
बाहर की चमड़ी को न देखें
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महाराज जी! वे कौन-कौन सी तीन धाराएँ हैं? बेटे! ये तीनों धाराएँ वो हैं, जो हमारी चेतना से ताल्लुक रखती हैं। इनमें से एक हमारे कर्म से संबंध रखती है, एक हमारे विचार से और एक हमारे भाव से संबंध रखती है। हमारे तीन शरीर हैं—एक स्थूलशरीर, एक सूक्ष्मशरीर और एक कारणशरीर। स्थूलशरीर का जो आध्यात्मिक स्वरूप है, वे हैं हमारे कर्म। इसकी शक्ल या बनावट पर मत जाइए। एक बार अष्टावक्र राजा जनक की सभा में गए। उनके हाथ-पाँव टूटे हुए थे। वे झुककर चल रहे थे। कूबड़ निकला हुआ था। उन्हें देखकर राजा के सभी सभासद हँसने लगे। उन्होंने राजा के सभासदों से और राजा से कहा—क्यों रे राजा! तैने अपनी सभा में सारे के सारे ऐसे व्यक्ति भर रखे हैं जो केवल चमड़े को देख पाते हैं अंतर के ज्ञान को नहीं। तूने हमारे ज्ञान को क्यों नहीं देखा, जो देखने लायक है। शरीर के वाह्य स्वरूप को क्यों देखता है?