• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शान्ति और सौंदर्य को अपने अन्दर खोजो
    • प्रेम- वह जो प्रतिदान न माँगे
    • व्यावहारिक क्रिया योग
    • मित्रता कहाँ रही (kahani)
    • प्राणायाम और मनोनिग्रह
    • आनन्द भवन में ठहरे (kahani)
    • महानता के प्रति समर्पण
    • Quotation
    • धर्म-धारणा का शाश्वत, अपरिवर्तनशील स्वरूप
    • कबीर हँसकर बोले (kahani)
    • अनुसरण महामानवों का करें
    • अहंकार में भरा हुआ (kahani)
    • मानस - एक कल्पवृक्ष
    • Quotation
    • मनुष्यों की आकृति एक प्रकृति चार
    • सन्त एकनाथ (kahani)
    • प्राणायाम की आरम्भिक विधि व्यवस्था
    • सिकन्दर पढ़ा करता (kahani)
    • सत्संग किनका व कैसे?
    • नाम जप की साधना
    • श्री कृष्णदास पाल (kahani)
    • जन्म भूमि में रहें या अन्यत्र जा बसें
    • भविष्य गढ़ने में प्रसन्नता की भूमिका
    • ऋषियों का प्रसंग (kahani)
    • अधिकार और अनुशासन
    • यादवचन्द्र राय (kahani)
    • विदेशों में पुनर्जन्म मान्यता
    • Quotation
    • संस्कार जन्म-जन्मान्तरों तक साथ चलते हैं।
    • Quotation
    • स्थूल शरीर की सीमित शक्ति
    • गुलाम बना लिया (kahani)
    • जादू चमत्कारों के प्रदर्शन की आवश्यकता क्यों?
    • Quotation
    • शुद्ध पंचांग और दृश्य गणित
    • Quotation
    • संस्कृति और उसकी विवेचना
    • महा याजक शाल्वनेक (kahani)
    • पृथ्वी फिर स्वर्गोपम बनेगी
    • आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय (kahani)
    • मूर्ख निकले, जो समझदार बनते थे
    • Quotation
    • कुछ विचित्र घटनाक्रम
    • पुराण सुनने से (kahani)
    • क्या महाविनाश की पुनरावृत्ति होगी?
    • महात्मा गाँधी (kahani)
    • इक्कीसवीं सदी- नारी शताब्दी
    • भीख माँगा करता (kahani)
    • संगीत की भावधारा से युग चेतना जुड़ें
    • Quotation
    • चैतन्य महाप्रभु (kahani)
    • पंचकोशों की सावित्री साधना
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात- - सभी प्रज्ञा परिजन इस अभिनव प्रशिक्षण को प्राप्त करें
    • महात्मा ईसा (kahani)
    • उनके लिये जियें हम
    • उनके लिये जियें हम (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शान्ति और सौंदर्य को अपने अन्दर खोजो
    • प्रेम- वह जो प्रतिदान न माँगे
    • व्यावहारिक क्रिया योग
    • मित्रता कहाँ रही (kahani)
    • प्राणायाम और मनोनिग्रह
    • आनन्द भवन में ठहरे (kahani)
    • महानता के प्रति समर्पण
    • Quotation
    • धर्म-धारणा का शाश्वत, अपरिवर्तनशील स्वरूप
    • कबीर हँसकर बोले (kahani)
    • अनुसरण महामानवों का करें
    • अहंकार में भरा हुआ (kahani)
    • मानस - एक कल्पवृक्ष
    • Quotation
    • मनुष्यों की आकृति एक प्रकृति चार
    • सन्त एकनाथ (kahani)
    • प्राणायाम की आरम्भिक विधि व्यवस्था
    • सिकन्दर पढ़ा करता (kahani)
    • सत्संग किनका व कैसे?
    • नाम जप की साधना
    • श्री कृष्णदास पाल (kahani)
    • जन्म भूमि में रहें या अन्यत्र जा बसें
    • भविष्य गढ़ने में प्रसन्नता की भूमिका
    • ऋषियों का प्रसंग (kahani)
    • अधिकार और अनुशासन
    • यादवचन्द्र राय (kahani)
    • विदेशों में पुनर्जन्म मान्यता
    • Quotation
    • संस्कार जन्म-जन्मान्तरों तक साथ चलते हैं।
    • Quotation
    • स्थूल शरीर की सीमित शक्ति
    • गुलाम बना लिया (kahani)
    • जादू चमत्कारों के प्रदर्शन की आवश्यकता क्यों?
    • Quotation
    • शुद्ध पंचांग और दृश्य गणित
    • Quotation
    • संस्कृति और उसकी विवेचना
    • महा याजक शाल्वनेक (kahani)
    • पृथ्वी फिर स्वर्गोपम बनेगी
    • आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय (kahani)
    • मूर्ख निकले, जो समझदार बनते थे
    • Quotation
    • कुछ विचित्र घटनाक्रम
    • पुराण सुनने से (kahani)
    • क्या महाविनाश की पुनरावृत्ति होगी?
    • महात्मा गाँधी (kahani)
    • इक्कीसवीं सदी- नारी शताब्दी
    • भीख माँगा करता (kahani)
    • संगीत की भावधारा से युग चेतना जुड़ें
    • Quotation
    • चैतन्य महाप्रभु (kahani)
    • पंचकोशों की सावित्री साधना
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात- - सभी प्रज्ञा परिजन इस अभिनव प्रशिक्षण को प्राप्त करें
    • महात्मा ईसा (kahani)
    • उनके लिये जियें हम
    • उनके लिये जियें हम (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1986 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


पृथ्वी फिर स्वर्गोपम बनेगी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 38 40 Last
ब्रिटेन में जन्मा जान हैरिसन अपनी पालदार नौका के सहारे लम्बी यात्रा करते हुए अमेरिका पहुँचा। कुछ दिन कमाने धमाने में लगा रहा। पीछे कुछ पूँजी जमा होते ही यह धुन सवार हुई कि दक्षिण अमेरिका के उस क्षेत्र में चलना चाहिए जहाँ पुरातन काल में देवताओं के धरती पर आवागमन के प्रमाण अभी भी मौजूद हैं। जानसन विश्वास करता था कि धरती पर पाये जाने वाले पदार्थ प्रकृति की देन हो सकते हैं परन्तु मनुष्य जैसा विलक्षण प्राणी और उसमें पाई जाने वाली अद्भुत विभूतियाँ अनायास ही विकसित नहीं हुईं। वे किसी अन्य लोकवासी देवमानवों की देन हैं। अपनी इस मान्यता की पुष्टि में उसने अनेकानेक प्रमाण भी एकत्रित कर रखे थे।

सन् 1908 में तीन दिन रात तक भयंकर अन्धेरा यूरोप भर में जिस भयानक विस्फोट के कारण छाया रहा था वह किस विस्फोट के कारण उपजा। ईस्ट द्वीप में बनी विशालकाय मानव मूर्तियाँ किसने किस प्रकार और क्यों बनाई? सहारा रेगिस्तान में बड़ी विचित्र गुफाओं में देवलोक वासियों के चित्र किसने बनाये? ओडारा नदी के तट पर पाये गये अस्थि उपकरणों को किन औजारों की सहायता से बनाया गया था? जैसे प्रश्न उसके मस्तिष्क में निरन्तर उभरते थे और उनके सम्बन्ध में अधिक कुरेदबीन करने पर उसे यह विश्वास दिलाते थे कि हो न हो, पृथ्वी पर कभी देवताओं का आवागमन ही नहीं रहा हो पर उसे प्रगतिशील स्थिति तक पहुँचने में उनका असाधारण योगदान रहा है। वह यह भी मानता था कि मनुष्य के आदिम जन्मदाता जिन्हें आदिमहवा कहा जाता है किसी दिव्य लोक से ही धरती पर पधारे थे।

यह जिज्ञासाएँ ऐसी थीं जो सदा जानसन को बेचैन किये रहती थीं। अस्तु उसने दक्षिण अमेरिका के उस क्षेत्र में जाने की ठान ठानी जिसमें कि देवताओं के अवतरण चिन्ह विशेष रूप से पाये जाने की बात कही जाती थी। वह मात्र जिज्ञासाएँ ही नहीं थीं वरन् उनके पीछे यह आतुरता भी थी कि किस प्रकार देव लोकवासियों के साथ संपर्क साधा और उनकी महती विशेषताओं का कोई उपयोगी अंश पाया जा सकता है। इस संदर्भ में उसने मजबूत घोड़े खरीदे। चिली बीजील क्षेत्र की जानकारी रखने वाले मार्गदर्शक साथ लिए और चार अतिरिक्त घोड़ों पर रास्ते की आवश्यक सामग्री लादी और वह उस भयानक क्षेत्र के लिए चल पड़ा। कई वर्ष उसने इसी प्रयास में लगाये।

लौटने के उपरान्त जानसन ने एक दिलचस्प पुस्तक लिखी- ‘मिस्ट्रीज ऑफ एन्शिएन्ट साउथ अमेरिका’ उनमें उसने इतने प्रमाणों और अवशेषों का अंकन किया है जिससे प्रतीत होता है कि इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि पृथ्वी को सर्वमान रूप में विकसित करने के लिए अन्य लोकवासियों का असाधारण योगदान रहा है। वे इस भूलोक में गहरी दिलचस्पी लेते रहे हैं।

इन विवरणों में उसने दक्षिण सागर के मध्य पाये जाने वाले एक ऐसे द्वीप का वर्णन किया है जिसमें देवता कुछ समय निवास और विश्राम भी करते थे। योजनाएँ बनाते और उन्हें कार्यान्वित करने में जुटते थे।

उसने बाल्डीविया क्षेत्र के चिलुए द्वीप समूहों की शृंखला का वर्णन किया है जिनमें एक द्वीप था ‘मणि द्वीप’ उसे उसी की खोज थी। अन्ततः उसने उसे प्राप्त भी कर लिया। इसकी बावत उसने अनेकों किम्वदंतियां पढ़ी और सुनी थीं।

नाव को समुद्री तट के एक वृक्ष में बाँधकर जानसन अपने साथियों समेत मणि द्वीप का भूगोल समझने के लिए एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ा, उसने देखा कि कुछ दूर समतल मैदान में अनेक महलों और मन्दिरों के अवशेष अभी भी हैं।

जानसन लिखता है कि उस मैदान में हम पहुँचे। दो-तीन महल अच्छी हालत में थे। एक पानी की बावड़ी थी। अनेकों टूटे खंडहर। सुनहरे शिखर का भव्य मन्दिर। मन्दिर 1000 वर्ग फुट के घेरे में बना था। दीवारों में पच्चीकारी। स्तम्भों में खुदी मूर्तियाँ, बड़े स्तम्भ से फूटती प्रकाश की किरणें। स्तम्भों में जड़े हुए वेश कीमती पत्थर। फूटती हुई मशाल जैसी किरणें। मंदिर में सिंहासन पर बैठी रत्न आभूषणों से जटित देवी की प्रतिमा। अद्भुत वृक्ष। इसे द्वीप में वे लोग जो ला सकते थे सो साथ भी लाये। 15 दिन रुके और वापस लौट आये। इन सबको देखने से प्रतीत होता था कि ऐसे दूरवर्ती एकाकी टापू में इतने भव्य और अलौकिक भवन बनाने का मानवी प्रयोजन नहीं हो सकता है, वह किसी दिव्यलोक की संरचना थी।

बात पुरानी हो गई। अब उस द्वीप का पता लगाना कठिन पड़ रहा है। हो सकता है कि दिव्य लोकवासियों को उनके गुप्त अवतरण स्थल का पता लग जाने से उसे समुद्र में डुबा दिया हो और कहीं अन्य अविज्ञात स्थल पर अपना नया केन्द्र स्थापित किया हो।

उड़न तश्तरियाँ वस्तुतः अन्तरिक्ष यान ही हैं जिनमें बैठकर अन्य लोकों के वैज्ञानिक यहाँ आते और अपने अनुदान देने तथा यहाँ की प्रगति का लाभ उठाने का अन्वेषण करने के लिए जानकारियों का आदान-प्रदान करने का उद्देश्य लेकर चलते हैं।

जार्ज एडमस्की ने अपनी पुस्तक “फ्लाइंग सोसिर्थ” हैव लैण्डैड में लिखा है कि उनकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो शुक्र लोक से आया था। आकृति मनुष्य से मिलती-जुलती थी पर भाषा सम्बन्धी कठिनाई के कारण विचार विनियम न हो सका, केवल संकेतों से ही कुछ काम चलाया जा सका।

स्काटलैण्ड के मेडरिक अलिंगहम ने अन्तरिक्ष यात्रियों के एक समूह के साथ अपने साक्षात्कार का वर्णन किया है।

मंगल गृह पर जमी हुई बर्फ पहाड़ों के रूप में पाई गई है और उन क्षेत्रों में जीवधारियों की हलचलों का दृश्य दूरबीनों से देखा गया है।

मैक्सिको के समीप अलस्का गार्डो में गिरी एक उड़न तश्तरी में ऐसे छोटे-छोटे मनुष्य के शरीर उपलब्ध हुए जो अन्तरिक्ष सूट पहने हुये थे पर यान के गिरने पर वे भी नष्ट हो गये थे। उनकी संख्या 6 थी।

डॉ. रोमनीडक का कहना है कि ऐसा ही एक टूटा यान रूस को भी मिल चुका है, पर उन्होंने उस घटना को प्रचारित नहीं किया।

कार्नेल विश्व विद्यालय के खोजियों ने शनि के उपग्रह ‘टिटान’ पर जीवन होने के प्रमाण प्रस्तुत किये हैं।

चीन की बायनकाराउल नामक गुफा में ऐसे अवशेष पाये गये हैं, जिन्हें किन्हीं अन्य लोकवासियों के उपकरण एवं अस्थि पिंजर कहा जा सकता है।

आवश्यक नहीं कि जिन तत्वों से पृथ्वीवासियों के शरीर बने हैं और निर्वाह के लिए जिन साधनों की आवश्यकता है, उनकी ही अन्य लोकवासियों को आवश्यकता पड़े। यह हो सकता है कि उनके शरीर अन्य रसायनों के बने हों और वहाँ जो सामग्री मिलती है उसी पर निर्वाह करने के आदी हो गये हों।

ईस्टर लैण्ड द्वीप पर विशालकाय मानव मूर्तियाँ जगह-जगह बनी हुई हैं। वहाँ के निवासी उन्हें आकू-आकू कहते हैं। उनकी ऊंचाई और बनावट देखकर यह प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में ऐसे मन्त्र उपकरण नहीं थे जिनके द्वारा ऐसी विशालकाय मूर्तियाँ बनाई जातीं। फिर यह भी विचारणीय है कि इन्हें क्यों बनाया गया। प्रतीत होता है कि किसी अन्य लोक के वासियों ने अपने यहाँ के निवासियों की प्रतिकृति यहाँ बनाई हो ताकि देखने वाले यह समझे सकें कि पृथ्वी के प्रति दिलचस्पी रखने वाले अन्य लोकवासियों की प्रतिमा कैसी रही होगी।

दक्षिण अमेरिका की ऐंडीज पर्वतमाला में टिटिकाँग क्षेत्र में अति प्राचीन काल का एक बन्दरगाह और सूर्य मंदिर पाया गया है। इसके समीप ही एक कैलेंडर खुदा है इससे प्रतीत होता है कि जिस ग्रह के लोगों ने इसे बनाया वहाँ 290 दिन का वर्ष और 24 दिनों का महीना होता था।

प्रो. ल्होत ने एक ऐसी विशाल घाटी खोज निकाली है, जिसमें 16 फुट ऊँची मानवाकृतियाँ हैं उनके साथ कितने ही बारीक तारों से बने यन्त्र भी हैं। इन्हें मंगल ग्रह के निवासियों की प्रतिकृत मानी गई है।

आल्पस् पर्वत माला में 785 ग्राम भारी एक पाइप का टुकड़ा मिला है वह किसी ऐसी धातु का बना है जिस पर लाखों वर्षों में भी जंग नहीं लगी। वह इस प्रकार ढाला गया है जिसके लिए उच्चस्तरीय धातु विज्ञान की आवश्यकता है।

गोवी मरुस्थल की कुछ चट्टानों पर मनुष्य के पद चिन्ह पाये गये हैं। समझा जाता है कि पृथ्वी के जन्मदिनों यहाँ दलदल रहा होगा और उस पर होकर अन्तरिक्ष यात्री चले होंगे। सूखने पर वे अमिट प्रमाण बन गये।

ओडेसा नदी के तट पर गुफाओं का एक लम्बा सिलसिला है। उसमें ऐसे औजार पाये गये हैं जिनसे हड्डियों से तरह-तरह के उपकरण भी बने हुये मिले हैं।

रूस के इर्कतुस्क क्षेत्र की वेधशाला में नोट किया गया कि साइबेरिया के ताइगा प्रदेश में सैकड़ों ऐटम बम जैसा भयंकर धमाका हुआ जिसका प्रभाव हजारों मील तक पड़ा। ऐसा प्रकाश उत्पन्न हुआ कि तीन दिन तक रूस से लेकर फ्राँस तक रात को भी दिन जैसी चमक बनी रही। रंग बिरंगी किरणें उठती और चमकती रहीं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी से तीन मील ऊपर कोई अन्तरिक्ष यान धरती तक पहुँचने से पहले ही फट गया और उसी से इस उत्पात का सृजन हुआ।

एच.जी. वेल्स की प्रख्यात पुस्तक ‘दि वार आफ वर्ल्डस’ यों कथानक की दृष्टि से लिखी गई है पर उसमें वर्णित तथ्यों से पता चलता है कि अन्य लोकों में भी बुद्धिमान मनुष्यों का अस्तित्व है और वे अपनी जैसी बिरादरी के लोगों के प्रति अभीष्ट दिलचस्पी रखते हैं।

पृथ्वी स्वर्ग लोक की ही प्रतिकृति है। यह देवताओं की किसी समय क्रीडा स्थली रही है। धरती का जीवन देव जीव है। इस दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि वह मध्यकालीन अन्धकार से घिरती चली आई और यह अनाचार अविचार फलने फूलने लगा। मनुष्यों ने अपनी गरिमा को गिराकर प्रेत पिशाच स्तर की बना दिया। दुर्बुद्धि बढ़ी और कुकर्मों की शृंखला चली। प्रेम तिरोहित हुआ और द्वेष दुर्भाव पनपकर दशों दिशाओं को घेरने लगा। उसी का परिणाम है कि निर्वाह के प्रचुर साधन होते हुये भी सर्वत्र शोक संताप के घटाटोप छाने लगे हैं।

पर स्मरण रखना चाहिए कि सूर्यास्त के उपराँत अन्धकार आता है पर वह देर तक ठहरता नहीं । कुछ देर स्तब्धता का साम्राज्य रहता है इसके बाद पुनः ब्राह्ममुहूर्त आता है। उषा काल की लालिमा चमकती है और प्रभातकालीन अरुणोदय होता है।

अगले दिन फिर श्रेष्ठता और प्रगति को लेकर आ रहे हैं। जिन देवताओं ने पृथ्वी को स्वर्ग की प्रतिकृति बनाया था मनुष्य में देवत्व का अंश भरा था। वे अब पुनः इस गई-गुजरी स्थिति को जीर्णोद्धार करने कटिबद्ध हो रहे हैं। इन लोक की खबर सुधि ले रहे हैं। हमारा भाग्योदय और पुनरुत्थान सुनिश्चित हैं।

First 38 40 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शान्ति और सौंदर्य को अपने अन्दर खोजो
  • प्रेम- वह जो प्रतिदान न माँगे
  • व्यावहारिक क्रिया योग
  • मित्रता कहाँ रही (kahani)
  • प्राणायाम और मनोनिग्रह
  • आनन्द भवन में ठहरे (kahani)
  • महानता के प्रति समर्पण
  • Quotation
  • धर्म-धारणा का शाश्वत, अपरिवर्तनशील स्वरूप
  • कबीर हँसकर बोले (kahani)
  • अनुसरण महामानवों का करें
  • अहंकार में भरा हुआ (kahani)
  • मानस - एक कल्पवृक्ष
  • Quotation
  • मनुष्यों की आकृति एक प्रकृति चार
  • सन्त एकनाथ (kahani)
  • प्राणायाम की आरम्भिक विधि व्यवस्था
  • सिकन्दर पढ़ा करता (kahani)
  • सत्संग किनका व कैसे?
  • नाम जप की साधना
  • श्री कृष्णदास पाल (kahani)
  • जन्म भूमि में रहें या अन्यत्र जा बसें
  • भविष्य गढ़ने में प्रसन्नता की भूमिका
  • ऋषियों का प्रसंग (kahani)
  • अधिकार और अनुशासन
  • यादवचन्द्र राय (kahani)
  • विदेशों में पुनर्जन्म मान्यता
  • Quotation
  • संस्कार जन्म-जन्मान्तरों तक साथ चलते हैं।
  • Quotation
  • स्थूल शरीर की सीमित शक्ति
  • गुलाम बना लिया (kahani)
  • जादू चमत्कारों के प्रदर्शन की आवश्यकता क्यों?
  • Quotation
  • शुद्ध पंचांग और दृश्य गणित
  • Quotation
  • संस्कृति और उसकी विवेचना
  • महा याजक शाल्वनेक (kahani)
  • पृथ्वी फिर स्वर्गोपम बनेगी
  • आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय (kahani)
  • मूर्ख निकले, जो समझदार बनते थे
  • Quotation
  • कुछ विचित्र घटनाक्रम
  • पुराण सुनने से (kahani)
  • क्या महाविनाश की पुनरावृत्ति होगी?
  • महात्मा गाँधी (kahani)
  • इक्कीसवीं सदी- नारी शताब्दी
  • भीख माँगा करता (kahani)
  • संगीत की भावधारा से युग चेतना जुड़ें
  • Quotation
  • चैतन्य महाप्रभु (kahani)
  • पंचकोशों की सावित्री साधना
  • Quotation
  • अपनों से अपनी बात- - सभी प्रज्ञा परिजन इस अभिनव प्रशिक्षण को प्राप्त करें
  • महात्मा ईसा (kahani)
  • उनके लिये जियें हम
  • उनके लिये जियें हम (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj