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Magazine - Year 1958 - Version 2

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मानव-स्वास्थ्य के लिए सूर्य किरणों की उपयोगिता

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(श्री के.एन. शर्मा)

रंगों का प्रभाव मनुष्य के शरीर और स्वास्थ्य पर पड़ता है यह बात लोगों को प्राचीनकाल से ज्ञात है। यही कारण है कि हमारे यहाँ सदा से शुभ कार्यों में लाल और पीले रंगों का प्रयोग किया जाता है और नीले तथा काले रंगों को अशुभ माना जाता है। पहनने के वस्त्रों में भी देशकाल का ध्यान रखने से स्वास्थ्य रक्षा में सहायता मिलती है। गर्म प्रदेशों में श्वेत रंग का वस्त्र लाभदायक होता है और ठण्डे देशों में लाल या काला अच्छा समझा जाता है। पर श्वेत रंग में एक सब से बड़ी खूबी यह है कि यह सूर्य की धूप में से शक्तिवर्द्धक अंश को ग्रहण करके उससे शरीर को लाभ पहुँचाता है।

जाड़े की ऋतु में अगर भीतर का वस्त्र रंगीन हो तो वह शरीर की गर्मी को शरीर से बाहर निकलने से रोकता है और इस प्रकार शरीर को ठण्ड से बचाता है। ऊपर का कपड़ा अगर कुछ कालापन लिये हो तो वह सूर्य की किरणों को सोख लेगा पर उनको शरीर में प्रवेश न करने देगा। इससे शरीर सूर्य ताप से उत्पन्न होने वाली कई खराबियों से बच जायगा। बहुत गर्म प्रदेशों में सूर्यताप की अधिकता से धूप से कार्बन इतना निकलता है कि लोगों की त्वचा उसे बहुत सोख लेती है, जिससे वह काली पड़ जाती है। इसी कारण अफ्रीका के हब्शी घोर काले रंग के होते हैं। पर इन लोगों को शरीर का रंग काला होने से एक विशेष लाभ भी होता है और वह यह कि काला रंग धूप को पूर्णरूप से शोषण कर लेता है और चमड़ी को इतना कार्यपरायण बना देता है कि वह शरीर के समस्त विकारों को बाहर निकाल देती है। ऐसा न हो तो विकार शरीर के भीतर एकत्रित होकर रोग उत्पन्न कर देते। बहुत गर्म देशों में बिल्कुल काले रंग का कपड़ा व्यवहार में लाना हानिकारक होता है, क्योंकि ऐसा करने से वस्त्र समस्त धूप को सोख लेता है और देह के चर्म पर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता इससे लोगों को चेचक आदि जैसे चर्मरोग हो जाने का अन्देशा रहता है।

लाल रंग गर्म माना गया है और उसका प्रभाव पैरों पर बहुत लाभदायक होता है। पहनने का भीतरी वस्त्र अगर लाल रंग का हो तो शरीर की सुस्ती दूर करने को काफी फुर्ती दे सकता है। पाँडु वर्ण वाले को भी, अगर वह ‘नरवस’ (घबड़ाने वाला) न हो तो लाल रंग बहुत हितकारी सिद्ध होता है। पर सर पर लाल रंग के वस्त्र का व्यवहार करना कदापि उचित नहीं। इससे दिमाग व आँखों को हानि पहुँचती है। जिन लोगों के स्वस्थ शरीर में लाल रंग खूब भरा है, वे यदि लाल रंग का वस्त्र काम में लायें तो लाभ के बजाय हानि की ही अधिक संभावना है। यदि दिल उत्तेजित हो या दिल धड़कने वगैरह की बीमारी हो तो भी लाल रंग का वस्त्र भीतर पहनने के लिये काम में न लाना चाहिये।

नीला या हलका नीला रंग ठण्डा माना जाता है और पित्त के रोगों में उसका उपयोग बहुत लाभदायक माना गया है। जिनकी त्वचा लाल गर्म होकर उभर आती है तथा गर्म वाले को नीले वस्त्र ओढ़ना तथा पहिनना उत्तम होता है। इसीलिये जब आँखें दुखने आती हैं या सूज जाती हैं तब आसमानी रंग का चश्मा लगाने से आराम मालूम होता है। समुद्र यात्रा में भी नीले रंग का चश्मा हितकारी माना गया है। पीले रंग के कपड़े भीतर पहनने से ‘नरवस’ स्नायु मंडल को लाभ होता है। जिन लोगों को कब्ज रहता है उनको भी पीले वस्त्र भीतर पहिनना उत्तम माना गया है।

यह सदा ध्यान में रखना चाहिये कि सफेद रंग सब रंगों की शान और शक्ति को बढ़ाने वाला है। अब इसी प्रकार काला रंग दूसरे तमाम रंगों की शान व शक्ति को घटा देता है। बच्चों को चमकीले रंगों के वस्त्र पहिनना ठीक है। बैंगनी रंग के वस्त्र त्वचा में पीलापन उत्पन्न करते हैं, अतः जिन लोगों का रंग धूप में रहने से खराब हो गया है उनको नहीं पहनने चाहिये। ऊपर के वस्त्र ग्रीष्म में तो सफेद होना ही उचित है।

यदि किसी रोग के लिये किसी खास रंग के उपयोग की आवश्यकता न हो तो केवल सूर्य के प्रकाश और धूप का सेवन करना ही अनेक रोगों को आश्चर्यजनक रीति से दूर कर देता है। हमारे देश में तो प्रातःकाल सूर्य को जल चढ़ाने और सूर्य नमस्कार आदि के रूप में सूर्य-चिकित्सा प्राचीनकाल से व्यवहार होती आई है। अब योरोप और अमरीका आदि में इसको और धूप सेवन के लिये बड़े-बड़े यन्त्र तथा अन्य उपकरण बनाकर अनेक छोटे-बड़े रोगों की उनके द्वारा सफलतापूर्वक चिकित्सा की जाती है। रोगों के जर्म्स (कीटाणुओं) को नाश करने की जितनी अधिक शक्ति धूप में है उतनी और किसी वस्तु में नहीं है। क्षय के कीटाणु, जो बड़ी कठिनता से मरते हैं, सूर्य के सम्मुख रखने से थोड़ी ही देर में नष्ट हो जाते हैं। सूर्य किरणों से रोगी और स्वस्थ सभी व्यक्तियों को लाभ पहुँचता है। इसलिये जहाँ तक संभव हो उनका सेवन करना हमारा कर्तव्य है।

सूर्य-स्नान में इस बात का ध्यान रखना परमावश्यक है कि सूर्य की किरणें प्रातःकाल के समय ही विशेष लाभदायक होती हैं। दोपहर की तेज धूप गर्मियों में तो सहन की ही नहीं जा सकती, अन्य ऋतुओं में भी उससे प्रातःकालीन सूर्य-किरणों जैसा लाभ नहीं पहुँच सकता। उस अवसर पर एक साधारण लँगोटी के सिवाय सब वस्त्र उतार डालने चाहिये और आध घण्टा से डेढ़ घण्टा तक सूर्य की धूप में बैठना चाहिये। उस समय सिर पर कोई रुमाल आदि डाल लेना चाहिये। अगर केले आदि जैसा कोई चौड़ा पत्ता मिल जाय तो उसको सर पर रख लेना और भी उत्तम है।

बालकों के कई रोगों में रंगीन शीशियों द्वारा तैयार किये गये जल का प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। गर्मी की ऋतु में छोटे बालकों को दस्त लग जाते हैं, वे डाक्टरी और वैद्यक इलाज से प्रायः अच्छे नहीं होते। इस अवस्था में हलके नीले रंग की शीशी का पानी तुरन्त लाभ पहुँचाता है। गर्मी के दस्तों में शिशु प्रायः बहुत रोया करता है। आसमानी रंग का पानी बराबर देते रहने से बालकों को अवश्य आराम होता है। दाँत निकलते समय बालक को जो ज्वर और दस्त हो जाते हैं उसमें भी आसमानी रंग का जल अनुपम गुणकारी सिद्ध होता है। अगर शिशु का सर बहुत गर्म न हो तो ललाट और सर पर आसमानी बोतल का जल लगावे और उसे बिना पोंछे हवा से धीरे-धीरे सूखने दे।

पीले रंग की बोतल का पानी उन बालकों के लिये जिनको दस्त न होता हो और प्रायः कब्ज रहता हो बहुत हितकारी है। यह जिगर को सुधारता है और साफ दस्त लाता है। इससे सुस्ती मिटकर चैतन्यता आती है, ‘नर्वस सिस्टम’ पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। जब तक पखाना साफ न हो तब तक एक-एक घण्टे बाद पीली बोतल का जल पिलाना चाहिये।

सूर्य अग्नि तत्व का प्रतीक है और इस पंचतत्वों से निर्मित शरीर के लिये समस्त उष्णता किसी न किसी रूप में उसी से प्राप्त होती है। अतएव जब अग्नि-तत्व की कमी से हमारी देह में कोई विकार उत्पन्न हो तो उसकी चिकित्सा सूर्य की किरणों द्वारा करके कृत्रिम औषधियों के कुप्रभाव से बच सकते हैं।

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