
शक्ति निष्ठा में, विश्वास में है
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मित्रो! जो कुछ भी शक्ति या सामर्थ्य है कलेवर में, कर्मकाण्डों में नहीं है, उन निष्ठाओं में है, विश्वासों में है, जो न केवल हमारे शरीर का शोधन करती है, वरन हमारी जीवात्मा का भी संशोधन करती है। न केवल हमारे कर्म का संशोधन करती है; वरन हमारे विचारों का भी संशोधन करती है और हमारी आत्मा का आस्थाओं का संशोधन करती है, जैसा कि आप जल में भावना सहित नहाए हैं। फिर मैं आपसे यह कह सकता हूँ कि कलश में सारे देवताओं का जो हम आह्वान करते हैं, वे आते हैं। कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्र: समाश्रित: ........ अर्थात कलश में ब्रह्मा जी बैठे हैं, रुद्र जी बैठे हुए हैं, गणेश जी बैठे हुए हैं। सभी देवता इस पानी में चल रहे हैं, फिर रहे हैं। इससे आप नहाइए तो आपको अवश्य फल मिलेगा। नहीं साहब! कलश का पानी बहुत कीमती है। नहीं बेटे! कोई कीमती नहीं है। जैसे और पानी हैं, वैसे ही कलश का पानी है। यह सब भावनाओं का खेल है। आप समझते क्यों नहीं हैं! नहीं साहब! कर्मकाण्डों का खेल है। नहीं बेटे! कर्मकाण्डों का खेल नहीं है, यह भावनाओं का खेल है। भावनाओं के साथ-साथ में अगर आपने पवित्रीकरण किया है कि इससे हमारा व्यक्तित्व और हमारी आस्थाएँ शुद्ध और पवित्र बनती चली जा रही हैं, तो मैं आपसे कह सकता हूँ कि आपने गायत्री उपासना का पहला वाला कृत्य, आत्मशोधन का पहला वाला चरण समाप्त कर लिया है और आप उसका उद्देश्य जान गए।