
एक है तू ही अमल अदोष (Kavita)
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(1)
पिता तू ही है सबका एक-
जगत जपता तेरा ही नाम।
सदा रहता है तू सब ठौर-
किन्तु है तेरा कहीं न धाम।
(2)
विश्व में करके तेरी खोज-
खूब होते हैं नर हैरान।
पता पाते क्या कोई कभी
ढूँढ़कर जल-थल व्योम वितान॥
(3)
अजन्मा अज अनन्त अव्यक्त-
सृष्टिकर्ता तू ही भगवान।
सुदर्शन, गदा पद्म कर शंख-
विश्वपालक तू विष्णु महान॥
(4)
भयंकर व्याल विभूषित अंग-
शूलधर शंकर कठिन कृतान्त।
तुम्हारे ही हैं तीनों रूप
एक तू ही है पुरुष प्रशान्त॥
(5)
सृष्टि का गौरवमय आधार-
ज्योर्तिमय जग-जीवों का प्राण।
कन्द फल मधुर स्वाद मकरन्द-
सुमन में सरस सुवासित घ्राण॥
(6)
प्रभाकर में तू प्रभा पसार-
विश्व का करता है कल्याण।
शान् शीतल शश्किर में घोल-
सहर्षित करता सुधा प्रदान॥
(7)
अगम वारिधि का तू विस्तार-
व्योम का निर्मल श्याम स्वरूप।
अग्नि का जगमग दिव्य प्रकाश-
वायु-व्यापकता अलख अनूप॥
(8)
सुखद शीतलता जल के बीच-
जीव पाते जिस से सन्तोष।
अन्न में जीवन-शक्ति महान-
एक है तू ही अमल अदोष॥