• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • भटकन से उबरें, राजमार्ग पकड़े
    • महा साधक
    • उपासना करें तो इस तरह
    • भौतिकी व आत्मिकी का समन्वित पुरुषार्थ ही अभीष्ट
    • राष्ट्रमाता की सेवा (kahani)
    • सार्थक ब्राह्मणत्व
    • शरीर से नहीं आत्मा से (kahani)
    • जरूरतें घटें तो अभाव मिटें
    • दर्शन बदलता है, युग की परिस्थितियों को
    • व्यक्तित्व वजनदार (kahani)
    • जन्मा, एक और वाल्मीकि
    • यहाँ कुछ भी असंभव नहीं
    • विज्ञान, विकासवाद और भारतीय अध्यात्म
    • कैसे बदलेगा, आने वाला जमाना?
    • कृति विश्व को दे पाये (kahani)
    • तनाव रूपी महाव्याधि एवं उससे छुटकारा
    • अमीनिया के सर्वोच्च सेनापति (kahani)
    • यथा संस्कृति, तथा भाषा
    • सरल और निरहंकारी (kahani)
    • गुबरीले कीड़े नहीं, बाग की तितली बनें
    • दुनिया से विदा ली (kahani)
    • शाँति का राजमार्ग
    • विश्व शाँति रूपी स्वप्न (kahani)
    • सेवाधर्म ही, हर दृष्टि से नफे का उपक्रम
    • अंतरिक्ष के आर-पार (kahani)
    • उद्यम से ही होती है कार्यसिद्धि
    • निराश्रितों के पास पहुँचा (kahani)
    • दीप पुरुषाय नमः
    • VigyapanSuchana
    • काम लिप्सा की परिणति दुर्गति
    • अभिभावकों पर निर्भर क्यों (kahani)
    • सूर्य की रश्मियों से संभव है चिकित्सा
    • तुलना में अधिक स्वस्थ (kahani)
    • पतझड़ को वसंत में बदलने का महाकाल का संकल्प
    • आरोग्य से कितना बड़ा संबंध (kahani)
    • लालच बुरी बला
    • आप हमें गढ़ते रहें
    • आप हमें गढ़ते रहें (kavita)
    • कृपा बिखेरो पद्म बना दो
    • कृपा बिखेरो पद्म बना दो (kavita)
    • परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - दुर्गति और सद्गति का कारण, हम स्वयं
    • विशेष धारावाहिक लेखमाला- - युगपुरुष पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा जी आचार्य
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • भटकन से उबरें, राजमार्ग पकड़े
    • महा साधक
    • उपासना करें तो इस तरह
    • भौतिकी व आत्मिकी का समन्वित पुरुषार्थ ही अभीष्ट
    • राष्ट्रमाता की सेवा (kahani)
    • सार्थक ब्राह्मणत्व
    • शरीर से नहीं आत्मा से (kahani)
    • जरूरतें घटें तो अभाव मिटें
    • दर्शन बदलता है, युग की परिस्थितियों को
    • व्यक्तित्व वजनदार (kahani)
    • जन्मा, एक और वाल्मीकि
    • यहाँ कुछ भी असंभव नहीं
    • विज्ञान, विकासवाद और भारतीय अध्यात्म
    • कैसे बदलेगा, आने वाला जमाना?
    • कृति विश्व को दे पाये (kahani)
    • तनाव रूपी महाव्याधि एवं उससे छुटकारा
    • अमीनिया के सर्वोच्च सेनापति (kahani)
    • यथा संस्कृति, तथा भाषा
    • सरल और निरहंकारी (kahani)
    • गुबरीले कीड़े नहीं, बाग की तितली बनें
    • दुनिया से विदा ली (kahani)
    • शाँति का राजमार्ग
    • विश्व शाँति रूपी स्वप्न (kahani)
    • सेवाधर्म ही, हर दृष्टि से नफे का उपक्रम
    • अंतरिक्ष के आर-पार (kahani)
    • उद्यम से ही होती है कार्यसिद्धि
    • निराश्रितों के पास पहुँचा (kahani)
    • दीप पुरुषाय नमः
    • VigyapanSuchana
    • काम लिप्सा की परिणति दुर्गति
    • अभिभावकों पर निर्भर क्यों (kahani)
    • सूर्य की रश्मियों से संभव है चिकित्सा
    • तुलना में अधिक स्वस्थ (kahani)
    • पतझड़ को वसंत में बदलने का महाकाल का संकल्प
    • आरोग्य से कितना बड़ा संबंध (kahani)
    • लालच बुरी बला
    • आप हमें गढ़ते रहें
    • आप हमें गढ़ते रहें (kavita)
    • कृपा बिखेरो पद्म बना दो
    • कृपा बिखेरो पद्म बना दो (kavita)
    • परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - दुर्गति और सद्गति का कारण, हम स्वयं
    • विशेष धारावाहिक लेखमाला- - युगपुरुष पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा जी आचार्य
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1993 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


विज्ञान, विकासवाद और भारतीय अध्यात्म

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
वर्षों पूर्व नीत्से ने घोषणा की थी कि ईश्वर मर गया। यदि बात सचमुच ऐसी रही होती, तो इस जड़ जगत का संपूर्ण ढांचा ही लड़खड़ा गया होता एवं प्रकृति की हर प्रणाली में सर्वत्र अराजकता और अव्यवस्था ही झलकती-झाँकती दृष्टिगोचर होती, किन्तु प्रत्यक्ष में ऐसा होता कहाँ दीखता है? सूक्ष्म से सूक्ष्म परमाणुओं के अंतराल में भी एक सुनिश्चित क्रमबद्धता पायी जाती है। इससे ऐसा लगता है इस संसार काँ संचालित करने वाली कोई परोक्ष सत्ता अवश्य होनी चाहिए।

एक जमाना था, जब लोग भोले, भावुक और विश्वासी हुआ करते थे। तब ईश्वरीय सत्ता के प्रति उनके मन में न कोई शंका थी, न संदेह। यह उनकी अच्छाई थी। बुराई यह थी कि इसके साथ-साथ हुए थे, जिससे उनका विकास लम्बे समय तक अवरुद्ध बना रहा। बुद्धिवाद के बढ़ने के साथ-साथ कुप्रथाओं का अंत तो हुआ , पर एक इससे भी भयंकर आस्था-संकट आ खड़ा हुआ-नास्तिकवाद , जो ईश्वर के अस्तित्व को ही, संदेहास्पद मानने लगा और उसे तर्क, तथ्य व प्रमाण की कसौटी पर कसने का प्रयास चेतनात्मक सत्ता की पुष्टि न हो सकी, तो कुछ सिर फिरे किस्म के दार्शनिकों ने यह कहना प्रारंभ किया कि भगवान नाम की किसी सत्ता का संसार में कोई अस्तित्व नहीं। बस, यहीं से अनीश्वरवादी दर्शन की शुरुआत हुई।

पश्चिमी जगत में इस विचारधारा का जन्म डार्विन से हुआ, जब उसने मनुष्य को बन्दर की औलाद बताया। यों प्रत्यक्षतः उसने आस्तिकवाद पर कोई प्रहार नहीं किया, पर परोक्ष रूप से इसका खण्डन कर दिया। बाद के अनुसंधानकर्ताओं ने उनके कथन को सही सिद्ध करने के लिए जोड़-गाँठ करके बन्दर से मनुष्य तक के विकास-यात्रा की एक क्रमबद्ध शृंखला तैयार कर दी। इतने पर भी बीच की उसकी कई कड़ियाँ अब तक ढूँढ़ी नहीं जा सकी है। इस महत्वपूर्ण त्रुटि से छुटकारा पाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नये सिद्धाँत का प्रतिपादन किया। इसका नाम रखा गया-”जम्प थ्योरी” या “सैलटैटरी थ्योरी “। सह सिद्धाँत के अनुसार मानवी विकास में बीच-बीच में कई ऐसे पड़ाव आये, जहाँ प्रगति अचानक एकदम रुक गई और फिर अकस्मात् इतनी तेजी से आरंभ हुई कि प्राणी की शारीरिक-संरचना पहले से काफी बदल गई। दूसरे शब्दों में विकासवाद के पक्षधरों ने इसे यात्रा के दौरान की एक लम्बी छलाँग बतायी। उनके अनुसार इसी कारण बीच की दो मिलती-जुलती कड़ियाँ नहीं पायी जा सकीं। हाथी, घोड़े, ऊँट आदि जानवरों की आधी-अधूरी वैशावलियाँ भी इसी प्रकार येन-केन प्रकारेण तैयार कर ली गई। इतने पर भी आश्चर्य यह है कि कुछ एक प्रमाणों के आधार पर विज्ञान ने संपूर्ण जीव-जगत को विकासवाद पर आधारित कैसे मान लिया? जबकि कितने ही जीव (जेलीफिश, स्पाँज, सीअरचीन, सीकुकुम्बर एवं अन्य) ऐसे है, जिनके किसी एक पूर्वज को भी सारी पृथ्वी पर अब तक खोजा नहीं जा सका है। ऐसे में विकासवादी अवधारणा को सच कैसे मान लिया जाय और इस तथ्य से सर्वथा इनकार कैसे किया जाय कि इनकी रचना के पीछे किसी अदृश्य सत्ता का हाथ नहीं है?

यदि जीव-जगत को विकासवादी प्रक्रिया की परिणति माना जाय, तो फिर वनस्पति-जगत को भी इसमें सम्मिलित करना पड़ेगा, जबकि पादप-जगत में ऐसा कोई सिद्धाँत नहीं है, जिसमें एक वृक्ष से दूसरे का उद्भव बताया गया हो। हाँ, किसी प्राकृतिक माध्यम अथवा कृत्रिम ढंग से दो पौधों में परस्पर परागण की क्रिया हो जाय, तो उससे तीसरी प्रजाति की उत्पत्ति हो सकती है, पर नैसर्गिक रूप से उसमें परिवर्तन तब तक नहीं होगा, जब तक किसी बाह्य कारक के कारण उसका पर-परागण न हो जाय, जबकि प्राणियों की दुनिया में एक जीव से दूसरे का प्रादुर्भाव लाखों-करोड़ों साल की प्रगति-यात्रा के दौरान होने वाले स्वाभाविक परिवर्तन को माना जाता है। यदि ऐसा, हुआ, तो यह सृष्टि में विकास संबंधी अंतर्विरोध होगा, क्योंकि एक ही क्रिया की दो भिन्न प्रक्रियाएँ प्रकृति में अब तक नहीं देखी गई। ऐसे में हर जन्तु, जाति और वृक्ष को बिलकुल स्वतंत्र मान कर चलना ही बुद्धिमानी होगी। यह तभी संभव है, जब इसके पीछे किसी स्रष्टा का हाथ होना माना जाय।

इसी प्रकार का मंतव्य प्रकट करते हुए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के मूर्धन्य वनस्पति शास्त्री एवं प्रख्यात विकासवादी ई−जे काँरनर कहते हैं कि यदि पूर्वाग्रह रहित होकर कहूँ तो पौधों के अब तक के जीवाश्म-रिकार्ड विकासवादी मान्यता को हतोत्साहित करते और किसी अविज्ञात रचयिता का पृष्ठ पोषण करते पाये जाते हैं। इसी प्रकार के विचार प्रकट करते हुए प्रसिद्ध जेनेटिसिस्ट एवं विक सवादी रिचर्ड बी−गोल्ड्समिड कहते हैं कि समस्त प्राणी और पादप अकस्मात् प्रकट हुए और बिना किसी परिवर्तन के वे अब तक बने हुए है। एक अन्य विकासवादी जॉर्ज गेलार्ड सिम्पसन का कहना है कि प्रीकै म्ब्रिज युग के जीवाश्मों की अनुपस्थिति विकासवादी अवधारणा के लिए पहेली बनी हुई है। वे कहते हैं कि इसे विकासवाद की अपेक्षा जीवों का स्वतंत्र उद्भव जैसी मान्यता के आधार पर आसानी से सुलझायी जा सकती है। बरमिंघम विश्वविद्यालय के एनाटानी विभाग के अध्यक्ष लार्ड सोली जुकरमैन ने जीवन पर्यन्त अपने अन्वेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य यदि गोरिल्ला सदृश्य प्राणी से विकसित हुआ होता तो वह अपने जीवाश्मों में बिना किसी परिवर्तन के ज्यों-का-त्यों बना रहता, जबकि जीवाश्म विज्ञानियों ने मनुष्य के तथाकथित पूर्वजों के ढेर सारे जीवाश्म खोज निकालने का दावा किया है। इनका यह दावा जुकरमैन के निष्कर्ष के विरुद्ध है। इससे यही सिद्ध होता है कि मनुष्य आरंभ से ही मनुष्य था और गोरिल्ला, गोरिल्ला। यह विचारधारा भी किसी विधाता की उपस्थिति का संकेत करती है।

जीव-विकास के समर्थक जीवन का प्रादुर्भाव जीवन विहीन रसायनों से मानते हैं। उनके अनुसार आदिमकाल में कुछ रसायनों की परस्पर प्रतिक्रिया से अमीनो अम्ल बने, जो बाद में जीवन-विकास के लिए उत्तरदायी हुए। इस प्रकार बने एक कोशीय जीवों से कालक्रम में जटिल संरचना वाले बहुकोशीय जीवों की उत्पत्ति हुई। यदि जीव-उद्भव संबंधी इस मान्यता को सही माना गया, तो अनेक ऐसे प्रश्न उठ खड़े, होंगे, जिनका उत्तर दे पाना कठिन होगा, यथा-यौगिकों का पारस्परिक प्रतिक्रिया की प्रेरणा कहाँ से मिली? जड़ पदार्थों में चेतना का आविर्भाव किस भाँति सँभव हो सका? आदि। इस स्थिति में किसी सूक्ष्म रचनाकार का अस्तित्व स्वीकार कर लेने से जीव-विकास संबंधी विवेचना अत्यन्त सरल हो जाती है। यदि ऐसा नहीं माना जा सका और अमीबा से ही जीवोत्पत्ति का दुराग्रह अपनाया गया , तो ऐसी विसंगतियाँ सामने आती है, जिन्हें किसी कदर स्वीकार नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए आधुनिक विकासवाद अथवा नव डार्विनवाद को लिया जा सकता है। इसके अनुसार म्यूटेशन विकास का निमित्त कारण है। उल्लेखनीय है कि म्यूटेशन गुणसूत्रों अथवा जीन्स में आकस्मिक परिवर्तन की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। विशेषज्ञों का मत है कि इस परिवर्तन की दर का पता लगाना संभव है और यह भी अन्दाज लगाना शक्य है कि कितने अनुकूल म्यूटेशन विकासवादी परिवर्तन के लिए अभीष्ट होंगे। यह गणना भी सरल है कि एक अमीबा के पूर्ण मनुष्य में रूपांतरण में कितना लंबा कालखण्ड आवश्यक होगा। इन्स्टीट्यूट फॉर क्र्रियेशन रिसर्च, सैनडियागो, कैलीफोर्निया के एसोसिएट डायरेक्टर डूने टार्ल्बट गिश, जो कि विकासवाद के प्रबल विरोधी है, के अनुसार गणितज्ञों के एक दल ने जब इसकी गणना की, तो प्राप्त समय पृथ्वी की उत्पत्ति से कई अरब लंबा पाया गया। वैज्ञानिकों पृथ्वी को 5 अरब वर्ष पुराना मानते हैं, जबकि विकासवादी प्रक्रिया से मानवी प्रादुर्भाव का समय अनेकों गुना विशाल मिला। यह विरोधाभास विकासवाद का खण्डन करता है और जीवन विकास संबंधी किसी ऐसे मतवाद पर विचार करने के लिए विवश करता है, जो सर्वमान्य हो। ऐसी स्थिति में डूने की “क्रियेशन थ्योरी” ही ज्यादा सटीक और सारगर्भित प्रतीत होती है, जिसमें उनने सृष्टि-संरचना के पीछे भगवान को प्रमुख माना और कहा है कि मनुष्य समेत हर प्राणी का पदार्पण स्वतंत्र सत्ता के रूप में हुआ है , उनमें किसी का किसी से कोई संबंध नहीं। एक कोशिका अमीबा आरंभ में भी अमीबा था, अब भी अमीबा है और जब एक तक यह सृष्टि रहेगी, वह अपने उसी रूप में विद्यमान रहेगा। मनुष्य और बन्दर आदि काल से वही थे और अनंत काल तक उसी कलेवर को अपनाये रहेंगे।

यहाँ भौतिकी के एक प्रसिद्ध सिद्धाँत पर तनिक चर्चा कर लेना अनुचित न होगा। थर्मोडायामिक्स के दूसरे नियम के अनुसार संपूर्ण प्राकृतिक तंत्र में व्यवस्था की ओर जाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। यह पूरे ब्रह्माँड में सूक्ष्म और स्थूल स्तर पर समान रूप से देखी जाती है और अब तक कभी असफल होते हुए नहीं पायी गई है। विकासवाद का प्रतिपादन इससे ठीक उलटा है। वह कहता है कि समस्त निसर्ग का अव्यवस्था से व्यवस्था (कुछ अव्यवस्थित रसायनों के व्यवस्थित संयोग से अमीबा की उत्पत्ति और फिर उससे अधिकाधिक जटिल जीवों का विकास ) की ओर विकास करने का आम स्वभाव है। उसके अनुसार यह स्वभाव सूक्ष्म परमाणुओं से लेकर बड़े पदार्थों तक में सर्वत्र दिखाई पड़ता है। ज्ञातव्य है कि प्रकृति की एक ही प्रक्रिया से संबंधित दो विपरीत सिद्धाँत लागू नहीं हो सकते। उपरोक्त दोनों नियमों में से सत्य कोई एक ही हो सकता है। ज्ञातव्य यह भी है कि थर्मोडायनामिक्स के सुस्थापित दूसरे नियम पर अँगुली उठाने का साहस अभी तक किसी ने नहीं किया। ऐसी स्थिति में विकासवादी प्रक्रिया संशय के घेरे में आ जाती है।

इस दशा में यदि आस्तिकवाद के ईश्वर की मान्यता को स्वीकार लिया जाय, तो सृष्टि रचना संबंधी व्याख्या अत्यन्त सरल हो जाती है। वैज्ञानिक डूने गिश ने इसी का आश्रय लेते हुए विज्ञान और विकासवाद के बीच संव्यास विसंगतियों के आधार पर विकासवाद को अमान्य कर दिया। वे अपनी लंबी शोध के उपराँत उसी निष्कर्ष पर पहुँचे है, जिसे भारतीय अध्यात्म बहुत पहले से कहता आ रहा है। उनने कण-कण में भगवान की उपस्थिति का समर्थन कर अन्ततः उस उपनिषद् वाक्य की ही पुनरुक्ति की है, जिसमें “ईशावास्यामिदं सर्व” कहकर उसे सर्वव्यापी सर्व नियंता बताया है। इस दर्शन को अंगीकार कर लेने के पश्चात् “एकोऽहम् बहुस्याम्” के ईश्वरीय संकल्प को मान लेने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इससे जीव-उत्पत्ति और सृष्टि-विकास संबंधी सारी उलझनें समाप्त हो जाती है। फिर हमें न तो यह कहने की जरूरत पड़ेगी कि मनुष्य बन्दर की संतान है और न यह कि संसार स्वतः उत्पन्न है।

First 12 14 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • भटकन से उबरें, राजमार्ग पकड़े
  • महा साधक
  • उपासना करें तो इस तरह
  • भौतिकी व आत्मिकी का समन्वित पुरुषार्थ ही अभीष्ट
  • राष्ट्रमाता की सेवा (kahani)
  • सार्थक ब्राह्मणत्व
  • शरीर से नहीं आत्मा से (kahani)
  • जरूरतें घटें तो अभाव मिटें
  • दर्शन बदलता है, युग की परिस्थितियों को
  • व्यक्तित्व वजनदार (kahani)
  • जन्मा, एक और वाल्मीकि
  • यहाँ कुछ भी असंभव नहीं
  • विज्ञान, विकासवाद और भारतीय अध्यात्म
  • कैसे बदलेगा, आने वाला जमाना?
  • कृति विश्व को दे पाये (kahani)
  • तनाव रूपी महाव्याधि एवं उससे छुटकारा
  • अमीनिया के सर्वोच्च सेनापति (kahani)
  • यथा संस्कृति, तथा भाषा
  • सरल और निरहंकारी (kahani)
  • गुबरीले कीड़े नहीं, बाग की तितली बनें
  • दुनिया से विदा ली (kahani)
  • शाँति का राजमार्ग
  • विश्व शाँति रूपी स्वप्न (kahani)
  • सेवाधर्म ही, हर दृष्टि से नफे का उपक्रम
  • अंतरिक्ष के आर-पार (kahani)
  • उद्यम से ही होती है कार्यसिद्धि
  • निराश्रितों के पास पहुँचा (kahani)
  • दीप पुरुषाय नमः
  • VigyapanSuchana
  • काम लिप्सा की परिणति दुर्गति
  • अभिभावकों पर निर्भर क्यों (kahani)
  • सूर्य की रश्मियों से संभव है चिकित्सा
  • तुलना में अधिक स्वस्थ (kahani)
  • पतझड़ को वसंत में बदलने का महाकाल का संकल्प
  • आरोग्य से कितना बड़ा संबंध (kahani)
  • लालच बुरी बला
  • आप हमें गढ़ते रहें
  • आप हमें गढ़ते रहें (kavita)
  • कृपा बिखेरो पद्म बना दो
  • कृपा बिखेरो पद्म बना दो (kavita)
  • परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - दुर्गति और सद्गति का कारण, हम स्वयं
  • विशेष धारावाहिक लेखमाला- - युगपुरुष पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा जी आचार्य
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj