उत्तरकाशी की दिव्य तपोभूमि — परशुराम मंदिर, जहाँ आचार्य श्रीराम शर्मा ने साधना कर लोकमंगल का संकल्प लिया
उत्तरकाशी। देवभूमि उत्तरकाशी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से हमेशा से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा है। मां गंगा के तट पर स्थित यह नगर सैकड़ों वर्षों से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि माना जाता है। इन्हीं में भगवान परशुराम को समर्पित प्राचीन मंदिर विशेष महत्व रखता है, जिसे अब आचार्य श्रीराम शर्मा आचार्य की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है।
भगवान परशुराम का यह मंदिर उत्तरकाशी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है। कहा जाता है कि यहीं आचार्य श्रीराम शर्मा ने हिमालय यात्राओं और साधना विस्तार का कार्य किया था। इस पावन भूमि पर उन्होंने कई वर्षों तक गहन साधना और तप कर अध्यात्मिक ऊर्जा का प्रसार किया।
वर्तमान में इस मंदिर परिसर में अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा “जन-जागरण अभियान” संचालित है। इस अभियान के तहत योग, ध्यान, यज्ञ और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में नैतिक और आध्यात्मिक जागरण का संदेश फैलाया जा रहा है।
ट्रस्ट के सदस्य अजय बडोला, जय प्रकाश बहुगुणा, सुनील पंवार, नारायण सिंह पंवार सहित स्थानीय श्रद्धालु मंदिर के संरक्षण और विकास में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
आचार्य श्रीराम शर्मा ने 1971 में शांतिकुंज हरिद्वार की स्थापना के बाद भी उत्तरकाशी को अपनी साधना स्थली के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। यहां वे हिमालय की गोद में अध्यात्म और राष्ट्रनिर्माण के सूत्र गढ़ते रहे।
आज भी परशुराम मंदिर श्रद्धालुओं और साधकों के लिए प्रेरणा का केंद्र बना हुआ है। गंगा आरती, दीप प्रज्वलन और भजन-कीर्तन के स्वर इस क्षेत्र को निरंतर पवित्रता और शांति का संदेश देते हैं।
