धन्वंतरि जयंती पर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग में हुआ दिव्य पूजन समारोह
देव संस्कृति विश्वविद्यालय स्थित फार्मेसी विभाग में आज सुसंस्कार और आरोग्य के देवता भगवान धनवंतरि की आराधना बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ संपन्न हुई। इस अवसर पर आयोजित धनवंतरि पूजन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अखिल विश्व गायत्री परिवार के युवा प्रतिनिधि एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय के आदरणीय प्रति-कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या जी उपस्थित रहे।
डॉ. पंड्या जी ने विधिवत पूजन-अर्चन कर आरोग्य, समृद्धि और सेवा की भावना के संरक्षण हेतु मंगल कामनाएँ कीं। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि “धनवंतरि पूजन केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि यह आयुर्वेद, संयम और जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण का प्रतीक है। स्वास्थ्य का अर्थ केवल रोगमुक्ति नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा की एकात्म संतुलन में निहित है।”
पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचारों के अनुरूप आयुर्वेद केवल चिकित्सा की विधा नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला है, जहाँ औषधियाँ उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं जितनी भावनाएँ।आयुर्वेद में प्रकृति और चेतना का गहरा संवाद है, जो मनुष्य को ‘स्वस्थ’ ही नहीं, ‘समग्र’ बनाता है।
कार्यक्रम के अंत में सभी ने मूहिक रूप से विश्व कल्याण के आरोग्य और कल्याण की कामना की गई। इस अवसर गायत्री परिवार द्वारा लिया गया वह संकल्प जिसके माध्यम से आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर मानवता की सेवा में समर्पित किया जा रहा है वह मूर्त रूप लेता नजर आया। यह अवसर भगवान धनवंतरि और आयुर्वेद की दिव्य परंपरा को समर्पित था — जो शरीर, मन और आत्मा की एकता के माध्यम से आरोग्य को ‘आराधना’ का रूप देती है।
