जर्मनी की ऐतिहासिक संसद में पहली बार गूंजा गायत्री मंत्र, डॉ. चिन्मय पंड्या ने किया भारत का प्रतिनिधित्व
हरिद्वार 8 अक्टूबर।
भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपराओं की दिव्यता अब यूरोप की ऐतिहासिक धरती पर भी गूंजने लगी है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रतिकुलपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के वरिष्ठ प्रतिनिधि डॉ. चिन्मय पंड्या ने जर्मनी की ऐतिहासिक फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट में आयोजित ‘पीस एंड लीडरशिप कॉन्क्लेव’ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए ऐसा ऐतिहासिक क्षण रचा, जिसे लंबे समय तक याद किया जाएगा।
16वीं शताब्दी में स्थापित फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट के इस ऐतिहासिक भवन में पहली बार गायत्री महामंत्र की दिव्य ध्वनि गूंजी। जैसे ही डॉ. पंड्या ने मंत्रोच्चारण किया, पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया। वहाँ उपस्थित राजनयिक, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और सामाजिक नेता इस अनुभव से अभिभूत हो उठे। जर्मनी के प्रमुख समाचार पत्रों ने इस घटना को ‘एक ऐतिहासिक और भावुक कर देने वाला क्षण’ बताते हुए प्रमुखता से प्रकाशित किया है।
भारतीय संस्कृति को बताया विश्वशांति का समाधान
इस अवसर पर डॉ. पंड्या ने अपने संबोधन में यज्ञ, तप, सेवा और सद्भाव जैसे भारतीय मूल्यों को वैश्विक संकटों का समाधान बताया। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, मानसिक तनाव और सामाजिक विघटन जैसे मुद्दों का स्थायी हल भारत के शाश्वत दृष्टिकोण ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ में निहित है।
उन्होंने कहा कि युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से एक ऐसे युग की नींव रखी है जो आत्मविकास और वैश्विक शांति की ओर अग्रसर है।
2026 में होंगे अंतरराष्ट्रीय आयोजन
डॉ. पंड्या ने बताया कि वर्ष 2026 में परम वंदनीया माताजी भगवती देवी शर्मा जी एवं दिव्य अखंड दीप के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में वैश्विक स्तर पर एकता, आत्म-परिवर्तन और आध्यात्मिक नवजागरण को समर्पित भव्य आयोजन किए जाएंगे।
कई देशों के गणमान्य रहे उपस्थित
इस सम्मेलन में श्रीमती शुचिता किशोर (कौंसुल जनरल ऑफ इंडिया, फ्रैंकफर्ट), सुश्री उर्सुला बुश (चेयरवुमन, पार्लियामेंटरी बोर्ड एसपीडी), प्रो. अजीत सिकंद (जोहान गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी), सुश्री कृति कुमार (काउंसलर, केल्स्टरबाक), श्री राहुल कुमार (सांसद) और श्री जॉय एडविन थनाराजा समेत कई देशों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
डॉ. पंड्या ने इस अवसर पर देसंविवि शांतिकुंज की ओर से स्मृति चिह्न भेंटकर अतिथियों का सम्मान किया। उत्तर में गणमान्यों ने भी उन्हें शॉल और उपहार देकर सम्मानित किया।
