
पवित्रता की—देवत्व की वर्षा
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मित्रो! मैं आपको एक उदाहरण और बता सकता हूँ। गरमी के दिनों में सड़क पर मिट्टी पड़ी होती है, धूल पड़ी होती है। हाँ साहब! धूल उड़ उड़कर आँखों में जाती है। हाँ साहब! म्यूनिसिपल बोर्ड की जब गाड़ी आती है, तो सारे के सारे धूल-धक्कड़ को दबाती हुई, पानी छिड़कती चली जाती है। जब गाड़ी चली जाती है, तो सब जगह सड़क ठंडी हो जाती है और तरावट आ जाती है। इस धूल-धक्कड़ वाली सड़क पर जब म्यूनिसिपल बोर्ड की पानी से भरी हुई गाड़ी आती है? कौन सी? अपवित्र: पवित्रो वा.... की जलधारा छिड़कती हुई चली जाती है और धूल को दबाती हुई, गलाती हुई चली जाती है और ठंडक देती हुई चली जाती है। जब बरसात होती है तो क्या होता है? बेटे! हरियाली पैदा होती है। यह जल जो आपने अपनी बाईं हथेली पर रखा था, उसको हम अपने ऊपर उछालते हैं, छिड़कते हैं। यह करते हुए आप ध्यानमग्न हो जाइए कि हमारे ऊपर पवित्रता की वर्षा हो रही है, देवत्व की वर्षा हो रही है, जो हमारे शारीरिक कषायों को और मानसिक कल्मषों को धोती हुई चली जा रही है। बेटे! यही तो है—गंगास्नान और क्या है? गंगा में पानी है। गंगा और यमुना के पानी में कोई फरक नहीं है। अच्छा यह बात है तो मुझे आप कहने दीजिए। अभी पिछले महीने अखबारों में आया था कि इलाहाबाद की त्रिवेणी का जल लेबोरेटरियों में भेजा गया था। उसमें हजारों कीड़े पाए गए और यह घोषित किया गया कि त्रिवेणी का कच्चा पानी नहीं पीना चाहिए। जो कच्चा पानी पीएगा, वह मरेगा। इसीलिए इसको फिल्टर करके पीना चाहिए और उबालकर पीना चाहिए।