
क्रोध-एक घातक मनोविकार
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मनुष्य स्वभाव में अनेकों मनोविकार ऐसे हैं, जो निरन्तर उसकी मानसिक तथा शारीरिक योग्यता का विनाश किया करते हैं। घृणा, द्वेष, काम, मद मोह और लोभ जैसे दुर्गुणों को स्वच्छन्दता देने से मानसिक विष सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त हो जाता है। इससे बुद्धि, ज्ञान, स्वास्थ्य आदि पर विषैला प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति दिन-दिन हीन परिस्थितियों की ओर गिरता चला जाता है। किन्तु क्रोध तो इन समस्त दुर्गुणों का सम्राट है। इससे होने वाले तात्कालिक परिणाम भी इतने भयंकर होते हैं कि उन्हें देखकर जी काँप उठता है। ऐसी घटनायें आये दिन आँखों के आगे से गुजरा करती हैं, जिनमें मनुष्य छोटे से कारण से उत्तेजित होकर वीभत्स दृश्य उपस्थित कर देते हैं
महर्षि बाल्मीक ने लिखा है :-
क्रोधः प्राणहरः शत्रुः क्रोधोऽमित्र मुखो रिपुः।
क्रोधोऽसि महातीक्ष्णः सर्वक्रोधोऽपकर्षति॥
तपते यतते चैवं दानं प्रयच्छति।
क्रोधेनं सर्व हरति तस्मात् क्रोध विवर्जंयेत्॥
(उत्तरकाँड 71)
अर्थात्- क्रोध प्राण हरण करने वाला शत्रु है, क्रोध अमित्र मुखधारी बेरी है, क्रोध एक तीक्ष्ण तलवार है, क्रोध सब प्रकार से गिरा देने वाला है, क्रोध तप, संयम और दान का अपहरण कर लेता है, अतएव क्रोध से सदैव बचना चाहिये।
क्रोध का मन के दूसरे विकारों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। उत्तेजना और आवेश आते ही सत्य-असत्य का विवेक मारा जाता है, जिससे लड़ाई, झगड़ा, कटुता, मारपीट, हत्याओं की घटनायें तक हो जाती है, किसी व्यक्ति के प्रति निरन्तर क्रोध बनाये रखने से स्थायी कटुता का भाव पैदा हो जाता है। जिससे दोषदर्शन, उत्पीड़न और अकारण औरों का नुकसान करते रहने की आदत पड़ जाती है। इस प्रकार एक ही विकार से अनेकों विकारों की शाखा-प्रशाखायें फूट पड़ती हैं। अस्थिरता, क्षणिकता, बुद्धि का कुण्ठित होना, उद्विग्नता, अहंकार असहिष्णुता आदि दुर्गुण क्रोधी मनुष्य में अपने आप ही आ जाते हैं। चिड़चिड़ापन भी क्रोध का ही एक छोटा रूप है। यह प्रायः अशक्त पुरुषों का मनोविकार है, इसलिये एक आवेश में ही वह समाप्त भी हो जाता है। किन्तु क्रोध मन को एक उत्तेजित और खिंची हुई अवस्था में रख देता है। जिससे रक्त में गर्मी पैदा होती है। इससे उसके संचालन में तेजी आती है। यह झटके तीव्रता से आते रहे तो स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। विचारों में भी प्रेम, सत्य, न्याय, दया और विवेक आदि का लोप हो जाता है। आध्यात्मिक शक्तियों के विषय में तो यह सबसे प्रबल शत्रु माना गया है।
क्रोध से शारीरिक शक्तियों का पतन हो जाता है। किसी क्रोधी व्यक्ति को देखिये, किस प्रकार उसका चेहरा तमतमा उठता है, नेत्र लाल हो जाते हैं, ओठ चलने लगते हैं। आन्तरिक अवयवों पर भी इसका दूषित प्रभाव पड़ता है। हृदय धड़कने लगता है। आँतों का पानी सूख जाता है, जिससे शरीरस्थ मल सूख कर आँतों से चिपक जाता है। इससे शरीर सूख कर काँटा हो जाता है पाचन क्रिया शिथिल पड़ जाती है। खून में एक प्रकार का विष पैदा हो जाता है, जिससे जीवन-शक्ति कमजोर पड़ जाती है।
हार्वर्ड मेडिकल कालेज के प्रोफेसर डॉक्टर वाल्टर केनिन लिखते हैं कि “मनुष्य के दोनों गुर्दों के ऊपर चने के आकार की दो छोटी -छोटी ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनमें ‘एडरेनलिन’ तत्व भरा होता है। यह खून के साथ मिलकर जब जिगर में पहुँचता है तो वहाँ जमे हुये ग्लाइकोजन को शक्कर में बदल देता है।” यह शक्कर शरीर के तमाम अंगों में पहुँच कर रगों और पुट्टों को फाड़ देता है। क्रोधी मनुष्य को कोई रोग न होते हुए भी इसी हानिकार स्थिति में होकर गुजरना पड़ता हैं।
क्रोध करने के कारणों पर यदि विचार करे तो वे बिलकुल छोटे दिखाई देते हैं। कई बार तो वे बिलकुल निराधार दिखाई पड़ते हैं। संयत मनःस्थिति के अभाव में प्रायः लोग एकाएक उत्तेजित होकर अनर्थ कर डालते हैं। कई बार यह कारण इतने छोटे होते है कि उनके कारण किये गये अपराध पर विश्वास तक नहीं होता। कानपुर का एक समाचार है कि रेलवे स्टेशन पर ननकू नामक व्यक्ति फल बेचा करता था। किसी व्यक्ति ने उससे उधार लीची माँगी पर ननकू ने इनकार कर दिया। इस पर क्षुब्ध होकर उक्त व्यक्ति ने ननकू की चाकू से हत्या कर दी। ये कारण इतने छोटे हैं कि मनुष्य थोड़ा भी अगर ध्यान दे ले, तो इन भयंकर परिणामों से बचा जा सकता है। घरों में थाली फेंकने, कपड़े फाड़ने, बच्चों को पीटने, स्त्रियों को मारने, धमकाने के हेय दृश्य जो उपस्थित हुआ करते हैं, उनमें मानव स्वभाव की छोटी छोटी गलतियाँ और भूलों के सिवाय और कुछ नहीं होता।
घरेलू और सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि क्रोध के विनाशक परिणामों पर ध्यान दें और उनके उन्मूलन का सम्पूर्ण शक्ति से प्रयत्न करें। इससे सदैव हानि ही होती है। प्रायः देखा गया है कि क्रोध का कारण जल्दबाजी है। किसी वस्तु को प्राप्त करने या इच्छापूर्ति में कुछ विलम्ब लगता है तो लोगों को क्रोध आ जाता है। इसलिये अपने स्वभाव में धैर्य और संतोष का विकास करना चाहिये।
जब कोई कार्य गलत हो जाय या कोई हानि हो जाय तो उसे समझने में जल्दबाजी न करें। गम्भीरतापूर्वक सोचें कि यह सब किस कारण से हुआ। आप निर्णय करते समय बुद्धि में पर्याप्त उदारता बनाये रखिये, इससे आपको बड़ी शाँति मिलेगी। यदि कोई दूसरा व्यक्ति आपको अपशब्द या कड़ुवे वचन कहता है, तो आप यह समझ कर कि यह व्यक्ति मूर्ख है, कुछ न बोलिये, मौन व्रत कर लीजिये। इससे आप अकारण उत्तेजित भी नहीं होंगे और कोई अयाचित घटना भी नहीं घटेगी। मन-ही मन सामने वाले की बेवकूफी पर मुस्कराते रहिये, देखिये आपके जी में जरा भी दुःख नहीं आयेगा।
एक गिलास ठंडा पानी पीकर अपना क्रोध शाँत करने की विद्या बड़ी उत्तम है। क्रोध आये तो आप कुछ देर के लिये उस स्थान से हट जाइये किसी शीतल बगीचे में घूम आइये। एक अत्यन्त सरल उपाय यह भी है कि अपने किसी प्रियजन के पास बैठकर थोड़ी देर स्नेहपूर्ण बात करके उसकी सहानुभूति प्राप्त करने का प्रयत्न कीजिए।
क्रोध का एक कारण असात्विक आहार भी होता है। “जैसा खाये अन्न वैसा बने मन” की कहावत सर्व विदित है। अधिक तीखा, कडुआ, कसैला, बासी-बुसा भोजन मानसिक विकार पैदा करता है। मिर्च-मसाले तथा खटाई खाने वाले अधिकाँश व्यक्ति क्रोधी और चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं। इसलिये जो भी आहार हम ग्रहण करें, उसमें सात्विकता का पूर्ण ध्यान बनाये रखें। भोजन करते समय बड़ी प्रसन्नता होनी चाहिये। परमात्मा का प्रसाद मान कर आहार ग्रहण करने से जैसा भी रूखा-सूखा आहार हो, वही अतीव संस्कारवान और पुष्टिदायक बन जाता है। कुढ़ते हुये भोजन करना एक बहुत बड़ा दुर्गुण है। इससे आहार का सात्विक लक्ष्य पूरा नहीं होता। वह चाहे कितना ही पुष्टि-दायक क्यों न हो, जीवन-तत्व प्राप्त न होगा।
कदाचित आपको क्रोध आता ही है तो एक और प्रयोग कीजिये। जैसे ही क्रोध आये, चुपचाप अपने कमरे में चले जाइये और एक स्वच्छ-सा शीशा लेकर उसमें अपनी आकृति देखिये। अनुभव कीजिये कि क्रोध के कारण आपका मुँह तमतमा उठा था, सो बड़ी शिथिलता आ गई। सारा सौंदर्य चला गया है। मुँह फीका पड़ गया है। अब थोड़ा जल लेकर साबुन से मुँह धो कर तौलिये से मुँह साफ कर लीजिये और फिर शीशे के सामने खड़े होइये। देखिए, आपने अपनी सुन्दरता फिर से प्राप्त करली है। अब जरा-सा मुस्कराइए। आपको प्रसन्नता मिलेगी। दुबारा जब कभी कोई घटना घटेगी तो आपको आज के सौंदर्य में जो कमी दिखाई दी थी, वह एकदम से याद आ जायेगी और आप क्रोध करने से बच जायेंगे।
मीठे शब्दों में वह शक्ति होती है जो बड़े अड़ियल तथा तीखे स्वभाव के व्यक्तियों को भी नम्र बनाती है। प्यार और पुचकार कर बात करने से क्रोधी व्यक्तियों के हृदय की कोमलता जागृत होती है। कुछ दिन उन्हें यह संस्पर्श निरन्तर मिलता रहे तो क्रोध से बचे रहने का उनका भी अभ्यास हो जाता है।