
चेतना के महासागर में दबी विलक्षण संभावनाएँ
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ऐसा क्यों होता है कि किसी व्यक्ति को देखकर अपनापन महसूस होता है व लगता है, उससे ढेरों बात की जाय? उसके व्यक्तित्व का आकर्षण क्यों किसी को सम्मोहित कर देता है? उलटे कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें देखकर न जाने क्यों मन करता है कि इस मनहूस सूरत से जितना दूर रहा जाय, उतना ही अच्छा। प्रश्न शक्ल की बदसूरती का नहीं, वरन् विचारों की भावनाओं की मनहूसियत का है जो सामने वाले को, बातचीत के माध्यम से संपर्क में आने वाले को सतत् विकर्षित करती रहती है।
इसका कारण बताते हुए मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अन्यान्य शक्तियों की तरह मानवी चेतना के साथ जैवचुम्बकत्व भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वही किसी व्यक्ति के अन्दर ऐसी विशेषताएँ भर देता है कि परिकर पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। कभी-कभी, यदा-कदा यह चुम्बकत्व परोक्ष रूप में ही न रह कर सक्रिय शक्ति के रूप में भी उभरकर अपनी उपस्थिति का परिचय देने लगता है। वस्तुतः आत्म चेतना सम्पूर्ण शरीर में संव्याप्त है। यह आवश्यक नहीं कि वह अमुक इन्द्रियों के सहारे ही अभीष्ट ज्ञान प्राप्त करे। यह भी हो सकता है कि वह एक इन्द्रिय की अपेक्षा दूसरे अवयव को माध्यम बना ले और प्राण ऊर्जा के विभिन्न उपादानों के सहारे आवश्यक ज्ञान प्राप्त करे।
एक उल्लेखनीय घटना पश्चिम जर्मनी के लुई हैंबर्ग की है। यह लड़का जिन धातु पदार्थों को छूता, वे उससे चिपक जाते और किसी दूसरे द्वारा बलपूर्वक छुड़ाये जाने पर ही छूटते। उसके अन्दर एक शक्तिशाली चुम्बक सक्रिय स्थिति में विद्यमान पाया गया। मेरीलैण्ड विश्वविद्यालय ने इस विचित्रता पर बहुत खोज-बीन की पर वैज्ञानिक किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाये।
ओण्टोरियो (कनाडा) के वाँन्डन क्षेत्र में जन्मी एक लड़की मात्र 17 वर्ष तक जीवित रही। पर जब तक वह जीवित थी, चर्चा का विषय बनी रही। वह जहाँ भी जाती धातु का सामान उसके शरीर से आकर्षित हो, चिपक जाता था। उसके भोजन हेतु लकड़ी या काँच के पात्र एवं निवास भी लड़की का बनाया गया था। उसकी अल्पायु में मृत्यु के बारे में वैज्ञानिक मनीषी जेफ्री मिशलेख का मत है कि शक्ति धारा जब तक जीव कोशों के बंधन में रहती है, तब तक तो जीवन-चक्र सुव्यवस्थित चलता रहता है। परन्तु इसके निस्सृत होने का मार्ग बनने व किसी और शक्ति के रूप में प्रकट हो क्षीण होते चले जाने पर आयु उसी अनुपात के कम हो जाती है।
शारीरिक, मानसिक चुम्बकत्व पर वैज्ञानिकों ने गहन अनुसंधान किया व इसे भी एक विभूति माना है। डॉ. फ्रैज एण्टन मैस्मर उस चिकित्सक का नाम है, जिसने मैस्मरेज्म-सम्मोहन विद्या की खोज की थी। अपने अनुसंधान कार्य में उन्होंने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया था कि अविज्ञात नक्षत्रों से एक चुम्बकीय पदार्थ सूक्ष्म रूप में इस धरती पर आता है और सारे धरतीवासियों को प्रभावित करता है। इस पदार्थ का जब भी शरीर में सन्तुलन गड़बड़ाता है तो विभिन्न प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होने लगते हैं। इस संतुलन को ठीक करने के लिये डॉ. फ्रैज एण्टन मेस्मर चुम्बकों का प्रयोग करते थे। बाद में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों के शरीर से सहजन रूप में चुम्बकीय धारा प्रवाहित होती रहती है, जिसे उन्होंने “एनिमल मैग्नेटिज्म” नाम दिया। ये व्यक्ति हीलर या डिवाइन थेरेपीस्ट कहलाये जाने लगे। स्वयं मेस्मर ने सन् 1778 में पेसि में इस चिकित्सा पद्धति द्वारा अगणित व्यक्तियों को ठीक कर अच्छा खासा नाम कमा लिया था। ऐसा कहा जाता है कि प्रसिद्ध संगीतज्ञ मोजार्ट, किंग लुई 16 व महारानी, मेरी एण्टोइने एवं आस्ट्रिया की महारानी मारिया थेरेसा उन रोगियों में से थे जिन्हें मेस्मर की चुम्बकीय चिकित्सा पद्धति से लाभ मिला। मेस्मर की हिप्नोटिज्म एवं परामनोवैज्ञानिक शक्ति द्वारा लायी गयी कृत्रिम निद्रा की स्थिति (सोम्नेम्बुलिज्म) बाद में अच्छा खासा विवाद का विषय बनी, परन्तु उसका मूलभूत सिद्धान्त मेस्मरवादियों ने एनिमल मैग्नेटिज्म को ही माना व आज भी सायकिक हीलिंग के मूल में परामनोविज्ञानी चुम्बकीयधाराओं का चिकित्सक से रोगी में प्रवेश ही प्रधान मानते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिकों ने मैग्नेरोमीटर्स का प्रयोग कर हृदय एवं मस्तिष्क में बहने वाली चुम्बकीयधाराओं का मापन करने में सफलता पायी है। सुपर कण्डक्टींग क्वान्टम इन्टरफरेन्स डिवाइस (स्क्वीड) ऐसे ही एक संयंत्र का नाम है जो बहुत ही क्षीण धारा पर काम कर डी.सी. एवं आल्टरनेटिंग मैग्नेटीक फील्ड, जिसकी ईकाई “टेस्ला” है, का पता लगा होता है। स्क्वीड इतना संवेदनशील यंत्र है कि एक नाल चुम्बक से 400 मीटर दूर खड़े व्यक्ति में उसके कारण शरीर की चुम्बकीय धाराओं में हो रहे परिवर्तनों को मापने की यह क्षमता रखता है। हो सकता है कि ऐसे अपवाद जो लुई हैंबर्ग व अन्य व्यक्तियों के रूप में जन्म लेते हैं, अब शोध प्रतिपादनों से शरीर के सूक्ष्म संस्थान की और भी विशद जानकारी अगले दिनों दे सकें। इसी संयंत्र द्वारा मैग्नेटोकार्डियोग्राम (एम.सी.जी.) एवं मैग्नेटोएनसेफेलोग्राम (एम.ई.जी.) की रिकॉर्डिंग भी अब संभव होने लगी है एवं ऐसी सूक्ष्म व्याधियों का पता लगाने में सफलता पाई है जो सामान्य उपकरणों-इलेक्ट्रोकार्डियो एवं एनसेफेलेग्राफी-इकोग्राफी इत्यादि के माध्यम से पकड़ में अक्सर नहीं आती।
अथर्ववेद में रेत द्वारा चुम्बकीय शक्ति से ओत-प्रोत लौह कणों के माध्यम से शरीर से रक्त स्राव रोकने एवं चुम्बक द्वारा स्त्री रोगों के उपचार का प्रसंग स्थान-स्थान पर आया है। ज्ञातव्य है कि चुम्बक में भी रेत, बेरियम एवं आयरन ऑक्साइड होता है। मिस्र की सुन्दरी क्लेयोपेट्रा के बारे में प्रसिद्ध था कि वह अपनी सुन्दरता बनाये रखने के लिये सदैव माथे पर एक छोटा-सा चुम्बक लगाये रखती थी।
मेस्मर से भी पहले स्विस चिकित्सक पैरासेल्सस ने जैवचुंबकत्व की विशेषता एवं बाह्य चुम्बक द्वारा मानवी काया के विभिन्न दोषों एवं मनोविकारों की चिकित्सा की संभावनाओं का वर्णन किया है। मेस्मर ने इसी सिद्धान्त को आगे चलकर प्रचारित कर मैस्मरेज्म-हिप्नोटिज्म को प्रचलित किया।
टाइम पत्रिका ने मानवी चुंबकत्व पर एक विचित्र केस वैज्ञानिकों के समक्ष कुछ वर्षों पूर्व रखा था। ओण्टोरियो (कनाडा) की कैरोलिन क्लेयर नामक एक महिला को स्नायु संस्थान संबंधी एक रोग ने आ घेरा। धीरे-धीरे आँशिक पक्षाघात की स्थिति से ठीक होते-होते वह जब स्वस्थ स्थिति में पहुँचने को ही थी कि उसमें एक नया परिवर्तन देखा गया कि वह धातु से बनी किसी भी चीज को छूती तो वह उससे चिपक जाती। बड़ी कठिनाई से उसे छुड़ाया जाता। जैव चुंबकत्व का यह प्रवाह स्नायु संस्थान की किस गड़बड़ी के ठीक होने अथवा नयी गड़बड़ी या “लीकेज” होने के कारण होने लगा, इसका वैज्ञानिक कोई समाधान खोज नहीं पाए।
टाइम पत्रिका ने मानवी चुंबकत्व पर एक विचित्र केस वैज्ञानिकों के समक्ष कुछ वर्षों पूर्व रखा था। ओण्टोरियो (कनाडा) की कैरोलिन क्लेयर नामक एक महिला को स्नायु संस्थान संबंधी एक रोग ने आ घेरा। धीरे-धीरे आँशिक पक्षाघात की स्थिति से ठीक होते-होते वह जब स्वस्थ स्थिति में पहुँचने को ही थी कि उसमें एक नया परिवर्तन देखा गया कि वह धातु से बनी किसी भी चीज को छूती तो वह उससे चिपक जाती। बड़ी कठिनाई से उसे छुड़ाया जाता। जैव चुंबकत्व का यह प्रवाह स्नायु संस्थान की किस गड़बड़ी के ठीक होने अथवा नयी गड़बड़ी या “लीकेज” होने के कारण होने लगा, इसका वैज्ञानिक कोई समाधान खोज नहीं पाए।