
भावनात्मक सफाई
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मित्रो! धुलाई की ओर ध्यान दीजिए। आप धुलाई की ओर ध्यान नहीं देना चाहते हैं। यह क्या गलती कर रहे हैं। आप शुरुआत नहीं करना चाहते हैं, पढ़ना नहीं चाहते हैं, यह कैसे हो सकता है! मित्रो! आपको यह जो पहले वाले पाठ का शिक्षण दिया गया, जिसे हम पाँच क्रियाओं के हिसाब से षट्कर्म कहते हैं। इसमें पाँच क्रियाएँ पंचमुखी गायत्री आध्यात्मिकता की और एक क्रिया वह, जो भूमिपूजन के नाम से विख्यात है। जिसको हम पृथ्वीपूजन नाम से जानते हैं। पाँच क्रियाएँ कौन-कौन सी हैं, इसे आप जरा समझने की कोशिश करना। पहला वाला कृत्य, जो हम आपको गायत्री उपासना करने से पहले सिखाते हैं, आत्मशोधन की प्रक्रिया के भीतर कराते हैं, वह है पवित्रीकरण। बाईं हथेली में जल रखा और दूसरे हाथ से ढका। ॐ अपवित्र: पवित्रो वा.... का मंत्र बोला। अगर यह मंत्र नहीं आता है तो गायत्री मंत्र बोल लीजिए। कोई फरक नहीं पड़ता है। मंत्र बोलकर आप इसे अपने ऊपर छिड़क लीजिए। पानी छिड़कने से क्या हो जाएगा? यह किस काम के लिए छिड़का गया था, यह हमने बताया नहीं था? हाँ महाराज जी! पर इस पानी से क्या होगा? एक बालटी पानी से तो मैं रोज ही स्नान कर लेता हूँ और आप तो जरा सा जल हथेली पर लेने के लिए कहते हैं। इससे मैं क्या पवित्र हो जाऊँगा? पवित्र होना होगा तो दो बालटी से नहाएँगे, साबुन से नहाएँगे, बाथरूम में नहाएँगे। हाँ बेटे! उससे ज्यादा सफाई हो सकती है, पर इससे सफाई कैसे हो सकती है? यह भावनात्मक सफाई है। यह सफाई जरूरी है।