• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • एक है तू ही अमल अदोष
    • एक है तू ही अमल अदोष (Kavita)
    • नीति पर चलना मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है।
    • ‘नकद धर्म’ का पालन करके सुखी बनिए।
    • दार्शनिक ज्ञान और सच्ची धार्मिक अनुभूति
    • यजुर्वेद के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य बातें
    • भारत जगद्गुरु था और आगे भी रहेगा।
    • हिन्दू जाति के पतन का एक कारण-सामाजिक असमानता
    • दिखावटी और वास्तविक नैतिकता
    • भारतीय संस्कृति का एक आधार-दानशीलता
    • Quotation
    • भारत की संसार को अमिट देन-मूर्ति पूजा
    • गौ-रक्षा अथवा गौ-सेवा
    • साँसारिक प्रेम और आत्मिक प्रेम
    • मानव-स्वास्थ्य के लिए सूर्य किरणों की उपयोगिता
    • देवत्व की भावना और समाज-कल्याण
    • सृष्टि-रचना के मूल तत्व
    • बौद्ध धर्म में स्त्रियों का स्थान
    • अखण्ड-ज्योति की ओर चलो
    • सन्तति-निग्रह और नैतिकता
    • यज्ञ का विरोध क्यों?
    • गायत्री के सम्बन्ध में भ्राँतियाँ
    • गायत्री-परिवार समाचार
    • सन् 62
    • सन् 62 (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • एक है तू ही अमल अदोष
    • एक है तू ही अमल अदोष (Kavita)
    • नीति पर चलना मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है।
    • ‘नकद धर्म’ का पालन करके सुखी बनिए।
    • दार्शनिक ज्ञान और सच्ची धार्मिक अनुभूति
    • यजुर्वेद के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य बातें
    • भारत जगद्गुरु था और आगे भी रहेगा।
    • हिन्दू जाति के पतन का एक कारण-सामाजिक असमानता
    • दिखावटी और वास्तविक नैतिकता
    • भारतीय संस्कृति का एक आधार-दानशीलता
    • Quotation
    • भारत की संसार को अमिट देन-मूर्ति पूजा
    • गौ-रक्षा अथवा गौ-सेवा
    • साँसारिक प्रेम और आत्मिक प्रेम
    • मानव-स्वास्थ्य के लिए सूर्य किरणों की उपयोगिता
    • देवत्व की भावना और समाज-कल्याण
    • सृष्टि-रचना के मूल तत्व
    • बौद्ध धर्म में स्त्रियों का स्थान
    • अखण्ड-ज्योति की ओर चलो
    • सन्तति-निग्रह और नैतिकता
    • यज्ञ का विरोध क्यों?
    • गायत्री के सम्बन्ध में भ्राँतियाँ
    • गायत्री-परिवार समाचार
    • सन् 62
    • सन् 62 (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1958 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


बौद्ध धर्म में स्त्रियों का स्थान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 17 19 Last
(श्री चतुरसेन शास्त्री)

बुद्ध भगवान ने यद्यपि स्त्रियों को अपने संघ में स्थान दिया था और पुरुषों की भाँति स्त्रियाँ भी भिक्षुणी बन सकती थीं। परन्तु बौद्ध सम्प्रदाय का मूल सिद्धान्त स्त्रियों को पुरुषों से दूर रखना ही था। क्योंकि बौद्ध धर्म में त्याग और वैराग्य का स्थान मुख्य है, भोग का नहीं। बुद्ध ने स्त्रियों की निन्दा तो नहीं की परन्तु बराबर यह सलाह दी कि लोग स्त्रियों के खतरे से बचे रहें। उनके विचारानुसार आदर्श जीवन वह है जो स्त्रियों से अलग रहकर और संभव हो तो किसी भी दशा में उनसे न मिलकर व्यतीत किया जाय। एक बार बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनन्द ने उसने प्रश्न किया-”भगवान, स्त्रियों के सम्बन्ध में हम कैसा व्यवहार करें?”

बुद्ध ने कहा-”उन्हें देखो मत, आनन्द।”

आनन्द ने कहा- “परन्तु उन्हें देखना पड़े तब?”

बुद्ध-”तो बहुत सावधान रहो।”

फिर भी बुद्ध ने अपने साधारण अनुयायियों और गृहस्थों के प्रति यही उपदेश किया था कि जहाँ तक हो सके अपनी स्त्रियों को अपना मित्र समझो और उन पर विश्वास रखो। साधारण भक्तों को उन्होंने यह उपदेश दिया कि माता-पिता की सेवा, पत्नी और बच्चों का सहवास तथा शाँतिपूर्ण उद्योग ही सबसे बड़ा आशीर्वाद है।

बौद्ध धर्म में जहाँ पति-पत्नी के सम्बन्ध और उनके व्यवहार के लिये नियमोपनियमों की चर्चा की गई है, वहाँ पत्नी के लिये पति की आज्ञापालन का कोई जिक्र नहीं है। पतियों के लिये जरूर आदेश है कि वे अपनी पत्नियों के विश्वास पात्र रहें, उनका आदर करें और उन्हें यथोचित वस्त्र आभूषण प्रदान करें। पत्नियों को पतिव्रत धर्मपालन और मितव्ययी बनने की शिक्षा दी है। स्त्रियों से यह भी कहा गया है कि वे अपने घरेलू कामों में बुद्धिमत्ता और परिश्रम से काम लें, यह सब होने पर भी बुद्ध ने अविवाहित जीवन को अधिक श्रेष्ठ माना है, क्योंकि उसमें मनुष्य शुद्ध आचार-विचार और परोपकार का पालन अधिक उत्तमता से कर सकता है। परन्तु गृहस्थियों के लिये भी उन्होंने ऐसे नियम बनाये हैं कि वे परस्पर एक दूसरे को अपना मित्र समझें, परस्पर एक दूसरे का आदर करें और परस्पर एक दूसरे का विश्वास करें।

माता के प्रति बुद्ध भगवान के भाव बहुत उच्च थे। बुद्ध ने अपनी माता और पत्नी के आग्रह से ही स्त्रियों को भी भिक्षुणी बनने का अधिकार दिया था। बौद्ध धर्म के अनुसार स्त्रियों को निर्वाण प्राप्त करने का उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुषों को। कहा जाता है कि बुद्ध के जीवनकाल में 73 स्त्रियों और 107 पुरुषों ने निर्वाण प्राप्त करके मानव-जीवन के विकास की चरम सीमा तक पहुँचने का प्रयत्न किया था। जब बौद्ध धर्म का प्रचार किया जा रहा था तब स्त्रियों ने ही सबसे अधिक आर्थिक सहायता की थी। बुद्ध ने बिसाखा आदि स्त्रियों की बहुत प्रशंसा की है। एक स्त्री की प्रशंसा करते हुये बुद्ध ने कहा है-”यह महिला साँसारिक वातावरण में रहती है-और राजरानियों की कृपापात्री है, तो भी इसका हृदय स्थिर और शाँत है। उसकी अवस्था युवा है और वह धन तथा ऐश्वर्य से घिरी है, फिर भी वह कर्तव्य पथ में अविचल और विचारशील है। यह इस संसार में दुर्लभ चीज है।”

जिस काल में बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार किया था, उस काल में स्त्री-जाति की स्थिति बहुत शोचनीय हो गई थी। यह बुद्ध का ही साहस था कि उसने कहा- “निर्वाण की प्राप्ति न केवल ब्राह्मण को ही होती है वरन् मनुष्य मात्र को हो सकती है, और स्त्रियों को भी हो सकती है।” यह वही समय था जब ‘स्त्री शूद्रो नाधीयताम’ की आवाज सर्वत्र गूँज रही थी और स्त्रियों का समाज में कोई स्थान ही न था।

First 17 19 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • एक है तू ही अमल अदोष
  • एक है तू ही अमल अदोष (Kavita)
  • नीति पर चलना मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है।
  • ‘नकद धर्म’ का पालन करके सुखी बनिए।
  • दार्शनिक ज्ञान और सच्ची धार्मिक अनुभूति
  • यजुर्वेद के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य बातें
  • भारत जगद्गुरु था और आगे भी रहेगा।
  • हिन्दू जाति के पतन का एक कारण-सामाजिक असमानता
  • दिखावटी और वास्तविक नैतिकता
  • भारतीय संस्कृति का एक आधार-दानशीलता
  • Quotation
  • भारत की संसार को अमिट देन-मूर्ति पूजा
  • गौ-रक्षा अथवा गौ-सेवा
  • साँसारिक प्रेम और आत्मिक प्रेम
  • मानव-स्वास्थ्य के लिए सूर्य किरणों की उपयोगिता
  • देवत्व की भावना और समाज-कल्याण
  • सृष्टि-रचना के मूल तत्व
  • बौद्ध धर्म में स्त्रियों का स्थान
  • अखण्ड-ज्योति की ओर चलो
  • सन्तति-निग्रह और नैतिकता
  • यज्ञ का विरोध क्यों?
  • गायत्री के सम्बन्ध में भ्राँतियाँ
  • गायत्री-परिवार समाचार
  • सन् 62
  • सन् 62 (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj