
पहले अंदर का जहर तो निकालिए
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मित्रो! आपके भीतर कषाय-कल्मषों के रूप में जो जहर भरा हुआ है, उसकी सफाई की जरूरत है; उसके निराकरण की जरूरत है; उसको हटाने की जरूरत है। यदि आप यह कर पाएँ तो मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि आपको अध्यात्म के लाभ अवश्य मिलेंगे। अध्यात्म मार्ग में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए पहला वाला जो पाठ पढ़ाया जाता है, पहली वाली जो शिक्षा दी जाती है, वह यह नहीं दी जाती कि कौन सा बीजमंत्र लगाऊँ? माला किस चीज की लूँ? बेटे! माला किसी भी लकड़ी की ले ले। बेटे! यह पाठ पहला नहीं है। यह ग्यारहवाँ है। महाराज जी! बीजमंत्र लक्ष्मी जी का लगाऊँ या हनुमान जी का लगाऊँ? बेटे! चाहे जिसका लगा देना, पर यह पाठ तेरहवाँ है। सबसे पहले पहला वाला पाठ पढ़। नहीं साहब! पहला वाला पाठ पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है। हमको तो फिजिक्स पढ़ाइए, केमिस्ट्री पढ़ाइए। बेटे! यह भी पढ़ाएँगे, पर अभी तो तुझे वर्णमाला भी नहीं आती। गिनती गिनना भी नहीं आता। फिर कुंडलिनी जगा दीजिए, चक्रवेधन का दीजिए और फलाना कर दीजिए। ये बेसिलसिले की बातें, बेसिर पैर की बातें हैं; कुंडलिनी के नीचे तो कोई बात ही नहीं करना चाहता; चक्रवेधन से पहले तो कोई बात सुनना भी नहीं चाहता; आत्मसाक्षात्कार से कम तो किसी की फरमाइश ही नहीं है। भगवान को देखे बिना तो किसी को चैन ही नहीं पड़ता है। मानो भगवान किसी का नौकर है।