
अंतर्जगत् का स्नान है—आचमन
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दूसरा वाला उद्देश्य क्या है? आचमन है। कितने आचमन करने पड़ते हैं? तीन आचमन करने पड़ते हैं—''ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा। ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा। ॐ सत्यं यश: श्रीर्मयि, श्री: श्रयतां स्वाहा।'' तीन बार आचमन से तीनों शरीरों को स्नान कराना पड़ता है। एक को स्नान कराने से काम नहीं चलता। गायत्री का जप करने से पहले हमें स्नान करना चाहिए। आप बीमार हैं और स्नान नहीं किया है तो आप ऐसा कर लीजिए कि भीगा हुआ तौलिया लेकर उससे आप अपना शरीर पोंछ सकते हैं। धर्म के प्रत्येक कर्मकाण्ड में स्नान आवश्यक है; खासतौर से गायत्री अनुष्ठान में स्नान करके बैठा कीजिए। बिना स्नान के गलती मानी जाएगी। हम किसका स्नान कराते हैं? तीन का स्नान कराते हैं, जो हमारे भीतर निवास करते हैं। कौन-कौन निवास करता है? शरीर नहीं, चमड़ी नहीं। चमड़ी को ही तो आप स्नान करा देते हैं। इससे कोई काम नहीं बनने वाला है। चमड़ी को स्नान करा लिया, नहा लिए। नहीं बेटे! यह नहाना काफी नहीं है। इससे आध्यात्मिकता की आवश्यकता पूरी नहीं हुई। बेटे! तूने पेट में स्नान करा लिया? नहीं महाराज जी! पेट में तो मल भरा हुआ है, पेशाब भरा हुआ है। अच्छा, तो तू उसको नहीं निकाल सकता है, पर यह बता दे कि जो रामनाम के गान करेगा, गायत्री मंत्र बोलेगा, वह किससे बोलेगा? साहब! जीभ से बोलूँगा। जीभ किसकी है? चमड़े की है। अच्छा, इसमें माँस तो नहीं है? हाँ पंडित जी! माँस तो है ही। थूक तो नहीं है? हाँ है। तो इस जीभ को काट दे और फिर प्लास्टिक की जीभ लगा ले। अच्छा महाराज जी! प्लास्टिक की? हाँ बेटे! भजन तो तभी हो सकता है। गंदी जीभ से क्या भजन हो सकता है! इसको स्नान करा। कुल्ला कर लें। हाँ बेटे! कुल्ला कर ले। इसमें जितना भी माँस है, चमड़ा है, सब निकलकर अलग हो जाएगा और खालिश जीभ रह जाएगी। महाराज जी! ऐसे कैसे हो सकता है? यह जीभ तो चमड़े की ही रहेगी।