• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ईश्वर का दर्शन-पवित्र अन्तःकरण में
    • यहाँ न्याय है, अन्याय नहीं
    • व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी, सत्चेतन धन आनन्द राशि
    • भक्त भाव विभोर होकर (Kahani)
    • जीवन- ईश्वर का एक अनुपम अनुदान
    • सम्राट अशोक का साहस (Kahani)
    • सच्चा श्राद्ध
    • वैष्णव की करुणाभरी आत्मीयता
    • सृष्टि रचना के उपरान्त (Kahani)
    • यह दलाली कोई घाटे का सौदा नहीं
    • साधु और डाकू (Kahani)
    • अपने भाग्य का विधाता स्वयं मनुष्य
    • काट गिराने का निश्चय किया (Kahani)
    • राजयोग के प्रारम्भिक अनुशासन
    • स्वामी विवेकानन्द (kahani)
    • चेतना की उदात्तीकरण प्रक्रिया
    • अमीर ने वसीयत लिखी (Kahani)
    • प्रत्यक्ष साधना और प्रत्यक्ष सिद्धि
    • साधु के पास जाया करता (Kahani)
    • स्थूल से गुँथी सूक्ष्म शरीर की सत्ता
    • कुरुक्षेत्र में रणभेरियाँ (Kahani)
    • प्राणतत्व के उभार की चमत्कारी परिणति
    • आचार्य रामानुज (kahani)
    • चेतना के महासागर में दबी विलक्षण संभावनाएँ
    • Quotation
    • व्यक्तित्व के विकास का उद्गम केन्द्र
    • मनःक्षेत्र के खरपतवार उखाड़ें
    • अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा (kahani)
    • कुण्डलिनी का उर्ध्वगमन
    • समाज सेवी रविशंकर (Kahani)
    • प्राणविद्युत के संवर्धन से तेजोवलय का अभिवर्धन
    • Quotation
    • सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय
    • Quotation
    • अन्तरिक्ष वासी पृथ्वी पर आते रहें
    • संगीत को शालीनता की दिशा मिले
    • Quotation
    • वनौषधियाँ चमत्कार क्यों नहीं दिखातीं?
    • वन विहार में रास्ता (Kahani)
    • हँसे तो दिल खोलकर
    • पर्व त्यौहारों की उद्देश्यपूर्ण परम्परा
    • Quotation
    • ज्ञान और विज्ञान के शक्ति स्रोत- गायत्री और यज्ञ
    • Quotation
    • महायज्ञों द्वारा वायुमण्डल और वातावरण का परिशोधन
    • धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए (Kahani)
    • गायत्री-माहात्म्य
    • Quotation
    • सूर्य की सविता शक्ति का विवेचन-2
    • उसी घाट पर एक घड़ियाल (Kahani)
    • उपवास रोग निवारक भी! शक्तिवर्धक भी!
    • महाराज प्रद्युम्न का शरीर (Kahani)
    • शान्तिकुँज का एकेडमी में परिवर्तन नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ एवं विस्तार
    • आत्मा से
    • आत्मा से (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ईश्वर का दर्शन-पवित्र अन्तःकरण में
    • यहाँ न्याय है, अन्याय नहीं
    • व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी, सत्चेतन धन आनन्द राशि
    • भक्त भाव विभोर होकर (Kahani)
    • जीवन- ईश्वर का एक अनुपम अनुदान
    • सम्राट अशोक का साहस (Kahani)
    • सच्चा श्राद्ध
    • वैष्णव की करुणाभरी आत्मीयता
    • सृष्टि रचना के उपरान्त (Kahani)
    • यह दलाली कोई घाटे का सौदा नहीं
    • साधु और डाकू (Kahani)
    • अपने भाग्य का विधाता स्वयं मनुष्य
    • काट गिराने का निश्चय किया (Kahani)
    • राजयोग के प्रारम्भिक अनुशासन
    • स्वामी विवेकानन्द (kahani)
    • चेतना की उदात्तीकरण प्रक्रिया
    • अमीर ने वसीयत लिखी (Kahani)
    • प्रत्यक्ष साधना और प्रत्यक्ष सिद्धि
    • साधु के पास जाया करता (Kahani)
    • स्थूल से गुँथी सूक्ष्म शरीर की सत्ता
    • कुरुक्षेत्र में रणभेरियाँ (Kahani)
    • प्राणतत्व के उभार की चमत्कारी परिणति
    • आचार्य रामानुज (kahani)
    • चेतना के महासागर में दबी विलक्षण संभावनाएँ
    • Quotation
    • व्यक्तित्व के विकास का उद्गम केन्द्र
    • मनःक्षेत्र के खरपतवार उखाड़ें
    • अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा (kahani)
    • कुण्डलिनी का उर्ध्वगमन
    • समाज सेवी रविशंकर (Kahani)
    • प्राणविद्युत के संवर्धन से तेजोवलय का अभिवर्धन
    • Quotation
    • सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय
    • Quotation
    • अन्तरिक्ष वासी पृथ्वी पर आते रहें
    • संगीत को शालीनता की दिशा मिले
    • Quotation
    • वनौषधियाँ चमत्कार क्यों नहीं दिखातीं?
    • वन विहार में रास्ता (Kahani)
    • हँसे तो दिल खोलकर
    • पर्व त्यौहारों की उद्देश्यपूर्ण परम्परा
    • Quotation
    • ज्ञान और विज्ञान के शक्ति स्रोत- गायत्री और यज्ञ
    • Quotation
    • महायज्ञों द्वारा वायुमण्डल और वातावरण का परिशोधन
    • धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए (Kahani)
    • गायत्री-माहात्म्य
    • Quotation
    • सूर्य की सविता शक्ति का विवेचन-2
    • उसी घाट पर एक घड़ियाल (Kahani)
    • उपवास रोग निवारक भी! शक्तिवर्धक भी!
    • महाराज प्रद्युम्न का शरीर (Kahani)
    • शान्तिकुँज का एकेडमी में परिवर्तन नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ एवं विस्तार
    • आत्मा से
    • आत्मा से (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


स्थूल से गुँथी सूक्ष्म शरीर की सत्ता

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 19 21 Last
मोटी दृष्टि से देखने पर मनुष्य अन्य प्राणियों की तरह हलचल व हरकत करता हुआ काया मात्र दिखाई पड़ता है। परस्पर भेद उपभेद भी कम ही मालूम पड़ते हैं। मनुष्यों की कायिक संरचना और प्रकृति-प्रवृत्ति भी प्रायः एक जैसी ही प्रतीत होती है। पर तथ्यों को तर्क अथवा उपकरणों के माध्यम से देखने, वर्गीकरण विश्लेषण करने पर उनमें बहिरंग एवं अन्तरंग अन्तर भी बहुत दीख पड़ता है। इसी आधार पर उनके व्यक्तित्वों का मूल्यांकन भी किया जाता है। कोई समर्थ, बुद्धिमान साहसी, संतुलित, दूरदर्शी, प्रगतिशील दीख पड़ता है तो किन्हीं में इस विशेषताओं की न्यूनता एवं अनुपस्थिति भी पाई जाती है। यों यह गुण प्रत्यक्ष आँखों से नहीं देखे जा सकते। छुए या नापे तौले भी नहीं जा सकते। तो भी उनके भाव-अभाव से इन्कार नहीं किया जा सकता। इन्हीं के आधार पर प्रगतिशील एवं प्रतिगामिता के तथ्य उभरते हैं। यह विशेषताएँ सूक्ष्म रूप से अंतर्गत में रहती हैं। उन्हें समझने के लिए सूक्ष्मदर्शी विश्लेषण बुद्धि की आवश्यकता पड़ती है। इसी आधार पर किसी की महिमा-गरिमा एवं गुणवत्ता को आँका जा सकता है।

स्थूल शरीर के साथ जुड़ी हुई ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ अपना-अपना काम करती रहती हैं और कायिक जीवन की गाड़ी को आगे धकेलती रहती हैं।

बाहर उभरे और प्रत्यक्ष दीख पड़ने वाले अवयवों के अतिरिक्त चमड़े की भीतर भी अनेक छोटी-बड़ी इकाइयाँ हैं जो दीख नहीं पड़ती। उनमें हलचल तो रहती है। पर प्रत्यक्ष नहीं देखी जा सकती। प्रत्यक्ष साधनों से उनकी गतिविधियों का पता नहीं चलता, कभी उनमें खराबी आ जाती है तो पीड़ा, सूजन, अवरोध आदि का तो भान होता है, पर यह नहीं जाना जाता कि किस स्थान पर क्या गड़बड़ी चल रही है। इसके लिए अन्य सूक्ष्म माध्यमों का ही प्रयोग करना पड़ता है और उसी आधार पर उस कष्ट का उपचार संभव होता है।

यह स्थूल शरीर के क्रिया-कलापों का संक्षिप्त-सा विवेचन है, जिसे अवस्थिति एवं सक्रिय होते हुए भी उसका बहुत थोड़ा अंश ही देख समझ पाते हैं। यहाँ इस संदर्भ में यह जानना भी आवश्यक है कि प्रत्यक्ष दीख पड़ने वाला एक शरीर ही सब कुछ नहीं है। इसके अतिरिक्त भी अन्य शरीर एक के भीतर एक घुसे हुए हैं। कुल मिलाकर यह तीन शरीर हैं। प्रत्यक्ष दीख पड़ने वाले को स्थूल शरीर कहते हैं। इनके अतिरिक्त दो और हैं, एक सूक्ष्म दूसरा कारण। इनका शवच्छेद की तरह अलग-अलग पृथक्करण तो नहीं किया जा सकता, किन्तु यह नितान्त संभव है। उनके गुण धर्म को गतिशील रहते देखकर बुद्धिपूर्वक पहचाना जा सकता है कि इनकी स्वतन्त्र सत्ता मौजूद है और क्रमशः एक दूसरे से अधिक समर्थ है। स्थूल से सूक्ष्म की और सूक्ष्म से कारण की सत्ता एवं महत्ता अधिक बलवती है।

तीनों शरीर परस्पर गुँथे हुए हैं। उन्हें प्याज के छिलकों या केलों के तनों की तरह अलग-अलग तो नहीं किया जा सकता, किन्तु इस प्रकार यह जाना जा सकता है कि गुलाब के फूल के रंग, महक, स्वाद एवं रासायनिक संचालन में पृथक्-पृथक तत्वों का समीकरण होता है। यदि प्रयोगशाला में इनका पृथक्करण-वर्गीकरण किया जाय तो उन विभागों को अलग-अलग आकार-प्रकार में देखा समझा जा सकता है।

स्थूल और सूक्ष्म का अन्तर प्रत्यक्ष है। स्थूल शरीर पंचतत्वों के सूक्ष्म घटकों से बना है। उन्हें तत्वों, रक्त, माँस, अस्थि, मज्जा आदि के रूप में देखा जा सकता है। कर्मेन्द्रियों से शरीर-चर्या एवं लोक व्यवहार के विविध विधि क्रिया-कलाप चलते हैं। सूक्ष्म शरीर पंच प्राणों का बना है। उनके प्रतीक पाँच शक्ति केन्द्र हैं, जिन्हें पंचकोश भी कहते हैं। अन्नमय-कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय-कोश, आनन्दमय कोश के रूप में इनकी पहचान की जाती है। इन पंचप्राणों का समन्वय महाप्राण के रूप में समझा जाता है। जीवन चेतना यही है। इसके रूप में पृथक् हो जाने पर मृत्यु हो जाती है। मरे शरीर का तात्विक विश्लेषण करने पर उसमें वे सभी रसायन पाये जाते हैं जिनसे शरीर बना है। किन्तु उसमें से महाप्राण-चेतना का पलायन हो जाने पर वह निरर्थक हो जाता है। स्वयं सड़ने और नष्ट होने की क्रिया आरम्भ कर देता है। जिन्हें इस निरर्थक का अन्त सुव्यवस्थित रीति से करना हो वे उसका अग्नि-भूमि या जल के साथ जल्दी समापन कर देते हैं।

प्रश्न यह उठता है कि मरने के उपरान्त जो वस्तु शरीर छोड़कर चली गई, वह क्या थी? उसका स्वरूप क्या था? जीवन काल में कहाँ-कहाँ रही? क्या करती रही? और मरने के उपरान्त उसका क्या हो गया? उसकी भावी गतिविधि क्या बनी? इन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के पहले हमें सूक्ष्म शरीर का स्वरूप समझना चाहिए। इसके उपरान्त ही प्रारम्भिक पृष्ठभूमि समझ लेने के उपरान्त यह समझ सकना होगा कि जीवन काल में वह क्या करता है? और मरने के उपरान्त उसकी गतिविधियों का क्षेत्र क्या हो जाता है?

जीवन काल में सूक्ष्म शरीर का स्वरूप ‘ज्ञान’ के रूप में होता है। इसका केन्द्रीय कार्यालय मस्तिष्क माना जा सकता है। यों वह चेतना स्थूल शरीर के कारण शरीर में समाहित है। ज्ञान-तन्तु सूक्ष्म शरीर में फैले हुए हैं। वे अपने-अपने क्षेत्र की आवश्यक सूचनाओं को मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं। परिस्थिति से निपटने के लिए क्या उपाय अपनाया जाना चाहिए इसका निर्देश मस्तिष्क से तुर्त-फुर्त प्राप्त करते हैं और तदनुसार अंग काम करने लगते हैं।

ज्ञानेन्द्रियों में अतिरिक्त काम करने की शक्ति भी है और आनन्द प्राप्त करने की क्षमता भी। आँखें दृश्यों को देखती भी हैं साथ ही दृश्य की सुन्दरता का, विचित्रता का आनन्द भी लेती हैं। यही बात जिह्वा, कान, नाक, त्वचा, जननेन्द्रिय आदि के संबंध में भी है। वे शरीर यंत्र से संबंधित अपने-अपने व्यवहार कर्मों का निर्वाह भी करती हैं। यदि काया के साथ यह बहुविधि सरसता जुड़ी न होती तो समयक्षेप भारभूत हो जाता। इसके अतिरिक्त निर्वाह के लिए जो प्रयत्न करना पड़ता है, साधन जुटाने में, परिस्थितियों से निपटने के निमित्त जो ताना-बाना बुनना पड़ता है वह भी संभव न होता। यह सूक्ष्म शरीर का सामान्य क्रिया-कलाप है जो मृत्यु हो जाने पर अनायास ही बन्द हो जाता है। वस्तुस्थिति को समझने पर अनुभूत होता है कि स्थूल शरीर के साथ सूक्ष्म शरीर की सत्ता उसी प्रकार घुली हुई है जैसी कि दूध में घी, और फूल में इत्र घुला होता है। उन्हें चाकू के काटकर तो अलग नहीं किया जा सकता, पर अन्य अवसरों पर यह अनुभव किया जा सकता है कि कोई विशेष सत्ता अपना अस्तित्व रखे हुए अदृश्य थी। जिसके कारण उसकी शोभा, सक्रियता बनी हुई थी। घी निकाल लेने पर दूध मात्र छाछ रह जाता है। इत्र निकाल लेने पर फूल कचरा मात्र रह जाता है। इसी प्रकार स्थूल और सूक्ष्म शरीर की श्रृंखला जब टूट जाती है तो दोनों अपनी वास्तविक स्थिति का परिचय देने लगते हैं।

First 19 21 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ईश्वर का दर्शन-पवित्र अन्तःकरण में
  • यहाँ न्याय है, अन्याय नहीं
  • व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी, सत्चेतन धन आनन्द राशि
  • भक्त भाव विभोर होकर (Kahani)
  • जीवन- ईश्वर का एक अनुपम अनुदान
  • सम्राट अशोक का साहस (Kahani)
  • सच्चा श्राद्ध
  • वैष्णव की करुणाभरी आत्मीयता
  • सृष्टि रचना के उपरान्त (Kahani)
  • यह दलाली कोई घाटे का सौदा नहीं
  • साधु और डाकू (Kahani)
  • अपने भाग्य का विधाता स्वयं मनुष्य
  • काट गिराने का निश्चय किया (Kahani)
  • राजयोग के प्रारम्भिक अनुशासन
  • स्वामी विवेकानन्द (kahani)
  • चेतना की उदात्तीकरण प्रक्रिया
  • अमीर ने वसीयत लिखी (Kahani)
  • प्रत्यक्ष साधना और प्रत्यक्ष सिद्धि
  • साधु के पास जाया करता (Kahani)
  • स्थूल से गुँथी सूक्ष्म शरीर की सत्ता
  • कुरुक्षेत्र में रणभेरियाँ (Kahani)
  • प्राणतत्व के उभार की चमत्कारी परिणति
  • आचार्य रामानुज (kahani)
  • चेतना के महासागर में दबी विलक्षण संभावनाएँ
  • Quotation
  • व्यक्तित्व के विकास का उद्गम केन्द्र
  • मनःक्षेत्र के खरपतवार उखाड़ें
  • अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा (kahani)
  • कुण्डलिनी का उर्ध्वगमन
  • समाज सेवी रविशंकर (Kahani)
  • प्राणविद्युत के संवर्धन से तेजोवलय का अभिवर्धन
  • Quotation
  • सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय
  • Quotation
  • अन्तरिक्ष वासी पृथ्वी पर आते रहें
  • संगीत को शालीनता की दिशा मिले
  • Quotation
  • वनौषधियाँ चमत्कार क्यों नहीं दिखातीं?
  • वन विहार में रास्ता (Kahani)
  • हँसे तो दिल खोलकर
  • पर्व त्यौहारों की उद्देश्यपूर्ण परम्परा
  • Quotation
  • ज्ञान और विज्ञान के शक्ति स्रोत- गायत्री और यज्ञ
  • Quotation
  • महायज्ञों द्वारा वायुमण्डल और वातावरण का परिशोधन
  • धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए (Kahani)
  • गायत्री-माहात्म्य
  • Quotation
  • सूर्य की सविता शक्ति का विवेचन-2
  • उसी घाट पर एक घड़ियाल (Kahani)
  • उपवास रोग निवारक भी! शक्तिवर्धक भी!
  • महाराज प्रद्युम्न का शरीर (Kahani)
  • शान्तिकुँज का एकेडमी में परिवर्तन नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ एवं विस्तार
  • आत्मा से
  • आत्मा से (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj