना जाग पड़ी।

इन्हीं दिनों ‘लीग आफ नेशन्स’ की बैठक जिनेवा में होने वाली थी जिसमें भारत के प्रतिनिधि अंग्रेजों के पिट्ठू एक राजा भाग ले रहे थे जो अंग्रेजों द्वारा रटाई गई बातें ही कहने वाले थे। भारत की वास्तविक स्थिति को प्रकट नहीं होने देने के षड़यन्त्र को विफल करने के लिए यह युवक कटिबद्ध हो गया।

विदेश में जहां कोई संगी साथी नहीं, पराए लोग हों वहां इस प्रकार का कदम उठाना असम्भव था पर इसने हार न मानी। वह जिनेवा जा पहुंचा। उन राजा ने ज्यों ही अंग्रेजी शासन की बड़ाइयों की तोता रटन्त आरम्भ की, इस युवक ने दर्शक कक्ष में जोर-जोर से सीटी बजानी आरम्भ कर दी। पहरेदार भागकर युवक के पास पहुंचे। इसे दर्शक-कक्ष से बाहर निकाल दिया।

युवक इस प्रकार बाहर निकाले जाने पर निराश न हुआ ‘कान्फ्रेंस के अध्यक्ष के नाम एक पत्र’ शीर्षक से भारत की वास्तविक स्थिति का चित्रण अखबार में छपाना चाहा। वह कई अखबारों के सम्पादकों के पास गया पर कोई इसे छापने को तैयार न हुआ। अन्त में एक पत्र ‘‘लूत्रावे ह्यू मेनाइट’’ ने छापना स्वीकार कर लिया। युवक ने दूसरे दिन सभा आरम्भ होने के पहले ही इस पत्र की प्रतियां खरीद लीं और सभा भवन के द्वार पर खड़ा हो गया। सभा में भाग लेने वाले प्रत्येक प्रतिनिधि को उसने यह पत्र भेंट किया।

युवक ने अपना प्रतिवाद सफलता पूर्वक कर लिया। अन्य देश के प्रतिनिधियों ने इस पत्र को पढ़कर वास्तविक स्थिति जानी। अन्य देशों के सामने अंग्रेजों का स्वार्थ नंगा होकर सामने आ गया। यह युवक था—राम मनोहर लोहिया।

ये पढ़ने के लिए इंग्लैंड गये पर उन्हें उसी देश की शिक्षा ग्रहण करने में कोई तुक दिखाई न दी जो हमारे देश को गुलाम बनाये था। वे जर्मनी चले गये। जर्मनी गये तो वहां एक विकट समस्या सामने आई। ये जब अपने प्राध्यापक प्रो. जोम्बार्ट के सामने उपस्थित होकर अंग्रेजी में अपना मन्तव्य बताने लगे तो उन्होंने कहा ‘‘मुझे अंग्रेजी नहीं आती। यहां की पढ़ाई केवल जर्मनी भाषा में होती है।’’ इन्होंने उत्तर दिया—‘‘तीन महीने बाद आपसे मिलूंगा।’’

तीन महीने बाद ये मो. जोवार्ट से मिले तो जर्मन भाषा पूरी तरह सीख चुके थे। इस भारतीय की प्रतिभा देखकर जोम्बार्ट बहुत प्रसन्न हुए। लगन और परिश्रम के बल पर सभी कुछ सम्भव होता है लोहिया ने इसका अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था।

26 मार्च सन् 1920 को अकबरपुर (उत्तर प्रदेश) में इनका जन्म हुआ। इनके पिता हीरालाल लोहिया पक्के देश भक्त थे। राम मनोहर को जन्म देकर मां चन्दा बचपन में ही सदा की नींद सो गई। एकमात्र पुत्र को अपनी मां के भरोसे छोड़कर हीरालाल जी ने अपना शेष जीवन देश को सौंप दिया। लोगों ने विवाह करने का आग्रह किया पर वे न तो शादी के इच्छुक थे न पुत्र के लिए धन जमा करने के लिए ही। उन्होंने सोच लिया था कि पुत्र को शिक्षित करने तथा अपना खर्च चलाने के लिए तो वे चार घण्टे काम करेंगे तो भी काम चल जायेगा।

हीरालाल जी ने अपना कार्य क्षेत्र कलकत्ता बनाया। वे बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के मन्त्री बनाये गये। राम मनोहर भी अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करके कलकत्ता पहुंच गये। वहां कालेज चयन का प्रश्न उपस्थित हुआ। उस समय अभिभावक मिशनरी कालेज में अपने लड़कों को पढ़ाना चाहते थे। राम मनोहर ने विद्या सागर कालेज में प्रवेश लिया जिसे लोग व्यंग से भेड़िया धसान कालेज कहते थे। यहां पर भी अपने परिश्रम के बल पर प्रथम श्रेणी में बी.ए. ऑनर्स परीक्षा पास करके उन्होंने मिशनरी कालेज में पढ़ने वाले भारतीयों को दिखा दिया कि भारतीय कालेज में पढ़ाई का स्तर नीचा नहीं होता।

जर्मनी से डॉक्टरेट करके लोहिया भारत लौट रहे थे तो इनके पास पुस्तकों का अपूर्व संग्रह था। इन्हें खाने से भी अधिक पुस्तकों की जरूरत रहती थी। भारत में भी इनको जो पढ़ाई का खर्च पिताजी देते थे उसमें से तीन चौथाई अच्छी-अच्छी पुस्तकें खरीदने में चला जाता था। नाजी सरकार के आदेश से इनकी सब पुस्तकें तथा सामान जब्त करवा दिया गया।

मद्रास बन्दरगाह पर उतरे तो ये खाली हाथ थे। एक भी पैसा जेब में नहीं था। धन भले ही न हो, अर्जित विभूतियां तो थीं। वे जहाज से उतर कर सीधे ‘हिन्दू’ पत्र के कार्यालय पहुंचे और सह-सम्पादक से बोले—‘‘मैं जर्मनी से आ रहा हूं। आपको दो लेख देना चाहता हूं।’’ सह-सम्पादक ने इस क्षीणकाय नाटे युवक को देखा तो उसे इनके कथन पर विश्वास न हुआ। उसने पूछा—‘‘कहां है लेख दिखाइये?’’ लोहिया बोले—‘‘कागज कलम दीजिये अभी लिख देता हूं। मेरे पास कलकत्ता जाने के लिये पैसे नहीं हैं इसलिये आपको कष्ट दे रहा हूं।’’ इस सहज सचाई से वह प्रभावित हुए बिना न रह सका। कागज कलम लेकर कुछ ही घण्टों में दो लेख लिखकर लोहिया ने उनके हाथ में थमा दिये। लेख देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया। लोहिया को पारिश्रमिक दिया तथा वह जीवन भर के लिये उनके मित्र बन गये।

भारत आकर लोहिया अपनी डिग्री के बलबूते पर अर्थोपार्जन में नहीं लगे। वे राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने लगे। देश प्रेम की अग्नि जो उनके हृदय कुण्ड में जल रही थी उसी में अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की आहुति देकर वे राष्ट्र समर्पित जीवन जीने लगे।

इनके पिता हीरालाल जी लोहिया जी ने इनकी भेंट गांधी जी से कराई। वे इस युवक से प्रभावित हुए। लोहिया की गिनती गांधीजी के अन्तरंग शिष्यों में की जाने लगी।

लोहिया ने ‘कांग्रेस सोशलिस्ट’ पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। इस पत्र में अपनी सशक्त लेखनी से अंग्रेजों के विरोध में लोहिया इस प्रकार के आक्षेप करते कि सरकार की नाक में दम होने लगा।

केवल पत्रकार के रूप में ही नहीं लोहिया खुले सत्याग्रह में जोरदार भाषण देते थे। उन के हृदय में भारतीय प्रजा की पीड़ा थी। वह पीड़ा इतनी सघन थी कि उन की वाणी और लेखनी में इस प्रकार उभरती थी कि उसे जो भी सुनता देश प्रेम की बलिवेदी पर बलिदान होने को प्रस्तुत हो जाता।

लोहिया ने आजन्म अविवाहित रहने का संकल्प लिया था, मित्रों तथा परिचितों के आग्रह पर वे कभी विवाह करने के लिये तैयार नहीं हुए। उनके सामने महान लक्ष्य था उसी के निमित्त वह पूरी शक्ति लगाना चाहते थे विवाह करके इस ओर शक्ति बंटाना नहीं चाहते थे।

कांग्रेस में काम करते हुए लोहिया ने विदेशी सम्पर्क विभाग का काम सम्हाला। अब तक यह विभाग नहीं था। लोहिया ने इस विभाग को कुशलता पूर्वक संचालित करके विदेशों में भारतीय स्वतन्त्रता के पक्ष में जनमत तैयार किया।

उनके भाषणों को आपत्तिजनक घोषित करके उन्हें कई बार जेल में रख गया। 7 जून 1940 को इन्हें इसी अपराध में बन्दी बनाया गया, मुकदमे की पेशी पर हथकड़ी पहने इन्हें तीन मील लाया जाता था। हथकड़ी नहीं पहनने पर बल प्रयोग किया जाता। इन्हें दो वर्ष के कारावास का दण्ड दिया गया। यह सजा पूरी नहीं हुई कि द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इन्हें बिना पूर्व सूचना के छोड़ दिया।

फिर आया 1942 का ‘‘भारत छोड़ो’’ आन्दोलन। लोहिया की आत्मा वर्षों से जिसका इन्तजार कर रही थी इतिहास बदलने वाला वह समय आ पहुंचा। लोहिया गिरफ्तार होने के पक्ष में नहीं थे। उन्हें तो सही अर्थों में आन्दोलन चलाना था। बड़े-बड़े नेता लोगों के गिरफ्तार हो जाने पर जनता का मनोबल बनाये रखने के लिये भी तो कोई चाहिये। गिरफ्तार होने का क्रम बनाये रखने के लिये भी तो कोई चाहिये था। लोहिया ने वही भूमिका निभाई। पेम्फ्लेट तथा छोटी-छोटी पुस्तकों को चोरी छिपे छपाना तथा बांटना इनका काम था। ‘कांग्रेस रेडियो’ नाम का स्टेशन भी इन्हीं ने चलाया जो रेडियो प्रोग्रामों के बीच क्रान्तिकारी समाचार तथा उद्बोधन प्रसारित करता था। डेढ़ वर्ष तक इन्होंने अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंककर देश भक्तों को ‘करो या मरो’ की प्रेरणा दी। सरकार ने लोहिया को पकड़ने के लिये बड़े-बड़े इनाम रखे।

लोहिया का भारत में रहना कठिन हो गया तो ये नेपाल चले गये। भारत सरकार ने नेपाल सरकार को इन्हें बन्दी बनाने के लिये मजबूर किया। जय प्रकाश पहले ही वहां थे। दोनों पकड़े गये। वहां से जेल तोड़कर दोनों भाग निकले। भारत आने पर फिर पकड़े गये।

लोहिया व जय प्रकाश को खतरनाक कैदी समझकर इन्हें लाहौर की जेल में रखा गया वहां इतनी शारीरिक तथा मानसिक यन्त्रणायें दी गईं जिनका वर्णन कठिन है। सात-सात दिन तक सोने नहीं देना साधारण बात थी। देश-प्रेम के इस दीवाने ने सब यन्त्रणायें सह लीं। चार वर्ष तक ये अत्याचारों को पीते रहे। जनता ने रिहाई के आन्दोलन किये पर सब व्यर्थ गया। इंग्लैंड में जब लेबर पार्टी की सरकार बनी तब इन्हें छोड़ा गया।

आजाद भारतवर्ष में भी लोहिया हिन्दी के प्रबल समर्थक तथा किसानों और मजदूरों के हितों के रक्षक के रूप में अपना एक व्यक्तित्व बनाये रहे। प्रबुद्ध विरोधी नेता के रूप में उनकी कमी आज भी अनुभव की जाती है। 1967 में इनका देहावसान हो गया।
लोहिया का जीवन एक ऐसे आदमी की कहानी है जो देश वासियों का अपना आदमी था उन्हीं के दर्द में तड़पा उन्हीं के दर्द को लेकर जिया और उसी को लेकर मरा। भावनाशील लोगों के हृदय में उनके कर्तृत्व से सदा पीड़ित मानव की सेवा करने की उमंगें उठा करेंगी।
First 11 13 Last


Other Version of this book



बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • बुद्धि, बल व साहस के धनी—महाराणा राजसिंह
  • लुटेरे गजनवी का मान-मर्दन करने वाले—राजा संग्राम राज
  • स्वातन्त्र्य सेनानी—नाना साहब पेशवा
  • सन् 57 की क्रान्ति के सर्वोच्च सेनापति—तात्याटोपे
  • कांग्रेस के जन्मदारा—सर ऐलेन ह्यूम
  • आदर्शों के लिए अड़े रहने वाले—ब्रुंडेज
  • कर्मयोगी हचिसन
  • एक अपराजेय देश-भक्त—खान अब्दुल गफ्फार खां
  • बंगला राष्ट्र के निर्माता—शेख मुजीबुर्रहमान
  • क्रांतिदूत—श्री0 रामप्रसाद ‘विस्मिल’
  • नीचे से ऊपर बढ़ने वाले श्री ए.जी. वेल्स
  • डा0 राममनोहर लोहिया—जिनकी नस-नस में क्रांति भरी थी
  • स्वदेश और समाज के उद्धारकर्ता—डॉ० सनयातसेन
  • गायकों के नायक—युग-गायक बंकिम चन्द्र
  • राष्ट्र के लिये सर्वतोभावेन समर्पित पोहलू राम
  • संग्राम के अमर सैनिक—अहिंसक-फुलेना प्रसाद
  • सच्चे देश-भक्त—श्री वदरुद्दीन तैयवजी
  • निर्भीक जन सेवक—श्री हीरालाल शास्त्री *******
  • अमरीका का आदर्श राष्ट्रीय अध्यापक-दल
  • नई पौध के कुशल बागवा—दादा साहब लाड
  • क्रान्तिकारी जीवन के मार्गदर्शक—सोहनसिंह
  • आशावादी—डंगन
  • देश भक्तों के निर्माता—वारीन्द्र कुमार घोष
  • महान बलिदानी—भाई मतिदास
  • प्रसिद्ध क्रान्तिकारी—कन्हाई लाल दत्त
  • श्री कान्त अनन्त राव आपटे—एक सच्चे भारतीय
  • सफलता संकल्पवानों को मिलती है
  • जड़ जगत में आदर्शवादिता का खेजी—जानसन
  • न्याय के लिए संघर्ष
  • उद्देश्य के लिये संसार भर की खाक छानने वाले—सरदार अजीतसिंह
  • पचास का काम अकेले करने वाले—बिनोद कानून गो
  • दो हजार कुश्तियां लड़ने वाला—किंग कांग
  • असमय बुझी दोष ग्रस्त-प्रतिभा पैरासेलसस
  • मातृभूमि के बलिदानी सोहनलाल पाठक
  • सतहत्तर साल के नौजवान—दाताराम
  • फिर न मिलेगा अवसर ऐसा
  • टैंक—युद्ध के अनुभवी विजेता—जनरल चौधरी
  • श्रम, सम्पदा व सद्भावना का धनी—हेनरी फोर्ड
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj