• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शान्ति और सौंदर्य को अपने अन्दर खोजो
    • प्रेम- वह जो प्रतिदान न माँगे
    • व्यावहारिक क्रिया योग
    • मित्रता कहाँ रही (kahani)
    • प्राणायाम और मनोनिग्रह
    • आनन्द भवन में ठहरे (kahani)
    • महानता के प्रति समर्पण
    • Quotation
    • धर्म-धारणा का शाश्वत, अपरिवर्तनशील स्वरूप
    • कबीर हँसकर बोले (kahani)
    • अनुसरण महामानवों का करें
    • अहंकार में भरा हुआ (kahani)
    • मानस - एक कल्पवृक्ष
    • Quotation
    • मनुष्यों की आकृति एक प्रकृति चार
    • सन्त एकनाथ (kahani)
    • प्राणायाम की आरम्भिक विधि व्यवस्था
    • सिकन्दर पढ़ा करता (kahani)
    • सत्संग किनका व कैसे?
    • नाम जप की साधना
    • श्री कृष्णदास पाल (kahani)
    • जन्म भूमि में रहें या अन्यत्र जा बसें
    • भविष्य गढ़ने में प्रसन्नता की भूमिका
    • ऋषियों का प्रसंग (kahani)
    • अधिकार और अनुशासन
    • यादवचन्द्र राय (kahani)
    • विदेशों में पुनर्जन्म मान्यता
    • Quotation
    • संस्कार जन्म-जन्मान्तरों तक साथ चलते हैं।
    • Quotation
    • स्थूल शरीर की सीमित शक्ति
    • गुलाम बना लिया (kahani)
    • जादू चमत्कारों के प्रदर्शन की आवश्यकता क्यों?
    • Quotation
    • शुद्ध पंचांग और दृश्य गणित
    • Quotation
    • संस्कृति और उसकी विवेचना
    • महा याजक शाल्वनेक (kahani)
    • पृथ्वी फिर स्वर्गोपम बनेगी
    • आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय (kahani)
    • मूर्ख निकले, जो समझदार बनते थे
    • Quotation
    • कुछ विचित्र घटनाक्रम
    • पुराण सुनने से (kahani)
    • क्या महाविनाश की पुनरावृत्ति होगी?
    • महात्मा गाँधी (kahani)
    • इक्कीसवीं सदी- नारी शताब्दी
    • भीख माँगा करता (kahani)
    • संगीत की भावधारा से युग चेतना जुड़ें
    • Quotation
    • चैतन्य महाप्रभु (kahani)
    • पंचकोशों की सावित्री साधना
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात- - सभी प्रज्ञा परिजन इस अभिनव प्रशिक्षण को प्राप्त करें
    • महात्मा ईसा (kahani)
    • उनके लिये जियें हम
    • उनके लिये जियें हम (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शान्ति और सौंदर्य को अपने अन्दर खोजो
    • प्रेम- वह जो प्रतिदान न माँगे
    • व्यावहारिक क्रिया योग
    • मित्रता कहाँ रही (kahani)
    • प्राणायाम और मनोनिग्रह
    • आनन्द भवन में ठहरे (kahani)
    • महानता के प्रति समर्पण
    • Quotation
    • धर्म-धारणा का शाश्वत, अपरिवर्तनशील स्वरूप
    • कबीर हँसकर बोले (kahani)
    • अनुसरण महामानवों का करें
    • अहंकार में भरा हुआ (kahani)
    • मानस - एक कल्पवृक्ष
    • Quotation
    • मनुष्यों की आकृति एक प्रकृति चार
    • सन्त एकनाथ (kahani)
    • प्राणायाम की आरम्भिक विधि व्यवस्था
    • सिकन्दर पढ़ा करता (kahani)
    • सत्संग किनका व कैसे?
    • नाम जप की साधना
    • श्री कृष्णदास पाल (kahani)
    • जन्म भूमि में रहें या अन्यत्र जा बसें
    • भविष्य गढ़ने में प्रसन्नता की भूमिका
    • ऋषियों का प्रसंग (kahani)
    • अधिकार और अनुशासन
    • यादवचन्द्र राय (kahani)
    • विदेशों में पुनर्जन्म मान्यता
    • Quotation
    • संस्कार जन्म-जन्मान्तरों तक साथ चलते हैं।
    • Quotation
    • स्थूल शरीर की सीमित शक्ति
    • गुलाम बना लिया (kahani)
    • जादू चमत्कारों के प्रदर्शन की आवश्यकता क्यों?
    • Quotation
    • शुद्ध पंचांग और दृश्य गणित
    • Quotation
    • संस्कृति और उसकी विवेचना
    • महा याजक शाल्वनेक (kahani)
    • पृथ्वी फिर स्वर्गोपम बनेगी
    • आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय (kahani)
    • मूर्ख निकले, जो समझदार बनते थे
    • Quotation
    • कुछ विचित्र घटनाक्रम
    • पुराण सुनने से (kahani)
    • क्या महाविनाश की पुनरावृत्ति होगी?
    • महात्मा गाँधी (kahani)
    • इक्कीसवीं सदी- नारी शताब्दी
    • भीख माँगा करता (kahani)
    • संगीत की भावधारा से युग चेतना जुड़ें
    • Quotation
    • चैतन्य महाप्रभु (kahani)
    • पंचकोशों की सावित्री साधना
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात- - सभी प्रज्ञा परिजन इस अभिनव प्रशिक्षण को प्राप्त करें
    • महात्मा ईसा (kahani)
    • उनके लिये जियें हम
    • उनके लिये जियें हम (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1986 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


प्राणायाम और मनोनिग्रह

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 4 6 Last
एक ही मनुष्य में अक्सर दुहरा व्यक्तित्व पाया जाता है। कभी वह एक तरह सोचता है। कभी उससे भिन्न अथवा प्रतिकूल सोचने लगता है। इस दुहरे व्यक्तित्व का कारण भावनात्मक उतार-चढ़ाव अथवा नये-पुराने संस्कारों का मध्यवर्ती संघर्ष माना जाता रहा है। पर अब शरीर विज्ञान के शोधकर्ताओं ने मानवी मस्तिष्क के दो खण्डों का होना और दोनों की प्रकृति में भिन्नता रहना बताया है। ज्वार-भाटे की तरह यह उतार-चढ़ाव अपने आधिपत्य के समय अपना अधिकार जताते और चलाते हैं। यही दुहरा व्यक्तित्व है।

“क्या मानव शरीर में एक मन है या दो?” अजूबा लगने वाला प्रश्न आज से 20 वर्षों पूर्व नोबुल पुरस्कार विजेता राजर डब्लू. स्पेरी ने अपने आप से किया था। जब वह ऐसे मनःरोगियों पर कार्य कर रहे थे, जिनके मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों को जोड़ने वाला सेतु ‘कार्पस कैलासम’ अथवा ‘दी ग्रेट सेरीव्रल कमीशर’ शल्य क्रियान्तर्गत कट कर अलग हो गये थे। इस प्रक्रिया का कारण यह था कि यदि मस्तिष्क का एक भाग लकवाग्रस्त है तो यह रोग दूसरे भाग पर भी न हो जाय।

ऐसे रोगियों की जाँच करते समय स्पेरी ने यह पाया कि जब मस्तिष्क को दो गोलार्द्धों में विभक्त किया जाता है तो प्रत्येक गोलार्द्ध में अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक पाई जाती है। प्रत्येक गोलार्द्ध की अपनी अलग स्मृति और अलग इच्छाशक्ति पाई गई जिसके फलस्वरूप दोनों गोलार्द्धों में स्पर्धा होने लगती है कि कौन-सा भाग शरीर पर अपना अधिकतम कब्जा जमा सकता है। नोबुल पुरस्कार विजेता के शब्दों में “विभाजित मस्तिष्कीय व्यक्तित्व इस प्रकार व्यवहार करता है जैसे प्रत्येक गोलार्द्ध का अपना अलग-अलग वाला निजी मन हो। इससे यह फलित होता है कि सामान्य स्थिति में मनुष्य जो अनुभव करता है वह इन दोनों मनों के संकलित होते हैं।

इस स्थिति का गहन अध्ययन करने से ऐसे प्रमाण उपलब्ध हुए हैं कि संकलित कार्यों का क्रमबद्ध लय होता है और इस लय को नियन्त्रित करने वाले तरीके भी हो सकते हैं।

एक प्रयोग में दोनों मस्तिष्कों का एक साथ ई. ई. जी. रिकार्ड किया गया। जब इन मस्तिष्कीय तरंगों की सूक्ष्म पड़ताल हुई तो पाया गया कि कुछ समय के लिए एक गोलार्द्ध का आधिपत्य होता है और यह अधिकार कुछ समय बाद दूसरे को दे दिया जाता है। प्रयोगों से पाया गया कि विभिन्न केसों में 25 मिनट से 200 मिनट तक या औसतन दो घण्टों तक इस क्रम का परिवर्तन होता है। सभी व्यक्तियों में तो यह परिवर्तन है ही, एक ही व्यक्ति के विभिन्न ई. ई. जी. भिन्न-भिन्न समयों में परिलक्षित हुए हैं। इस प्रकार के प्रयोग “स्क्रिप्स क्लीनिक के प्री क्लीनिकल न्यूरोसाइन्स एवं एण्डोक्राइनोलॉजी “प्रयोगशाला के निर्देशक फ्लाइड ई. ब्लूम एवं साडिन्गो स्थान (कैली वि. बि. के न्यूरोसाइन्स विभाग) में भी हुए हैं। बाँया गोलार्द्ध को, वाचिक नियन्त्रणकर्ता और दाहिनी को “स्पैशियल” अन्य क्रियाओं का नियन्त्रण कहा जाता है। आठ घण्टों तक लगातार एनकेफेलोग्राम द्वारा निरीक्षण होने पर पाया गया कि जब वाचिक नियन्त्रण गोलार्द्ध में क्रियाशीलता अधिकतम थी तब स्पैशियस में न्यूनतम। इसका उलटा भी पाया गया जबकि स्पैशियल में अधिकतम तो दूसरे में न्यूनतम सक्रियता थी। अत्यधिक क्रियाशीलता के का समय 90 मिनट से 100 मिनटों तक पाया गया।

हैलीफेक्स वि. वि. (कनाडा) के डलहौजी मनोविज्ञान विभाग में गोलार्द्धों की क्रियाशीलता के अध्ययन के साथ अनुसंधानकर्ताओं ने नाक के दोनों नथुनों से चलने वाले ‘नेशल साइकिल’ जैसे कि बांये या दाहिने नाड़ी से चलने वाली श्वास प्रश्वास का भी अध्ययन किया। दाँये बाँये नक्षत्रों से क्रम से चलने वाली श्वसन क्रिया और मस्तिष्कीय दोनों गोलार्द्धों में बारी-बारी वाली क्रियाशीलता का घनिष्ठ सम्बन्ध पाया गया। जो दाहिने नथुने से श्वसन होता रहता है तो बाँये गोलार्द्ध में ई.ई.जी. द्वारा अधिक क्रियाशीलता देखी जा सकती है। इसका उल्टा भी सही है अर्थात् बाँये नाड़ी से श्वसन क्रिया होते समय दाहिने गोलार्द्ध में अधिक क्रियाशीलता परिलक्षित हुई। इस तथ्य की जानकारी प्राप्त कर लेने से मस्तिष्कीय गोलार्द्धों की क्रियाशीलता को परिवर्तित करने का एक सूत्र हाथ लगा। यदि प्रयत्नों से बलपूर्वक दक्षिण स्वर को बांये में बदल दिया जाय, तो 10 या 15 मिनटों के अन्दर मस्तिष्कीय गोलार्ध का भी क्रम बदल जायेगा। दाहिनी भाव वाला गोलार्द्ध सक्रिय हो जायेगा।

यह निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति का ‘मूड’ समय-समय पर बदलता रहता है। मूड बदलने के कारण का सूत्र नासिका से चलने वाली नाड़ी से सम्बन्धित है क्योंकि इस क्रम परिवर्तन के साथ मस्तिष्क के गोलार्द्धों की क्रियाशीलता और कार्य वैमिन्यता परिलक्षित होने लगती है। इस सूत्र के हाथ लगने से पहले जहाँ मूड ठीक करने के लिए अनेकानेक दवायें ली जाता थीं, वही कार्य स्वर परिवर्तन द्वारा आसानी से सम्पन्न हो सकता है।

अमेरिका में हाल में हुई एक कांफ्रेंस मस्तिष्क के विभिन्न गोलार्द्धों के अध्ययन तथा ‘लेटरलिटी साइकोपैथालाजी” पर हुई थी जिसके अध्यक्ष पीरी फ्लोर हैनरी ने बताया कि सभी मनःविक्षिप्त रोगियों में “बाइलेटरल सेरीब्रल डिसफंक्शन” मस्तिष्कीय गोलार्द्धों में असन्तुलन पाया गया है। जहाँ विषाद निराकरण हो वहाँ दाहिना गोलार्द्ध रोगग्रसित पाया गया। सीजोफेनिया या उन्माद के रोगियों में बाँया गोलार्द्ध क्षतिग्रस्त पाया गया। वे या तो अधिक या न्यूनतम सक्रिय थे।

स्वर विन्यास की जानकारी से शिक्षण प्रक्रिया में भी सहायता मिली है। क्रान्तिकारी परिवर्तन लाये गये। तर्क प्रधान भाषा गणित इत्यादि विषयों को समन्वय बांये गोलार्द्धों से है। इनमें पिछड़े बालकों को आगे बढ़ाने के लिए दाहिनी नाक से श्वसन का अभ्यास कराये जाने के सुझाव दिये गये हैं। भावनात्मक एवं सृजनात्मक क्रियाओं में पिछड़े बालकों को बाँई नाक से श्वसन का अभ्यास कराया जाना चाहिए क्योंकि इससे दाहिना मस्तिष्क अधिक क्रियाशील हो जाएगा। स्वर परिवर्तन से हम अपनी मानसिक क्षमताओं में परिवर्तन ला सकते हैं। इस दिशा में प्राचीनकाल से ही प्राणायाम, स्वर विधा, या हंसयोग का प्रावधान रहा है।

दोनों मस्तिष्क विभागों में एकरूपता लाने के लिए प्राणायाम उपचार विशेष रूप से फलप्रद पाया गया है। श्वास-प्रश्वास को विधिवत् चलाने का परिणाम यह होता है कि मस्तिष्क के दोनों भागों के बीच स्वसंचालित हेरा-फेरी पर अपना नियन्त्रण हो जाता है। दोनों भाग पराधीन होने के कारण अपनी मनमानी नहीं कर पाते। अध्यात्म शास्त्र के ज्ञाता कहते हैं कि प्राण को वश में करने से मन वश में हो जाता है। इसका तात्पर्य वही है जो आधुनिक वैज्ञानिकों में अपनी खोज प्रक्रिया के अंतर्गत पाया है। प्राणायाम द्वारा हम मन को वशवर्ती कर सकते हैं और उसे अभीष्ट मार्ग पर चलने के लिए बाधित कर सकते हैं।

First 4 6 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शान्ति और सौंदर्य को अपने अन्दर खोजो
  • प्रेम- वह जो प्रतिदान न माँगे
  • व्यावहारिक क्रिया योग
  • मित्रता कहाँ रही (kahani)
  • प्राणायाम और मनोनिग्रह
  • आनन्द भवन में ठहरे (kahani)
  • महानता के प्रति समर्पण
  • Quotation
  • धर्म-धारणा का शाश्वत, अपरिवर्तनशील स्वरूप
  • कबीर हँसकर बोले (kahani)
  • अनुसरण महामानवों का करें
  • अहंकार में भरा हुआ (kahani)
  • मानस - एक कल्पवृक्ष
  • Quotation
  • मनुष्यों की आकृति एक प्रकृति चार
  • सन्त एकनाथ (kahani)
  • प्राणायाम की आरम्भिक विधि व्यवस्था
  • सिकन्दर पढ़ा करता (kahani)
  • सत्संग किनका व कैसे?
  • नाम जप की साधना
  • श्री कृष्णदास पाल (kahani)
  • जन्म भूमि में रहें या अन्यत्र जा बसें
  • भविष्य गढ़ने में प्रसन्नता की भूमिका
  • ऋषियों का प्रसंग (kahani)
  • अधिकार और अनुशासन
  • यादवचन्द्र राय (kahani)
  • विदेशों में पुनर्जन्म मान्यता
  • Quotation
  • संस्कार जन्म-जन्मान्तरों तक साथ चलते हैं।
  • Quotation
  • स्थूल शरीर की सीमित शक्ति
  • गुलाम बना लिया (kahani)
  • जादू चमत्कारों के प्रदर्शन की आवश्यकता क्यों?
  • Quotation
  • शुद्ध पंचांग और दृश्य गणित
  • Quotation
  • संस्कृति और उसकी विवेचना
  • महा याजक शाल्वनेक (kahani)
  • पृथ्वी फिर स्वर्गोपम बनेगी
  • आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय (kahani)
  • मूर्ख निकले, जो समझदार बनते थे
  • Quotation
  • कुछ विचित्र घटनाक्रम
  • पुराण सुनने से (kahani)
  • क्या महाविनाश की पुनरावृत्ति होगी?
  • महात्मा गाँधी (kahani)
  • इक्कीसवीं सदी- नारी शताब्दी
  • भीख माँगा करता (kahani)
  • संगीत की भावधारा से युग चेतना जुड़ें
  • Quotation
  • चैतन्य महाप्रभु (kahani)
  • पंचकोशों की सावित्री साधना
  • Quotation
  • अपनों से अपनी बात- - सभी प्रज्ञा परिजन इस अभिनव प्रशिक्षण को प्राप्त करें
  • महात्मा ईसा (kahani)
  • उनके लिये जियें हम
  • उनके लिये जियें हम (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj