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वास्तविक शिक्षा वह है जो अपने को सुधारना और दूसरों को सँभालना सिखाये।
शारीरिक या मानसिक दण्ड पाकर और अधिक दुर्गति के भागी बनेंगे। जिसे दण्ड देने की अपने में सामर्थ्य हो उसको उदारतावश क्षमा भी किया जा सकता है। उस पर उदारता दिखाई जा सकती है। आवेश उत्तर जाने पर वह उस अहसास के बदले कृतज्ञता भी व्यक्त कर सकता है। उदारता का व्यवहार उसे सज्जनता की शिक्षा भी दे सकता है और कभी अपने साथ वैसी उद्दण्डता घटित हो तो वह उसी प्रकार का उदार व्यवहार भी कर सकता है। इसी प्रकार धर्मधारणा की अभिवृद्धि भी हो सकती है।
किन्तु यदि उद्दण्ड अहंकारी, कुकर्मी, उच्छृंखल को, अनाचारी को यदि क्षमा की आड़ में प्रश्रय देते हुए निज की दुर्बलता को छिपाया जाता है तो फिर कायर और क्षमाशील में क्या अंतर रह जाएगा? लोक व्यवहार में इसीलिए क्षमा का प्रयोग करते समय परिस्थितियों और प्रतिक्रिया को पहले भली प्रकार समझ लेने की बात कही जाती है।