Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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झुक जाओ (Kavita)
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बस झुक जाओ देख प्रभंजन, गिरि को देख न रुक जाओ,
और न जम्बुक से मृगेन्द्र को देख सहम कर लुक जाओ,
झुकना,रुकना, लुकना ये सब कायर की सी बातें हैं-
बस तुम तो वीरों से निज को बढ़ने को उत्सुक पाओ
अपनी अविचल गति से चलकर नियतिचक्र की गति बदलो।
बढ़े चलो बस बढ़े चलो हे युवक निरन्तर बढ़े चलो॥
-अज्ञात