
विचार हमारे सही हों
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मित्रो! कर्म की सफाई के लिए आचमन नंबर एक और विचारों की सफाई के लिए आचमन नंबर दो। कौन आदमी बी०ए० पढ़ा है; कौन एम०ए० पढ़ा है बेटे! इससे हमारा कोई रिश्ता नहीं है। आध्यात्मिकता के हिसाब से हम किसी आदमी को यह महत्त्व देने को तैयार नहीं हैं कि आपने बी०ए० पास किया है, एम०ए० पास किया है। बेटे! इससे हमारा कोई ताल्लुक नहीं है। आपका एम०ए० पास करना और बिना पड़ा होना हमारे आध्यात्मिकता के इम्तिहान में एक समान है। ''ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।'' और ''पंडित मूरख एक समान।'' आध्यात्मिकता की दृष्टि से पंडित और मूरख तब तक एक समान हैं, जब तक कि आदमी के विचार करने का तरीका, सोचने का तरीका उत्कृष्ट व आदर्शवादी नहीं हो जाता।