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Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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शान्तिकुँज का एकेडमी में परिवर्तन नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ एवं विस्तार

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शान्तिकुँज के क्रिया-कलापों का असाधारण गति से विस्तार हो रहा है। उसकी गतिविधियाँ दूर-दूर तक अपना प्रकाश फैला रही हैं। और विज्ञजनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। मिशन के प्रयासों की जानकारी प्राप्त करने तथा जो किया जा रहा है उससे लाभान्वित होने के लिए, अनेकानेक ऐसे लोगों का मन बन रहा है, जिनका इससे पूर्व कोई परिचय या संबंध नहीं था। इस प्रकार के अगणित लोग आये दिन आते और अपनी जरूरतों का समाधान प्राप्त करते रहते हैं।

आश्रम के नाम में परिवर्तन

शान्तिकुँज तथा ब्रह्मवर्चस् दोनों के नाम ऐसे हैं जिनसे इनमें चल रही गतिविधियों का स्पष्ट परिचय नहीं मिलता। विशेषतया अहिन्दी भाषी लोगों को अधिक कठिनाई होती है। वे दोनों आश्रमों का नाम तक ठीक प्रकार उच्चारण नहीं कर पाते और न उनका अर्थ, कार्यों का स्वरूप ही समझ पाते हैं।

इस कठिनाई को ध्यान में रखते हुए आश्रम का नाम भी उनकी प्रवृत्तियों के अनुरूप सरल अँग्रेजी में अनूदित कर दिया गया है। इनके बोड़ो में भी आवश्यक सुधार परिवर्तन किया जा रहा है। इससे विदेशों से आने वालों तथा भारत के अहिन्दी भाषियों को सुविधा रहेगी। शान्तिकुँज को अब “शान्तिकुँज अकादमी (्नष्ड्डस्रद्गद्वब्)” नाम से जाना जायेगा ताकि उसका स्वरूप विद्यापीठ-प्राचीनकाल के विश्वविद्यालयों जैसा भासित होने लगे। ब्रह्मवर्चस् की शोध प्रक्रिया भी अब इस शिक्षण का एक अंग होगी। शिक्षण शान्तिकुँज में भी चलता है एवं ब्रह्मवर्चस् में भी। शोध कार्य भी दोनों जगह सम्पन्न होता है। इस प्रकार “शान्तिकुँज एकेडमी” शब्द के अंतर्गत ब्रह्मवर्चस् का नूतन शोध अनुसंधान भी समाहित हो गया है।

शानदार युग शिल्पी सत्र

पिछले वर्ष से शान्तिकुँज हरिद्वार की प्रशिक्षण प्रक्रिया, व्यक्तित्व निर्माण की, ज्ञानपीठ जैसे स्तर की रही है। उसमें एक साथ कई-कई सत्र चलते रहे हैं। नैतिक बौद्धिक और सामाजिक क्रान्ति के विभिन्न पक्षों से अवगत होने और उनके लिए आन्दोलन स्तर का प्रयास चलाने के लिए प्रचारक तैयार किये जाते रहे हैं। इस निमित्त प्रारम्भ में एक-एक महीने के युग शिल्पी सत्र चले। इन सत्रों में औसतन 100 शिक्षार्थी सम्मिलित होते रहे। स्थापित 2400 प्रज्ञापीठों के समीपवर्ती क्षेत्र में सत्प्रवृत्ति-संवर्धन के लिए प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओं की महती आवश्यकता अनुभव की जा रही थी। उसकी पूर्ति इन युग शिल्पियों से पूरी होने लगी है। उन्हें भाषण, सुगम-संगीत, कर्म-काण्डों के माध्यम से लोक शिक्षा, सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन जैसे अनेक प्रयोजनों को कार्यान्वित करने की शिक्षा दी जाती है। प्रायः सभी शिक्षार्थी लोक सेवा के लिए प्राणपण से काम करने की प्रतिज्ञाएँ लेकर गये। उनने अपने-अपने क्षेत्र में प्रौढ़ शिक्षा प्रसार, वृक्षारोपण, व्यायामशालाओं का संस्थापन, झोला पुस्तकालय, दीवारों पर आदर्श वाक्य लेखन, जन्मदिवसोत्सवों के माध्यम से परिवार निर्माण की गोष्ठियाँ आदि अनेकों रचनात्मक कार्य जाते रहे आरंभ कर दिये। तीन-तीन की टोलियाँ बनाई। जो शान्तिकुँज में सीखा था उसे अपने क्षेत्र में कार्यकर्त्ताओं को सिखाने के लिए पाठशालाएँ चलाई। यह प्रशिक्षण व्यवस्था आगे भी यथावत् जारी रहेगी।

व्यक्तित्व एवं प्रतिभा विकास सत्र

यह नौ-नौ दिन के सत्र हर महीने पहली से नौ तक-ग्यारह से बीस तक-बाईस से उनतीस तक चलते हैं। इनका उद्देश्य चिन्तन, चरित्र और व्यवहार में शालीनता का अधिकाधिक समावेश करने की विधि-व्यवस्था सिखाना है। आत्म-निर्माण, परिवार-निर्माण और समाज निर्माण के लिए भिन्न परिस्थितियों में किन्हें क्या करना चाहिए? इसके सभी पहलुओं को ऐसी शैली में समझाया जाता है कि मात्र सिद्धान्तवाद की दार्शनिक व्याख्या विवेचना ही न होती रहे, वरन् उसे वर्तमान विषम परिस्थितियों में भी कार्यान्वित किया जा सके।

लोग समर्थ, सम्पन्न, विद्वान, कलाकार तो बनते जा रहे हैं, पर जीवन को प्राणवान, प्रभावशाली, सुसंस्कृत, समुन्नत बनाने की दिशा में वैसा कुछ कर नहीं पा रहे जो आसानी से किया जा सकता था। प्रखर और प्रामाणिक व्यक्ति ही किसी देश की वास्तविक पूँजी हैं। जिनका दृष्टिकोण, चरित्र, व्यवहार सज्जनता सम्पन्न है, वे ही सच्चे अर्थों में भौतिक एवं आत्मिक प्रगति कर पाते हैं। प्रगतिशीलता का अर्थ साधन सम्पन्न होना ही नहीं, व्यक्तित्व की दृष्टि से ओजस्, तेजस्, वर्चस् जैसी विभूतियों से सम्पन्न होना भी है। इन नौ दिवसीय सत्रों में इस उपलब्धि के लिए सरलतापूर्वक अपनाई जा सकने की प्रक्रिया हृदयग्राही ढंग से सिखाई जाती है।

इस सत्र में नौ दिवसीय गायत्री अनुष्ठान, साधना का भी समावेश है, ताकि आत्मिक क्षेत्र की प्रसुप्त सूक्ष्म शक्तियों का जागरण भी सम्भव हो सके। यह सत्र बड़ी सफलतापूर्वक चल रहे हैं। हर सत्र में औसतन 250 शिक्षार्थी सम्मिलित होते हैं।

राजतंत्र वर्ग के शिक्षार्थी

राज-काज के लिए भी प्रामाणिक, उत्तरदायी, ईमानदार और लगनशील कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। इसके बिना श्रेष्ठतम योजना भी कार्यान्वित नहीं हो पाती। इस कमी को पूरा करने के लिए कितने ही सरकारी विभाग अपने प्रमुख कार्यकर्त्ताओं को समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी का सत्प्रवृत्तियों का अभ्यस्त बनाना चाहते हैं। इसके लिए शान्तिकुँज ने विशेष व्यवस्था की है। शिक्षा विभाग ने इस संबंध में अधिक उत्साह दिखाया है ताकि उस प्रशिक्षण का प्रकाश छात्रों एवं उनके अभिभावकों को भी मिल सके। प्रशिक्षण प्राप्त अधिकारी अपने सम्बद्ध दूसरे अन्यों को प्रशिक्षित करते हैं।

गतवर्ष नवम्बर 1985 से अब तक लगभग चार हजार प्रधानाचार्य एवं निरीक्षक स्तर के शिक्षा विभाग के कार्यकर्ता प्रशिक्षित हुए। इसके अतिरिक्त, मद्य निषेध, परिवहन, खादी ग्रामोद्योग, युवक मंगल दल, महिला स्काउट विभागों, के प्रमुख कार्यकर्ता अपने-अपने ढंग की आवश्यक शिक्षा योजनाबद्ध रूप से प्राप्त कर चुके हैं।

प्रशिक्षण प्राप्त लोगों ने वापस लौटने पर अपने-अपने क्षेत्र में जो सुधार परिवर्तन, विकास, सम्पन्न किये हैं, उसकी चर्चा दूर-दूर तक फैली है। प्रगति और परिवर्तन के लक्ष्य प्रत्यक्ष प्रकट हुए हैं। इससे प्रभावित होकर अन्यान्य कितने ही प्रान्तों ने यह इच्छा प्रकट की है कि उनके कार्यकर्ताओं को भी यह प्रशिक्षण प्राप्त हो ताकि वे भी उनके द्वारा अपने पूरे प्रयत्न से इस पद्धति को विकसित कर सकें। प्रायः इस प्रशिक्षण में 100 अधिकारी 5 दिन के लिए आते हैं।

ब्रह्मवर्चस् शोध में नय समावेश

ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान की उपलब्धियों ने बुद्धिजीवी वर्ग का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया है। अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय का कार्य इतना आवश्यक और महत्वपूर्ण है कि उसकी आवश्यकता उपयोगिता को सर्वत्र माना जाने लगा है। इस संबंध में चर्चाएँ तो बहुत हुई हैं पर व्यावहारिक एवं बड़े साधन सम्पन्न कदम कदाचित कहीं से भी नहीं उठाये गये। यह कार्य सुचारु रूप से चलते हुए शान्तिकुँज के ही एक विभाग ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान में आशाजनक रीति से होते हुए देखे जा सकते हैं।

जड़ी बूटी शोध के परिणाम इतने आश्चर्यजनक निकाले हैं कि यह आशा बल पकड़ती जा रही है कि चिकित्सा क्षेत्र में जड़ी बूटियों की उपयोगिता ऐलोपैथी के महंगे उपचारों की तुलना में कहीं अधिक सस्ती और लाभदायक होगी। आयुर्वेद में नव-जीवन संचार हो सकेगा। शान्तिकुँज ब्रह्मवर्चस् में जितनी जगह इस कार्य के उपयुक्त शेष थी उस सभी में नये सिरे से नई जड़ी बूटियों का आरोपण किया गया है और उनकी वर्गीकरण-विश्लेषण के लिए नये यंत्र फिट किये गये हैं।

प्रदूषण का निराकरण यज्ञ विद्या द्वारा सम्भव है। इसे प्रभावित करने के लिए इन्हीं दिनों एक नयी प्रयोगशाला खड़ी की जा रही है और उसमें बहुमूल्य नये यंत्र फिट किये जा रहे हैं। शारीरिक-मानसिक चिकित्सा में अग्निहोत्र किस प्रकार, किस सीमा तक सहायक सिद्ध हो सकता है, यह भी शोध का प्रमुख विषय है। विभिन्न साधनाओं का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका निष्कर्ष निकालने के लिए उपवास, संयम, नियम, मंत्र-शक्ति, प्राणायाम, ध्यान, आदि विषयों को भी शोध प्रक्रिया में नये सिरे से सम्मिलित किया गया है।

राष्ट्रीय एकता सम्मेलन और गायत्री यज्ञ

गतवर्ष प्रायः 500 राष्ट्रीय एकता आयोजन शत-कुण्डी-गायत्री महायज्ञों के साथ देश के हर भाग में सम्पन्न हुए। इनमें समय की सभी माँगों एवं आवश्यकताओं से जन-जन को अवगत कराया गया। उपस्थिति सभी में आश्चर्यजनक थी। औसतन 50 हजार जनता हर आयोजन में एकत्रित हुई। कहीं-कहीं उपस्थिति एक लाख से भी अधिक थी। ऐसा उत्साह उमड़ते अन्य संस्थाओं द्वारा आयोजित समारोहों में प्रायः कहीं भी नहीं देखा जाता। कारण एक ही था। अध्यात्म अवलम्बन से निज की समस्त समस्याओं का हल कैसे किया जा सकता है?

राष्ट्रीय एकता सम्मेलनों की उपयोगिता अनेक दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण समझी गई। अलगाववाद की अनेक दुष्प्रवृत्तियां इन दिनों उभर रही हैं। सम्प्रदायवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, जातिवाद, वर्गवाद, आदि के नाम पर जो अलगाव की, बिखराव की, हवा चल रही है उसे रोकने के लिए प्रचण्ड आन्दोलन की आवश्यकता समझी गई। इसी निमित्त सर्वत्र ऐसे आयोजनों का प्रबन्ध किया गया, जिससे हर स्तर के अलगाव के खतरों को समझने उनसे बचने के लिए जनमत को प्रशिक्षित किया जा सके।

वीडियो प्रदर्शन का विस्तार

प्रचार माध्यमों में एक नई व्यवस्था वीडियो कैसेटों के माध्यम से करने के लिए नई योजना बनी है। अब तक शान्तिकुँज में इस प्रक्रिया द्वारा महत्वपूर्ण प्रवचन ही इस माध्यम से सुनाये जाते थे। अब उस योजना का अनेक गुना विस्तार किया गया है।

व्यक्ति निर्माण, प्रतिभा विकास, परिवारों में सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन, समाज सुधार, अर्थ-संतुलन उदात्त दृष्टिकोण, आदर्श चरित्र, सुसंस्कृत व्यवहार, सामाजिक उत्कर्ष, सामयिक समस्याओं का समाधान जैसे मानव जीवन से संबंधित सभी विषयों पर “यूमेटिक” सिस्टम से नयी टी.वी. फिल्में तैयार करने की योजना बनी है। प्रेरणाप्रद गीतों के एक्शन से अन्यान्य विषयों पर प्रश्नोत्तर शैली से प्रस्तुतीकरण की रीति-नीति अपनाई जायगी। आरम्भ में इनका प्रदर्शन शान्तिकुँज में नई व्यवस्था बनाकर किया जायगा। पर बाद में यह कैसेट अन्य उत्सुक जनों को भी उपलब्ध कराये जा सकेंगे।

छोटे देहातों में बिखरी हुई अशिक्षित देहाती जनता को प्रगति की सर्वतोमुखी सम्भावनाओं की रीति-नीति से अवगत कराने के लिए आधुनिकतम और बिजली वाले क्षेत्रों में सुलभ पद्धति वीडियो की है। दृश्य और श्रव्य का उसमें समुचित समावेश है। यह साहित्य से, पत्र पत्रिकाओं से भी अधिक प्रभावी माध्यम है। इसके सहारे जन साधारण को वह सब कुछ सिखाया समझाया जा सकता है जो उसके लिए समय के अनुरूप नितान्त आवश्यक है। जो कमी सरकारी तंत्र में है, उसकी पूर्ति का प्रयास शान्तिकुँज एकेडमी द्वारा किया जायगा।

वर्षा के दिनों में प्रज्ञा-संस्थानों के सत्र सम्मेलन

शान्तिकुँज के तत्त्वावधान में प्रायः 2400 प्रज्ञा पीठें देश के कोने-कोने में बनी हैं। इनके पीछे योजना है कि प्रत्येक प्रज्ञापीठ अपने समीपवर्ती दस गांवों का मण्डल बनायें और उनमें सत्प्रवृत्तियों का सूत्र संचालन करें। इस प्रकार 2400 शक्तिपीठ 24000 गांवों के मुहल्लों के नवनिर्माण का कार्य करेंगी। उनमें सृजनात्मक, सुधारात्मक स्तर की प्रवृत्तियों को फलने-फूलने का अवसर मिलेगा। यह निर्धारण बहुत हद तक कार्यान्वित भी हुआ है और सफल भी रहा है।

अब आगे उनमें और भी अधिक सुव्यवस्थित गतिशीलता लानी है। अगले वर्ष सभी को अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप नये सिरे से नया कार्यक्रम निर्धारण करना है-निर्धारण को पूरा कर दिखाना है।

इस प्रयोजन के लिए इसी वर्षा ऋतु में श्रावण, भाद्रपद में सभी शक्तिपीठ प्रज्ञापीठों, के शान्तिकुँज में सम्मेलन बुलाये गये हैं। यह सम्मेलन छोटे-छोटे, बारी-बारी से होंगे। एक क्षेत्र में कार्यकर्ता एक बार में जमा होंगे। हर प्रज्ञापीठ के दो प्रतिनिधि आवेंगे। सम्मेलन तीन दिन तक चलेगा। चौथे दिन विदाई हो जायगी। प्रातः विदाई, शाम तक नयों का आगमन, यही क्रम पूरे दो महीने चलेगा। इसी बीच अगले वर्ष के सभी निर्धारण नियोजित कर लिए जायेंगे। जहाँ राष्ट्रीय एकता सम्मेलन होने हैं, गायत्री यज्ञ छोटे या बड़े होने है, उनकी तिथियाँ भी इसी अवसर पर निश्चित हो जायगी, ताकि उन आयोजनों में संगीत की तथा वक्ताओं की टोलियाँ भेजने का निश्चय ही इन्हीं सम्मेलनों में हो जायेगा। उनमें काट-छाँट, फेर-बदल करने का अवसर न रहेगा। सभी प्रज्ञापीठों को उनकी तारीखें भेजी जा रही हैं।

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